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कलीसिया के लिए परामर्श

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    परमेश्वर पैदावार का दसवाँ भाग चाहता है

    दशमांश का नियम मूसा के काल से भी पूर्व से चला आ रहा है. मनुष्यों से मूसा के विशेष नियम देने से पूर्व आदम के दिनों तक मांग की जाती थी कि धार्मिक कार्य के लिये परमेश्वर को दान चढ़ावें. परमेश्वर की मांगों को स्वीकार करने में वे भेंटों द्वारा परमेश्वर की करुणाओं तथा वरदानों के सन्ती अपनी कृतज्ञता प्रकट करते. आने वाली पीढ़ियों में यह कार्य जारी रहा इसका इब्राहिम ने पालन किया जिसने मलकिसिदक परमेश्वर के याजक को दशमांश दिया था. यही सिद्धांता अय्यूब के दिनों में उपस्थित था. जब याकूब निर्वासित तथा निर्धन अवारा की तरह बैतेल में रात्रि के समय सुनसान ,विरान में एक पत्थर सिरहाने रखकर लेट गया तो उसने परमेश्वर से वाचा बांधी, “जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करुंगा.’’(उत्पत्ति 28:22)परमेश्वर लोगों को दान देने पर विवश नहीं करता. जो कुछ लोग दें स्वेच्छा से हो.अनिच्छुक दान द्वारा वह अपने खजाने को न बढ़ायेगा.ककेप 76.2

    कितनी रकम की आवश्यकता है परमेश्वर ने स्पष्टता से दर्शा दिया है उपज का दसवां भाग. यह बात लोगों के अंत:करण और दयाशीलता पर छोड़ दी गई है कि वे दशमांश के नियम में अपना विवेक स्वतंत्रता से प्रयोग करें.यद्यपि दशमांश का सिद्धांत विवेक पर छोड़ दिया गया है फिर भी एक योजना बनाई गई है जो सब के लिये स्पष्ट है. इसमें कोई विवशता क प्रश्न नहीं है.ककेप 76.3

    परमेश्वर ने मूसा के समय में लोगों से चाहा था कि वे अपनी सारी पैदावार का दशवां भाग देवें. उसने उन्हें जीवन के सारे पदार्थ सौंपे और बुद्धि के हेतु योग्यताएं दी ताकि उन्हें फिर उसी की लौटा दी जायं. वह कहता है, “मैं तुम्हें नौ भाग देता हूँ और एक भाग मांगता हूँ जो मेरा है.’’जब लोग दसवां भाग रोक लेते हैं तो वे परमेश्वर को लूटते हैं. उनको बढ़ती के दसवें भाग के अलावा पापबलि,मेलबलि, धन्यबलि की भी मांग होती थी.ककेप 76.4

    जो कुछ परमेश्वर दावा करता है अर्थात उपज का दसवां उसमें से जो कुछ रोक लिया जाता है वह रोकने वाले के विरुद्ध स्वर्गीय पुस्तकों में चोरी व डकैती जैसी दर्ज की जाती है. ऐसे लोग सृजनहार को ठगते हैं और जब लापरवाही का यह पाप उनके सामने लाया जाता है तो यह काफी नहीं है कि वे अपना ढंग बदल डालें और उस समय से आगे यथोचित सिद्धांत पर चलने लगे.ककेप 76.5

    इससे उस सम्पति के अपहरण के लिये जो उन्हें धरोहर के रुप सौंपी गई थी की वे उसे महाजन को वापिस करें स्वर्गीय वही के आंकड़ों में कोई संशोधन न होगा. परमेश्वर के संग बेईमानी के लेन-देन करने और कृतघ्नता के लिये पश्चाताप की आवश्यकता है.ककेप 76.6

    जब कभी परमेश्वर के लोगों ने किसी भी युग में उसकी योजना का खुशी से तथा इच्छापूर्वक पालन किया है और उसकी मांगों को स्वीकार किया है, अपनी सम्पति से उसका सम्मान किया है तो उनकै खलिहान बहुतायत से भर गये. परन्तु जब-जब वे परमेश्वर को दशमांश अथवा भेंटों में ठगते थे उनको महसूस कराया गया कि वे न केवल उसको ही ठगते थे परन्तु आप को भी ठगते थे क्योंकि उसने अपनी आशीषों को उन तक उसी अनुपात से सीमित कर दिया जिस अनुपात से उन्होंने अपनी भेटे सीमित कर दी थी.ककेप 77.1

    जो मनुष्य दुर्भाग्य वश ऋणी हो जाता है उसको परमेश्वर के हिस्से में से अपने पड़ोसी का ऋण नहीं चुकाना चाहिये. उसको सोचना चाहिए कि इस प्रकार के लेन-देन में उसकी जाँच हो रही है और परमेश्वर का भाग अपने लाभ के लिये रोक लेने में वह दाता को लूट रहा है. प्रथम वह सारी संपत्ति के लिए जो उसके पास है परमेश्वर का ऋणी है अब वह दो गुना ऋणी हो जाता है जब वह परमेश्वर का हिस्सा रोक कर मनुष्यों का कर्जा चुकाता है. स्वर्ग की पुस्तकों में उसके नाम के आगे ‘परमेश्वर का विश्वासघाती’‘ लिखा जाता है. उसको परमेश्वर के साथ हिसाब चुकता करना है क्योंकि उसने परमेश्वर के रुपये पैसे को अपनी सुविधाओं में लगाया है. ककेप 77.2

    परमेश्वर के रुपये के अपहरण में जिस सिद्धांत का हनन किया गया वही दूसरे विषयों के प्रबंध में भी प्रत्यक्ष नजर आयेगा. वह उसके कारोबार में भी दिखाई देगा.जो मनुष्य परमेश्वर को ठगता है वह ऐसे चालचलन का पोषण कर रहा है जो उसको परमेश्वर के परिवार में शामिल होने से पृथक रखेगा.ककेप 77.3