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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 23—मिस्र की महामारियाँ

    यह अध्याय निर्गमन 5—10 पर आधारित है

    स्वर्गदूत का निर्देश पाकर, हारून अपने भाई से, जिससे वह बहुत लम्बे समय से अलग रहा था, भेंट करने गया, और वे होरेब के पास, मरूधर के एंकात में मिले। यहां उन्होंने एक दूसरे से बात की और मूसा ने हारून को यह बताया कि, “यहोवा ने क्या-क्या बातें कहकर उसको भेजा है, और कौन-कौन से चिन्ह दिखलाने की आज्ञा उसे दी है ।”-निर्गमन 4:28 । फिर वे दोनों मिस्र की यात्रा पर निकले और गोशेन पहुँचकर उन्होने इज़राइल के सब पुरनियों को इकट्ठा किया। और जितनी बातें यहोवा ने मूसा से कही थी, वह सब बातें हारून ने उन्हें सुनाई, और जो चिन्ह परमेश्वर ने मूसा को दिये थे, लोगो को दिखाए गए। “और लोगों ने उनका विश्वास किया, और यह सुनकर कि यहोवा ने इज़राइलियों की सुधि ली और उनके दुखों पर दृष्टि की है, उन्होंने सिर झुकाकर दण्डवत किया।” निर्गमन 4:3PPHin 256.1

    मूसा को राजा को सन्देश पहुंचाने का कार्य भी सौंपा गया था। दोनों भाईयों ने राजाओं के राजा के प्रतिनिधियों के रूप में, फिरौन के महल में प्रवेश किया और फिर परमेश्वर के नाम में वे बोले, “इज़राइल का परमेश्वर यहोवा यो कहता है, मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे कि वे जंगलमें मेरे लिये पर्व करें।PPHin 256.2

    फिरौन ने कहा, “यहोवा कौन है कि मैं उसका वचन मानकर इज़राइलियों को जाने दूँ? में यहोवा की नहीं जानता, और मैं इज़राइलियों को नहीं जाने दूँगा।’PPHin 256.3

    उनका उत्तर था, “”इब्रियों के परमेश्वर ने हमसे भेंट की है। इसलिये हमें जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाने दे, कि अपने परमेश्वर यहोवा के लिये बलिदान करें, ऐसा नहीं हो कि वह हम में मरी फैलाए या तलवार चलवाए।”PPHin 256.4

    उनका और उनके द्वारा लोगों में उत्पन्न अभिरूचि का समाचारराजा के पास पहुँच चुका था। उसका कोध भड़क उठा। उसने उनसे कहा, “हे मूसा, हे हारून, तुम क्‍यों लोगों से काम छुड़वाना चाहते हो? तुम जाकर अपना-अपना बोझ उठाओ ।”पहले हीइन परदेशियों के हस्तक्षेप के कारण राज्य को हानि उठानी पड़ी थी। यह सोचकर उसने कहा, “सुनो, इस देश में वे लोग बहुत हो गए हैं, फिर तुम उनको परिश्रम से विश्राम दिलाना चाहते हो।”PPHin 256.5

    अपने दास्तव में, कुछ हद तक, इज़राइल परमेश्वर की व्यवस्था का ज्ञान खो चुके थे और वे उसके सिद्धान्तों का त्याग कर चुके थे। ‘सबत’ विश्राम दिन को आमतौर पर भुला दिया गया था, और उनसे परिश्रम कराने वालों द्वारा बेगारी कराई जाने के कारण विश्राम दिन का अनुपालन असंभव सा प्रतीत होता था। लेकिन मूसा ने अपने लोगों को दिखाया था कि परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता मुक्ति की पहलीशर्त थी और विश्राम दिन के अनुपालन को पुन: प्रचलन में लाने के प्रयत्न आततायियों की दृष्टि में आ चुका था।PPHin 257.1

    पूरी तरह से उत्तेजित राजा को सन्देह था कि इज़राइली उसकी सेवाओं के विरूद्ध उपद्रव का षड़यन्त्र रच रहे थे। आलस्य का परिणाम विद्रोह था, वह उन्हें पड़यन्त्र रचने का समय न देगा। उसने तत्काल ही उनके अनुबंध को कड़ा करने और उनकी स्वतन्त्र भावना को कुचलने के उपाय अपनाए। उसी दिन आदेश दिया गया जिससे उनका परिश्रम और भी निर्दयी और दमनकारी हो गया। धूप से सुखाई हुईं इंटे उस राज्य की सबसे साधारण निर्माण-सामग्री थी, वैभवशाली भवनों की दीवारें इन्हीं से बनाई जाती थी और उनके सामने का भाग पत्थर का होता था। ईटों को बनाने के लिये कई दासों को काम पर लगाया जाता था। पुआल को चिकनी मिट्टी के साथ मिलाया जाता था ताकि वह जुड़ी रह सके और इसलिये इस काम के लिये बड़ी मात्रा में पुआल की आवश्यकता पड़ती थी, अब राजा ने निर्देश दिया की पुआल श्रमिकों को स्वयं ही जुटाने दी जाए, लेकिन ईंटो की गिनतीमें कमी नहीं होनी चाहिये।PPHin 257.2

    इस आदेश ने पूरे राज्य के इज़राइलियों के लिये घोर कठिनाईयों को उत्पन्न किया। मिस्नरी अधिकारियों ने लोगों के काम का निरीक्षण करने के लिये इब्री अफसरों को नियुक्त किया गया था और ये असफर उनके सुपुर्द लोगों के द्वारा किये गए काम के लिये उत्तरदायी होते थे। जब राजा के आदेश को लागू किया गया, तो वे लोग पुआल के बदले चाराइकट्ठा करने सारे मिस्र में तितर-बितर होगए लेकिन उन्होंने पाया किपहले जितनाकामपूरा करना उनके लिये असम्भव था। इस असफलता के लिये इब्री अफसरों को निर्दयता से पीटा जाता था।PPHin 257.3

    इन अफसरों ने सोचा कि उन पर अत्याचार राजा नहीं वरन उनके ऊपर नियुक्त कठोर अधिकारी कर रहे हैं, इसलिये वे अपना दुखड़ा लेकर फिरौन के पास गए। लेकिन फिरौन ने उनकी आपत्ति का उत्तर इस कटाक्ष के साथ दिया, “तुम आलसी हो आलसी, इसी कारण कहते हो कि हमें यहोवा के लिये बलिदान करने को जाने दे।” उन्हें वापस जाकर काम पर लग जाने को आदेश दिया गया इस घोषण के साथ कि उनके कार्य-भार में कोई कभी न की जाएगी। लौट कर उन्होंने मूसा और हारून से भेंट की और उनसे कहा, “यहोवा तुम पर दृष्टि और न्याय करे, क्योंकि तुमने हम को फिरौन और उसके कर्मचारियों की दृष्टि में घृणित ठहराकर हमें घात करने के लिये उनके हाथ में तलवार दी है।”PPHin 258.1

    यह उलाहना सुनकर मूसा को बहुत खेद पहुँचा। लोगों के कष्टों में बहुत वृद्धि हो गई थी। पूरे राज्य के बढ़े-बूढ़े व नौजवान निराश होकर अपनी दुर्दशा का आरोप मूसा पर लगाने लगे। दु:खित हृदयके साथ वह परमेश्वर के सम्मुख गया और बोला, “हे प्रभु, तूने इस प्रजा के साथ ऐसी बुराई क्‍यों की? औरतूने मुझे यहां क्यो भेजा है जब से में तेरे नाम से फिरौन के पास बाते करने के लिये गया तब से उसने इस प्रजा के साथ बुरा ही व्यवहार किया है, और तूने अपनी प्रजा का कुछ भी छुटकारा नहीं मिला।” उसे उत्तर मिला, “अब तू देखेगा कि मैं फिरोन के साथ क्या करूंगा, जिससे वह मेरे लोगों को जाने देगा, वह उन्हें जाने के लिये विवश करेगा ।” उसे फिर परमेश्वर की उसके पूर्वजों के साथ बाँधी हुई वाचा का स्मरण कराया गया और उसे उस वाचा के पूरे होने का आश्वासन दिया गया।PPHin 258.2

    मिस्र में दासत्व के काल के दौरान इज़राइलियों में वे लोग थे जो यहोवा की आराधना करते आए थे। वे इस बात से अत्यन्त दुःखी थे कि उनके बच्चे प्रतिदिन उन अधर्मी मनुष्यों की घृणित वस्तुओं को देखते थे और उनके देवी-देवताओं के आगे दण्डवत भी करते थे। दुःखी होकर उन्होंने परमेश्वर को पुकारा कि वह उन्हें मिस्रियों के दमनकारी शासन से स्वतन्त्र करे ताकि वे मूर्तिपूजा के भ्रष्टाचारी प्रभाव से दूर हो सके। उन्होंने अपने विश्वास को छिपाया नहीं, वरन्‌ मिप्नियों के समक्ष घोषणा की कि उनकी आराधना का विषय आकाश और पृथ्वी को बनाने वाला एकल सच्चा और जीवित परमेश्वर था। उन्होंने सृष्षि से लेकर याकूब के दिनों तक उसके सामर्थ्य और आस्तित्व में होने के प्रमाण दोहराये। इस प्रकार मिस्नरियों को इब्रियों के धर्म से परिचित होने का अवसर मिला, लेकिन दासों से निर्देश प्राप्त करने को तुच्छ समझ, उन्होंने परमेश्वर के उपासकों को उपहारों का लालच देकर भरमाना चाहा, और जब वे इसमें असफल रहे तो उन्हें धमकियों और निर्दयता का सहारा लेकर जीतना चाहा।PPHin 258.3

    इज़राइल के पुरनियों ने अपने पूर्वजों को दी गई परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को दोहराकर अपने इजराइली भाईयों के डूबते विश्वास को जीवित रखने का प्रयत्न किया व उन्हेंउनके छुटकारे की उस भविष्यद्वाणीका स्मरण कराया, जो युसुफ ने मृत्युपूर्व की थी । कुछ सुनते थे और विश्वास करते थे। दूसरे, अपने चारों ओर की परिस्थितियों को देखकर आशा भी नहीं करना चाहते थे। जब मिस्रियों को अपने दासों में किये गये प्रचार के बारे में सूचित किया गया, तो उन्होंने उनकी उपेक्षाओं का उपहास उड़ाया और उनके परमेश्वर की सामर्थ्य का तिरस्कारपूर्ण खंडन किया। उन्होंने इज़राइलियों की दासों का राष्ट्र जैसी परिस्थिति की ओर संकेत कियाऔर ताना मारते हुए कहा, “यदि तुम्हारा परमेश्वर भला और दयालु है, और मिस्र के देवी देवताओं से अधिक शक्तिशाली है, तो वह तुम्हें एक स्वतन्त्र जाति क्‍यों नहीं बनाता? उन्होंने उनका ध्यान अपनी ओर खींचा । वे इज़राइलियों द्वारा नांमाकित झूठे देवी देवताओं की आराधना करते थे, लेकिन वे एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र थे। उन्होंने कहा कि उनके देवी-देवताओं ने उन्हें समृद्धि का आशीर्वाद दिया और दासों के तौर पर इज़राइलियों को उन्हें दिया और वे यहोवा के भक्तों को नष्ट करने और उत्पीड़ित करने की अपनी शक्ति में गर्व॑ का आभास करते। फिरौन स्वयं घमण्ड के साथ कहता था कि इब्रियों का परमेश्वर उन्हें उसके हाथ से नहीं छड़ा सकता था। PPHin 259.1

    इस तरह के कथन सुनकर कई इज़राइली हताश हो गए। उनकी दशा कुछ ऐसी ही थी जैसी मिस्रियों ने बताई थी। वे यथार्थ में दास थे और उन्हें वे सब अत्याचार सहन करने थे जो उनके कठोर अधिकारी उन पर करते थे। उनके बच्चों को दूँढ-दूँढ कर मारा जाता था, और उनका अपना जीवन बोझ से कम न था। लेकिन फिर भी वे स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना कर रहे थे। यदि यहोवा यथार्थ मेंउन देवी-देवताओं से श्रेष्ठ था तो वह उन्हें मूर्तिपूजको की दासता में नहीं छोड़ेगा। लेकिन जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान थे वे यह भी जानते थे कि यह परमेश्वर ने उनके उससे दूर हो जाने के कारण, उनके अधर्मी जातियों के साथ अन्तर्जातीय विवाह करने वमूर्तिपूजा का पथ पकड़ने के कारण परमेश्वर ने उन्हें बन्धुआ बनने दिया और उन्होंने विश्वास के साथ अपने जाति-भाईयों को आश्वासन दिया कि परमेश्वर जल्दी ही उन्हें दमनकारियों के शासन से मुक्त कराएगा।PPHin 259.2

    इब्रियों ने सोचा था वे बिना किसी कष्ट या कठिनाई उठाएया उनके विश्वास की विशेष परीक्षा के बगैर अपनी स्वतन्त्रता को प्राप्त कर लेंगे लेकिन अभी वे स्वतन्त्रता के लिये तैयार नहीं थे। उनका परमेश्वर में विश्वास नही के बराबर था और वे परमेश्वर द्वारा उसके समयानुसार इसे सम्भव करने हेतु कठिनाईयों को धेर्यपूर्वक सहन करने को सहमत न थे। कई तो एक अपरिचित देश में स्थानांतरित होने के बजाय दासत्व में रहने में सन्तुष्ट थे और कुछ की आदतें मिस्रियों की आदतों से इतनी मिलती-जुलती हो गई थी कि उन्होंने मित्र में ही रहना उचित समझा। इस कारण परमेश्वर ने फिरौन के सम्मुख अपनी शक्ति के पहले प्रदर्शन के समय उन्हें स्वतन्त्र न कराया। उसने फिरौन की अराजकतावादी भावना को विकसित करने और स्वयं को अपने लोगों पर प्रकट करने के उद्देश्य से कई घटनाओं का पूर्ण रूप से अनदेखा किया। उसकी न्यायसंगतता, शक्ति व प्रेम को देखकर, वे स्वयं मिस्र को छोड़ने का निर्णय लेकर परमेश्वर की सेवा के लिये समर्पित होते ।यदि मिस्र छोड़ने में संकोच करने की हद तक कई इजराएली भ्रष्ट न हुए होते तो मूसा का काम इतना कठिन न हुआ होता।PPHin 260.1

    परमेश्वर ने मूसा को लोगों के पास दोबारा जाकर छुटकारे की प्रतिज्ञा के दोहराने और उन्हें ईश्वरीय कृपा-दृष्टि का फिर से आश्वासन देने को कहा, “वह आज्ञानुसार लोगों के पास गया लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी। पवित्र शास्त्र कहता हे, “इज़राइलियों ने मेरीन सुनी........मन की बैचेनी और दासत्व की करता के कारण ।” फिर से मूसा के पास ईश्वर का सन्देश पहुँचा, “तू जाकर मिस्र के राजा फिरौन से कह कि इज़राइलियों को अपने देश में से निकाल दे।” हतोत्साहित मूसा ने कहा, “देख, इज़राइलियों ने मेरी नहीं सुनी, फिर फिरौन मेरी क्यो सुनेगा?” मूसा से कहा गया कि वह हारून को लेकर फिरौन के सम्मुख जाए और फिर से उससे कह कि वह, “इज़राइलियों को अपने देश से निकाल दे।”PPHin 260.2

    उसे सूचित किया गया कि जब तक परमेश्वर मिस्र पर दण्डाज्ञा नहीं भेजेगा और अपनी अपनी शक्ति के संकेत प्रदर्शन से इज़राइल को बाहर न निकाल लूंगा तब तक फिरौन समर्पण नहीं करेगा। विपत्ति की मार से पहले, मूसा को विपत्ति के स्वभाव व प्रभाव का वर्णन करना था ताकि यदि राजा चाहे तो स्वयं को बचा ले। प्रत्येक उपेक्षित दण्ड के पश्चात उससे भी कठोर विपत्ति को आना था जब तक कि फिरौन का अंहकारी हृदय दीन न हो जाएऔर वह धरती और आकाश के सृजनहार को सच्चा और जीवित परमेश्वर न मान ले। परमेश्वर मिस्रियों को एक अवसर देना चाहता था कि वे अपने प्रबल महापुरूषों की बुद्धिमानी के व्यर्थ होने का व अपने देवी-देवताओं की शक्ति की निर्बलता का आभास कर सके, विशेषकर तब जब यह यहोवा की आज्ञाओं के विरूद्ध हो । वह मिस्र के लोगों को मूर्तिपूजा के लिये दण्ड देना चाहता था और निर्जीव वस्तुओं से प्राप्त आशीर्वाद के उनके दावे का खण्डन करना चाहता था ताकि दूसरी जातियाँ उसकी शक्ति व सामर्थ्य के बारे में सुनें और उसके चमत्कारी महान कार्यों को देखकर केपकेपाएँ, और उसके लोग मूर्तिपूजा से हटकर उसकी सच्ची आराधना करें।PPHin 260.3

    मूसा और हारून ने दोबारा राजा के वैभवशाली महल में प्रवेश किया। वहाँ चमचमाते आभूषणों और ऊंचे-ऊंचे स्तम्भों, आकर्षक चित्रकला की कृतियों व अधर्मी देवी-देवताओं की गढ़ी हुई मूर्तियों से घिरे हुए, दास्तव के शिकार वंश के दो प्रतिनिधि, इज़राइल के छुटकारे के लिये परमेश्वर की आज्ञा को दोहराने, उस समय के विद्यमान सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के सम्राट के सम्मुख खड़े हुए। राजा ने उनके ईश्वरीय कार्यभार के प्रमाण के रूप में चमत्कार की माँग की। ऐसी माँग पर प्रतिक्रिया के सम्बन्ध में मूसा और हारून को निर्देश दिया गया था, और हारून ने लाठी को पकड़कर फिरौन के समाने फेंक दिया। लाठीतुरन्त सर्प बन गईं। सम्राट ने अपने बुद्धिजीवियों व तान्त्रिकों को बुलवाया, “उन्होंने भी अपनी-अपनी लाठी को नीचे डाला और वे सर्प बन गईं, लेकिन हारून की लाठी ने उनकी लाठियों को निगल लिया।” पहले से भी अधिक संकल्प के साथ, राजा ने अपने जादूगरों को शक्ति में मूसा और हारून के तुल्य घोषित किया, उसने परमेश्वर के दासों को बहरूपिया बताया और स्वयं को उनकी माँगो का प्रतिरोध करके सुरक्षित महसूस किया। लेकिन फिर भी, उनके सन्देश से घृणा करते हुए भी ईश्वरीय शक्ति ने उन्हें हानि पहुँचाने से रोक रखा।PPHin 261.1

    वह मूसा और हारून में निहित शक्ति या कोई मानवीय प्रभाव नहीं, वरन्‌ परमेश्वर का हाथ था, जिसने उनके माध्यम से फिरीन के सम्मुख वे चमत्कार दिखाए। इन चिन्हों और चमत्कारों का प्रयोजन, फिरीन को यह विश्वास दिलाने के लिये किया गया कि मूसा को उस महान “मैं हूँ” ने भेजा था और यह कि राजा का ये कर्तव्य था कि वो इज़राइलियों को देश में जाने दे ताकि वे जीवित परमेश्वर की उपासना कर सके। जादूगरों ने भी चिन्ह और चमत्कार दिखाए, परवह केवल उनके कौशल से नहीं वरन्‌ उनके देवता शैतान की शक्तिसे, जिसने यहोवा के कार्यों के प्रतिरूप दिखाने में उनकी सहायता की थी ।PPHin 261.2

    जादूगरों ने अपनी लाठियों को यथार्थ में सर्प तो नहीं बनाया, लेकिन महान कपटी शैतान की सहायता से सर्प का प्रतिरूप उत्पन्न किया। जीवित सर्पों को लाठी में परिवर्तित करना शैतान की शक्ति से बाहर था। बुराई के राजकुमार के पास एक पतित स्वर्गदूत का ज्ञान और शक्ति तो थे, लेकिन जीवन देने या लेने का उसे अधिकार नहीं है, ये विशेषाधिकार केवल परमेश्वर का है। लेकिन जो भी शैतान के बस में था, उसने किया, उसने एक प्रतिरूप उत्पन्न किया। मनुष्य की दृष्टि में लाठियाँ सर्प में परिवर्तित हो गई। ऐसा फिरौन और उसके दरबारियों का विश्वास था। उनकी आकृति में ऐसा कुछ नहीं था जो उन्हें मूसा द्वारा उत्पन्न किये गए सर्प से भिन्‍न बताए। हालाँकि परमेश्वर ने मूसा के सर्पो को कृत्रिम सर्पों को निगलने दिया लेकिन इस घटना को फिरौन ने परमेश्वर के सामर्थ्य का कार्य नहीं वरन्‌ अपने जादूगरों की जादूगरी से श्रेष्ठ जादूगरी का परिणाम माना ।PPHin 262.1

    पवित्र आज्ञा का प्रतिरोध करने में फिरौन अपने हठीलेपन को सही ठहराना चाहता था और इस कारण वह मूसा के माध्यम से किये गए परमेश्वर के चमत्कारों को उपेक्षित ठहराने के बहाने दूँढ रहा था। शैतान ने उसे वही दिया जो उसे चाहिये था। जादूगरों के माध्यम से कराये गए काम से उसने मिम्रियों को यह जताया कि मूसा और हारून केवल जादूगर और तान्त्रिक थे और उनके द्वारा लाया गया सन्देश एक श्रेष्ठतर हस्ती के पास से आने वाले सन्देश के समान माननीय होने का दावा नहीं कर सकता। इस प्रकार शैतान द्वारा उत्पन्न प्रतिरूप ने मिस्नियों को उनके अतिक्रमण में प्रबल करने और विश्वास के विरूद्ध फिरौन के हृदय कठोर करने के उद्देश्य को प्राप्त किया। शैतान मूसा और हारून के इस विश्वास को तोड़ना चाहता था कि उनको दिये गए विशेष कार्य का स्रोत ईश्वरीय है, ताकि वह अपने साधनों को सफल कर सके। वहइसके पक्ष में नहीं था किइज़राइलियों को जीवित परमेश्वर की उपासना करने के लिये दासत्व से मुक्ति दीजाए। लेकिन जादूगरों के माध्यम से अपने चमत्कारों का प्रदर्शन करने में बुराई के राजकुमार का और भी बड़ा लक्ष्य था। उसे भली भांति ज्ञात था कि इज़राइल के लोगों को दासत्व के बन्धन से छड़ाने में मूसा मसीह का आदिरूप था-वह मसीह जिसे मानव परिवार पर पाप के शासन का अन्त करना था। उसे ज्ञात था कि मसीह के आगमन पर संसार के समक्ष प्रमाण के तौर पर कई चमत्कार घटित कराए जाएँगे कि मसीह को परमेश्वर द्वारा भेजा गया हैं। मूसा के द्वारा किये गए कृत्य का प्रतिरूप दिखाकर, शैतान न केवल इज़राइल की मुक्ति में बाधा उत्पन्न करना चाहता है, आने वाले युगों के लिये ऐसा प्रभाव छोड़ना चाहता था कि लोगों का मसीह के चमत्कारों पर से विश्वास समाप्त हो जाए। शैतान मसीह के काम का प्रतिरूप उत्पन्न करने और अपने आधिपत्य और शासन की स्थापित करने के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहता है। वह मनुष्य से मसीह के चमत्कारों का वर्णन इस प्रकार करवाता है कि वे मनुष्य के कौशल और सामर्थ्य का परिणाम प्रतीत होता हैं। कई लोगों के मन में वह मसीह के परमेश्वर का पुत्र होने के विश्वास को नष्ट कर देता है और उन्हें उद्धार की योजना द्वारा दया के प्रस्ताव को अस्वीकार करा देता है।PPHin 262.2

    मूसा और हारून को दूसरे दिन की प्रातः ही नदी के किनारे जाने का निर्देश दिया गया जहां राजा प्रतिदनि आने का अभ्यस्त था। मिस्र के लिये नील नदी का अतिप्रवाह खाद्य सामग्री और धन सम्पत्ति का स्रोत था, और इस कारण नील नदी को पूजनीय माना जाता था, और राजा वहाँ प्रतिदिन श्रद्धांजलि अर्पित करने आता था। यहाँ दोनो भाईयों ने सन्देश को फिर से दोहराया और उन्‍होंने लाठी को उठाकरजल पर मारा। नदी का सारा जल लहू बन गया और नील नदी में जो मछलियाँ थी वे मर गई, और नदी से दुर्गन्‍न्ध आने लगी। घरों का पानी, टंकियों में रखा हुआ पानी भी लहू में परिवर्तित हो गया। तब “मिस्र के जादूगरों ने भी अपने तंत्र-मंत्र से वैसा ही किया” और “फिरौनने इस पर भी ध्यान नहीं दिया, और मुह फेर कर घर चला गया।” सात दिनों तक यह विपत्तति कायम रही लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।PPHin 263.1

    फिर से नदियों, नहरों और झीलों के ऊपर लाठी वाला हाथ बढ़ाया गया ओर नदी में से मेंढक बाहर निकलकर पूरे मिस्र में फैल गए। उन्होंने घरों पर आक्रमण कर, शयन कक्षों, भट्‌टे और आटा गूँधने वाली थालियों पर भी धावा बोल दिया। मेंढक को मिस्री लोग पूज्य मानते थे इसलिये वे उसे नष्ट नहीं करना चाहते थे, लेकिन वे चिपचिपे जीव अब असहनीय हो गए थे। वे फिरौन के महल में भी भर गये और फिरौन उनके निवारण के लिये उतावला हो गया। जादूगर मेढ़को को उत्पन्न करने के लिये तो आए थे, लेकिन वे उन्हें हटा न सके। यह देखकर फिरौन थोड़ा सा दीन हुआ। उसने हारून और मूसा को बुलाया और उनसे कहा, “यहोवा से विनती करो कि वह मेढ़को को मुझ से और मेरी प्रजा से दूर करें, और में इज़राइली लोगों को जाने दूँगा, जिससे वे यहोवा के लिये बलिदान करें।” राजा को उसी की ढींगमार बातों का स्मरण कराकर, मूसा व हारून ने एक समय नियुक्त करने को कहा, जब वे मेंढ़कों को दूर करने की विनती कर सकते थे। फिरौन ने अगला दिन निर्धारित किया, इस गुप्त आशा के साथ कि तब तक मेंढक स्वयं ही विलोप हो जाएंगे और वह इज़राइल के परमेश्वर के आगे समर्पण करने के घोर अपमान से बच जाएगा। लेकिन मेंढकों का आक्रमण नियमित समय तक चलता रहा, और फिर जब सारे मिस्रमें मेंढक मर गये तो उनके दुर्गन्धित शवों ने वातावरण कों दूषित कर दिया। PPHin 263.2

    परमेश्वर उन्हें क्षण भर में मिट्टी में मिला सकता था, लेकिन उसने ऐसा इसलिये नहीं किया क्‍योंकि मेंढकों को इस तरह हटाए जाने के बाद राजा और उसकी प्रजा इसे जादूगरी या तनन्‍्त्र-मन्त्र का परिणाम बताते। मेंढक मर गये, और उन्हें इकट्ठा करके उनके ढेर लगा दिए गए। इसमें राजा और सम्पूर्ण मिस्र के लिये यह प्रमाण था जिसके लिये उनकी व्यर्थ तक-शास्त्र की विद्या भी यही कह सकती थी कि यह कार्य जादू से सम्पन्न नहीं हुआ, वरन्‌ वह स्वर्ग के परमेश्वर की दण्डाज्ञा थी।PPHin 264.1

    “परन्तु जब फिरौन ने देखा कि अब आराम मिला है, तब उसने फिर अपने मन को कठोर कर लिया।” परमेश्वर की आज्ञानुसार हारून ने लाठी को ले हाथ बढ़ाया और भूमि की धूल पर मारा और सर्वत्र धूल जुएँ बन गई। फिरौन ने जादूगरों को वैसा ही करने को बुलाया लेकिन वे जुएँ न बना सके। इस तरह परमेश्वर का काम शैतान के काम से श्रेष्ठतर प्रमाणित हुआ। जादूगरों ने स्वयं स्वीकार किया, “यह तो परमेश्वर के हाथ का काम है।” लेकिन फिरौन का मन कठोर होता गया।PPHin 264.2

    विनती व चेतावनी दोनो प्रभावहीन रही और एक और दण्डाज्ञा दी गईं। उसके घटित होने का समय पहले से ही बता दिया गया, ताकि ऐसा न कहा जाए कि इस विपत्ति का आना आकस्मिक था। घर मक्खियों से भर गए और भूमि पर मक्खि्यों के झुण्ड के झुण्ड उतर आए, और मक्खियों के कारण वह देश नष्ट हुआ।” ये मक्खियाँ बड़ी और विषैली थी इनका काटना मनृष्य व जंतु दोनों के लिये अत्यन्त पीड़ादायक था। भविष्यद्वाणी के अनुसार, यह विपत्तति गोशेन देश तक नहीं पहुँची।PPHin 264.3

    अब फिरौन ने इज़राइलियों को मिस्र में बलिदान करने की अनुमति का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया “ऐसा करना उचित नहीं” मूसा ने कहा, “क्या हम मिस्रियों के देखते उनकी घृणित वस्तु बलिदान करेंगे तो क्या वे हम पर पथराव न करेंगे?” बलिदान के लिये जिन जानवरों की इब्रियों को आवश्यकता थी वे मिम्रियों द्वारा पूजनीय माने जाते थे और इन जंतुओं को इतने भक्तिभाव से देखा जाता था कि इन्हें संयोगवश मारना भी वह अपराध था जिसके लिये मृत्युदण्ड मिल सकता था। अपने स्वामियों को ठेस पहुँचाए बिना, इब्रियों के लिये मिस्र में उपासना करना असम्भव था। मूसा ने फिर से जंगल में तीन दिन की यात्रा का प्रस्ताव रखा। सम्राट सहमत हो गया, और उसने परमेश्वर के दासों से विनती की कि वे विपत्ति हटाए जाने के लिये उनके निमित्त विनती करें। उन्होंने ऐसा करने का वचन दिया लेकिन उसे चेतावनी दी कि वह उनके साथ छल न करें। विपत्ति को स्थगित कर दिया गया, किन्तु लगातार विद्रोह करने के कारण उसका हृदय कठोर हो गया था और वह समर्पण करने को तैयार नहीं था।PPHin 265.1

    तत्पश्चात उससे भी अधिक भयानक विपत्ति आई- मैदानों के सभी पशुओं पर मरी। पूजनीय पशु व भारवाहक पशु- गाय-बैल, भेड़े, घोड़े, ऊंट व गधे- सब नष्ट हो गए। यह स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इब्रियों पर विपत्ति न आएगी, और इज़राइलियों के घरों पर सन्देशवाहकों को भेजकर फिरौन ने मूसा की घोषणाकी सच्चाई को प्रमाणित किया, “इज़राइलियों का एक भी पशु नहीं मरा ।” फिर भी फिरौन हठपूर्वक अड़ा रहा।PPHin 265.2

    इसके बाद मूसा को भट्‌ठी में से एक-एक मुट्ठीराख लेकर “फिरौन के सामने आकाश की ओर जड़ा देने” को कहा गया। यह कृत्य अत्यन्त महत्वपूर्ण था। चार सौ वर्ष पूर्व परमेश्वर ने अब्राहम को एक जलते हुए दीपक और धुंएदार भट॒ठी के आकार के नीचे अपने लोगों के भविष्य में होने वाले अत्याचार को दिखाया था। उसने अत्याचारियों पर दण्डाज्ञा की और बन्धकों को बहुत से धन के साथ लाने की घोषणा की थी। मिस्र में इज़राइल, यातना की भट्‌ठी में बहुत लम्बा समय काटा था। मूसा का यह कृत्य उनके लिये आश्वासन था कि परमेश्वर को अपनी वाचा का ध्यान है और उनकी मुक्ति का समय आ गया था।PPHin 265.3

    जैसे-जैसे राख आकाश की ओर बिखेरी गईं, उसके सूक्षम कण पूरे मिस्र देश में फैल गए और जहाँ पर भी वह गिरी, “मनुष्य और पुशओं दोनो पर फफोले और फोड़े बन गई ।” पुजारियों और जादूगरों ने अब तक फिरौन को उसकी हठधर्मिता में प्रोत्सहान दिया था, लेकिन अब दण्डाज्ञा उन तक भी पहुँच गईं। पीड़ादयक और घृणास्पद बीमारी से ग्रसित, वे इज़राइल के परमेश्वर के विरूद्ध नहीं लड़ सके और, उनकी दिखावटी योग्यता ने उन्हें और भी तुच्छ बना दिया । जब वे अपने ही शरीर की सुरक्षा नहीं कर पाए तो पूरे राष्ट्र को जादूगरों पर विश्वास करने की मूर्खता को दिखाया गया।PPHin 266.1

    लेकिन फिर भी फिरीन का हृदय और भी कठोर हो गया और अब परमेश्वर ने उसके पास यह सन्देश भेजा, “अब के बाद मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियों, और तेरी प्रजा परसब तरह की विपत्तियाँ डालूँगा, जिससे तू जान ले कि सारी पृथ्वी पर मेरे तुल्य कोई दूसरा नहीं है........परन्तु सचमुच में मैंने इसी कारण तुझे बनाए रखा है कि अपनी सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं ।” ऐसा नहीं था कि परमेश्वर उसे इसी उद्देश्य से आस्तित्व में लाया था, वरन्‌ उसी के प्रयोजन से कई घटनाओं का अनदेखा किया गया, ताकि इज़राइल की मुक्ति के नियुक्त समय में उसे सिंहासन पर बैठाया जाए। हालाँकि इस अहंकारी सम्राट ने अपने अपराधों के कारण परमेश्वर की दया का पात्र नहीं रहा था, लेकिन उसका जीवन इसलिये संरक्षित रखा गया ताकि उसके हठीलेपन के माध्यम से परमेश्वर मिस्र देश में अपने चमत्कारों का प्रदर्शन करे । घटनाओंको सुव्यवस्थित करना परमेश्वर का कार्य था। वह सिंहासन पर इए करूणामयी राजा को बैठा सकता था, जो ईश्वरीय शक्ति के प्रबल प्रदर्शनों का प्रतिरोध करने का दुस्साहस न करता, लेकिन उस दशा में परमेश्वर की योजनाएँ सफल न होती। उसके लोगों को मिस्रियों की अत्यन्त कष्टदायक निर्दयता का अनुभव करने दिया गया, ताकि वे मूर्तिपूजा के दुष्प्रभाव के सम्बन्ध में धोखा न खाएं । फिरौन के साथ अपने व्यवहार में परमेश्वर ने मूर्तिपूजा के लिये उसकी घृणा और उत्पीड़न और निर्दयता को दण्डित करने के संकल्प को प्रकट किया।PPHin 266.2

    फिरौन के सम्बन्ध में परमेश्वर ने घोषणा की थी, “में उसके हृदय को कठोर कर दूँगा और वह लोगों को जाने न देगा”-निर्गमन 4:21 । राजा के हृदय को कठोर करने के लिये किसी अतिप्राकत शक्ति का प्रयोग नहीं किया गया, परमेश्वर ने फिरौन को ईश्वरीय शक्ति के ठोस प्रमाण दिए लेकिन सम्राट ने प्रकाश पर ध्यान देने से मना कर दिया। अनन्त शक्ति का प्रत्येक प्रदर्शन जिसकी उसने उपेक्षा की, उसे उसके अतिक्रमण में और दृढ़ बनाता गया। पहले चमत्कार को अस्वीकृत करके जो विद्रोह का बीजउसने बोये थे, उन्होंने अपनी पहली उपज उत्पन्न की। जैसे-जैसे वह अपने ही रास्ते पर चलता रहा, और अपने हठीलेपन में बढ़ता गया, उसका हृदय कठोर होता चला गया और अन्त में उसे पहलौठों के ठण्डे पड़े निर्जीव चेहरों को देखना पड़ा।PPHin 266.3

    परमेश्वर, पाप को धिक्कारते हुए व चेतावनियाँ देते हुए, अपने दासों द्वारा मनुष्य से बात करता है। वो हर एक को गलतीसुधारने का अवसर देता है, इससे पहले कि वह गलती उसके चरित्र का हिस्सा बन जाए, लेकिन यदि कोई सुधार होने देने से मनाही करता है तो पवित्र सामर्थ्य उसके अपने कत्य की प्रवृति का प्रतिरोध करने के लिये हस्तक्षेप नहीं करता। फिरीन को एक ही बात को दोहराना आसान लगा। वह पवित्र आत्मा के विरूद्ध अपने हृदय को कठोर कर रहा था। प्रकाश की और उपेक्षा ने उसे वहां लाकर खड़ा कर दिया जहाँ पहले से अधिक गहरा प्रभाव भी एक स्थायी संस्करण छोड़ने में निष्प्रभाव होता।PPHin 267.1

    जो एक बार प्रलोभन में पड़ जाते है वे दूसरी बार और तत्परता से प्रलोभन में पड़ जाएंगे। पाप का प्रत्येक दोहराव उसमें प्रतिरोध की शक्ति को कम कर देता है, उसे अंधा कर देता है और विश्वास का गला घोंट देता है। अति भोग का प्रत्येक बोया हुआ बीज फलवन्त होगा। परमेश्वर उपज को बाधित करने के लिये कोई चमत्कार नहीं करता, “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा”-गलतियो 6: जो विद्यर्मी साहस और पवित्र सत्य के प्रति उदासीनता प्रकट करता है, वह उसी की उपज काट रहा है जो उसने स्वयं बोई है। इस प्रकार कई लोग एक समय में उनकी आत्माओं को झकझोर कर रख देने वाले सत्यों को उदासीन उपेक्षा के साथ सुनने आते है। उन्होंने सत्य के प्रति उपेक्षा और प्रतिरोध का बीजारोपण किया और ऐसीही वह फसल है जो वे काठते हैं। PPHin 267.2

    जो इस विचार से अपराधबोध से ग्रसित अन्तरात्मा को शान्त करने का प्रयत्न करते है कि वे जब चाहे पाप के रास्ते को बदल सकते हैं और दया के निमन्त्रण को तुच्छ समझ सकते है और फिर भी बार-बार प्रभावित हो सकते है, वे यह रास्ता अपने आपको संकट में डालकर चुनते हैं। वे सोचते है अपना सारा प्रभाव महान विद्रोही के पक्ष में डालने के बाद, परम संकट के क्षणों में जब वे खतरों से घिरे होंगे, वे सरदार बदल लेंगे। लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होता। पापमय अतिभोग ग्रस्त जीवन का अभ्यास, शिक्षण व अनुभव उनके चरित्र को पूर्ण रूप से ढाल देते है कि फिर वे यीशु की छवि को ग्रहण नहीं सकते हैं । यदि उनके मार्ग में प्रकाश का अभाव होता तो बात कुछ और होती। दया ने हस्तक्षेप कर उन्हें उसके प्रस्तावों को स्वीकार करने का अवसर दिया होता, लेकिन जब प्रकाश को बहुत समय तक अस्वीकार व तिरस्कत किया जाता है, तो उसे हटा लिया जाएगा।PPHin 267.3

    आने वाली अगली विपत्ति, ओलों की वर्षा की चेतावनी फिरौन को दी गई, “अब लोगो को भेजकर अपने पशुओं को और मैदान में जो कुछ तेरा है सब को फरर्ती से आड़ में छिपा ले, नहीं तो जितने मनुष्य या पशु मैदान में रहे और घर में इकट॒ठा न किए जाएं उन पर ओले गिरेंगे और वे मर जाएंगे ।” वर्षा या ओले दोनो ही मिस्र में अस्वाभाविक थे, और ऐसा तुफान, जैसा भविष्यद्वाणी में बताया गया था, कभी नहीं देखा गया था। यह सूचना शीघ्रता से फैल गयी, और जिन्हें परमेश्वर के कथन पर विश्वास था, उन्होंने अपने पशुओं को इकटठा कर लिया, लेकिन जिन्होंने चेतावनी का तिरस्कार किया उन्होंने अपने पशुओं को मैदान में ही छोड़ दिया। इस प्रकार न्याय करने के दौरान भी परमेश्वर की दयालुता का प्रदर्शन हुआ, लोगों को परखा गया। और यह बताया गया कि उसके सामर्थ्य के प्रदर्शन से कितनों को परमेश्वर का भय मानने के लिये प्रेरित किया गया।PPHin 268.1

    तूफान वैसे ही आया जैसा कि बताया गया था- मेघगर्जन और ओले, और उसके साथ आग मिली हुई, “और वे ओले इतने भारी थे कि जब से मिस्र देश बसा था तब से मिस्र भर में ऐसे ओले कभी नहीं गिरे थे। इसलिये मिस्र भर के खेतों, क्या मनुष्य, क्या पशु, जितने थे सब ओलों से मारे गए और ओलों से खेत की सारी उपज नष्ट हो गई, और मैदान के वृक्ष भी नष्ट हो गए।” जहां से भी विनाश का स्वर्गदूत निकला, वहाँ बरवादी और निर्जनता के चिन्ह छोड़ गया। केवल गोशेन प्रदेश को छोड़ दिया गया। मिस्रियों को उदाहरण देकर समझाया गया कि पृथ्वी जीवित परमेश्वर के नियन्त्रण में है, आंधी और पानी भी उसकी आज्ञा को मानते है, और उसकी आज्ञाका पालन करने में ही सुरक्षा है।PPHin 268.2

    पवित्र दण्डाज्ञा के उँडेले जाने पर पूरा मिस्र कॉप उठा। फिरौन ने तुरन्त दोनो भाईयों को बुलाया और उसने कहा, “इस बार मैंने पाप किया है, यहोवा धर्मी है, और मैं और मेरी प्रजा अधर्मी है। मेघों का गरजना और ओलों का बरसना तो बहुत हो गया, अब यहोवा से विनती करो, तब मैं तुम लोगो को जाने दूँगा, और तुम ना रोके जाओगे ।” मूसा ने उत्तर दिया “नगर से निकलते ही मैं यहोवा की ओर हाथ फैलाऊंगा, तब बादल का गरजना बन्द हो जाएगा और फिर ओले ना गिरेंगे, इससे तू जान लेगा कि पृथ्वी यहोवा की ही है। तो भी मैं जानता हूँ कि न तो तू और न तेरे कर्मचारी यहोवा परमेश्वर का भय मानेंगे।”PPHin 268.3

    मूसा को ज्ञात था कि संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ था। फिरौन के वचन और पापों का अंगीकार करना उसके मन या हृदय में सुधारवादी परिवर्तन का प्रभाव नहीं थे, वरन्‌ उसके भय और यन्त्रणा से उत्पन्न हुए थे। लेकिन मूसा ने उसका निवेदन स्वीकार करने का वचन दिया क्योंकि उसे और हठीला होने का अवसरनहीं देना चाहता था। तूफान की प्रचण्डता पर ध्यान देते हुए नबी चल पड़ा, और फिरीन और उसके लोग परमेश्वर की अपने दूत को संरक्षित रखने के समार्थ्य के साक्षी थे। नगर से बाहर जाकरउसने, “यहोवा की ओर हाथ फैलाए, तब बादलों का गरजना और ओलों का बरसना बन्द हुआ और पृथ्वी पर अधिक वर्षा न हुई ।” लेकिन जैसे ही फिरौन भय-युकत हुआ, उसका हृदय फिर से हठी हो गया।PPHin 269.1

    परमेश्वर ने मूसा से कहा, “फिरीन के पास जा, क्‍योंकि मैंने ही उसके और उसके कर्मचारियों के मन को इसलिये कठोर कर दिया है कि अपने चिन्ह उनके बीच में दिखलाऊँ, जिससे तुम लोग यह जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ। प्रभु अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन इसलिये कर रहा था कि इज़राइल अपने विश्वास की पुष्टि कर सके कि वह ही एकल सच्चा और जीवित परमेश्वर है। वह उनमें और मिस्रियों के बीच अन्तर का ठोस प्रमाण देने वाला था और सब जातियों को यह बताने वाला था कि इब्री, जिनसे वे इतनी घृणा और जिन पर इतना अत्याचार करते थे वे स्वर्ग के परमेश्वर की सुरक्षा में थे।PPHin 269.2

    मूसा ने सम्राट को चेतावनी दी कि यदि वह अभी भी हठधर्मी बना रहेगा, तो टिडिडयों की विपत्ति भेजी जाएगी, जो संपूर्ण पृथ्वी पर छा जाएगी और ओलों की मार से प्रत्येक हरी वस्तु जो बची हुई है, को खा जाएंगी, वे सारे मिस्रियों के घरों में भर जाएंगी और महल में भी और “इतनी टिडिडयां तेरे बाप-दादा ने या उनके पुरखाओं ने जब से पृथ्वी पर जन्मे तब से आज तक कभी न देखी।”PPHin 269.3

    फिरोन के परामर्शदाता हक्का-बक्का रह गए। अपने पशुओं के मरने से मिस्र को बहुत हानि पहुँचती थी। ओलो की मार से कईलोगों की मृत्यु हो गई थी। न तो किसी वृक्ष पर कुछ हरियाली रह गई और न ही खेत में अनाज रह गया था। इब्रियों के परिश्रम के परिणामस्वरूप जो कुछ भी उन्‍होंने प्राप्त किया था वे उसे शीघ्रता से गँवा रहे थे। पूरे मिस्र पर भुखमरी का खतरा मण्डरा रहा था। राजकुमारों और दरबारियों ने आग्रहपूर्वक कोध में यह मांग की, “वह जन कब तक हमारे लिये फन्‍न्दा बना रहेगा? उन लोगों को जाने दे कि वे अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करें। क्‍या तू अब तक नहीं जानता कि सारा मिस्र नष्ट हो गया है?”PPHin 270.1

    मूसा और हारून को फिर से बुलवाया गया और फिरौन ने उनसे कहा, “चले जाओ, अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करो, परन्तु वे जो जाने वाले हैं कौन-कौन है?PPHin 270.2

    मूसा ने कहा, “हम तो बेटे-बेटियों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों समेत वरन्‌ बच्चों से बूढ़ो तक सब के साथ जाएँगे, क्‍योंकि हमें यहोवा के लिये पर्व करना है।PPHin 270.3

    राजा कोध से भर गया, “यहोवा तुम्हारे संग रहे यदि मैं तुम्हें बच्चों समेत जाने देता हूँ देखो तुम्हारे मन में बुराई है। नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा, तुम पुरूष ही जाकर यहोवा की उपासना करो, तुम यही तो चाहते थे।” और वे फिरोन की उपस्थिति से निकाल दिये गए।PPHin 270.4

    फिरौन नेइज़राइलियों से कठोर परिश्रम करवाकर उनका विनाश करने का प्रयत्न किया था लेकिन अबवह उनके छोटे-छोटे बच्चों के प्रति नग्रतापूर्ण व्यवहार और उनके कल्याण में गहरी रूचि दिखाने की चेष्ठा कर रहा था। उसका वास्तविक उद्देश्य था कि वह स्त्रियों और बच्चों को जाने वाले पुरूषों की जमानत के तौर पर रखे।PPHin 270.5

    मूसा ने अब मिस्र की भूमि पर अपनी लाठी वाला हाथ बढ़ाया और पूरब दिशा से एक हवा चली और अपने साथ टिडिडयों को ले आई। “टिडिडयों का दल बहुत भारी था, न तो उनसे पहले ऐसी टिडिडियां आई थी, और न उनके बाद ऐसी फिर आएँगी।” वे सारी धरती पर छा गई, यहाँ तक कि देश में अन्धकार छा गया, और बची हुई प्रत्येक हरित वस्तु को खा गईं। फिरौन ने शीघ्र ही नबी को बुलाकर कहा, “मैं तो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का और तुम्हारा भी अपराधी हूँ। इसलिये केवल अब की बार मेरा अपराध क्षमा करो, और अपने परमेश्वर यहोवा से विनती करो कि वह मेरे ऊपर से इस मृत्यु को दूर करे।” उन्होंने ऐसा ही किया, और एक बहुत प्रचण्ड पश्चिमी हवा टिडिडयों को लाल समुद्र की ओर उड़ाकर ले गईं। लेकिन फिरौन अपने हठपूर्ण संकल्प पर डटा रहा।PPHin 270.6

    मिस्र के लोग निराशा की ओर बढ़ रहे थे। उन पर आयी विपत्त्तियाँ असहनीय प्रतीत हो रही थी और वे भविष्य को लेकर भयभीत हो गए थे। राष्ट्र ने फिरौन को उनके देव के प्रतिनिधि के रूप में पूजा था लेकिन अब कईयों को विश्वास हो गया था कि वह उसके विरूद्ध खड़ा था, जिसने प्रकृति की प्रत्येक शक्ति को अपनी इच्छा का कर्मकर बनाया था। इब्री दास, जिनपर परमेश्वर की आश्चर्यजनक कृपा-दृष्टि थी, अपने छुटकारे के लिये आश्वस्त थे। अब से उनके कठोर अधिकारी उन पर पहले जैसा अत्याचार नहीं करते थे। सम्पूर्ण मिस्र दासों पर किये गए अत्याचारों के कारण उनके प्रतिशोध की आंशका से व्याप्त था। हर तरफ भयभीत मनुष्य के होठों पर एक ही प्रश्न था, “अब क्या होना वाला है?”PPHin 271.1

    अकस्मात ही पूरे देश पर अन्धकार छा गया जो इतना घोर व प्रगाढ़ था कि ‘उसे टटोला जा सकता था।’ ना केवल लोग प्रकाश से वंचित हो गए वरन्‌ संपूर्णवातावरण इतना दमघोंटू हो गया कि श्वास लेने में कठिनाई होने लगी। “तीन दिनों तक न तो किसी ने किसी को देखा, और न कोई अपने स्थान से उठा, परन्तु सारे इज़राइलियों के घरों में उजियाला था।” सूर्य और चन्द्रमा मिस्रियों के लिये पूजा के पात्र थे; इस रहस्यमयी अन्धकार में, दासों की मुक्ति कादायित्व लेने वाली शक्ति द्वारा मनुष्य और उनके देवी-देवताओं एक सामन मारे गये। फिर भी भयानक होते हुए भी यह दण्डाज्ञा परमेश्वर की संवेदना और उसकी नष्ट न करने की इच्छा का प्रमाण है। अन्तिम और सबसे भयानक विपत्ति से पहले वह लोगों को प्रायश्चित और चिन्तन का समय देना चाहता था।PPHin 271.2

    डर से प्रभावित होकर फिरौन ने एक और अनुदान दिया। अन्धकार के तीसरे दिन उसने मूसा को बुलाया, और लोगों की निकासी की सहमति इस प्रतिबन्ध के साथ दी कि वे अपने पशु पीछे छोड़ जाएँ। दृढ़ संकल्प के साथ इब्री ने कहा, “उनका एक खुर तक न रहेगा।” “जब तक हम वहाँ नहीं पहुँचे तब तक हम नहीं जानते कि क्या-क्या लेकर यहोवा की उपासना करनी होगी।” राजा का कोध आपे से बाहर हो गया। वह बोला, “मेरे सामने से चला जा, और सचेत रह मुझे अपना मुख फिर न दिखाना, क्योंकि जिस दिन तू मुझे मुहँ दिखाएगा, उसी दिन तू मारा जाएगा ।” माँ ने कहा, “तूने ठीक कहा है, तेरे मुहँ को फिर कभी न देखूँगा।”PPHin 271.3

    “वह पुरूष मूसा, मिस्र देश में फिरीन के कर्मचारियों और साधारण लोगों की दृष्टि में अति महान था।” मिस्रियों के द्वारा मूसा का श्रद्धायुक्त भय के साथ आदर किया जाता था। राजा उसे हानि पहुँचाने का दुस्साहस नहीं कर सकता था, क्‍योंकि लोगों की दृष्टि में केवल मूसा ही विपत्तियों को दूर करने के योग्य था, वे चाहते थे कि इज़राइलियों को मिस्र छोड़ कर जाने दिया जाए। वे राजा और पुजारी ही थे जो अन्त तक मूसा की माँगों का विरोध करते रहे।PPHin 272.1

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