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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्याय 52 - मनुष्य के साथ परमेश्वर के सम्बंध को साफ रखिए

    मस्तिष्क की नाड़ियां ही जो समस्त देह से सम्पर्क रखती हैं एक मात्र माध्यम हैं जिनके द्वारा स्वर्ग मानव से संसर्ग रखता है और उसके आंतरिकतम जीवन को प्रभावित करता है.स्नायु मंडल के विद्युत प्रवाह के परिभ्रमण को जो भी पदार्थ अव्यवस्थित करता है मार्मिक शक्तियों के बल व जोर को कम करता है और परिणाम यह होता है कि मस्तिष्क की चेतनता निर्जीव हो जाती है.ककेप 298.1

    किसी प्रकार की भी असंयमत ज्ञानइंद्रियों को सुन कर देती हैं और मस्तिष्क की नाड़ी शक्ति को इतना कमज़ोर कर देती है कि आत्मिक विषयों की सराहना नहीं की जाती अपतुि उन्हें आम स्तर पर रखा जाता है.द्विभाग को उच्च शक्तियां जो उच्च अभिप्रायों के लिये निमार्ण की गई हैं अधर्म अभिलाषाओं को दासता में पड़ जाती हैं.यदि हमारी शारीरिक आदतें यथोचत नहीं हैं तो हमारी मानसिक तथा नैतिक शक्तियां मजबूत नहीं हो सकती क्योंकि शारीरिक तथा नैतिक शक्तियों में घनिष्ट सबंध पाया जाता है.ककेप 298.2

    जब मानव परिवार संकट व दु:ख में फंस जाता है तो शैतान देखकर बहुत खुश होता है.वह जानता है जिन लोगों की आदतें गलत और देह अस्वस्थ हैं वे स्वस्थ लोगों की भांति उत्साह, धीरज तथा पवित्रता में परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकते.रोगग्रस्त शरीर मस्तिष्क पर भी प्रभाव डालता है.हम मन ही से परमेश्वर की उपासना करते हैं.सिर देह की राजधानी है. शैतान के विनाश के काम में जिसे वह उत्पन्न करता है जीत होती है जब वह मानव परिवार को बुरी आदतों में फंसाता है जिनसे वे स्वयं नष्ट हो जाते हैं और एक दूसरे को भी नष्ट करते हैं क्योंकि इस प्रकार वह परमेश्वर को यथोचित सेवा से वैचित रखता है.ककेप 298.3

    शैतान निरंतर चौकन्ना है कि मनुष्य जाति को पूर्णत:अपनी अधीनता में लावे.वह मनुष्य पर सबसे जबरदस्त कब्जा क्षुधा द्वारा करता है;और क्षुधा को वह हर सम्भावित तरीके से उत्तेजित करता है.ककेप 298.4