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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अधिकार जिनसे कलीसिया विभूषित की गई

    मसीह कलीसिया की आवाज को शक्ति देता है, “मैं तुम से सच कहता हूँ, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बांधोगे,वह स्वर्ग में बांधेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे,वह स्वर्ग में खुलेगा.’’(18:18)यदि कोई मनुष्य अपनी ही व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर काम शुरु करे और अपने ही विचारों का जिन्हें वह प्रसंद करे प्रचार करे और कलीसिया के निर्णय को परवाह न करे तो ऐसी वस्तु को स्वीकृति नहीं दी जाएगी.परमेश्वर ने स्वर्ग के बीच अपनो कलीसिया को उच्च अधिकार प्रदान किया है.कलीसिया के हैसियत से उसके संगठित लोगों में जब परमेश्वर की वाणी सुनाई देती है तो उसका समुचित सम्मान होना चाहिए.ककेप 101.5

    परमेश्वर का वचन किसी भी एक व्यक्ति को अपने निर्णय की कलीसिया के प्रतिरोध में स्थापित करने की आज्ञा नहीं देता,न उसको इस बात की आज्ञा ही कि अपनी सम्मति को कलीसिया की सम्मति के विरुद्ध उसकावे.यदि कलीसिया में नियम व शासन न हों तो उसमें फूट पड़ जाएगी.वहो संगठित होकर एक अंग नहीं रह सकती.ऐसे भी लोग हुए हैं जिनके विचार स्वतंत्र रहे जो दावा करते थे कि उनका कथन सत्य था कि उन्हें परमेश्वर ने सिखाया,प्रभावित किया और मार्ग दर्शन भी उसके विचार परमेश्वर के वचन के अनुकूल हैं. प्रत्येक का सिद्धांत और विश्वास भिन्न-भिन्न है फिर भी वह दावा करता है कि उसको परमेश्वर से विशेष प्रकाश प्राप्त हुआ है. ये उस अंग से पृथक हो जाते हैं और प्रत्येक स्वयं एक मंडली बन जाता है.ये सब के सब सत्य पर नहीं हो सकते फिर भी वे दावा करते हैं कि परमेश्वर हमारी नेतृत्व कर रहा है.ककेप 102.1

    हमारा सृष्टिकत आदेश सम्बंधी पाठों के साथ प्रतिज्ञा भी करता है कि यदि दो या तीन मिलकर परमेश्वर से किसी वस्तु को मांगे तो वह उनको दी जायेगी.यहां पर मसौह दिखलाता है कि दूसरों के साथ किसी दी हुई वस्तु के लिये हमारी इच्छाओं में भी ऐक्य होना जरुरी है.संयुक्त प्रार्थना में अभिप्राय के ऐक्य के साथ बड़ा महत्व सम्मिलित है.परमेश्वर व्यक्तियों की प्रार्थना सुनता है पर इस अवसर पर यीशु को विशेष और महत्वपूर्ण पाठ दिये गये जिनका उसकी पृथ्वी पर की नव संगठित कलीसिया से विशेष सम्बंध होने को था.जिन बातों की वे इच्छा करें तथा जिनके लिये वे प्रार्थना करें उनमें मेल होना चाहिये.केवल एक ही मन के विचार तथा कार्य नहीं होने चाहिए जिसका परिणाम धोखा हो सकता है, परन्तु वह प्रार्थना कई मनों उत्साहपूर्ण इच्छा हो जो एक ही विचार पर केन्द्रित हों.ककेप 102.2

    कलीसिया मनुष्यों के सृष्टि के हेतु एक नियुक्त साधन है.वह सेवाकार्य के निमित व्यवस्थित की गई और उसका ध्येय जगत को सुसमाचार पहुंचाना है.आदि से परमेश्वर की यही योजना रही है कि उसकी कलीसिया द्वारा उसकी भरपूरी और समृद्धशाली का प्रतिबिम्ब संसार पर पड़े.कलीसिया के सदस्यों को जिन्हें उसने अंधियारे से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसकी महिमा को प्रगट करना चाहिये.कलीसिया मसीह के अनुग्रह की धन सम्पति का भंडार है और कलीसिया ही के द्वारा,अंत में “आकाश में के प्रधानों और अधिकारियों’‘ पर परमेश्वर के प्यार का अंतिम व पूर्ण प्रदर्शन प्रकट किया जायगाककेप 102.3