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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 30—मिलाप वाला तम्बू और उसमें होने वाली धर्म-क्रियाएं

    यह अध्याय निर्गमन 25-40, लैवव्यवस्था 4 और 16 पर आधारित है

    जब मूसा पर्वत पर परमेश्वर के साथ था तब उसे यह आदेश दिया गया, “वे मेरे लिये एक पवित्र स्थान बनाएं कि मैं उनके बीच निवास करूँ” और पवित्र मण्डप के निर्माण के लिये सम्पूर्ण निदेश दिये गए। अपने स्वधर्म-त्याग के कारण इज़राइलियों ने ईश्वरीय ‘उपस्थिति’ की आशीष खो दी, और उस समय अपने मध्य परमेश्वर के लिये पवित्र स्थान का निर्माण असम्भव कर दिया। लेकिन दोबारा से स्वर्ग की कृपा-दृष्टि प्राप्त करने के बाद, वह महान अगुवा परमेश्वर की आज्ञा को क्रियान्वित करने आगे बढ़ा।PPHin 347.1

    पवित्र भवन के निर्माण के लिये चुने हुए व्यक्तियों को परमेश्वर द्वारा हुन और ज्ञान से सम्पन्न किया गया। परमेश्वर ने स्वयं उसके पाप और आकृति, प्रयोग में लाईं जाने वाली सामग्री, और उसमें रखी जाने वाली चल सामग्री (फर्नीचर) से सम्बन्धित विशेष निर्देशों सहित, मूसा को उस भवन का रेखा-चित्र दिया। हाथों से बनाए गये पवित्र स्थान को “सच्चे पवित्र स्थान का नमूना” और स्वर्ग में की वस्तुओं का स्वरूप” होना था” (इब्रानियों 9:24,23)-स्वर्गीय मन्दिर का एक लघुचित्र प्रतिरूप जहां हमारे महान महायाजक, मसीह को, बलिदान के रूप में अपने प्राणों की भेंट चढ़ाने के बाद, पापी के पक्ष में मध्यस्थता करनी थी। परमेश्वर ने पर्वत पर मूसा के सामने स्वर्गीय पवित्र स्थान का दृश्य प्रस्तुत किया और उसे आज्ञा दी कि प्रत्येक वस्तु उस नमूने के आधार पर बनाई जाए। यह सारे निर्देश मूसा द्वारा सावधानी से अंकित किये गए, जिसने उन्हें लोगों के अगुवों तक पहुँचाये ।पवित्र स्थान के निर्माण के लिये अत्यधिक और बड़ी लागत वाली तैयारियाँ करना आवश्यक था, अधिक मात्रा में बहुमूल्य सामग्री की आवश्यकता थी, लेकिन परमेश्वर ने केवल स्वेच्छिक भेंटे स्वीकार की। मूसा ने कलीसिया के सम्मुख पवित्र आदेश को दोहराया, “जितने अपनी इच्छा से देना चाहें उन्हीं सभों से मेरी भेंट लेना।” ‘सर्वोच्चः के लिये निवास स्थान तैयार करने में परमेश्वर के प्रति भक्ति और त्याग की भावना प्रथम आवश्यकता थी।PPHin 347.2

    सभी लोगों ने एकचित्तता के साथ उत्तर दिया। “और जितनों के हृदय ने उन्हें उत्साहित किया, और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई, वे कलीसिया के पवित्र मण्डप के कार्य के लिये, उसकी सेवा के लिये और पवित्र वस्त्रों के लिये यहोवा की भेंट लाए। स्त्री और पुरूष दोनों ही, जिनते के मन से ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी वे सब कंगन, कानों की बालियाँ, अंगूँठियाँ, मणिबंध आदि सोने के गहने लाए और प्रत्येक मनुष्य जो भेंट लाया, उसने परमेश्वर के लिये सोने की भेंट अपर्ण की।”PPHin 347.3

    “और जिस भी मनुष्य के पास नीले, बैंगनी या लाल रंग का उत्तम सन का कपड़ा, बकरी के बाल या लाल रंग में रंगी हुई मेढ़ो की खालें, जलव्याप्र की खालें थी, वह उन्हें लेकर आया। फिर जितने चांदी या पीतल की भेंट देने वाले थे वे यहोवा के लिये वैसी भेंट लेकर आये, और जिसके पास विधि के किसी भी कार्य के लिये बबूल की लकड़ी थी, वह उसे लेकर आया।*PPHin 348.1

    “और जितनी स्त्रियों के हृदय में बुद्धि का प्रकाश था वे अपने हाथों से सूत काता करती थी, और वे अपने द्वारा काता हुआ नीला, बैंगनी व लाल रंग का उत्तम सन का वस्त्र लेकर आईं। जितनी स्त्रियों के मन मे बुद्धि का प्रकाश जागृत हुआ, उन्होंने बकरी के बाल बुनें” ।PPHin 348.2

    “और प्रधान लोग एपोद और कवच में जड़ने के लिये सुलेमानीपत्थर और मणियां और उजियाला देने और अभिषेक करने और मनभावनी सुगन्ध के लिये सुगन्ध द्रव्य और तेल लेकर आए ।” निर्गमन 35:23-28PPHin 348.3

    जब पवित्र स्थान के निर्माण का कार्य प्रगति पर था, वृद्ध एवं तरूण-पुरूष, स्त्रियाँ व बालक अपनी भेंट लाते रहे, जब तक उसकाम के प्रभारियों ने पाया कि सामग्री पर्याप्त थी, और आवश्यकता से अधिक थी। और मूसा ने पूरे डेरे में घोषणा करवाई, “क्या पुरूष, क्या स्त्री, कोई पवित्र स्थान के लिये भेंट न लाए।” इस प्रकार लोगों को और भेंट लाने से रोका गया। इज़राइलियों की बड़बडाहट और उनके पापों के फलस्वरूप परमेश्वर की दण्डाज्ञा निष्पादन, चेतावनी के तौर पर आगे की पीढ़ियों के लिये उल्लिखित की गई । और उनकी भक्ति, उनका उत्साह और उदारता अपनाने योग्य उदाहरण है। जो भी परमेश्वर की आराधना से प्रेम करते है और उसकी पवित्र उपस्थिति के आशीर्वाद को महत्व देते हैं वे उससे भेंट करने के स्थान को तैयार करने में त्याग की ऐसी हो भावना को प्रकट करेंगे। वे अपनी निधि में से परमेश्वर को भेंट चढ़ाने के लिये सबसे उत्तम भाग लाने के इच्छुक होंगे। परमेश्वर के लिये बनाये गये भवन को कर्ज में नहीं छोड़ना चाहिये क्‍योंकि इस प्रकार उसका अनादर होगा। इस कार्य को सम्पन्न करने के लिये पर्याप्त धनराशि उदारता से दी जानी चाहिये, ताकि श्रमिक भी पवित्र स्थान के निर्माताओं की तरह कह सकें, “अब और भेंटे न लाओ।”PPHin 348.4

    पवित्र-स्थान का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि उसे विघटित किया जा सकता था और इज़राइली उसे अपनी सब यात्राओं में ले जा सकते थे। इस कारण वह आकार में छोटा था। वह लम्बाई में पचपन फीट और चौड़ाई और ऊँचाई में अठाहरह फीट से अधिक नहीं था। लेकिन फिर भी वह एक भव्य भवन था [जो लकड़ी भवन और उसकी साज-सज्जा के लिये प्रयोग में लाई गई थी वह बबूल की लकड़ी थी, जो सिने में पाई जाने वाली अन्य प्रकार की लकड़ी से भिन्न थी क्योंकि वह सड़ती नहीं थी। उसकी दीवारे खड़े तख्त थे जिन्हें चांदी के आधार में टिकाया गया था और उन्हें स्तम्मों और जोड़ने वाली छड़ो से स्थिर किया गया था। इन सभी को सोने से मढ़ा गया जिससे के भवन सोनेसे बना प्रतीत होता था। पवित्र स्थान की छत परदे के चार जोड़ो से बनी थी, और सबसे अन्दर वालेनीले, बैंगनी और लाल पर्दों पर कुशल कढ़ाई से करूब बने थे।” अन्य तीन परदे कमश: बकरी के बाल, लाल रंग में रंगी, मेढ़े की खालऔर जलव्याप्र की खाल से बने थे जिन्हें इस प्रकार व्यवस्थित किया गया था कि वे पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें।PPHin 348.5

    भवन को सोने से मढ़े हुए स्तम्भों से लटकाए हुए, एक बहुमूल्य और सुन्दर परदे से दो कक्षों में विभाजित किया गया था, और वैसा ही परदा पहले कक्ष के द्वार को ढॉकता था। ये भी भीतर के परदों की तरह जिनसे छत बनी थी, नीले, बैंगनी और लाल रंग के थे व सुव्यवस्थति थे। इन पर सोने और चांदी के धागों की कढ़ाई से करूब बने हुए थे जो उस स्वर्गदूत समूह का प्रतीक थे जो स्वर्गीय पवित्र स्थान के कार्य से जुड़े हुए थे और जो पृथ्वी पर परमेश्वर के लोगों के लिये सहायक हैं।PPHin 349.1

    पवित्र स्थान के चारों ओर खुला ऑगन था जिसके चारों ओर के स्तम्भों से लटकते हुए उत्तम सन के वस्त्र के परदे या आवरण था। इस प्रॉगण का प्रवेशद्वार पूर्वी सिरे पर था। इस पर सुन्दर कढ़ाई वाले व बहुमूल्य कपड़े के परदे टैंगे हुए थे, जो पवित्र स्थान के परदों से निम्न थे। प्रांगण के परदे मण्डप की दीवारों की ऊंचाई से आधे थे, इसलिये भवन को लोग बाहर से आसानी से देख सकते थे। प्रांगण में, प्रवेश द्वार के बिल्कुल निकट, होमबलि की पीतल की वेदी थी। इस वेदी पर परमेश्वर के लिये चढ़ाए गएबलिदान अग्नि से भस्म हो जाते थे और वेदी के चारों सींगों पर पश्चताप का लहू छिड़का जाता था। पवित्र मण्डप के द्वार और वेदी के बीच में पीतल का पात्र था जो इजराइली स्त्रियों के दर्पणों की स्वेच्छिक भेंट से बनाए गए थे। इस पात्र में याजक अपने हाथ और पैर धोते थे जब भी वे पवित्र कक्ष के प्रवेश करते या परमेश्वर के लिये होमबलि चढ़ाने वेदी के पास आते थे।PPHin 349.2

    पहले कक्ष या पवित्र स्थान में विशेष रोटी की मेज, दीपाघार और धूपवेदी रखे जाते थे। विशेष रोटी की मेज उत्तर की ओर होती थी। अपनी अलंकारिक सतह के साथ, वह सोने से मढ़ी हुई थी। इसमेज पर याजक प्रत्येक सबत को, बारह रोटियों के दो ढेर बनाकर, उन पर लोबान छिड़ककर रखते थे। हटाए जाने पर इन रोटियों को पवित्र मानकर, याजकों द्वारा खाया जाता था। दक्षिण की ओर सात दीपों सहित सात शाखाओं वाला दीपाधार था। उसकी शाखाएँ सोसन के समान, फूलों की उत्कृष्ट कृतियों से सुसज्जित थी और पूरा दीपाधार खरे सोने से बना हुआ था। पवित्र मण्डप में खिड़कियाँ नहीं थी, इस कारण दीपकों को एक साथ बुझने नहीं दिया जाता था, वे रात दिन अपना प्रकाश बिखेरते थे। सबसे पवित्र व परमेश्वर की उपस्थिति और पवित्र स्थानों को अलग करने वाले परदे के बिल्कुल सामने धूप की स्वर्णिम वेदी थी। इस वेदी पर याजक को सुबह शाम लोबान सुलगाना होता था; उसके सींगों पर पाप की भेंट का लहू लगाया जाता था और पश्चताप के दिन उस पर लहू छिड़का जाता था। इस वेदी पर अग्नि को परमेश्वर स्वयं प्रज्वलित करता था और वेदी को पवित्रता से संजोये रखा जाता था। रात-दिन लोबान की पवित्र सुगन्ध कक्ष के अन्दर, बाहर और चारों ओर दूर तक फैल जाती थी।PPHin 349.3

    भीतरी परदे के परे पवित्रों का पवित्र था जहां मध्यस्थता और प्रायश्चित की प्रतीकात्मक विधि केन्द्रित थी, और जोपृथ्वी और आकाश को जोड़ने वाली कड़ी थी। इस कक्ष में एक सन्दूकथा जो बबूल की लकड़ी से बना था, और अन्दर से और बाहर से सोने से सढ़ा हुआ था और उसके ऊपर सोने की बाड़ थी। यह संग्रह स्थान था उन पत्थर की पटियाओं के लिये, जिन पर परमेश्वर ने स्वयं दस आज्ञाएं लिखी थी। इस कारण इसे परमेश्वर के साक्षीपत्र का सन्दूक या वाचा का सन्दूक कहा जाता था, क्योंकि दस आज्ञाएं इज़राइल और परमेश्वर के बीच बाँधी गई वाचा का आधार थी।PPHin 350.1

    पवित्र सन्दूक का ढक्‍कन प्रायश्चित का ढकक्‍कन कहलाता था। इसे खरे सोने के एकल खंड से बनाया जाता था और इसके दोनों सिरों पर सोने के करूब खड़े किये जाते थे। प्रत्येक स्वर्गदूत का एक पंख ऊपर की ओर फैला हुआ होता था और दूसरा आदर और दीनता के प्रतीक जैसे शरीर पर लिपटा होता था। करूबों का एक-दूसरे की ओर मुहँ करके खड़े होना और आदर के साथ नीची दृष्टि किये सन्दूक को देखना, उस श्रद्धा का, जो स्वर्गीय समूह परमेश्वर की व्यवस्था के प्रति रखते है और उद्धार की योजना में उनकी रूचि का प्रतीक था।PPHin 350.2

    प्रायश्चित के ढकक्‍कन के ऊपर परमेश्वर की महिमामय उपस्थिति थी और वह करूबों के बीच में से वार्तालाप द्वारा अपनी इच्छा प्रकट करता था। कभी-कभी महायाजक के पास ईश्वरीय सन्देश बादल में से आवाज के द्वारा पहुँचाया जाता था। कभी-कभी दाहिनी ओर खड़े स्वर्गदूत पर प्रकाश होता जो स्वीकृति का चिन्ह था या बाएं तरफ के स्वर्गदूत पर बादल या एक परछाई के पड़ने से अस्वीकृति प्रकट होती थी।PPHin 350.3

    सन्दूक में प्रतिष्ठापित, परमेश्वर की व्यवस्था धार्मिकता और दबण्डाज्ञा का श्रेष्ठ नियम था। व्यवस्था आज्ञा केउललघंन करने वालों को मृत्यु का पात्र ठहराती थी, लेकिन इससे श्रेष्ठ प्रायश्चित का ढक्‍कन था, जिस पर परमेश्वर की उपस्थिति प्रकट होती थी, और जहाँ से प्रायश्चित के आधार पर, प्रायश्चित करने वाले अपराधी को क्षमा प्रदान की जाती थी। इस प्रकार पवित्र स्थान के विधि के द्वारा हमारे उद्धार के लिये मसीह के कार्य को दर्शाया गया है। “करूणा और सच्चाई, आपस में मिल गईं हैं, धर्म और मेल ने एक-दूसरे को चूम लिया है।” भजन संहिता 84:10PPHin 350.4

    पवित्र स्थान के भीतर प्रस्तुत किये गए दृश्य की महिमा का किसी भी भाषा द्वारा वर्णन करना असम्भव है- सोने की दीवटों के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करती सोने से मढ़ी दीवारें चमकीले स्वर्गदूतों वाले शानदार बूटेदार परदों के उत्कृष्ट रंग, वह मेज, ध॑प की स्वर्णिम वेदी, दूसरे परदे के पीछे पवित्र करूब सहित पवित्र संदूक, और उनके ऊपर यहोवा की उपस्थिति का प्रकट प्रदर्शन-वह पवित्र महिमा, ये सब मनुष्य के उद्धार के कार्य के महत्वपूर्ण केन्द्र, स्वर्ग में परमेश्वर के मन्दिर की महिमा की एक मद्धम सी झलक है।PPHin 351.1

    पवित्र मण्डप के निर्माण में लगभग छ: महीने का समय लग गया। उसके सम्पन्न होने पर, मूसा ने निर्माताओं के कार्य का निरीक्षण किया और उसकी तुलना उस नमूने के साथ की जो उसे पहाड़ पर दिखाया गया था और उन निर्देशों के साथ ही जो परमेश्वर ने उसे दिये थे। “जो-जो आज्ञा यहोवा ने उसको दी थी, उन्होंने उसी के अनुसार किया और मूसा ने उन्हें धन्य ठहराया ।” उत्सुकतापूर्ण अभिरूचि के साथ इज़राइली जनसाधारण पवित्र भवन को देखने के लियेएकत्रित हुए। जब वे श्रद्धायुक्त सन्‍तोष के साथ उस दृश्य का चिंतन कर रहे थे, बादल का स्तम्भ पवित्र स्थान के ऊपर गया और नीचे आते हुए उसने भवन को अपने में लपेट लिया। “यहोवा का तेज निवास स्थान में भर गया।” पवित्र तेजस्विता के प्रकटन के कारण, कुछ समय के लिये मूसा भी प्रवेश नहीं कर सकता। भावुक होकर लोग उस चिन्ह को देखते रहे जो इस बात का प्रमाण था कि उनके हाथों की संरचना स्वीकार करली गईथी । उच्च स्वरमें कोई अभिव्यक्ति नहीं की गई, वरन्‌ सभी लोगों पर एक संस्करणपूर्ण श्रद्धायुक्त भय उतर आया। लेकिन उनके ह्वदयों की प्रसन्नता, खुशी के आसुओं में वह निकली और वे धन्यवादिता के सत्य वचन धीमी आवाज में फसफुसाने लगे कि परमेश्वर उनके साथ वास करने को तैयार हो गया था।PPHin 351.2

    पवित्र निर्देश के अनुसार, मिलापवाले तम्बू की विधि के लिये लैवी के घराने को अलग किया गया। सबसे प्रारम्भिक समय में प्रत्येक मनुष्य अपने घराने का याजक होता था। अब्राहम के समय में, याजकता ज्येष्ठ पुत्र का जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता था। अब समस्त इज़राइल के पहलौठों के स्थान पर, परमेश्वर ने मिलापवाले तम्बू की विधि के लिये लेवी के घराने को स्वीकार किया। इस सांकेतिक सम्मान से उसने उसकी स्वामिभक्ति को स्वीकार करने का प्रमाण दिया जो उन्होंने उसकी विधि का पालन करने और उसकी दण्डाज्ञा को क्रियान्वित करने में तब दर्शाया, जब इज़राइल सोने के बछड़े के आगे दण्डवत करके धर्म-त्याग कर रहा था। लेकिन पुरोहिती हारून के परिवार तक ही सीमित थी। परमेश्वर के सामने पुरोहिती करने की अनुमति केवल हारून के पुत्रों को थी, अतिरिक्ति घराने के सदस्यों को पवित्र मण्डप और उसकी साज-सज्जा का प्रभार सौंपा गया। इसके अलावा उन्हें याजकों की सेवा में रहना था लेकिन उन्हें बलि चढ़ाने, लोबान सुलगाने या पवित्र वस्तुओं को बिना आवरण के देखने की अनुमति नहीं थी।PPHin 351.3

    याजकों के कार्यभार के अनुसार, उनके लिये एक विशेष पहनावा नियुक्त किया गया। मूसा को पवित्र निर्देश दिया गया, “तू अपने भाई हारून के लिये वैभव और शोभा के निमित्त पवित्र वस्त्र बनवाना।” सामान्य याजक का चोगा सन के सफेद कपड़े से बनाया जाता था, जिसमें जोड़ नहीं होता था। यह चोगा पैरों तक लम्बा होता था और इसे लाल, बेंगनी व नीले रंग के बूटेदार श्वेत सन के कपड़े से बने कमरबन्ध से कमर पर बाँधा जाता था। बाहरी वस्त्र के लिये सन के कपड़े की पगड़ी बनायी जाती थी। प्रज्वलित झाड़ी के पास मूसा को चप्पल उतारने को कहा गया क्योंकि जिस स्थान पर वह खड़ा था, वह पवित्र था। इसी प्रकार याजकों को मिलाप वाले तम्बू में जूतों सहित जाने की अनुमति नहीं थी। जूतों से चिपके हुए धूल के कण पवित्र स्थान को अशुद्ध कर देते, मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करने से पहले उन्हें अपने जूते प्रॉगण में छोड़ने होते थे और मेलबलि की वेदी पर या पवित्र मण्डप में अनुष्ठान करने से पूर्व हाथ और पैर धोने होते थे। इस प्रकार लगातार यह शिक्षा दी जाती थी कि जो भी परमेश्वर की उपस्थिति के निकट आता है उससे सारी अशुद्धता दूर कर देनी चाहिये।PPHin 352.1

    महायाजक के वस्त्र उसके उच्च पद के उपयुक्त, बहुमूल्य सामग्री से बने होते थे और उन पर सुन्दर कढ़ाई की गईं होती थी। सामान्य बिना जोड़ वाला नीला चोगा भी धारण करता था। उसके नीचे वाला घेरा सोने की घटियों, नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े के अनार से विभूषित था। एपोद के ऊपर स्वर्णिम, नीला, बैंगनी और लाल और श्वेत रंग का छोटा वस्त्र था। यह भी उन्हीं रंगोके कमरबन्ध से बाँधा जाता था। एपोद की बांहे नहीं होती थी और उसके काँधे वाले भाग में, इज़राइल के बारह घरानों के नाम धारण किये हुए दो सुलेमानी पत्थर जड़े हुए थे।PPHin 352.2

    एपोद के ऊपर कवच या सीनाबन्द था जो याजकीय वस्त्रों में सबसे पवित्र था। यह उसी सामग्री से बना था जिससे एपोद बना था। वह आकार में नौ इंच का वर्ग था और इसे कांधो पर लगे सुनहरे छल्लों से बॉधी नीली बटी हुईं डोरी से लटकाया जाता था। उसकी बाहरी सीमा पर कई प्रकार के बहुमूल्य रत्न जड़े थे, जैसे परमेश्वर के नगर की बारह नीवों में जड़े गये थे। सीमा के भीतर चार पंक्तियों में सोने में बारह मणियाँ जड़ित थी और इन पर गोत्रों के नाम खुदे हुए थे जैसे कि कंधे वाले भाग में जड़े हुए थे। प्रभु का निर्देश था, “जब-जब हारून पवित्र स्थान में प्रवेश करें, तब तक वह न्याय के कवच पर अपने हृदय के ऊपर इज़राइलियों के नामों को लगाए रखे, जिससे यहोवा के सामने उनका स्मरण नित्य रहे”-निर्गमन 28:29 । इसी प्रकार मसीह, वह महान महायाजक, पापी के पक्ष में पिता के सम्मुख मध्यस्थता करते हुए, अपने हृदय पर प्रत्येक पश्चतापी, विश्वासी प्राणी का नाम धारण किये रहता है। भजन सहित 40:17में लिखा है, “में तो दीन और दरिद्र हूँ तो भी प्रभु मेरी चिन्ता करता है।’PPHin 352.3

    कवच के दाएं और बांई तरफ दो बड़ी मणियाँ थी जिनकी चमक अधिक थी । इन्हें ऊरीम और तुम्मीम कहा जाता था। उनके माध्यम से महायाजक द्वारा परमेश्वर की इच्छा ज्ञात होती थी। जब परमेश्वर के सम्मुख निर्णय के लिये विवाद के विषय लाए जाते थे, बांए तरफ की बहुमूल्य मणि के चारों ओर प्रकाश का तेजोमंडल ईश्वरीय स्वीकृति या सहमति का प्रतीक होता था, जबकि दाहिनी ओर के पत्थर पर बादल की परछाई का पड़ना अस्वीकृति या खंडन का प्रमाण माना जाता था। महायाजक की टोपी एक श्वेत सन के कपड़े की पगड़ी थी जिसके साथ एक सोने की पट्टी, जिस पर ‘यहोवा के लिये पवित्र” नामक उपधि खोदी हुई थी, और वह एक नीले फीते से टोपी के साथ संलग्न थी। याजकों के वस्त्र और व्यवहार से सम्बन्धित सब कुछ ऐसा होता था कि देखने वाला परमेश्वर की पवित्रता के आभास से उसकी आराधना की पवित्रता से, और उसकी उपस्थिति में आने वालों से अपेक्षित पवित्रता से प्रभावित हो जाए।PPHin 353.1

    केवल मिलापवाला तम्बू ही नहीं, याजकों द्वारा की गई सेवा-उपासना “स्वर्ग की वस्तुओं के प्रतिरूप और उदाहरण के अनुसार” होनी थी। (इब्रानियों 8:5) ।इस प्रकार यह अत्यन्त महत्वपूर्ण थी, और प्रभु ने मूसा के द्वारा, इस प्रतीकात्मक आराधना के प्रत्येक बात से सम्बन्धित सबसे पुख्ता और सुस्पष्ट निर्देश दिया। मिलापवाले तम्बू की परिचर्या के दो भाग थे, एक दैनिक और एक वार्षिक आराधना। दैकिन आराधना पवित्र स्थान और पवित्र मण्डप के प्रांगण में होमबलि की वेदी पर की जाती थी।PPHin 353.2

    मिलापवाले तम्बू के भीतरी कक्ष को महायाजक के सिवायकोई भी नश्वर मनुष्य नहीं देख सकता था। वर्ष में केवल एक बार महायाजक वहाँ जा सकता था और वह भी अधिक विस्तृत और विधिवत तैयारियों के साथ ही सम्भव था। वह केपकैपाते हुए परमेश्वर के सम्मुख भीतर जाता था, और लोग आदरपूर्वक चुप्पी साधे उसके लौटने की प्रतीक्षा करते थे और हृदय से ईश्वर के आशीर्वाद की प्रार्थना किया करते थे। प्रायश्चित के ढक्‍कन के आगे महायाजक इज़राइल के लिये पश्चताप करता और महिमा के बादल में परमेश्वर उससेभेंट करता था। उसका यहाँ और दिनों की तुलना में, अधिक देर तक रहना लोगों को भयभीत कर देता था कि कहीं उनके या उसके पापों के कारण, परमेश्वर की महिमा द्वारा वह मारा तो नहीं गया।PPHin 353.3

    देनिक आराधना, भोर और गोधुली के समय होमबलि चढ़ाकर, सोने से मढ़ी वेदी पर धूप की भेंट, और व्यक्तिगत पापों के लिये विशेष भेंटें चढ़ाकर की जाती थी। और विश्राम दिन पर, नये चांद के दिन और विशेष पर्वों पर भी भेटें चढ़ाई जाती थी।PPHin 354.1

    प्रतिदिन भोर और गोधुलि के समय वेदी पर एक साल को मेम्ना उचित माँस की भेंट के रूप में अग्नि में जलाया जाता था, और यह यहोवा के लोगों के नित्य समर्पण और मसीह के पश्चतापी लहू पर लगातार निर्भर रहने का प्रतीक था। परमेश्वर का स्पष्ट निर्देश था कि मिलापवाले तम्बू की आराधना में लाई जाने वाली भेंट ‘निर्दोष (निर्गमन 12:5) होनी चाहिये ।बलिदान के रूप में लाये जानेवालेप्रत्येक पशु का याजकों द्वारा निरीक्षण किया जाता था और यदि उनमें कोई दोष पाया जाता था तो भेंट स्वीकार नहीं की जाती थी। केवल एक ननिर्दोष भेंट” ही उसकी सम्पूर्ण पवित्रता का प्रतीक हो सकती थी जिसे स्वयं को एक, “निर्दोष और निष्कलंक मेम्ने’ (10 पतरस 1:19)के तौर पर बलिदान करना था। पौलुस इन बलिदानों की ओर उदाहरण के तौर पर संकेत करता है कि मसीह के अनुयायियों को ऐसा ही बनना है। रोमियों 12:14में वह कहता है, “हे भाईयों, मैं तुमसे, परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर विनती करता हूँ कि अपने शरीरों को जीवित और पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ यही तुम्हारी यथोचित सेवा है”। हमें स्वयं को परमेश्वर की सेवा के लिये समर्पित करना है, और हमें हमारी भेंट को, जहाँ तकसम्भव है, दोषहीन बनाने की चेष्ठा करनी चाहिये। यदि हम उसे अपनी ओर से सर्वोत्तम देने में सक्षम है, लेकिन परमेश्वर को उससे कम दें वो वह प्रसन्‍न नहीं होता। जो उससे हृदय से प्रेम करते है, वे उसे अपनी जीवन की सर्वोत्तम सेवाएँ देने को इच्छुक होंगे, और वे, परमेश्वर की इच्छा पूरी करने की, अपनी क्षमता को बढ़ाने वाले नियमों के साथ अपने अस्तित्व के सम्पूर्ण सामर्थ्य का सांमजस्य स्थापित करने के लिये प्रयत्नशील रहेंगे ।दैनिक परिचर्या की अन्य विधियों की तुलना में धूप की भेंट चढ़ाने में याजक परमेश्वर की उपस्थिति में अधिक प्रत्यक्ष रूप मेंलाया जाता था। मिलाव वाले तम्बू का भीतरी परदा छत तक नहीं पहुँचता था, इसलिये प्रायश्चित के ढक्‍कन के ऊपर प्रदर्शित, परमेश्वर की महिमा, प्रथम कक्ष से आंशिक रूप से दिखाई देती थी। जब याजक परमेश्वर के सम्मुख धूप की भेंट चढ़ाता था, वह सन्दूक की ओर देखता था, और जब धूप का धुआँ उठता था, परमेश्वर का तेज प्रायश्चित के ढक्‍कन पर उतरता था और सबसे पवित्र स्थान में पूरी तरह फैल जाता था, और प्रायः इस तरह दोनों कक्षों को भर देता था कि याजक पवित्र मण्डप के द्वार के पास जाने को विवश हो जाता था। जिस प्रकार उस प्रतीकात्मक विधि में याजक विश्वास में प्रायश्चित के ढककन की ओर देखता था, जो अदृश्य हो जाता था, वैसे ही लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी प्रार्थनाएँ अपने महायाजक, मसीह को संबोधित करें, उस अदृश्य मसीह को जो उनके पक्ष में स्वर्ग के पवित्र स्थान में उनकी मध्यस्थता कर रहा है।PPHin 354.2

    इज़राइल की प्रार्थनाओं के साथ उठता हुआ धुआँ, मसीह की मध्यस्थता और विशेषता का, उसकी सम्पूर्ण पवित्रता का प्रतीक है, और केवल यही पापी मनुष्यों की आराधना को परमेश्वर की दृष्टि में स्वीकार्य बना सकता है। सबसे पवित्रस्थान के परदे के सामने अविरत प्रायश्चित की वेदी थी। जिसके माध्यम से पापी यहोवा के पास पहुँच सकता था, और जिसके द्वारा पश्चतापी, विश्वासी मनुष्य को दया और उद्धार प्रदान किया जा सकता था,उस महान मध्यस्थ के सांकेतिक प्रतीक, लहू और धूप के साथ परमेश्वर की उपस्थिति में जाना होता था।PPHin 355.1

    धूप की विधि के समय जब याजक भोर और संध्या को पवित्र स्थान में प्रवेश करता था, तो बाहर प्रॉगण में वेदी पर चढ़ाने वाली भेंट के रूप में दैनिक बलिदान (बलि का पशु) तैयार रहता था। पवित्र मण्डप पर एकत्रित उपासकों के लिये यह समय बड़ा रूचिकर होता था। याजक की परिचर्या के माध्यम से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करने से पहले, उन्हें अपने पापों को अंगीकार करना और अपने हृदय को टटोलना होता था। वे एकचित्त होकर अपने मुख पवित्र स्थान की ओर करके चुपचाप प्रार्थना करते थे। इस प्रकार उनके निवेदन धूप के धुंए के साथ ऊपर उठ जाते थे, पश्चतापी बलिदान में आदिरूपित प्रतिश्रुत उद्धारकर्ता के सामर्थ्य पर विश्वास की पकड़ हो जाती थी। भोर व संध्या के बलिदान के नियुक्त समय को पवित्र माना जाता था, और इसे समस्त यहूदी राष्ट्र में आराधना का निर्धारित समय ठहरा दिया गया। आने वाले समय में जब यहूदी दूर देशों में बन्धकों के रूप में तितर-बितर हो गए, तब भी नियुक्ति समय पर, अपने मुख यरूशेलेम की दिशा में मोड़कर, वे इज़राइल के परमेश्वर को अपने निवेदन अर्पित करते थे। इस रीति में मसीही लोगों के पास भोर व संध्या की आराधना का उदाहरण है। परमेश्वर भक्ति-भाव से रहित धर्मकिया की औपचारिकता का खंडन करता है,लेकिन जो लोग अपने द्वारा किये गए अपराधों की क्षमा-प्राप्ति के लिये और आवश्यक आशीषों का अनुरोध करने के लिये सुबह-शाम उसे दण्डवत करते है और उससे प्रेम करते हैं उन्हें देखकर वह आनन्दित होता है। PPHin 355.2

    सर्वकालिक भेंट के रूप में, भेंट की रोटी, परमेश्वर के सम्मुख हमेशा रहती थी। वह भी दैनिक बलिदान का हिस्सा थी। इसे भेंट की रोटी या “उपस्थिति की रोटी” कहा जाता था क्‍योंकि यह परमेश्वर के सामने रखी होती थी। यह सांसारिक और आध्यात्मिक पोषण के लिये मनुष्य की परमेश्वर पर निर्भरता की आभारोक्ति थी और इस बात की पुष्टि करती थी कि यह पोषण केवल मसीह की मध्यस्थता से प्राप्त होता था। परमेश्वर ने इज़राइल को निर्जन-प्रदेश में स्वर्ग की रोटी खाने को दी थी और वे अभी भी सांसारिक और आध्यात्मिक पोषण के लिये उसकी बहुतायत पर निर्भर थे। भेंट की रोटी और मन्‍ना दोनो ही मसीह की और संकेत करते थे, जो जीवन की रोटी है, और जो हमारे लिये हमेशा परमेश्वर की उपस्थिति में रहता है। यहुन्ना 6:48-51 के अनुसार उसने स्वयं कहा, “जीवन की रोटी मैं ही हूँ जो स्वर्ग से उतरी ।” रोटी पर लोबान रखा जाता था। जब प्रत्येक सबत को रोटी हटाकर, उसके स्थान पर ताजी रोटी को रखा जाता था, तो परमेश्वर के सम्मुख स्मारक के तौर पर लोबान को वेदी पर जला दिया जाता था।PPHin 355.3

    दैनिक परिचर्या का सबसे महत्वपूर्ण भाग वह विधि थी जो व्यक्ति-विशेष के लिये की जाती थी। पश्चतापी पापी अपनी भेंट पवित्र मण्डप के द्वार तक लाता था, और अपना हाथ बलि के पशु पर रखकर अपने अपराधों को स्वीकार करता था, और इस प्रकार प्रकट रूप से वह अपने अपराध को निर्दोष बलि के पशु पर स्थानान्तरित कर देता था। फिर उसी के हाथोंद्वारा उस पशु का वध किया जाता था और पशु के खून को याजक पवित्र स्थान पर ले जाकर उस परदे के सामने छिड़कता था, जिसके पीछे उस वाचा का संदूक रखा होता था, जिसका उसने उल्लंघन किया। इस विधि के द्वारा, लहूँ के माध्यम से, प्रकट रूप से पाप मिलाप वाले तम्बू में स्थानान्तरित हो जाता था। कुछ मामलों में लहू को पवित्र स्थान में नहीं ले जाया जाता था:(परिधिश्ट, नोट 6 देखिये) लेकिन फिर उस पशु के माँस को याजक द्वारा खाना होता था, जैसे मूसा ने हारून के पुत्रों को यह कहते हुए निर्देश दिया, “तुम मण्डली का भार अपने पर उठाकर उनके लिये यहोवा के सामने प्रायश्चित करो ।’ लैवव्यवस्था 10:17 [दोनो ही विधियाँ एकसमान पाप को पश्चतापी से मिलाप वाले तम्बू में स्थानान्तरित करती थी।PPHin 356.1

    पूरे साल प्रतिदिन यह किया चलती रहती थी। इज़राइल के पापों के पवित्र स्थान में स्थानान्तरित होने से, पवित्र स्थान अपवित्र हो जाता था, इस कारण पापों को हटाने के लिये एकविशेषकार्यअनिवार्यथा। परमेश्वर ने आज्ञा दी किप्रत्येक पवित्र कक्ष के लिये प्रायश्चित किया जाए, जैसा कि वेदी के लिये किया जाता था, ताकि “उसे इज़राइलियों की भांति-भांतिकी अशुद्धता से छुड़ाकर शुद्ध और पवित्र'(लैवव्यवस्था 16:19) किया जा सके।PPHin 356.2

    वर्ष में एक बार, प्रायश्चित के दिन, याजक मिलाप वाले तम्बू के शुद्धीकरण के लिये सबसे पवित्र स्थान में प्रवेश करता था। यह कार्य परिचर्या का वार्षिक चक सम्पन्न करता था।PPHin 357.1

    प्रायश्चित के दिन बकरी के दो बछुडे पवित्र मण्डप के द्वार पर लाए जाते थे और उनके लिये चिटिठयाँ डाली जाती थी, “एक चिटठी यहोवा के लिये और दूसरी ‘अजाजेल’ (बलि का बकरा) के लिये जिसके बकरे के नाम पहली चिटठी निकलती थी उसके लोगों के लिये पापबलि के रूप में वध किया जाना होता था। और फिर याजक को उसका लहू परदे के भीतर लाकर प्रायश्चित के ढककन पर छिड़कना होता था। “और वह इज़राइलियों की भांति-भांति की अशुद्धता, और अपराधों और उनके सब पापों के कारण पवित्रस्थान के लिये प्रायश्चित करे, और मिलापवाला तम्बू जो उनके संग उनकी भांति-भांति की अशुद्धता के बीच रहता है उसके लिये भी वैसा ही करे।”PPHin 357.2

    “और हारून अपने दोनों हाथों कों जीवित बकरे का रखकर इज़राइलियों के सब अधर्म के कामों, और उसके सब अपराधों, अर्थात उनके सारे पापों को अंगीकार करे, और उनको बकरे के सिरपरधरकरउसको किसी मनुष्यक हाथ,जो इसकामकेलिये तैयार हो, जंगल में भेजकर छुड़वा दे। वह बकरा उनके सब अधर्म के कामों को अपने ऊपर लादे हुए किसी निर्जन स्थान में उठा ले जाएगा।” जब तक बकरे को इस प्रकार भेज नहीं दिया जाता था तब तक लोग अपने आप को अपने पापों से मुक्त हुए नहीं मानते थे। प्रत्येक मनुष्य को प्रायश्चित के कार्य के दौरान अपनी आत्मा को कष्ट पहुँचाना होता था। सब उद्यम परे रख कर, इज़राइल की समस्त कलीसिया पूरा दिन आत्मविश्लेषण, उपवास और प्रार्थना के साथ, परमेश्वर के सम्मुख संस्कारपूर्वक दीन होकर दिन व्यतीत करना चाहिये।PPHin 357.3

    इस वार्षिक धर्म-किया के द्वारा लोगों को प्रायश्चित से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सत्य सिखाए जाते थे। वर्ष के दौरान दी गईं पापबलियों में, पापी के स्थान पर उसका प्रतिनिधि स्वीकार कर लिया जाता था, लेकिन बलि के पशु का लहू पाप के लिये के पशु का लहू पाप के लिये सम्पूर्ण प्रायश्चित नहीं करता था। वह केवल एक साधन प्रदान करता थाजिसके द्वारा पाप को मिलापवाले तम्बू में स्थानान्तरित किया जाता था। लहू की भेंट द्वारा, पापी व्यवस्था के प्रभुत्व को स्वीकार करता था, अपने अपराध के दोष का अंगीकार करता था, और उसमें अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करता था, जो जगत के पाप को ले जाने वाला था, लेकिन वह व्यवस्था के दण्डादेश से पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं होता था। प्रायश्चित के दिन महायाजक, कलीसिया के लिये भेंट लेकर, लहू के साथ सबसे पवित्र स्थान में प्रवेश करके, उसे व्यवस्था की पटियाओं के ऊपर, प्रायश्चित के ढककन पर छिड़क देता था। इस प्रकार व्यवस्था का दावा, जो पापी के प्राण की माँग करता था, सन्तुष्ट हो जाता था। फिर मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए याजक पापों को अपने ऊपर ले लेता था, और मिलाप के तम्बू को छोड़कर, इज़राइल के दोष का बोझ वो ढोता था। पवित्र मण्डप के द्वार पर वह अपने हाथ ‘अजाजेल’ (बलि का पशु) के सिर पर रखकर, ‘इज़राइलियों के सब अधर्म के कामों, और उनके सब अपराधों, अर्थात उनके सब पापों को अंगीकार कर, उनको बकरे के सिर पर धर देता था।” जब उस बकरे को सब अधर्म के कामों लदे हुए भेज दिया जाता था, तो ऐसा माना जाता था कि उनके पाप उनसे अलग किये गये । यह विधि जो “स्वर्ग में वस्तुओं के प्रतिरृपष और उदाहरण” (इब्रानियों 8:5) सम्पन्न की जाती थी।PPHin 357.4

    जैसा कि कहा गया है पृथ्वी पर मिलापवाला तम्बू मूसा द्वारा, पर्वत पर दिखाए गये नमूने के अनुसार, बनाया गया था। “यह तम्बू वर्तमान समय के लिये एक दृष्टान्त था, जिसमें ऐसी भेंट और बलिदान चढ़ाए जाते थे।” उसके दो पवित्र स्थान, “स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप” थे।मसीह, हमारा महान महायजक, “”मिलापवाले तम्बू का, और सच्चे पवित्र मण्डप का सेवक हुआ, जिसे किसी मनुष्य ने यही, वरन्‌ प्रभु ने खड़ा किया है।”-इब्रानियों 9:9, 23, 8:2। जैसे कि स्वप्नदर्शन में, प्रेरित यहुन्ना को स्वर्ग में परमेश्वर के मन्दिर की झलक दिखाई गईं और वहां उसने “सिंहासन के सामने आग के सात दीपक जलते हुए देखे।” उसने देखा, “फिर एक और स्वर्गदूत सोने का धूपदान लिये हुए आया, और उसको बहुत धूप दी गईं कि सब पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ सोने की उस वेदी पर, जो सिंहासन के सामने है, चढ़ाएँ ।”- प्रकाशित वाक्य 4:5, 8:51 यहाँ नबी को स्वर्ग के पवित्र तम्बू का प्रथम कक्ष देखने की अनुमति दी गई, और वहाँ उसने “आग के सात दीपक” और ‘सोने की वेदी’ को देखा जिसके प्थ्वी पर के मिलापवाले तम्बू में स्वर्णिम दीपाधार और धूप की वेदी प्रतीक थे। फिर से, “परमेश्वर का जो मन्दिर स्वर्ग में है वह खोला गया”(प्रकाशित वाक्य 11:19), और उसने भीतरी परदे के अन्दर पवित्रों के पवित्र को देखा। यहाँ उसने “अपनी वाचा के सन्दूक” (प्रकाशित वाक्य 11:19)की देखा, जिसका प्रतीक परमेश्वर की व्यवस्था को रखने के लिये मूसा द्वारा बना गया पवित्र सन्दूक था।PPHin 358.1

    मूसा ने पृथ्वी पर मिलाप का तम्बू “जो आकार उसने देखा था उसके अनुसार” बनाया। पौलुस घोषणा करता है कि सम्पन्न होने पर “पवित्र मण्डप, और उपासना-उत्सवों में काम आने वाली हर वस्तु” “स्वर्ग में की वस्तुओं का प्रतिरूप थी ।।”-प्रेरितों के काम 7:44, इब्रानियों 9:21,23। और यहुन्ना कहता है कि उसने स्वर्ग में तम्बू को देखा। वह पवित्र तम्बू, जिसमें यीशु हमारे पक्ष में पुरोहिती करता है, मूल रूप में है और मूसा द्वारा निर्मित मिलापवाला तम्बू उसका प्रतिरूप है। वह स्वर्गीय मन्दिर, राजाओं के राजा का निवास स्थान, जहाँ “हजारों हजार लोग उसकी सेवा टहल कर रहे थे, और लाखों लाख लोग उसके सामने उपस्थित थे ।”-(दानिय्येल 7:10),वह मन्दिर जो शाश्वत सिंहासन की महिमा से भरा था, जहां स्वर्गदूत, उसके चमकते हुए रक्षक, श्रद्धा में अपने मुख को ढॉक लेते है- कोई भी सांसारिक भवन उसकी महिमा और विशालता का प्रतीक नहीं हो सकता। फिर भी स्वर्गीय मिलापवाले तम्बू और मनुष्य के उद्धार हेतु आगे बढ़ाए जाने वाले कार्य से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सत्य को प्रथ्वी पर के मिलापवाले तम्बू और उसकी विधियों द्वारा सिखाया जाना था।PPHin 358.2

    अपने आरोहण के पश्चात, हमारे उद्धारकर्ता को हमारे महायाजक के रूप में अपना कार्य प्रारम्भ करना था। इब्रानियों 9:24में पौलुस कहता है, “मसीह ने हाथ के बनाए हुए पवित्र स्थानों में प्रवेश नहीं किया, जो सच्चे पवित्र स्थान का प्रतिरूप है, पर स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिये अब परमेश्वर के सामने दिखाई दे। जैसे मसीह की परिचर्या में दो महत्वपूर्ण विभाजन होने थे, व प्रत्येक का समय निर्धारित और स्वर्गीय तम्बू में विशिष्ट स्थान होना था, उसी प्रकार प्रतीकात्मक परिचर्या के भी दो भाग थे, दैनिक और वार्षिक धर्म-किया और प्रत्येक को पवित्र मण्डप का एक विभाग समर्पित था।PPHin 359.1

    जैसे आरोहण के समय मसीह पश्चतापी विश्वासियों के पक्ष मं अपने लहूद्वारा विनती करने परमेश्वर की उपस्थिति में प्रकट हुआ, इसी प्रकार दैनिक परिचर्या में याजक पापी की ओर से पवित्र स्थान में बलि के पशु का लहू छिड़कता था।PPHin 359.2

    मसीह का लहू , पश्चतापी पापी को व्यवस्था के दण्डादेश से तो मुक्त करानेके लिये था, लेकिन पाप को रद्ध कराने के लियेनहीं था; वह अन्तिम प्रायश्चित तक पवित्र तम्बू में उल्लिखित रहेगा, इसी रीति से पापबलि का लहू पश्चतापी से पाप को हटा देता था परन्तु वह प्रायश्चित के दिन तक मिलापवाले तम्बू में रहता था।PPHin 359.3

    निर्णायक प्रतिफल के महत्वपूर्ण दिन, “जैसा उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, वैसे ही उनके कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया जाएगा । - प्रकाशित वाक्य 20:12फिर मसीह के पश्चतापी लहू की सामर्थ्य से, स्वर्ग की पुस्तकों में से यथार्थ में पश्चतापी लोगों के पाप मिटा दिए जाएँगे। इस प्रकार पवित्र तम्बू पाप के अभिलेख से स्वतन्त्र या पवित्रिकृत हो जाएगा। प्रतिरूप में, प्रायश्चित का यह महान कार्य या पापों का मिटाया जाना, प्रायश्चित के दिन की धर्म-किया द्वारा बताया जाता था - पृथ्वी पर मिलाप का तम्बू, जो पापों द्वारा दूषित हो जाता था, उसे पापबलि के लहू के सामर्थ्य से पवित्रिकत किया जाता था।PPHin 359.4

    जैसे कि निर्णायक प्रतिफल के समय यथार्थ में पश्चतापी लोगों के पाप स्वर्ग की पुस्तकों से मिटा दिए जाएँगे, और कभी भी स्मरण नहीं किये जाएँगे या मन में नहीं आएँगे, इसी प्रकार प्रतिरूप में वे जंगल में लिवा लिये जाते थे और कलीसिया से सर्वदा के लिये अलग कर दिये जाते थे।PPHin 360.1

    शैतान पाप को जन्म देने वाला और पाप को प्रत्यक्ष रूप से उकसाने वाला है, जो परमेश्वर के पुत्र की मृत्यु का कारण बना, इसलिये यह न्यायोचित है कि शैतान निर्णायक दण्ड को भोगे। मसीह का मनुष्य के उद्धार का व जगत को पवित्रिकरण द्वारा पाप रहित करने का कार्य, स्वर्गीय तम्बू से पापों को हटाकर निर्णायक दण्ड भुगतने के पात्र शैतान पर धर कर या रख कर, समाप्त हो जाएगा। इसी प्रकार प्रतीकात्मक धर्म-किया में, परिचर्याकावाषिक चक, मिलाववाले तम्बू के पवित्रिकरण और ‘अजाजेल’ (बलि का पशु) के सिर पर हाथ रख कर पापों के अंगीकरण के साथ समाप्त हो जाता था।PPHin 360.2

    इसी प्रकार पवित्र मण्डप की परिचर्या में, और मन्दिर, जिसने बाद में पवित्र मण्डप का स्थान लिया, की परिचर्या में, लोगों को मसीह की मृत्यु और परिचर्या से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सत्य प्रतिदिन सिखाये जाते थे, और वर्ष में एक बार उनके ध्यान को शैतान और मसीह के बीच महान संघर्ष की अन्तिम घटनाओं व जगत का पाप और पापियों से रहित होने, या उसके पवित्रिकरण की ओर ले जाया जाता था।PPHin 360.3