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कलीसिया के लिए परामर्श

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    मदिरा मनुष्य को दास बनाती है

    जब नशीली मदिरा के लिये क्षुधा की तृप्ति की जाती है तो मानव स्वेच्छा से अपने होंठों में वह घंट डालता है जो उसको पशु के दर्जे से नीचे गिरा देता है जो परमेश्वर की छवि पर सृजा गया था.विवेक अपाहज हो जाता है,बुद्धि सुन्न पड़ जाती है,पाशविक इच्छा उत्तेजित हो जाती है,फिर नीच श्रेणी के अपराध उपस्थित होते हैं.ककेप 300.1

    मदिरा के प्रभावधीन वे ऐसे ऐसे काम कर डालते हैं जिन के करने से यदि वे इस पागल करने वाले द्रव्य को न चखते,तो भय के मारे पीछे हटते.जब वे इस तरल विष के प्रभावधीन हैं तो उस समय वे शैतान के कब्जे में हैं.वह उन पर शासन जमाता है और वे उसके साथ सहयोग रखते हैं.ककेप 300.2

    वह इसी तरह काम करता है जब शैतान लोगों को उनकी आत्मा को शराब के लिए बेच डालने के लिए बहकाता है.वह देह,मस्तिष्क और आत्मा पर अधिकार जमाता है अब इसके बाद मनुष्य नहीं किन्तु शैतान सारी कार्यवाही करता है.और शैतान का अत्याचार प्रत्यक्ष दिखाता है जब शराबी अपनी पत्नी को जिसे उसने जीवन भर लाड़ प्यार करने का वायदा किया था मारने के लिये हाथ उठाता है.शराबी की करतूतें शैतान की हिंसात्मक कार्यवाही का विवरण है.ककेप 300.3

    जो लोग मदिरापान करते हैं वे अपने को शैतान के गुलाम बनाते हैं.शैतान उनको प्रलोभन में डालता है जो रेलवे में जहाजों में जिम्मेदारी के पदों पर हैं जो उन किश्तियों अथवा कारों के जिम्मेदार हैं,खेल तमाशे में जाने वाली भीड़ से लदी हैं और जाकर भ्रष्ट क्षुधा की तृप्ति करते हैं.इस प्रकार वे परमेश्वर और उसकी व्यवस्था को भूल जाते हैं.ककेप 300.4

    देख नहीं सकते कि वे किधर जा रहे हैं.गलत इशार दिये जाते हैं और कारें एक दूसरी से टक्कर खाती हैं.तब कंपकपी व भय छा जाता है,हाथ पैर कट जाते हैं तथा मृत्यु हो जाती है.यह दशा और जोरशोर से बढ़ती जाएगी. शराबी की भ्रष्ट प्रवृतियां उसकी संतान में पहुंच जाती है और उनके द्वारा आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाई जाती हैं.ककेप 300.5

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