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मसीही सेवकाई

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    काफी करीबी रिश्ता

    अब जरूरत है कि लोगों के करीब आने की एक व्यक्तिगत संबंध | बनाने की। यदि धार्मिक वचन सुनाने पर कम और व्यक्तिगत संबंधों पर अधिक समय दिया जाये अधिक परिश्रम किया जाये तो ज्यादा अच्छे परिणाम देखने को मिल सकते है। (द मिनिस्ट्री ऑफ हीलिंग- 143)ChsHin 152.1

    प्रभु चाहता है कि उसके अनुग्रह भरे षब्द घर के हर एक सदस्य तक पहुँचे। ये काम बहुत बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत रूप से किया जाना चाहिये। ये प्रभु यीशु का नियम था। (क्राइस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स- 229)ChsHin 152.2

    जिन लोगों ने आत्माओं जीतने का काम अधिक सफलतापूर्वक किया है, उन स्त्री व पुरूशों ने अपनी योग्यता व सफलता पर घमण्ड नहीं किया किन्तु उन्हें नम्रता व विश्वास से जो कोई भी उनके पास मिला उन्होने उसकी मद्द की। प्रभु यीशु ने भी सही किया था। वह अपनी इच्छा अनुसार जिनके पास जाना चाहता था, वे उसके आस-पास ही होते थे। (गॉस्पल वर्कर्स- 194) ChsHin 152.3

    प्रभु यीशु की तरह सहानुभूति रखने के द्वारा हम भी लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिले सकते हैं। और मौका ढूँढ़ सकते हैं कि अनन्त जीवन जैसी बेषकिमती नेमतों के प्रति उनका क्या नज़रिया है ? इस विशय पर सोचने के लिये मजबूर कर सकते हैं। हो सकता है कि उनका हृदय कठोर धरातल, जो मुख्य मार्ग के लिये तैयार किया है, के समान हो। और ऐसा भी हो सकता है, कि प्रभु यीशु उद्धारकर्ता के बारे में उन्हें बताना व्यर्थ ही हो। लेकिन भले ही सीख किसी को बदलने में कामयाब न हो, और बहस भी कमजोर पड़ जाये, किन्तु प्रभु यीशु के प्रेम को यदि व्यक्तिगत रूप से लोगों को बताया जाये तो कठोर से कठोर हृदय भी पिघले बिना न रहेगा, जहाँ सच्चाई का वचन रूपी बीज जड़ पकड़ सके। (क्राइस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स- 57)ChsHin 152.4

    आस-पास के लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलो। उनसे बातचीत करो, जान-पहचान बढ़ाओं। प्रचार करना ही काम नहीं आयेगा, जहाँ और भी काम होना हैं। जिस भी घर में आप जायेंगे वहाँ प्रभु का दूत मौजूद होगा। यह किसी प्रतिनिधि के द्वारा नहीं हो सकता। न ही पैसा देने या पैसा देकर करवाने से ये काम संभव है, धार्मिक संदेश भी काम नहीं आयेगें। किन्तु लोगों से मिलकर बातचीत कर, उनके लिये प्रार्थना कर और सहानुभूति रखकर लोगों के दिल जीते जा सकते हैं। ये सबसे बड़ा प्रचार करने का तरीका है, जो आप कर सकते है। सिर्फ आपको ठान लेना हैं, विश्वास में दष्द होना, धीरज वन्त होना और आत्माओं को बचाने के लिये उनके प्रति प्रेम होना आवश्यक है। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 9:41)ChsHin 153.1

    मसीही कलीसिया की स्थापना यूहन्ना, अन्द्रियास, शिमौन, फिलिप्पुस और नतनिएल की बुलाहट से हुई यूहन्ना के दो शिष्यों को यीशु के पास लाया तब उनमें से एक अन्द्रियास ने अपने भाई को उद्धारकर्ता के पास लाया। तब फिलिप्पुस बुलाया गया और वह फिर नतनिएल की खोज में चला गया। इन उदाहरणों से हमें सीखना चाहिये कि व्यक्तिगत प्रयास करना कितना महत्वपूर्ण है। बच्चों, मित्रों और पड़ोसियों से सीधे अपील करना सिखाना सहज है। और कछ वे लोग भी है जो जीवन भर प्रभु यीश से परिचित थे, सब कुछ जानते थे फिर भी कोई व्यक्तिगत रूचि उन्होंने नहीं दिखाई एक भी आत्मा को प्रभु के पास लाने के लिये बचाये जाने के लिये। उन्होंने सब कुछ प्रभु के सेवकों पर छोड़ दिया था। हो सकता है कि धर्म प्रचारक पूर्ण शिक्षित-प्रशिक्षित हो, अपने इस काम के लिये किन्तु वह वो सब नहीं कर सकता जो प्रभु यीशु चाहता है कि उसकी कलीसिया के लोग करें।ChsHin 153.2

    ऐसे कई लोग है, जिन्हें एक प्रेमी मसीही हृदय के द्वारा सिखाये जाने की जरूरत है। अनेक तो इसके अभाव में नाश हो गये जो बचाये जा सकते थे, यदि उन्हें उनके किसी पड़ौसी, सामान्य स्त्री या पुरूश ने व्यक्तिगत परिश्रम कर वचन सिखाया होना। कई प्रतीक्षा कर रहे है उन्हें आमने-सामने बुलाया जाये। हर एक परिवार आस-पड़ोस, कस्बा व षहर जहां हम रहते हैं, हमारे लिये काम हैं, प्रभु यीशु के सुसमाचार प्रचार का काम, जो हमे करना है। यदि हम मसीही है तो निश्चित रूप से ये काम खुशी प्रदान करेगा। जैसे ही एक व्यक्ति बुराई से फिर कर एक सच्चा और अच्छा मसीही जीवन जीता है, उसके मन में दसरों को सच्चाई बताने की इच्छा जाग्रत होती है। एक मित्र, दूसरे मित्र को बताता और प्रभु यीशु सबका मित्र हो जाता है। ऐसा व्यक्ति के मन में सच्चाई जो उद्धार दिलाती और पापों से षुद्ध करती है, उस सच्चाई को अपने हृदय में बंद करके नहीं रख सकता। (द डिज़ायर ऑफ ऐजेज़ — 141)ChsHin 153.3

    सभी प्रभावशाली तरीकों में एक तरीका प्रभु की ज्योति को फैलाने का यह भी है कि व्यक्ति स्वयं परिश्रम करें। अपने घर में, पड़ोसियों के आंगनों में, बीमार के बिस्तर के पास बड़ी षान्ति से आप बाइबल का वचन पढ़ सकते, प्रभु यीशु और उसकी सच्चाई के बारे में बता सकते है। इस प्रकार आप वचन का बीज बो सकते है, जो समय आने पर फूट निकलेगा और फलदायी होगा। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च — 6:428, 429)ChsHin 154.1

    नमक को उस वस्तु में घुल मिल जाना चाहिये, जिसमें वह मिलाया गया है। इसे उस वस्तु में इस तरह मिलकर एक सार हो जाना है ताकि वस्तु को काफी समय सुरक्षित रख सके। इसी प्रकार व्यक्तिगत प्रयास बातचीत मेलजोल आदि आत्माओं को बचाने की षक्तियाँ है। वे झुण्ड के झुण्ड या समूह में सुरक्षित बचाये नहीं जा सकते। उनके लिये व्यक्तिगत प्रभाव ही शक्तिशाली है। हमें उनके करीब आना होगा जिन्हें हम बचाना चाहते है। (थॉट्स फ्रॉम द माऊण्ट ऑफ ब्लेसिंग — 36)ChsHin 154.2

    प्रभु यीशु ने हर एक व्यक्ति में एक को तो ऐसा पाया कि उसे अवश्य बुलाया जाये अपने स्वर्ग राज्य में प्रवेश करने के लिये। वह लोगों के बीच होता हुआ, उस व्यक्ति के हृदय को छुआ उस तक पहुँचा जिसकी वह भलाई चाहता था। उसने उन्हें सड़कों पर, उनके घरों में, नाव पर, परमेश्वर के भवन में, झील के किनारे और षादी के भोज में। उसने उन्हें उनके दैनिक कामों को करते समय ढूँढ़ा और उन्हें अपने अन्य कर्त्तव्यों के बारे में सिखाया। अपना सलाह संदेश वह घर-घर लेकर गया। परिवार के लोगों को फिर से मिलाया, अपनी स्वयं की स्वर्गीय उपस्थिति के साथ। ये बचा ही अद्भुत बातें हैं जो उसकी अपनी सामर्थी, सहानुभूति ने हृदयों को जीतने में मद्द की। (द डिज़ायर ऑफ ऐजेज़ — 151)ChsHin 154.3

    प्रभु यीशु की तरीका ही केवल वो तरीका है जो लोगों तक पहुँचने के लिये सफल और सही तरीका है। उद्धारकर्ता प्रभु स्वयं उन लोगों के बीच जाकर घुल-मिल गया जैसे की वो जो उनकी भलाई करने की इच्छा रखता है। उसने उनके प्रति सहानुभूति दिखाई उनकी जरूरतों को पूरा किया और उनका भरोसा जीता। तब उनसे कहा, “मेरे पीछे हो लो।” (द मिनिस्ट्री ऑफ हीलिंग — 143)ChsHin 155.1

    हमें वैसा ही करना चाहिये, जैसा प्रभु यीशु ने किया वह जहां कही थे, आराधनालय में, सड़कों पर, नावों पर जो जमीन से कुछ दूरी पर पानी में धकेल दी गई थी, फरीसियों के भोज में और एक महसूल लेने वाले की मेज पर उसने उन मनुश्यों से एक उच्च जीवन पाने के लिये जिन वस्तुओं की आवश्यकता है, उनके बारे में बातें की। प्रकषत की वस्तुयें, दिनचर्या आदि सभी को लेकर उसने उनसे बातें की और बाइबल के सत्य वचनों के साथ जोड़कर बताया। सभी सुनने वालों के हृदय उसकी ओर खिच गये। क्योंकि उसने उनके बीमारों को चंगा किया, दुःखी मन वालों को सांत्वना दी, उनके बालकों को बाहों में लेकर उन्हें आशीश दी। जब भी बोलने के लिये वह अपना मुँह खोलता था, उनका पूरा ध्यान उसकी और हो जाता था और हर एक वचन कुछ लोगों के लिये जीवन की षुरूआत उस जीवन के लिये।ChsHin 155.2

    इसलिये ऐसा हमारे साथ भी होना चाहिये ।हम जहाँ कहीं भी हों, हमें मौके की खोज में रहना चाहिये कि उद्धारकर्ता के बारे में लोगों को बता सकें। यदि हम प्रभु का उदाहरण लोगों की भलाई के लिये लेते है तो हृदय हमारे लिये खुल जायेंगे जैसे प्रभु के लिये खुल गये। अचानक नहीं किन्तु स्वर्गीय प्रेम के द्वारा दी गई समझ द्वारा हम लोगों को प्रभु यीशु जो “हजारों-हजारों में एक है” और जो बहुत प्रेमी प्रभु है। ये एक सबसे महानChsHin 155.3

    और ऊँचा काम है जिसमें हम अपने बोलने के गुण का इस्तेमाल प्रभु के काम में कर सकते हैं। और यह काम हमें सौंपा गया है कि हम प्रभु यीशु मसीह जो इकलौता, गुनाहों को क्षमा करने वाला और अनन्त मष्यु से बचाने वाला उद्धारकर्ता है, लोगों को बता सकते हैं। (क्राइस्ट ऑब्जेक्ट् लैसन्स — 338, 339)ChsHin 155.4

    उसकी उपस्थिति से घर का वातारण षुद्ध हो गया और उसका जीवन खमीर के समान समाज के लोगों के बीच काम करने लगा। षुद्ध चरित्र भूला व्यक्ति जो उन लोगों के बीच चला-फिरा जो घमण्डी, स्वार्थी, दूसरों के बारे में न सोचने वालें, ढीठ, अन्यायी महसूल लेने वाले, पैसा बर्बाद करने वाले, अधर्मी सामरी मूर्ति पूजक सिपाही, कठोर किसान और सब प्रकार के लोगों की भीड । उसने सहानभति का एक षब्द यहां एक षब्द वहां बोला। जब भी उसने इंसानों को बोझ से दबे हुये देखा जिन्हें भारी बोझों को उठाना पड़ रहा था। उसने उनका बोझ उठाया और अपने स्वभाव के अनुसार उनसे प्रेम से, बड़ी दया के साथ परमेश्वर की भलाई के बारे में बताया।ChsHin 156.1

    उसने उन्हें सिखाया कि वे अपने आप को देखें कि वे किन किमती गुणों से भरे हुये हैं, जिन्हें वे सही उपयोग में लायें तो उन्हें अनन्त धन प्राप्त हो सकता है। उसने जीवन की सब अंहकार को निकाल कर दूर कर दिया । और अपने स्वयं के उदाहरण से सिखाया कि जीवन का हर एक क्षण उसके अनन्त परिणाम भी लाता है। और समय की किमत को समझना और उसका उपयोग करना है सही व पवित्र कामों व उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उसने हर व्यक्ति को जो उसके पास गया उसे खाली हाथ नहीं भेजा किन्तु सभी को अपनी आत्मा को बचाने के उपाय बताये। उसने अपने आपको जिस भी प्रकार के लोगों के बीच में पाया उन्हें उनकी परिस्थितियाँ तथा समय के अनुकूल बिलकुल उचित शिक्षा दी। उसने उन कठोर एवे ढोंगी लोगों को एक आशा दी यह कहकर कि वे पूरी तरह निर्दोश व भले व्यक्ति बन सकते हैं यदि वे अपने आप में एक ऐसा चरित्र ले आयें, जो उन्हें परमेश्वर के बेटे-बेटियाँ होने का अवसर प्रदान करेगा।ChsHin 156.2

    अक्सर प्रभु ऐसे लोगों के घर गये जो पैतान के चंगुल में बुरी तरह फंसा हुआ होता था और वे किसी भी तरह उसके जाल से छूट नहीं सकते थे। ऐसों के लिये जो निराश बीमार, परीक्षाओं में पड़े हुये, पाप में गिरे लोगों से यीशु बड़े प्रेम से बातचीत करता जिनकी उन्हें जरूरत होती और वे समझ सकते थे। कुछ ऐसे भी मिले जिन्हें मुसीबतों और परेषानियों का सामना प्रतिदिन करना पड़ता था, ऐसो को उसने ढ़ाढ़स रखने को कहा और बताया वे पैतान को हरा देंगे। क्योंकि प्रभु के दूत उनकी ओर है। और वे उन्हें सफलता दिलायेंगे। (द डिज़ायर ऑफ ऐजेज़ — 90)ChsHin 156.3