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कलीसिया के लिए परामर्श

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    भावनाएं मात्र पवित्रता का लक्षण नहीं है

    प्रसन्नचित अथवा प्रसन्नता का अभाव कोई प्रमाण नहीं है कि अमुक व्यक्ति पवित्र या अपवित्र है. तत्काल पवित्रता ऐसी कोई वस्तु नहीं है.सच्ची पवित्रता नित्य का कार्य है और जीवन पर्थ्यन्त जारी रहेगी.जो नित्य के प्रलोभनों से युद्ध कर रहे हैं,अपनी अपराधी प्रवृतियों पर विजय प्राप्त कर रहे हैं और हृदय और जीवन की पवित्रता की तलाश में हैं.वे पवित्रताई का गर्वीला दावा नहीं करते.वे धार्मिकता के लिये भूखे और प्यासे हैं.उनको पाप अत्यन्त घृणामय दीखता है.ककेप 97.5

    परमेश्वर हमें हमारे पापों के कारण त्याग नहीं देता.हम गलती भी करें और उसकी आत्मा को दुःखो करें परन्तु जब हम पश्चाताप करते हैं और नम्र हृदय से उसके पास आते हैं तो वह हमें भगा नहीं देगा रुकावटें हैं जिन्हें दूर होना चाहिये.गलत भावनाओं का पालन किया गया और घंमड, अहंकार,उतावलापन और बुड़कुड़ाहट को जगह दी गई है.ये सब हम को परमेश्वर से दूर रखते हैं. पापों को मान लेना चाहिये, हृदय में अनुग्रह का गहन कार्य होना अवश्य है.जो अपने को कमज़ोर व निराश महसूस करते हैं वे परमेश्वर के लिये बलवान पुरुष बन सकते हैं, और स्वामी के लिये उत्तम कार्य कर सकते हैं.परन्तु उनको उच्च सिद्धान्त के बिन्दु से कार्य करना चाहिये;उनको किसी स्वार्थपूर्ण प्रभाव से प्रभावित नहीं होना चाहिये.ककेप 98.1

    कुछ लोग ऐसा महसूस करते प्रतीत होते हैं कि उन्हें पहिले परीक्षाकाल में रखना चाहिये और परमेश्वर को प्रमाणित कर दिखाना चाहिये कि उनका सुधार हो चुका है तभी वे उसकी आशीषों के अधिकारी हो सकते हैं. पर ये प्रिय जन उसकी आशीष को अभी-अभी लेने का दावा कर सकते हैं. उनको उसके अनुग्रह को और मसीह के आत्मा को प्राप्त करना चाहिये कि उनकी निर्बलता में सहायता हो अन्यथा उनके मसीही चालचलन का निर्माण नहीं हो सकता.यीशु चाहता है कि जैसे भी हैंपापी,लाचार,आश्रित,उसके पास चले आवें.ककेप 98.2

    पश्चाताप तथा क्षमा मसीह में परमेश्वर के वरदान हैं.पवित्र आत्मा के प्रभाव के द्वारा हम पाप की ओर से दोषी ठहराये जाते हैं तभी तो क्षमा की जरुरत को महसूस करते हैं.केवल नम्र लोगों को ही क्षमा मिलेगी परन्तु परमेश्वर का अनुग्रह ही हृदय को पश्चातापी बनाता है. वह हमारी सारी निर्बलताओं व कमजोरियों से परिचित है इसलिये वह हमारी सहायता अवश्य करेगा.ककेप 98.3

    कभी-कभी आत्मा के ऊपर अधेरा और निराश छा जायगा, जो हमको डुबाने की धमकी देंगे परन्तु हमें अपना साहस त्याग नहीं देना चाहिये.हमें अपनी निगाह यीशु पर केन्द्रित करनी चाहिये चाहे महसूसियत हो या न हो.हम को विश्वस्त रुप में प्रत्येक कर्तव्य को निभाने का प्रयत्न करना चाहिये फिर शांतिपूर्वक परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर भरोसा रखना चाहिए.ककेप 98.4

    कभी-कभी हमारी अयोग्यता के कारण आत्मा पर भय की सनसनी छा जायेगी परन्तु यह सबूत नहीं है कि परमेश्वर ने अपनी दृष्टि हमारी ओर से पलट ली है अथवा हमने भी ऐसा ही किया है.मस्तिष्क को उमंग प्रचंडता की किसी हद तक लाने के लिये कोई प्रयत्न नहीं करना चाहिये.हम जिस शांति व आनंद का अनुभव कल कर रहे थे,शायद आज न करें परन्तु हमें विश्वास से मसीह का हाथ पकड़ना चाहिये और उस पर अंधेरे में भी ऐसा पूर्ण विश्वास रखना चाहिये जैसा उजाले में विश्वास द्वारा उन मुकुटों को देखिये जो जय पाने वालों के लिये रखे गये हैं,त्राण पाये हुओं के आनन्द के गीत को सुनिये,सुयोग्य है.सुयोग्य है वह मेम्ना जो वध किया गया था और जिसने हमारा उद्धार किया है.इन दृश्यों को वास्तविक समझने का प्रयत्न कीजिये.ककेप 98.5

    यदि हम अपने मन को मसीह पर और स्वर्गीय संसार पर लगाये रखें तो हमको परमेश्वर के लिये युद्ध लड़ने में जबरदस्त उत्तेजना व सहारा मिलेगा.सांसारिक घमंड व स्नेह का अधिकार जाता रहेगा, जब हम उस उत्तम देश की महिमाओं पर सोच विचार करते हैं जो शीघ्र ही हमारा निवास स्थान होने वाला है.मसीह की अति सुन्दरता के सामने सारे सांसारिक आकर्षक पासंग भी नहीं,ककेप 99.1

    यद्यपि पौलूस आखिरकार रुमी बन्दीगृह में बन्द आकाश की धूप व वायु से वंचित, सुसमाचार के सतर्क परिश्रम से पृथक था और पल पल में मृत्यु की राह ताक रहा था फिर भी संदेह नैराश्य को उसने पास नहीं फटकने दिया.उस अंधेरे कारागार से उसने उत्कृष्ट विश्वास और धैर्य से पूर्ण अंतिम गवाही दी जिसने तत्पश्चात युगों के भक्तों तथा शहीद के हृदय को प्रेरित किया है.उसके शब्द उस पवित्रताई के परिणामों को जिनका हमने इन पृष्ठों में वर्णन करने की चेष्टा की है उचित रीति से प्रदर्शित करते हैं. “क्योंकि अब मैं अर्ध की नाईं उंडेला जाता हूँ,और मेरे कूच का समय आ पहुँचा हैं.मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ. मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है.भविष्य में मेरे लिए धर्म का मुकुट रखा हुआ है जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन और मुझे ही नहीं, वरन् उन सब को भी, जो उसके प्रकट होने को प्रिय जानते हैं.’‘ (2तिमोथी 4:6-8)ककेप 99.2