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मसीही सेवकाई

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    आंतरिक और बाहरी प्रचार कार्य

    घरेलू प्रचार हर तरह से आगे बढ़ेगा जब हर व्यक्ति स्वंतत्र स्वयं का इंकार करने वाला तथाबलिदान देने वाली आत्मा से कार्य करेगा, तो बाहरी प्रचार कार्य भी सम्पन्न होगा। क्योकि घरेलू काम का सफलता पाना मुख्यतः परमेश्वर की निगरानी में, निर्भर करता है कि सुसमाचार प्रचार कार्य का कितना अधिक प्रभाव दूर-दराज के देशों पर पड़ा है। ये सब सक्रिय रूप से काम करने तथा प्रभु के काम को करने के लिये जरूरी वस्तुओं की पूर्ति पर भी निर्भर है कि हम हमारी आत्माओं को सभी सामर्थ के स्रोत के करीब लाते है। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 6:27)ChsHin 235.2

    एक अमेरिकन व्यापारी ने जो एक वफादार मसीही था उसने अपने एक सहायक कार्यकर्ता से बात करते हुये कहा कि वह दिन के 24 घण्टे प्रभु यीशु के लिये काम करता है। “मेरे सारे व्यापार संबंधो में मैं अपने प्रभु का उदाहरण देता हूँ जब भी मुझे अवसर मिलता है मैं दूसरों को उसके लिये जीतने का प्रयास करता हूँ। पूरा दिन मैं प्रभु के लिये देता हूँ जब भी मुझे अवसर मिलता है मैं दूसरो को उसके लिये जीतने का प्रयास करता हूँ। पूरा दिन मैं प्रभु लिये काम करता हूँ और रात में जब मैं सोता हूँ तो चीन में एक व्यक्ति है जो उसके लिये काम करता है।” अपने वक्तव्य में उसने जोड़ा ‘मैंने अपनी जवानी में ही अन्य जाति के लिये मिशनरी होने का निर्णय लिया था किन्तु पिता की मष्यु होने पर मुझे यह व्यापार अपने हाथों में लेना पड़ा ताकि मैं अपने परिवार की देखभाल कर सकूँ। अब मैं स्वयं न जाकर एक मिशनरी की सहायता करता हूँ चीन के क्लां-क्लां शहर में मेरा कार्यकर्ता ठहरा हुआ है। और इस प्रकार जब मैं सो रहा होता हूँ तब अपने सहायक के द्वारा प्रभु का काम करता रहता हूँ।” क्या ऐसे सातवे दिन का पालन करने वाले नहीं हो सकते? जो इस व्यक्ति के समान काम करें। सेवकों को कलीसिया में प्रचार कार्य करने के बदले, जो पहले से ही सच्चाई जानते है, कलीसिया के लोग ऐसे मजदूरों को कहें “जाओं’ उन आत्माओं को बचाने क लिये काम करो जो नाश होने वाली हैं, अंधकार में है। हम स्वयं कलीसिया की सेवायें पूरे कर सकते हैं। हम सभायें रखेगें, और प्रभु यीशु की संगति में आत्मिक जीवन जीयेगें। हमारे आस-पास के लोगों को सुसमाचार सुनायेगें। हमारी प्रार्थनायें और उपहार उन मजदूरों के द्वारा जरूरतमंदों और अकाल ग्रस्त क्षेत्रों के लिये भेजेगें। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 6:29,30) ChsHin 235.3

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