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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्याय 54 - रोगियों के लिये प्रार्थना

    धर्मपुस्तक कहती है,“नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना’’(लूका 18:1)और यदि प्रार्थना की किसी समय आवश्यकता पड़ती है तो वह उस समय होती है जब ताकत जवाब देने लगती है और जब मालूम होता है कि प्राण छुटने वाले हैं.जो स्वस्थ है अवसर वे उन कृपाओं को भूल जाते हैं जो उन पर दिन प्रतिदिन तथा प्रतिवर्ष की जाती हैं और वे परमेश्वर को उन भलाइयों के लिए धन्यवाद नहीं करते,परन्तु बीमारी आने दीजिए और परमेश्वर की याद तुरन्त होती है.जब मानव शाक्ति असफल होती है तब वे परमेश्वर की मदद की आवश्यकता महसूस करते हैं.पर हमारा कृपालु परमेश्वर उसे आत्मा को टाल नहीं देता जो सच्चे मन से मदद मांगती हैं.वे ही हमारी दुख में और सुख में शरण स्थान है.ककेप 309.1

    मसीह आज हमारा वैसा ही करुणामय चिकित्सक है जैसा वह अपनी जागतिक सेवाकार्य के समय था.उसमें हर रोग के लिए चंगा करने वाला मलहम और हर कमजोरी के लिए स्वस्थ करने वाली शक्ति है.इस समय के शिष्यों को बीमारों के लिए वैसे ही प्रार्थना करनी चाहिए जिस प्रकार प्राचीन समय के शिष्ट किया करते थे.तभी स्वस्थता आवेगी ; क्योंकि विश्वास की प्रर्थान रोगी को बचायेगी.’‘ हमारे पास पवित्र आत्मा की शक्ति,विश्वास का शान्त आश्वासन है जिसके द्वारा परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर दावा हो सकता है.परमेश्वर की यह प्रतिज्ञा कि वे हाथ रखेंगे और वे चंगे हो जायंग;’’आज भी इतना ही विश्वास योग्य है जैसा वह प्रेरितों के काल में थी इसमें परमेश्वर की संतान का विशेषाधिकार पेश किया गया है और हमें विश्वास द्वारा उस पर अधिकार कर लेना चाहिए.मसीह के सेवक उसकी सामर्थ्य के साधन हैं और उनके द्वारा वह अपनी चंगा करने की शक्ति का उपयोग करना चाहता है.हमारा कर्तव्य है कि विश्वास की भुजाओं में उठाकर बीमारों और रोगग्रस्तों का मामला परमेश्वर तक पहुंचावे.हमें उनको सिखलाना चाहिए कि महान वैद्य पर विश्वास रखें.त्राणकर्ता चाहता है कि हम बीमारों, निराशों,दुःखियों को प्रोत्साहन दें कि वे उसकी सामर्थ्य को पकड़ लें.ककेप 309.2