प्रभावपूर्ण दष्श्टान्त
मनुश्य की खातिर परमेश्वर का अत्यंत गहरा प्रेम जिसे नापा नहीं जा सकता वह उमड़ पड़ा है। स्वर्गदूत भी फक्र करते हैं ये देखकर कि परमेश्वर अदना से प्राणियों के लिये इतना कष्तज्ञ है जबकि वे केवल प्रेम का एक कदम ही बढ़ाते हैं। दूत मनुश्य के द्वारा परमेश्वर के प्रेम की थोड़ी सी प्रशंसा सुन कर खुष हो जाते है। सम्पूर्ण स्वर्ग ठगा सा खड़ा रह जाता है, ये देखकर कि मनुश्यों की आत्मा परमेश्वर के प्रेम का इंकार करती हैं। क्या हम यह जान पायेंगे कि प्रभु यीशु इस बारे में क्या सोचते है? एक माता-पिता को कैसा महसूस होगा जब वे अपने बच्चे को जो ठण्ड और बर्फीले स्थान में खो गया, वह इतना आगे निकल गया है कि अब वे उसे बचा नहीं सकते जबकि वे चाहते तो थे कि वह बच जाये। वे कितने दुखी होंगे। अपने आप पर क्रोधित होंगे। क्या वे उन हत्यारों को बुरा-भला नहीं कहेगें, अपनी नजरों से गिरा नहीं देंगे आँस की तरह। क्योंकि वे अपने बच्चे से प्रेम करते है। हर एक मनुश्य का दुःख तकलीफ परमेश्वर को दुखित करती है क्योंकि वह हमारा पिता और हम उसकी संतान है। किन्तु जो हाथ ऐसे लोगों को मष्यु की आग से बचाने के लिये मद्द नहीं करते उन्हें मरने के लिये छोड़ देते हैं ऐसे लोग परमेश्वर के क्रोध को भड़काते हैं। (द डिजायर ऑफ एजेज़- 825) ChsHin 120.2
मैंने एक व्यक्ति के बारे में पढ़ा है जो ठण्ड के मौसम में बर्फीले स्थानो से होता हुआ जा रहा था। ठण्ड इतनी बढ़ गई थी कि उसका चलना कठिन हो रहा था और कुछ देर बाद तो ठण्ड के प्रभाव से वह निश्चल होने लगा उसकी ताकत जवाब दे गई और आखिरकार ठण्डी ने उसे जकड़ लिया और वह ठण्डा होकर मरने पर था तभी उसे अचानक उसके जैसे एक यात्री भाई की कराहट सुनाई दी, वह भी ठण्ड के कारण मरने पर था। इस व्यक्ति के मन में मानवता जागी और उसको बचाने के लिये गया, उसने हाथ से बर्फ से ढके उस आदमी को बाहर निकाला, उसे उसके पैरों पर खड़ा किया और उसके कंधे पर हाथ रखकर उस गहरी व खतरनाक खाई को पार कर गया, जो उसने सोचा था कि वह अकेला उसे पार नहीं कर पायेंगा। और जब वह उस साथी यात्री को सुरक्षित स्थान पर ले आया और सच तो यह था कि वह उसे घर ले आया था। उसके पड़ौसी को बचाने के कारण वह खुद भी बच गया था। ठण्ड के कारण जो उसका खून जमने लगा था, अब काम करने के कारण उसमें गरमी आ गई और उसके अंग काम करने लगे थे। इस प्रकार की शिक्षा हमारे विश्वासी नौ जवानों को लगातार दी जानी चाहिये, ताकि न केवल सलाह व हिदायतें बल्कि ऐसे जीवंत उदाहरण उन्हें उनके मसीही अनुभव को बढ़ाने व अच्छे परिणाम प्राप्त करने में मद्द करेंगे। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 4:319, 320)ChsHin 121.1
तुम्हें अपने आप को अपने तक सीमित नहीं कर लेना चाहिये, क्योंकि तुम्हें सच्चाई का ज्ञान से आषीशित किया गया है। तुम्हें किसने सच्चाई बताई? परमेश्वर के वचन के पास तुम्हें कौन ले गया? परमेश्वर ने जो ज्योति तुम्हें दी है उसे झाड़ी में छिपाने के लिये नहीं दी।ChsHin 121.2
मुझे एक जंगल यात्री के बारे में पढ़ने को मिला, जिसमें एक समूह को सर जॉन फ्रेंकलीन को खोज निकालने का काम दिया गया था। बहादुर लोगों में अपना घर छोड़कर उत्तरी समुद्र के इलाके में भूख, ठण्ड और निराषा से भटकते रहे, और ये सब वे क्यों कर रहे थे? केवल इसलिये कि वे उन मरे हुये लोगों का मष्त षरीर ढूँढ लें और यदि इनमें से कोई बचा है तो उसे सुरक्षित ला सकें। एक ऐसी भयंकर मत्यु जो उन पर आ सकती थी। यदि सही समय पर मद्द नहीं पहुँचे यदि वे इस दौरान किसी एक व्यक्ति को भी बचा लेते तो उन्हें उनकी मेहनत और तकलीफों का सिला मिल जाता। यह केवल तब ही हो सका जब लोगों ने उपनी खुशी और आराम का बलिदान दिया। इनके बारे में सोचिए। किमती जीवनों को बचाने के लिये हम कितना बलिदान करते हैं? हमें यह नहीं कहा जाता कि हम घर छोड़कर बाहर जायें कोई लम्बी या कश्ट दायक यात्रा करें, उन मष्यु के करीब खड़ी हुई आत्माओं के लिये हमारे दरवाजे पर, पड़ौस में, हर तरफ लोगों को बचाना है, ताकि वे अनन्त मष्य प्राप्त न करें। स्त्री व पुरूश बिना परमेश्वर, बिना आशा के मर रहे हैं क्या हमारी सोच मर चुकी है, हम ऐसे लोगों के लिये क्या यह कहते है, ” कि क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?” कुछ लोग जिन्होंने आत्माओं को बचाने में अपनी जान गंवा दी उन्हें संसार ने नायक और षहीदों के रूप में सदा याद किया है। फिर हम जिनके पास अनन्त जीवन की आषा है क्या अनुभव करते है कि जो प्रभु हमसे चाहता है कि हम अपने छोटे-छोटे बलिदानों से आत्माओं को उद्धार का मार्ग क्यों न दिखायें। (द रिव्यू एण्ड द हरेल्ड — 14 अगस्त 1888)ChsHin 122.1
न्यू इंग्लैण्ड के एक षहर में एक कुँआ खोदा जा रहा था, जब काम खत्म होने पर था, एक व्यक्ति अभी भी नीचे था, अचानक जमीन में गढ़ा हो गया और वह उसमें दब गया। तुरंत खतरे की घंटी बजी और मैकेनिक, किसान, व्यापारी, वकील दौड़कर उसे बचाने पहुँच गये। रस्सियाँ सीढ़ियाँ, फावड़े, कुदाली आदि लाये गये उन लोगों के द्वारा जो उसे बचाना चाहते थे। सब चिल्ला रहे थे, “उसे बचाओ, उसे बचाओ।” आदमियों ने पूरी ताकत लगा दी। माथे से पसीना बहा दिया और हाथ मेहनत करते-करते काँपने लगे फिर भी वे रोक रूके नहीं। आखिर में एक पाइप जमीन में नीचे पहुँचाया गया और यह जानने के लिये कि वह आदमी जिंदा है कि नहीं, उसे आवाज दी गई। उसका जवाब मिला कि वह जिंदा है किन्तु यदि जल्दी नहीं की गई तो खतरा बढ़ सकता है। उस आदमी के जिंदा होने की खबर ने लोगों में नई जान, नया जोश भर दिया और उन्होंने उसे बाहर सुरक्षित निकाल लिया और सब ओर ये आवाज गूंज गई “वह बचा लिया गया है।”ChsHin 122.2
क्या यह घटना बड़ी जोशिली और रोचक थी कि एक आदमी को बचा लिया गया है, बिल्कुल नहीं, किन्तु एक आदमी का सांसारिक जीवन का खोना और एक आत्मा के खोने में काफी अंतर है। जब एक व्यक्ति को मरने के डर से लोगों के हृदय इतने विचलित हो जाते हैं, तो एक व्यक्ति की आत्मा को बचाने के लिये लोगों को अधिक चिंतित नहीं होना चाहिये । क्योंकि वे तो उस खतरे से परिचित हैं, जानते है कि मसीह यीशु के बिना अनन्त जीवन संभव नहीं। क्या प्रभु के सेवकों को उसी महान भावना के साथ परिश्रम नहीं करना चाहिये, ताकि बहुत सी आत्माओं को प्रभु यीशु के उद्धार के पास लाया जा सके, जिस प्रकार उस कुँओ में दफन आदमी को बचाने में किया था। (गॉस्पल वर्क्स — 31, 32)ChsHin 123.1