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कलीसिया के लिए परामर्श

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    सेवंथ-डे ऐडवेनदिस्ट संसार के लिये एक आदर्श

    सम्प्रदाय के नाते हम जगत में धर्म सुधारक, प्रकाश वाहक,परमेश्वर के लिये विश्वस्त पहरेदार हैं जिन्हें हर रास्ते की, जहां से शैतान क्षुधा को भ्रष्ट करने के निमित्त अपने प्रलोभनों को लेकर आ सकता है  रक्षा करनी है.हमारा नमूना तथा प्रभाव सुधार के पक्ष में शक्तिशाली होना चाहिए.हमें इस प्रकार की आदत से जिससे विवेक मंद तथा प्रलोभन को प्रोत्साहन हो दूर रहना चाहिये.हमें कोई द्वार नहीं खोलना चाहिये जिससे शैतान को मानव की बुद्धि में प्रवेश करने का मौका मिले जो परमेश्वर की छवि पर पैदा किया गया है.ककेप 302.7

    सबसे उत्तम सुरक्षित बात यही है कि चाय, कॉफी, तम्बाकू,अफीम तथा नशीले पेयों को न तो छुआ जाय न चखा जाय,न हाथ में लिया जाय.ककेप 303.1

    शैतान के प्रलोभनों का प्रतिरोध करने एवं क्षुधा में लेशमात्र भी लिप्त होने की परीक्षा का सामना करने के लिए, परमेश्वर के अनुग्रह से शक्तिशाली की गई इच्छा शक्ति का प्रयोग आज की पीढ़ी के लोगों की कई पीढ़ियों के पहले के लोगों से दुगुनी आवश्यकता है.परन्तु वर्तमान पीढ़ी में आत्मा नियंत्रण की शक्ति उस समय के लोगों की बनिस्बत कम है.जिन लोगों ने इन उत्तेजित पदार्थों को क्षुधा को स्वीकार है उन्होंने अपनी भ्रष्ट क्षुधाओं और अभिलाषाओं को अपने बालकों तक पहुंचाया हैं इस लिये असंयमता का हर शक्ल में प्रतिरोध करने के लिये अधिकतर नैतिक शक्ति की आवश्यकता है.एक मात्र पूर्णत: सुरक्षित मार्ग यह है कि सयंम के पक्ष में दृढ़ता से डटे रहें और खतरे की सड़क पर पग न रखें. ककेप 303.2

    यदि समस्त बातों में संयम के विषय पर मसीहियों में चेतनता आ जाती तो वे अपने नमूने से, अपनी खाने की मेज से शुरु करके उसकी जो आत्मा नियंत्रण में निर्बल है,जो क्षुधा की इच्छाओं का प्रतिरोध करने में प्राय:निर्बल हैं मदद कर सकते.यदि हम महसूस कर सकते कि जो आदतें हम इस जीवन में डालते हैं उनका हमारे सार्वकालिक हितों पर असर पड़ता है और कि हमारा सार्वकालिक प्रारबध वस्तुत:संयमी आदतों पर निर्भर करता है तो हम खाने पीने में कड़ाई के साथ संयम को बरतते.अपने नमूने और वैयक्तिक कोशिश से हम बहुत से व्यक्तियों को असंयमता,तथा मृत्यु के गड्ढे से बचाने का साधन बन सकते है.हमारी बहिनें अपनी मेजों पर स्वास्थ्यकर और पौष्टिक भोजन रखने से दूसरों के त्राण के भारी काम में बहुत कुछ कर सकती हैं, वे अपनी कीमती समय अपने बालकों के स्वाद और क्षुधा को सुशिक्षित करने में हैं, बच्चों की हर बात में संयम की आदत बनाने में,तथा दूसरों के हितार्थ आत्मा त्याग तथा दानशीलता को प्रोत्साहन करने में व्यतीत कर सकती हैं.ककेप 303.3

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