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मसीही सेवकाई

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    धर्मोपदेशकों का परिश्रम एवं बलिदान

    हमें हमारे नौजवानों में आत्मविश्वास जगाने की आवश्यकता हैं, उन्हें हर एक क्षेत्र में आगे आने और बढ़ चढ़कर काम करने तथा परिश्रम व बलिदान करने के लिये तैयार करना चाहिए। जब ये प्रभु के बन्दे लोगों के पसंदीदा सलाहकार बन जायेंगे, तो वे उन लोगों को भी उत्साहित और आषिशित करेंगे, जो परमेश्वर का काम बड़े जोश-खरोश से करते हैं। (काऊन्सिल टू पेरेन्ट्स, टि चर्स एण्ड स्टूडेन्ट्स- 516, 517) ChsHin 42.2

    जवान लोगों की आवश्यकता है। परमेश्वर उन्हें प्रचार कार्य के क्षेत्र में बुलाता है। सांसारिक जिम्मेदारियों व चिंताओं से मुक्त ऐसे जवान प्रचार कार्य में अधिक रूचि से काम करने में अपने आप को लगा सकते हैं वनस्पति उनके जिन्हें परिवार की बड़ी जिम्मेदारी और प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। और आगे भविश्य के लिये जवान लोग अपने आपको नये वातावरण, नये समाज के लोगों से अपने आप मिलकर उन्हे अपनाते और कठिनाई व असुविधाओं का डट कर मुकाबला करने को तैयार रहते हैं। बड़ी समझदारी और आग्रह पूर्वक लोगों तक कहीं भी पहुँच सकते है। (काऊन्सिल टू पेरेन्ट्स, टिचर्स एण्ड स्टूडेन्ट्स- 517) ChsHin 42.3

    कई नौजवानों को जिन्हें उनके घरों में सही शिक्षा दी गई है, उन्हें प्रभु की सेवा के लिये भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए एवं उन्हें सच्चाई के स्तर को बढ़ाने के लिये नये स्थानो में योजनाबद्ध तरीके व ईमानदारी से काम करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। प्रचारकों के सब काम करके तथा अनुभवी लोगों के स्थान बड़े-बड़े षहरों से काम करने के द्वारा वे सर्वश्रेश्ठ प्रशिक्षण पा सकते है। आत्मिक अगुवाई में काम कर प्रार्थनाओं के द्वारा बल पाकर, अपने अनुभवी साथियों के साथ मिलकर वे बढ़िया और आशिशपूर्ण काम कर सकते हैं। अपने कठोर परिश्रम के साथ जब अनुभवी लोगों की संगति में उनके जवानी के जोशिले काम अच्छे परिणाम लाते हैं और तब स्वर्गदूत भी उनका साथ देते हैं। जब सारे कार्यकर्ता परमेश्वर की उपस्थिति में हों तो उन्हें भजन गाकर, प्रार्थना करके और परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास रखकर अद्वैत साहस और स्वतंत्रता का परिचय देना चाहिए उनका पूर्ण भरोसा और आत्मविश्वास जो उन्हें स्वर्गीय ताकतों की उपस्थिति से प्राप्त होगा उस से वे अपने साथियों सहित प्रार्थना, प्रभु की महिमा और विश्वास की सहज सत्यता को आगे और बढ़ाते जायेंगे। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 9:119)ChsHin 43.1

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