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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 24—फसह का पर्व

    यह अध्याय निर्गमन 11, 12:1-32 पर आधारित है

    जब इज़राइल के छुटकारे की माँग पहली बार मिस्र के राजा के सम्मुख प्रस्तुत की गई थी, उस समय सबसे भयानक विपत्ति की चेतावनी भी दे दी गई थी । मूसा को निर्देशित किया गया था कि वह फिरौन से कहे, “यहोवा यों कहता है, कि इज़राइल मेरा पुत्र वरन मेरा पहलौठा है, और मैं तुझ से कहता हूँ कि मेरे पुत्र को जाने दे कि वह मेरी सेवा करे, और तूने अब तक उसे जाने नहीं दिया, इस कारण मैं अब तेरे पुत्र वरन्‌ तेरे पहलौठे को घात करूँगा।” हालाँकि मिम्नियों द्वारा तिरस्कृत, इज़राइलियों को परमेश्वर का आदर प्राप्त था। उन्हें उसकी व्यवस्था के संग्रहालय होने के लिये अलग किया गया था। जैसे कि पहलौठे का स्थानभाईयों में श्रेष्ठ होता था उसी प्रकार इज़राइलियों को मिले हुए विशेष आशीर्वाद और विशेषाधिकारों के कारण वेदूसरे राष्ट्रों में प्रतिष्ठित थे।PPHin 273.1

    जिस दण्डाज्ञा की मिस्र को चेतावनी दी गई थी, वह आने को थी। परमेश्वर दया करने में सहनशील व उदार है। अपने ही स्वरूप में बनाए गए प्राणियों के प्रति वह नग्रतापूर्वक व्यवहार करता है। यदि फसल के व अपने पशुओं के नष्ट होने पर मिस्र ने पश्चताप किया होता तो बच्चों को मारा नहीं जाता, लेकिन राष्ट्र ने पवित्र आज्ञा का जिद में आकर प्रतिरोध किया, और अब निर्णायक वार होने को था।PPHin 273.2

    मूसा को, मृत्यु की पीड़ा में भी फिरौन की उपस्थिति में प्रकट होने को मना किया गया था, लेकिन विद्रोही सम्राट के पास परमेश्वर का अन्तिम सन्देश पहुँचाया जाना था और फिर से मूसा उसके सम्मुख यह भयानक सूचना लेकर पहुँचा, “यहोवा इस प्रकार कहता है, आधी रात के लगभग मिस्र देश के बीच में जाऊंगा, तब मिस्र के सिंहासन पर विराजने वाले फिरौन से लेकर चक्की पीसने वाली दासी तक के पहलौठे, वरन्‌ पशुओं तक के सब पहलोठे मर जाएंगे। और सारे मिस्र देश में बड़ा हाहाकार मचेगा, यहाँ तक कि उसके समान न तो कभी हुआ और न होगा, पर इज़राइलियों के विरूद्ध क्‍या मनुष्य, क्या पशु, किसी पर कोई कृत्ता भी न भौंकेगा, जिससे तुम जान लो कि मिस्रियों और इज़राइलियों के बीच यहोवा ने अन्तर रखा है। तब तेरे सब कम॑चारी मेरे पास आकर मुझे दण्डवत करेंगे और कहेंगे, अपने सब अनुचरों समेत निकल जा, और मैं उसके पश्चात निकल जाऊंगा।”PPHin 273.3

    इस दःण्डाज्ञा के क्रियान्वन से पूर्व परमेश्वर ने मूसा के द्वारा इज़राइलियों को मिस्र से उनकी निकासी से सम्बन्धित विशेषकर आने वाली विपत्ति से उनके सरंक्षण हेतु निर्देश दिये। प्रत्येक परिवार को, अकेले या दूसरों के साथ मिलकर, एक ननिर्दोष’ बकरी के या भेड़ के बच्चे को बलि करके, कठिंजर जूफे के गुच्छे से उसके लहू को घर के द्वार के दोनों अलंगो और चौखट के सिरे पर’ छिड़कना था, ताकि मध्य रात्रि को आने वाला विनाश का स्वर्गदूत उस घर में प्रवेश न करे। रात को उन्हें मास को आग में भूनकर, अखमीरी रोटी और कड़वे सागपात के साथ खाना था, जैसा मूसा ने कहा, “कमर बाॉँधे पाँव में जूती पहिने और हाथ में लाठी लिये हुए उसे फूर्ती से खाना, वह तो यहोवा का पर्व होगा।PPHin 274.1

    परमेश्वर ने घोषणा की, “उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में से होकर जाऊंगा, और मिस्र देश के क्‍या मनुष्य कया, पशु, सब के पहलौठों को मारूँगा, और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूँगा, मैं यहोवा हूँ। और जिन घरों में तुम रहोगे उन पर वह लहू तुम्हारेलिये चिन्ह ठहरेगा, अर्थात मैं उस लहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊंगा, और जब मैं मिस्र देश के लोगों को मारूँगा, तब वह विपत्ति तुम पर नहीं पड़ेगी और तुम नष्ट नहोगे।PPHin 274.2

    इस महान छुटकारे की समृति में इज़राइल के लोगों द्वारा व आने वाली पीढ़ियों में भी उस पर्व को मनाया जाना था। “वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिये पर्व जैसे मनाना, वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि मानकर पर्व माना जाए।“आने वाले वर्षों में भी इस पर्व के मानने के समय उन्हें अपने बच्चों को इस महान छुटकारे की कहानी को अपने बच्चों के लिये दोहरानी थी, जैसा मूसा ने कहा, “यहोवा ने जो मिस्रियों के मारने के समय मिस्र में रहने वाले हम इज़राइलियों के घरों को छोड़कर हमारे घरों को बचाया इसी कारण उसके फसह का यह बलिदान किया जाता है।”PPHin 274.3

    इसके अतिरिक्त मनुष्य और पशु दोनों के पहलौठे परमेश्वर के माने जाते थे जिन्हें मोल देकर वापस खरीदा जा सकता था, इस बात की पुष्टि करने के लिये कि जब मिस्र में पहलौठों को मारा गया, इज़राइलियों के पहलौठों को अनुग्रहपूर्ण संरक्षण प्राप्त हुआ, लेकिन पश्चताप की बलि की भेंट के अभाव में वे भी न्याय के अनुसार दूसरों के समान विनाश को प्राप्त होते। परमेश्वर ने घोषणा की, “सब पहलौठे मेरे है, क्योंकि जिस दिन मैंने मिस्र देश में के सब पहलौठों को मारा, उसी दिन मैंने, क्‍या मनुष्य, क्या पशु इज़राइलियों के सब पहलौठों को अपने लिये पवित्र ठहराया””-गिनती 3:13 ।मिलापवाले कीविधिके संस्थापन के बाद, पवित्र स्थान के काम के लिये परमेश्वर ने लैवी के कुल को चुना, ना कि लोगों के पहलौठों को। उसने कहा, “वे इज़राइलियों में से मुझे पूरी रीति से अर्पण किये हुए हैं, मैंने उनको सब इज़राइलियों के पहलौठे के बदले अपना कर लिया है””-गिनती 8:16फिर भी, सब लोगों को, परमेश्वर की दया की अभिस्वीक॒ति में अपनेपहलौठे पुत्र का उद्धार-मूल्य चुकाना पड़ता था। (गिनती 18:15, 16)PPHin 274.4

    फसह के पर्व को प्रतीकात्मक व संस्मारक होना था जो केवल मिस्र से छुटकारे की ओर ही संकेत न करे, वरन्‌ उस महानतम छुटकारे की ओर संकेत करे जो मसीह के द्वारा, उसके लोगों को पाप के दासत्व से मुक्त कराकर, सम्पन्न होना था। “बलिदान का मेमना’ ‘परमेश्वर के मेमने’ का प्रतीक है जिसमें हमारे उद्धार की अकेली आशा है। 1 कु॒रिन्थियों 5:7में प्रेरित कहता है, “हमारा फसह, जो मसीह है बलिदान हुआ है।” फसह के मेमने का मारा जाना पर्याप्त नहीं था, उसका लहू द्वार की चौखटों पर छिड़का जाना था, इसी प्रकार मसीह के लहू की विशेषता हमारी आत्माओं में प्रयुक्त होना चाहिये। हमें विश्वासहोना चाहियेकि वहसंसारकेलिये हीनहीं वरन्‌ हम में से एक-एक के लिये बलिदान हुआ। हमें प्रायश्चित के बलिदान के सदगुण को अपना बना लेना चाहिये।PPHin 275.1

    लहू को छिड़कने के उपयोग में लाया गया कठिजंर जूफा शुद्धीकरण का प्रतीक था, जो कोढ़ियों के व मृतकों को छूने से अशुद्ध हुए मनुष्यों के शुद्धीकरण में प्रयोग किया जाता था। भजन संहिता के लेखक की प्रार्थना में इसका महत्व ज्ञात होता है, “जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्र हो जाऊँगा, मुझे धो, और में हिम से भी अधिक श्वेत बनूगा”-भजन संहिता 51:7। मेमने को पूरा, बिना किसी हड्डी के तोड़े हुए पकाया जाना था। इसी प्रकार परमेश्वर के मेमने की भी, जिसे हमारे लिये बलिदान होना था, एक भी हडडी नहीं तोड़ी जानी थी। (यहुन्ना 19:36) यह मसीह के बलिदान की संपूर्णता का प्रतीक था। PPHin 275.2

    माँस का सेवन किया जाना था। यह पर्याप्त नहीं है कि हम अपने पापों की क्षमा के लिये मसीह पर विश्वास रखें, उसके वचन के माध्यम से हमें परमेश्वर से लगातार आध्यात्मिक शक्ति और पुष्टिकारक पदार्थ ग्रहण करते रहना चाहिये। मसीह ने कहा है, “जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मास न खाओ, और उसका लहू न पिओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मास खाता है और मेरा लहू पीता है, अनंत जीवन उसी का है”-यहुन्ना 6:53,54। और इसका अभिप्राय समझाने के लिये उसने कहा, “जो बातें मैंने तुम से कही हैं वे आत्मा है, और जीवन है”-यहुन्ना 6:63 ।यीशु ने अपने पिता की व्यवस्था को स्वीकार किया, अपने जीवन में उसके सिद्धान्तों को अपनाया, उसकी भावना को प्रकट किया और हृदय में उसकी परोपकारी सामर्थ्य को दिखाया। यहुन्ना 1:14में यहुन्ना कहता है, “और वचन देहधारी हुआ, और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा ।” मसीह के अनुयायियों को उसके अनुभव के भागीदार होना चाहिये। उन्हें परमेश्वर के वचन को ग्रहण कर अपनाना चाहिये ताकि वह हमारे कार्यों और जीवन की प्रेरणादायक शक्ति बन जाए। मसीह के सामर्थ्य से उन्हें उसके स्वरूप में परिवर्तित होना चाहिये और उसकी पवित्र विशेषताओं को प्रतिबिम्बित करना चाहिये। उन्हें परमेश्वर के पुत्रकेमाँस को खाना और लहूको पीना चाहिये, वरन्‌ उनमें जीवन नहीं। मसीह के काम और आत्मा उसके अनुयायियों के काम और आत्मा बन जाना चाहिये।PPHin 275.3

    मेमने को कड़वी बूटियों के साथ खाया जाना था। इसी प्रकार हमें मसीह के लहू और देह का सेवन, अपने पापों के कारण, हृदय के प्रायश्चित के साथ करना चाहिये। अखमीरी रोटी का प्रयोग किया जाना भी अर्थपूर्ण था। फसह की विधि में यह स्पष्ट रूप से आज्ञा दी गईं थी कि पर्व के दौरान घरों में खमीर का होना निषिद्ध था और यहूदी इस नियम का सख्ती से पालन करते थे। इसी प्रकार मसीह से जीवनऔर पौष्टिक पदार्थ पाने वालों में पाप का खमीर दूर कर दिया जाना चाहिये। कुरिन्थियों की कलीसिया को पौलूस लिखता है, “पुराना खमीर निकाल कर अपने आप को शुद्ध करो कि नया गूँधा हुआ आटा बन जाओ, ताकि तुम अखमीरी हो.........क्योंकि हमारा भी फसह, जो मसीह है, बलिदान हुआ है। इसलिये आओ, हम उत्सव में आनन्द मनांए, न तो पूराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से, परन्तु निष्कपटता और सच्चाई की अखमीरी रोटी से।”1 कुरिन्थियों 5:7,8 PPHin 276.1

    स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व बंधको को सम्पन्न होने वाले महान छुटकारे में विश्वास दिखाना था। उनके घरों पर लहू के चिन्हका लगाया जाना आवश्यक था, उन्होंने स्वयं को व अपने परिवारों को मिप्नियों से अलग करना था और अपने अपने घरों में इकट॒ठा होना था। यदि इज़राइलियों ने दिये गए निर्देशों के किसी भी विवरण को अमान्य ठहराया होता या मिम्नरियों से अपने बच्चों को अलग न किया होता, यदि उन्होंने मेमने को तो मारा होता, पर उसके लहू को द्वार की चौखटों पर नहीं लगाया होता, या वे अपने घरों से बाहर निकल गए होते, तो वे सुरक्षित न होते। उन्होंने यह विश्वास कर लिया होगा कि उन्होंने वह सब कुछ किया जो अनिवार्य था, लेकिन उनकी सच्चाई ने उन्हें न बचाया होता। जिन्होंने भी परमेश्वर के निर्देश की अवहेलना की, उन्हें विनाशक के हाथों अपने पहलौठों को खोना था।PPHin 276.2

    आज्ञा का पालन करके लोगों को उनके विश्वास का प्रमाण देना था। इसी प्रकार जो भी मसीह के खून की सामर्थ्य से बचाए जाने की आशा करते हैं, उन्हें समझना चाहिये कि अपने उद्धार की प्राप्ति में उन्हें स्वयं भी कुछ करना था। हालांकि केवल मसीह ही हमें पाप की दण्डाज्ञा से छुटकारा दिला सकता है, किन्तु हमें पाप से हटकर आज्ञाकारिता की ओर मुड़ना होगा। मनुष्य अपने कामों के द्वारा नहीं, वरन्‌ अपने विश्वास के द्वारा बचाया जाता है, लेकिन उसका विश्वास उसके कामों से प्रकट होना चाहिये । परमेश्वर ने पाप कीके कारण अपने पुत्र को मरने के लिये दे दिया। उसने जीवन के मार्ग और सत्य के प्रकाश को प्रकट किया, उसने सुविधाएं, विधियाँ और विशेषाधिकारदिये हैं और अब मनुष्यों को इन सुरक्षा-माध्यमों के साथ सहयोग करना चाहिये; उसे परमेश्वर द्वारा दी गई सहायता का प्रयोग करना चाहिये और उसका आभारी होना चाहिये और सब पवित्र आज्ञाओं का पालन और विश्वास करना चाहिये।PPHin 277.1

    जब मूसा ने उनके छुटकारे के लिये परमेश्वर के प्रयोजनों को इज़राइल के लिये दोहराया, तो लोगों ने दण्डवत करके उसकी आराधना की। मुक्ति की आनन्दमयी आशा, उनका उत्पीड़न करने वालों पर होने वाली दण्डाज्ञा का ज्ञान, उनकी शीघ्र निकासी से सम्बन्धित परिश्रम-यह सब उस समय अनुमग्रहपूर्ण उद्धारकर्ता के प्रति कृतज्ञता में भुला दिये गए। कई मिस्री ‘इब्रियों को परमेश्वर’ का एकल सच्चा परमेश्वर होने में विश्वास हो गया था और ये लोग विनाशक स्वर्गदूत के आने के समय इज़राइल के घरों में आश्रय पाने की अनुमति की भीख मांगने लगे।PPHin 277.2

    उनका प्रसनन्‍नतापूर्वक स्वागत किया गया, और उन्होंने शपथ ली कि उस समय के याकूब के परमेश्वर की आराधना करेंगे और उसके लोगों के साथ मिस्र से चले जायेंगे।PPHin 278.1

    इज़राइलियों ने परमेश्वर द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन किया। शीघ्रता व गुप्त रूप से उन्होंने निकासी की तैयारियाँ की। परिवारों को इकट्ठा किया गया, फसह के मेमने को मारा गया, मास को आग में भूना गया और अखमीरी रोटी और कड़वी जड़ी बूटियों को तैयार किया गया। घराने के धर्मगुरू और पिता ने द्वार की चौखट पर लहू को छिड़का और अपने परिवार सहित घर के अन्दर हो गया। शीघ्रता से और चुपचाप फसह के मेमने को खाया गया। आदरपूर्ण भय के साथ लोगों ने प्रार्थना की ओर, शक्तिशाली पुरूष से लेकर छोटेबच्चे तक, सबसे ज्येष्ठ के हृदय को अवर्णनीय भय से घड़कते हुए देखा। उस रात को होने वाले भयानक आक्रमण का विचार करते हुए माताओं ने अपने प्रिय पहलौठों को अपनी बाहों में पकड़ लिया। लेकिन इज़राइल के किसी भी घर पर मृत्यु देने वाला स्वर्गदूत नहीं आया। लहू का चिन्ह-उद्धारकर्ता द्वारा रक्षा का चिन्ह उनके द्वारों पर था और विनाशक ने वहां प्रवेश नहीं किया।PPHin 278.2

    आधी रात को, मिस्र में बड़ा हाहाकार मचा, क्योंकि एक भी ऐसा घर नहींथा जिसमें कोई मरा न हो। देश के सभी पहलौठे, “मिस्र देश में सिंहासन पर विराजने वाले फिरौन से लेकर कालकोठरी में पड़े हुए बंधक तक, और पशुओं के विस्तृत राज्य में प्रत्येक घराने का घमण्ड समाप्त कर दिया गया। रोने वालों की चिल्लाहट और सिसकियों से वातावरण गूँज उठा। पीले पड़े चेहरों और कंपकंपाते हाथ-पैरों के साथ राजा और दरबारी इस हावी होने वाले भय से हक्का-बक्का रह गए। फिरौन को अपने ही कथन का स्मरण हुआ, “यहोवा कौन है, जो मैं उसकी बात सुनूँ और इज़राइल को जाने दूँ? मैं यहोवा को नहीं जानता, और चुनौती देने वाला घमण्ड मिट्टी में मिल गया। उसने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा “तुम इज़राइलियों समेत मेरी प्रजा के बीच से निकल जाओ ओर अपने कहने के अनुसार जाकर यहोवा की उपासना करो। अपने कहने के अनुसार अपनी भेड़-बकरियों औरगाय-बैलों को साथ ले जाओ और मुझे आशीर्वाद दे जाओ। राजसी सलाहकारों और लोगों ने भी इज़राइलियों को जाने के लिये कहा। वे बोले, “देश से झटपट निकल जाओ,हम तो सब मर मिटेंगे।”PPHin 278.3

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