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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्याय 4 - परमेश्वर के पवित्र सब्बत का पालन

    सब्बत के पालन करने में बड़ी आशीषं निहित हैं और परमेश्वर की इच्छा है कि सब्बत का दिन हमारे लिए खुशी का दिन हो, जब सब का स्थापन हुआ था तो बड़ी खुशी मनाई गई. परमेश्वर ने सन्तुष्ट होकर अपने हाथ की कारीगरी को देखा. जितनी चीजें उसने बनाई थीं उनको उसने बहुत ही अच्छा कहा, (उत्पत्ति 1:31)स्वर्ग और पृथ्वी आनन्द से भर गये. “जब कि भोर के तारे एक साथ आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जय जय कार करते थे.” अय्यूब 38:7. यद्यपि पाप ने संसार में दाखिल होकर परमेश्वर के कार्य को नष्ट करना चाहा फिर भी परमेश्वर ने हम को सब्बत का दिन साक्षी के रुप में दिया है कि वह जो सर्वशक्तिमान है और जिसकी भलाई व दया अथाह है, उसी ने सारी सृष्टि की रचना कि.सब्बत के प्रतिपालक द्वारा हमारा स्वर्गीय पिता मनुष्यों के बीच अपना ज्ञान सुरक्षित रखना चाहता है. वह चाहता है कि सब्बत के द्वारा हमारे ख्याल उस सच्चे और जीवित परमेश्वर की ओर फेरे जायें और उसको जानने से हमें जीवन तथा शान्ति प्राप्त हो.ककेप 43.1

    जब परमेश्वर ने अपने लोगों को मिस्र से छुड़ाया और उनकी अपनी व्यवस्था देकर सिखलाया कि सब्बत ही के मानने से उनमें और मूर्तिपूजकों में पहचान होगी इसी बात की वजह से परमेश्वर की प्रभुता स्वीकार करने वालों में और उसके सृष्टिकर्ता और सम्राट होने का इन्कार करने वालों में अन्तर पाया जाता है.’’वह मेरे और इस्राएलियों के बीच सदा एक चिन्ह रहेगा. सो इस्राएलियों !’विश्राम दिन को माना करें वरन्, पीढ़ी पीढ़ी में उसको सदा की वाचा का विषय जानकर माना करें.’ ( निर्गमन 31:16,17)ककेप 43.2

    जिस तरह मिस्र से निकलकर पार्थिव कनान में प्रवेश करने के समय सब्बत इस्राएलियों के परिचय देने का चिन्ह थी उसी तरह अब भी परमेश्वर के लोगों की पहिचान का चिन्ह है जो इस संसार से निकल कर स्वर्गीय विश्राम में प्रवेश करते हैं. सब्बत का दिन परमेश्वर और उसके लोगों के बीच के नाते का एक चिन्ह है जिससे प्रगट होता है कि वे उसकी व्यवस्था का आदर करते हैं. यह उसकी विश्वास योग्य प्रजा को अनाज्ञकारियों से पृथक करता है.ककेप 43.3

    मेघ के स्तंभ में से मसीह ने सब्बत के विषय में घोषित किया, ” निश्चय तुम मेरे विश्राम दिनों को मानना क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिन्ह ठहरा है जिससे तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करने हारा है.’’(निर्गमन 31:13)ककेप 43.4

    जिस प्रकार सब्बत दिन परमेश्वर के चिन्ह स्वरुप जगत को दिया गया उसी प्रकार सृष्टिकर्ता उसका चिन्ह जो पवित्र करता है.जिस शक्ति ने सब वस्तुओं की सृष्टि की वह शक्ति परमेश्वर की प्रतिमूर्ति के स्वरुप हमें पुन: सृष्टि करता है. जितने सब्बत को पवित्र रखते हैं उनके लिए यह पवित्रता का चिन्ह स्वरुप है. सच्ची पवित्रता का अर्थ है उसकी अनुरुपता में आना-चरित्र में उसके समान हो जाना. ऐसी स्थिति में हम उसी समय पहुँचते हैं जब हम उसके सिद्धान्तों को ग्रहण कर पालन करते है, जो उसके चरित्र की प्रतिलिपि है, और सब्बत आज्ञापालन का चिन्ह है, जो ह्दय से चौथी आज्ञा का पालन करता है वह सारी व्यवस्था का भी पालन करेगा. आज्ञापालन के द्वारा ही वह पवित्र ठहरता है.ककेप 43.5

    इस्राएलियों की तरह हमको भी सब्बत सदा की वाचा के रुप में दिया गया है, जो उसके पवित्र दिन का आदर करते हैं, उनके लिये सब्बत एक चिन्ह है कि परमेश्वर उनको अपने चुने हुये लोग समझता है. यह एक वायदा है कि परमेश्वर अपनी वाचा को उनके लिये पूरा करेगा. प्रत्येक प्राणी जो परमेश्वर के शासन के चिन्ह को स्वीकार करता है अपने आप को ईश्वरीय तथा सदा की वाचा के अधीन करता है. वह अपने को आज्ञापालन की सुनहरी जंजीर से जोड़ देता है जिसकी प्रत्येक कड़ी स्वयं एक वाचा है.ककेप 44.1