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कलीसिया के लिए परामर्श

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    जरुरतमंदों की किस प्रकार सहायता करें.

    जरुरतमंदो की मदद के ढंगों पर सावधानी तथा प्रार्थना के साथ विचार करना चाहिए.हमें इस देशों में परमेश्वर से बुद्धि की खोज करनी चाहिए क्योंकि उसका ज्ञान अल्प दृष्टि, नश्वर मानव से कहीं बढ़ कर है जो जानता है कि अपने पैदा किये हुए प्राणियों की किस प्रकार रक्षा करनी चाहिए.कुछ ऐसे लोग हैं जो हरएक को जो उनसे सहायता की प्रार्थना करता है अंधाधुंध दान देते हैं.इसमें वे भूल करते हैंगरीब की सहायता करने में हमें जरा सावधान होना चाहिए कि उनकी यथोचित सहायता करें.ऐसे भी लोग है जिनकी एक बार मदद कर दी जाय तो ऐसा दिखाएंगे कि वे लगातार सहायता के विशेष पात्र बने रहें.वे सर्वदा उन्हीं का आश्रम लेंगे जब तक उन्हें मिलता रहेगा.इन पर समय तथा ध्यान को अनुचित रीति से प्रयोग करने से हम आलस्य,विवश्ता, अपव्ययता तथा असमता को प्रोत्साहन दे रहे हैं.ककेप 125.3

    जब हम गरीबों को देते हैं तो हमें विचार करना चाहिए: क्या मैं अपव्ययता को तो प्रोत्साहन नहीं दे रहा हूँ? क्या में उनकी मदद कर रहा हूँ अथवा उनको हानि पहुँचा रहा हूँ ?’‘ किसीभी मनुष्य को जो अपनी जीविका उर्पाजन कर सकता है किसी दूसरे पर आश्रम लेने का अधिकार नहीं.परमेश्वर के भक्तों को अर्थात् विवेकी व बुद्धिमान ज्ञानी पुरुव, स्त्रियों को जरुरतमंदों विशेषकर विश्वासी भाइयों की देखरेख के लिए नियुक्त करना चाहिए.उन्हें मंडली को सूचित करना चाहिए और जो कुछ करना हो उसके विषय में विचार करना चाहिए.ककेप 125.4

    परमेश्वर यह मांग नहीं करता कि जितने गरीब परिवार इस संदेश को ग्रहण करेंगे उन सब की देख रेख हमारे भाइयों को करनी पड़ेगी. यदि उन्हें ऐसा करना जरुरी है तो मंडली के अध्यक्षों को नये क्षेत्रों में प्रवेश नहीं करना चाहिए अन्यथा कोष खाली हो जाएगा. अनेक अपनी मेहनत व मित्रव्ययता की कमी के कारण गरीब है;उनको पता नहीं कि रुपये पैसे का यथोचित प्रयोग कैसे करें. यदि उनकी मदद की जाये तो उनको हानि पहुँचेगी. कुछ लोग सर्वदा गरीब ही रहेंगे.यदि उनको अच्छे-अच्छे मौके मिलें तो भी उनकी सहायता नहीं हो सकती.उनका हिसाब किताब ठीक नहीं हैं और वे सारे रुपये पैसे को उड़ा डालेंगे चाहे वह थोड़ा हो या अधिक.ककेप 125.5

    जब इस प्रकार के लोग संदेश को ग्रहण करते है तो वे सोचते हैं कि अब वे अधिक धनवान भाइयों की मदद के हकदार हैं और यदि उनकी आशाओं की पूर्ति न की जया तो वे मंडली की शिकायत करते हैं और दोष लगाते हैं कि वह अपने धर्मानुसार नहीं चल रहा है.इस दशा में किसको नुकसान उठाना चाहिए. इन बड़े-बड़े गरीब परिवारों की देख रेख करने के लिए कोष को खाली कर परमेश्वर के काम को दुर्बल कर दिया जाय? नहीं, माता-पिताओं को ही दुःख भोगना चाहिए. सामान्य तौर पर उनको सब्बत के सत्य को ग्रहण करने के बाद पहले की अपेक्षा अधिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा.ककेप 125.6

    परमेश्वर हर मंडली के सीमान्तर्गत गरीबों को रहने देता है.वे हमेशा हमारे बीच में रहेंगे और प्रत्येक मंडली के सदस्य के ऊपर परमेश्वर उनकी देख रेख का दायित्व रखता है.हम को अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर नहीं डालनी चाहिए, जो हमारी सीमा के अन्दर हैं उनकी ओर वही प्यार और सहानुभूति दिखलानी चाहिए जैसा मसीह हमारे स्थान में हो के दिखलाता.इस प्रकार हमारा शिक्षण होना चाहिए कि हम मसीह के ढंग पर काम करने को तैयार हो सकें.ककेप 126.1

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