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कलीसिया के लिए परामर्श

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    नि:स्वार्थ जीवन से परमेश्वर को प्रकट कीजिए

    स्वार्थ ही वह पाप है जिसमे लोग अत्यधिक लिप्त रहते हैं, जो हमें परमेश्वर से दूर कर देता है और छुत लगने वाली आध्यात्मिक बीमारियों को उत्पन्न करता है.परमेश्वर की ओर फिरने का कोई और मार्ग नहीं है सिवाय आत्मत्याग के.अपनी ओर से हम कुछ नहीं कर सकते परन्तु परमेश्वर की सहायता से हम दूसरों की भलाई कर सकते हैं और इस प्रकार स्वार्थ की बुराई को परित्याग कर सकते हैं. नि:स्वार्थ उपयोगी जीवन में अपना सर्वस्व ईश्वर के नाम पर अर्पण करने की इच्छा प्रकट करने के लिए अन्यजातियों के देश में जाने की जरुरत नहीं. यह तो हमें अपने कौटुम्बिक वृत में, अपनी कलीसिया में,उनके बीच जिनसे हमारा व्यवहार तथा लेन-देन होता है कर दिखलाना चाहिए;सामान्य जीवन जहां स्वार्थ का इन्कार करना चाहिए और काबू में रखना चाहिए.पौलूस कह सकता था; “मैं रोज मरता हूँ.’‘ जीवन के छोटे छोटे कारोबारों में हमें स्वयं को भूल जाना चाहिए. अनेकों में निश्चित रुप में दूसरों के लिए प्यार की कमी है. ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करने की अपेक्षा अपने ही भोग-विलाप की खोज में रहते हैं. ककेप 138.3

    स्वर्ग में स्वार्थ के बारे में कोई न सोचेगा न अपने ही सुख-चैन की तालाश में रहेगा.परन्तु सब के सब सच्चे प्रेम से अपने अपने चारों ओर के स्वर्गीय प्राणियों के सुख की चिन्ता करेंगे. यदि हम नई पृथ्वी पर स्वर्गीय समाज का आनन्द लेना चाहते हैं तो हमें यहां स्वर्गीय सिद्धांतों से शामिल होना चाहिए.ककेप 138.4

    मुझे दिखलाया गया कि हमारे दर्मियान आपस में एक दूसरे से बहुत कुछ तुलना की जाती है और नाशमान मनुष्य को अपना नमूना बनाया जाता है जब कि एक सच्चा और निर्दोष नमूना मौजूद है. हमें अपने को न तो संसार के नाप से,न ही मनुष्यों की राय से,न सच्चाई को ग्रहण करने से पूर्व की स्थिति से नापना चाहिए, परन्तु संसार से मसीह के अनुयायी होने के इकरार करने के समय से यदि हम अपनी प्रगति (चाल) में निरंतर आगे और ऊपर की ओर बदले रहते तो हम विश्वास तथा स्थिति की जिस उच्च शिखर को पहुंचते,हमारे वर्तमान विश्वास तथा स्थिति का मुकाबला उसी से करना चाहिए. किसी और तुलना में आत्मधोखा अवश्य होगा. यदि परमेश्वर के लोगों का नैतिक आचरण तथा आध्यात्मिक स्थिति उन आशीषों,शुभावसरों तथा प्रकाश के अनुकूल जो उन्हें प्रदान किए गये हैं नहीं है तो उससे प्रकट होता है कि वे तुला में तौले गये हैं और स्वर्गदूतों सूचित करते हैं कि वे कम उतरे हैं. ककेप 139.1

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