Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

कलीसिया के लिए परामर्श

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    परमेश्वर के मंदिर को नाश न कीजिए

    इन अंतिम दिनों में शैतान का विशेष काम है कि युवकों व युवतियों के मन पर अधिकार जमावे,विचारों को भ्रष्ट करे तथा इच्छाओं को भड़कावे;क्योंकि वह जानता है कि ऐसा करने से वह उनकी अशुद्ध कार्यों को और अगुवाई कर सकता है और यू समस्त मस्तिष्क की सारी उच्च शक्तियां बिगड़ जायंगी तब वह अपना उल्लू सीधा करने के लिये उन पर नियंत्रण कर सकता है. ककेप 305.1

    मेरी आत्मा उन जवानों की ओर से जो इस अधर्म युग में अपना चरित्र बना रहे है शोकित है. मैं उनके माता-पिता के लिए भी कांपती हूं क्योंकि मुझे बतलाया गया है कि आम तौर पर वे बच्चों को जिस मार्ग में उन्हें चलना है उसकी ओर प्रशिक्षण करने का दायित्व नहीं समझते हैं.दस्तूर तथा फैशन की पूछ होती है और बालक शीघ्र ही इनसे प्रभावित होकर भ्रष्ट हो जाते है जब कि उनके व्यसनी माता-पिता स्वयं चेतनाशून्य तथा खतरे की ओर से सोय हुये हैं.परन्तु थोड़े से ही युवक भ्रष्ट आदतों से बचे हुये हैं.अत्यधिक काम करने के डर से उन्हें किसी हद तक शारीरिक व्यायाम से छुट्टी मिल जाती है.जिस भार को बालकों को उठाना चाहिये उसे माता-पिता को स्वयं उठाना पड़ता है.ककेप 305.2

    अत्यधिक काम अच्छा नहीं है परन्तु आलस्य के परिणामों से और भी अधिक भय खाना चाहिये.आलस्य ही भ्रष्ट आदतों की व्यसन की ओर अनुवाई करता है.परिश्रम से कोई थकावट नहीं होती और उसका पाचवा भाग भी नष्ट नहीं होता जितनी हस्तमैथुन की घृणित आदत से होता है.यदि साधारण सुव्यवस्थित परिश्रम से आपके बालकों को थकावट लगती है तो निश्चय जानिये,माता-पिताओ कि उनके परिश्रम के आलाव कोई चीज है जिससे उन को शरीर रचना क्षीण हो रही और निरन्तर थकावट की भावना पैदा हो रही है.अपने बालकों को ऐसा शारीरिक काम दें जिससे स्नायु तथा मांस पेशियों को व्यायाम मिले.इस प्रकार के परिश्रम के परिणाम स्वरुप थकावट से पतित आदतों में रत रहने की इच्छा घट जायगी.ककेप 305.3

    ऐसी वस्तुओं को देखना तथा पुस्तकों को पढ़ना छोड़ दीजिये जिनसे मंदे विचारों को प्रोत्साहन मिले.नैतिक तथा मानसिक शक्तियों का उपार्जन कीजिए. ककेप 305.4

    परमेश्वर आप से यही मांग नहीं करता कि अपने विचारों पर ही नियंत्रण रखिए अपितु अपनी इच्छाओं तथा प्रेम पर भी.आपका मोक्ष इन्हीं बातों को अधिकार में रखने के ऊपर निर्भर है,लालसा और प्रेम दो शक्तिशाली साधन हैं.यदि गलत रुप में प्रयोग में लाये जायें,यदि गलत विचार से कार्यान्वित किये जायं,यदि गलत जगह पर रखे जाये तो वे आपका सत्यनाश करने को भी वैसे ही शक्तिशाली हैं और आपको एक अभागा अद्भुगी बना के छोड़ देंगे जिसको न कोई परमेश्वर है न कोई आशा.ककेप 305.5

    यदि आप मिथ्या विचारों में रत रहेंगे और अपने मन को अशुद्ध विचारों में लगाये रहेंगे तो आप एक हद तक परमेश्वर के सामने इतना ही दोषी हैं जैसे मानो कि आप के विचार सचमुच में व्यवहार में आये हैं.जो बात इस कार्यवाही को रोक रही है वह यह है कि अवसर साथ नहीं दे रहा है.दिन रात स्वप्न देखना तथा हवा में महल बनाना आदि अत्यधिक खतरनाक आदतें हैं.एक बार यह बन जायं तो ऐसी आदतों को तोड़ना और विचारों को शुद्ध, पवित्र,उच्च विषयों की ओर फेरना अत्यन्त असम्भव है.यदि आप अपनी विचार धारा को काबू में रखना चाहते हैं और व्यर्थ भ्रष्ट विचारों द्वारा अपनी आत्मा को दूषित होने से बचाना चाहते हैं तो आपको अपनी आँख,कान तथा समस्त ज्ञान इन्द्रियों पर विश्वस्त संतरी सा बनना होगा.अनुग्रह की शक्ति ही इस वांछनीय कार्य को सफल कर सकती है.ककेप 306.1

    अत्यधिक अध्ययन के फलस्वरुप दिमाग कीऔर रक्त की गति बढ़ने से दूषित उत्तेजना उत्पन्न होती है जिससे आत्म नियंत्रण की शक्ति निर्बल हो जाती है और अवसर प्रवृति अथवा तरंग को प्रभुत्व प्राप्त होती है.इस प्रकार अपवित्रता का द्वार खुल जाता है.शारीरिक शक्तियों को अनुचित उपयोग अथवा उपयोग न करना संसार पर छाई हुई भ्रष्टता के लिये उतरदायी है.’’घमंड करती,पेट भरके खाती,सुख चैन (आलस्य) से रहती ‘’घमंड,पेट भर के रोटी तथा अत्यधिक आलस्य,इस पीढ़ी में मानव उन्नति के ऐसे घातक शत्रु हैं जिस प्रकार वे सदोम के सर्वनाश का कारण हुये थे.ककेप 306.2

    नीच इच्छाओं में लिप्त से बहुतों की आंखे प्रकाश की ओर से बंद हो जाए क्योंकि वे डरते हैं कि नहीं उन पापों को न देख लें जिन्हें वे छोड़ने को राजी नहीं हैं.यदि सब चाहें तो देख सकते हैं.यदि वे प्रकाश की अपेक्षा अंधियारे को चुने तो उनका अपराध कुछ कम न होगा. ककेप 306.3

    प्रत्येक मसीही का नियम यह होना चाहिये कि परमेश्वर की व्यवस्था के उल्लंघन तथा निरादर करने से भला यही है कि मृत्यु हो जाय.मंडली के रुप से धर्मसुधारक होने का दावा करते हुये परमेश्वर के वचन के अति गम्भीर तथा शुद्धकारी सत्यों को रखकर हमें सत्य के स्तर को जितना वर्तमान में वह है उससे कहीं ऊंचा करना चाहिये.मंडली में पाप और पापियों के साथ तुरन्त तदनुसार बर्ताव करना चाहिये ताकि दूसरे भी भ्रष्ट न हों.सत्य और शुद्धि यही माँग करते है कि आकान जैसे व्यक्तियों से छावनी शुद्ध की जाय.जो जिम्मेदारी की जगह में है उन्हें भाई के पाप की बर्दाश्त न करनी चाहिये.उसको दिखलाइये कि या तो वह अपने में से पाप अलग करे अथवा कलीसिया से अलग हो जाय.ककेप 306.4

    युवक सिद्धान्तों के ऐसे पक्के पाबंद हों कि शैतान का जबरदस्त प्रलोभन भी उन्हें आज्ञाकारित सेन हटा सके.शमुएल ऐसा बालक था जो बहुत कलुषित प्रभावों से घिरा हुआ था. उसने ऐसी बातें देखीं और सुनौं जिनसे उसकी आत्मा को बड़ा दुःख हुआ.एली के पुत्र जो पवित्र पद पर सेवा कार्य करते थे शैतान के नियंत्रण में रहते थे.इन पुरुषों ने अपने चारों ओर के वायुमंडल को दूषित कर दिया था.स्त्री पुरुष दिन प्रति दिन पाप तथा बुराई से आकर्षित होते थे तौभी शमुएल की चाल निर्दोष थी.उसके चरित्र का वस्त्र निष्कलंक था.उसने इस्राएलियों के भयानक पापों की खबरों में कोई भाग न लिया, न प्रसन्नता ही प्रगट की.शमुएल परमेश्वर से प्रेम करता था;वह अपनी आत्मा को स्वर्ग के ऐसे निकट सम्पर्क में रखता था कि एली के पुत्रों के पापों के विषय में जो इस्राएल भ्रष्ट कर रहे थे एक स्वर्गदूत उससे बात करने को भेजा गया.ककेप 306.5