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मसीही सेवकाई

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    एक अकेला — वचन का सुनने वाला

    प्रभु यीशु का अधिक काम एक व्यक्ति से बातचीत करने के द्वारा हुआ, एक ऐसा व्यक्ति जो वचन सुनकर खुद विश्वास करे ऐसा व्यक्ति जो ज्यादा भरोसे मंद था। क्योंकि उस एक के द्वारा बड़ी चतुराई से लाखों तक सुसमाचार पहुंचाया गया। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 6:115)ChsHin 151.2

    वह थकाहारा और कमजोर था, फिर भी उसने उस स्त्री से बातचीत करने का सुअवसर हाथ से जाने न दिया। जबकि वह स्त्री अनजान थी, इजराइली नहीं थी और पाप में जी रही थी। (द डिजायर ऑफ एजेज- 194) ChsHin 151.3

    प्रभु यीशु ने कभी भीड़ के इकट्ठा होने की प्रतिक्षा नहीं की। जो कोई उनके पास इक्ट्ठे होते थे, उन्ही को सिखाने लगते थे। और धीरे-धीरे करके वहाँ से गुजरने वाले ठहर कर सुसमाचार सुनने लगते थे, जब तक की बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो जाती और सभी सुनने वाले अचंभित होकर आसमान से भेजे गये शिक्षक की बाते सुन और अचंभित होते थे। प्रभु के लिये काम करने वालो को यह नहीं सोचना चाहिये कि वे छोटे झुण्ड के बड़ी भीड़ की जरूरत है। चाहे सुनने वाला एक ही क्यों न हो ? न जाने उसके प्रभाव से वचन कहाँ से कहाँ पहुँच जाये। मसीह के चेलों को मसीह का एक सामरी स्त्री से बात करना “छोटा काम प्रतीत हुआ किन्तु मसीह ने उस स्त्री से बर्ड उत्साह से और खले षब्दों में बड़े अधिकार के साथ बातें की जो, राजा, याजक और सलाहकारों से भी न की होगी। जो शिक्षा उसने उस स्त्री को दी वह पूरी पृथ्वी के सबसे दूर-दराज के इलाकों में पहुँच गई। (द डिज़ायर ऑफ ऐजैज़- 194)ChsHin 151.4

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