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कलीसिया के लिए परामर्श

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    सब्बत के दिन को स्मरण रखना

    चौथी आज्ञा के आरंभ ही में परमेश्वर ने कहा, “स्मरण रख.’‘ जानता था कि अन गिनित चिन्ताओं तथा व्याकुलताओं के बीच मनुष्य व्यवस्था की पूरी मांगों को पालन न करने से प्रभोलन में पड़ जायगा अथवा उसके पवित्र महत्व को भूल जायगा. इसीलिए उसने कहा, ‘’तू विश्राम दिन को पवित्र मानने के स्मरण रखना.’‘ (निर्गमन 20:8)ककेप 44.2

    सप्ताह भर हमें सब्बत के दिन को स्मरण रखना चाहिए और उसकी आज्ञा के अनुसार मानने के लिए तैयारी करते रहना चाहिए. हम सब्बत को केवल कानूनी बात समझकर न मानें. हमें समझना चाहिए कि उसका आध्यात्मिक प्रभाव जीवन के सारे कारोबार पर पड़ता है. जो सब्बत को अपने और परमेश्वर के बीच एक चिन्ह समझते है कि वह पवित्र करने वाला परमेश्वर है वे उसके राज्य के सिद्धान्तों को प्रगट करेंगे. ये उसके राज्य के नियमों को दैनिक व्यवहार में लायेंगे. प्रतिदिन वे मसीह की संगत में रहेंगे और उसके चाल चलन की भरपूरी का नमूना उपयोग में लायेंगे. प्रतिदिन उनके भले काम दूसरों पर चमकेंगे.ककेप 44.3

    परमेश्वर के कार्य की सफलता में प्रथम विजय घरेलू जीवन में प्राप्त होनी चाहिये. सब्बत की तैयारी का आरंभ यही होना चाहिये. सप्ताह भर माता-पिता को स्मरण रखना चाहिये कि उनका घर एक पाठशाला है जहाँ उनके बालक उन स्वर्गीय राजमहलों के लिए तैयार किये जा रहे हैं. उनके वचन यथोचित होने चाहिये. माता-पिता, के मुंह से ऐसे शब्द नहीं निकलने चाहिये जिन्हें बच्चों को सुनना उचित नहीं है. उनके स्वभाव में चिड़चिड़ेपन का नाम नहीं होना चाहिये. माता-पिता, आपको सप्ताह में ऐसा जीवन रखना चाहिये मानों कि आप उस पवित्र परमेश्वर की उपस्थिति में हो जिसने आपको ये बालक शिक्षण के हेतु दिये हैं. उसके लिए उस छोटी मण्डली का शिक्षण करिये जो आपके घर में है जिससे सब के सब परमेश्वर के मन्दिर में आराधना निमित्त तैयार हो सकें. उसके लोहु द्वारा मोल ली हुई मीरास को प्रात: और साँय दोनों समय उपस्थित करिये. उनको शिक्षा दीजिये कि यह उनका अत्युत्तम तथा सौभाग्य है कि परमेश्वर से प्रेम करें और उसकी सेवा करें,ककेप 44.4

    जब सब्बत इस प्रकार स्मरण किया जायगा तो सांसारिक बातें आध्यात्मिक बातों पर प्रभावित न होने दी जायेंगी. छ: दिनों के भीतर जो काम सम्पूर्ण होने चाहिये वे सब्बत के लिये न छोड दिये जायेंगे. सप्ताह में हमारी शक्तियाँ सांसारिक कार्य से ऐसी थकित न होनी चाहिये कि जिस दिन परमेश्वर ने स्वंय विश्राम किया और ताज्ञा दम हुआ उस दिन हम ऐसे थके प्रतीत हो कि उसकी आराधना में भाग ने ले सकें.ककेप 45.1

    निस्सन्देह सब्बत के लिये हफ्ते भर तैयारी करनी चाहिये फिर भी शुक्रवार विशेष तैयारी का दिन है. मूसा के द्वारा परमेश्वर ने इस्राएलियों को कहा ‘’कल परमविश्राम अर्थात यहोवा के लिए पवित्र विश्राम होगा, इसलिए तुम्हें जो तंदूर में पकाना हो उसे पकाओ और जो सिझाना हो,उसे सिझाओ, और इसमें से जितना बचे उसे बिहान के लिए रख छोडो. ” “लोग इधर-उधर जाकर उसे (मान) बटोरने और चक्की में पीसने या ओखली में कूटते थे; फिर तसले में पकाते और उसके फुलके बनाते थे.” (निर्गमन 16:23; गिनती 11:8)ककेप 45.2

    स्वर्ग से दी हुई रोटी से इस्राएलियों को कुछ तैयार करना था. परमेश्वर ने कहा था कि यह सारा काम शुक्रवार तैयारी के दिन होना चाहिये.ककेप 45.3

    शुक्रवार को सब्बत की सारी तैयारी समाप्त हो जानी चाहिये. देखो कि सारे कपड़े तैयार हैं और पकाने की सारी वस्तुएं समाप्त हो चुकी हैं. जूतियों की पालिश और स्नानादि सब कार्य हो चुके हों. ऐसा करना सम्भव है. यदि आप ऐसा नियम बना लें तो यह हो सकता है. सब्बत का दिन कपड़ों की मरम्मत तथा खाना पकाने में, भोगविलास में अथवा किसी सांसारिक कार्य में व्यतीत नहीं करना चाहिये. सूर्य अस्त होने से पहिले सारे दुनियादारी का कार्य एक ओर सांसारिक समाचार पत्र दृष्टि से दूर कर देने चाहिये. हे माता-पिताओं अपने कार्य और उनका अभिप्राय बालकों को समझाओं और उन्हें आपकी आज्ञानुसार सब्बत मानने की तैयारी में भाग ले लेने दो.ककेप 45.4

    हम को सब्बत के किनारों की बड़ी उत्सुकता से रक्षा करनी चाहिये. याद रखिये कि प्रत्येक क्षण पवित्र समय है. जहाँ सम्भव है मालिकों को अपने कर्मचारियों को शुक्रवार के दोपहर से सब्बत के आरंभ तक छुट्टी देनी चाहिये. उनको भी तैयारी के लिये समय मिलना आवश्यक है कि वे प्रभु के दिन का हृदय की खामोशी के साथ स्वागत करें. इस प्रकार करने से सांसारिक मामलों में भी आपको कोई हानि न होगी.ककेप 45.5

    एक और भी काम है जिसे तैयारी के दिन ध्यान में रखना चाहिये इस दिन में परिवार तथा मण्डली में बंधुओं के बीच जो मतभेद हो उसको दूर कर देना चाहिये. मन से ईष्र्या, क्रोध तथा डाह निकाल देना चाहिये. कोमल हृदय से एक दूसरे के सामने अपने अपने पापों को मान लो और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो. जिससे चंगे हो जाओ.’‘ (याकूब 5:16)ककेप 45.6

    सब्बत के दिन कोई बात ऐसी नहीं कहनी चाहिये अथवा करनी चाहिये जिससे स्वर्ग की दृष्टि पवित्र सब्बत की आज्ञा का उल्लघंन होता है. परमेश्वर हमसे यही नहीं तलब करता है कि हम सब्बत के दिन शारीरिक कार्य से ही बाज रहे अपितु हमारे मन की ऐसी व्यवस्था हो कि वह पवित्र विषयों पर लगा रहे. चौथौ आज्ञा का वास्तविक रुप में उल्लघंन किया जाता है जब हम सांसारिक विषयों पर अथवा हल्की व व्यर्थ बातों पर बातचीत करते हैं. हर विषय पर जो मन में आ जाये बात करना अपनी ही बातें बोलने के बराबर है. सत्य से फिर जाना हमें दासत्व और दण्ड आज्ञा में ले आता है.ककेप 45.7