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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 34—वे बारह गुप्तचर

    यह अध्याय गिनती 13 और 14 पर आधारित है

    होरेब पर्वत से प्रस्थान करने के पश्चात्‌ इब्री सेना ने परान के भीड़ में कादेश नामक स्थान में पड़ाव डाला, जो कनान की सीमाओं से दूर नहीं था। यहाँ लोगों ने प्रस्ताव रखा कि उस देश का निरीक्षण करने हेतु गुप्तचरों को भेजा जाए। मूसा द्वारा इस विषय को परमेश्वर के सम्मुख प्रस्तुत किया गया, और इस निर्देश के साथ कि इस कार्य के लिये प्रत्येक गोत्र से एक-एक प्रधान को चुना जाए, उसे अनुमति दे दी गई। निर्दशानुसार पुरूषों को चुना गया, और मूसा ने उन्हें आदेश दिया कि वे जाकर उस देश को देखें कि वह कैसाथा, उसकी स्थिति और प्राकृतिक अनुकूल परिस्थितियाँ क्या थी; और वहां बसे हुऐ लोग बलवान थे या निर्बल, थोड़े थे या अधिक; और यह भी देखे कि उस देश की मिट्टी उपजाऊ है या बंजर, और यह कि वह उस देश का कोई फल भी अपने साथ लेकर लौटें।PPHin 390.1

    दक्षिण सीमा से प्रवेश करते हुए, उत्तरी सीमा तक वे गए, और देश का निरीक्षण किया। चालीस दिन पश्चात्‌ वे लौटकर आए। इजराइली ऊंची आशाएं संजोय हुए अपेक्षाकृत होकर उत्सुकता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। गुप्तचरों के लौटने की सूचना एक गोत्र से दूसरे गोत्र तक पहुँचाई गई और उसे आनन्दपूर्वक ग्रहण किया गया। जो सन्देशवाहक अपने खतरनाक कार्य के खतरों से सुरक्षापूर्वक बचकर निकल आए थे, उनसे मिलने के लिये लोग उमड़ पड़े। गुप्तचर उस फल कनमूने लेकर आए, जो मिट्टी के उपजाऊ होने का प्रमाण थे। वे अंजीर और अनार भी लेकर आए जो वहाँ बहुतायत से होते थे। अँगूरो के पकने के समयथा , वे दाखों का एक गुच्छा ले आए, जो इतना बड़ा था कि दो व्यक्ति उसे लाठी पर लटकाकर लाए।PPHin 390.2

    लोग प्रसन्‍न थे कि वे इतने समृद्ध देश को प्राप्त करने वाले थे, और उन्होंने वृतान्त को इतना ध्यानपूर्वक सुना कि एक शब्द भी अनसुना नहीं हुआ। गुप्तचरों ने बताया, “जिस देश में तूने हमें भेजा था, उसमें सचमुच दूध और मधु की धाराएं बहती है, और उसकी उपज में से यही है।” वे लोग जोशीले थे, वे उत्साहपूर्वक परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर, तत्काल ही उस देश में बसने के लिये चले जाते लेकिन देश के सौन्दर्य और उपजाऊपन का वर्णन करने के पश्चात्‌, दो को छोड़, सभी गुप्तचरों ने इज़राइलियों के सम्मुख, कनान पर विजय प्राप्त करने के प्रयास में आने वाली कठिनाईयों और खतरों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया। उन्होंने देश के विभिन्‍न भागों में स्थित शक्तिशाली जातियों को गिनवाया और बताया कि उसके नगर गढ़वाले थे और बहुत बड़े थे और उस देश के निवासी बलवान थे, और उन्हें पराजित करना असम्भव था। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने वहां अनाकवंशियों को देखा जो देखने में विशाल थे और इस कारण उस देश पर अधिकार पाने का विचार करना व्यर्थ था।PPHin 390.3

    अब परिस्थितियाँ बदल गई। जैसे-जैसे गुप्तचरों ने, शैतान द्वारा उकसाई गई निराशा से भरे अपने अविश्वासी हदयों की भावनाएँ व्यक्त की, आशा और साहस का स्थानकायरतापूर्ण निराशा ने ले लिया। उनके अविश्वास ने भकतगणों पर निराशा की परछाई डाल दी, और परमेश्वर के सामर्थ्य को जो प्रायः चुने हुए लोगों के लिये प्रकट किया जाता था, भुला दिया गया। लोगों ने इस पर रूककर चिंतन नहीं किया, उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जो उन्हें इतनी दूर ले आया है, वह उन्हें वह देश अवश्य देगा; उन्होंने यह भी स्मरण नहीं किया कि किस तरह फिरौन की पीछा करती हुई सेनाओं का विनाश करते हुए,समुद्र के जल का पाटकर मार्ग निकालते हुए, परमेश्वर ने विस्मयकारी ढंग से उन्हें उनके उत्पीड़नकर्ताओं से छुटकारा दिलाया था। उन्होंने परमेश्वर को इस परिस्थिति से बाहर छोड़ दिया, और ऐसा जताने लगे मानो वे अपने अस्त्रों-शस्त्रों की शक्ति पर ही निर्भर थे।PPHin 391.1

    अपने अविश्वास में उन्होंने परमेश्वर के सामर्थ्य को सीमित कर दिया और उस हाथ पर भी सन्देह किया जिसने अब तक उनका सुरक्षापूर्ण मार्गदर्शन किया था। और उन्होंने मूसा और हारून के विरूद्ध बड़बड़ाने के अपने पहले अपराध को दोहराया, “अब, यही, हमारी ऊंची आशाओं का अन्त है। यही वह देश है जिसे पाने के लिये हम मिस्र से इतनी दूर यात्रा करके आए हैं।” उन्होंने अपने प्रधानों पर धोखाधड़ी का और इज़राइल पर संकट लाने का आरोप लगाया।PPHin 391.2

    लोग निराशा में डूब चुके थे। एक वेदनापूर्ण विलाप सुनाई दिया और बड़बड़ाहट की मिली-जुली आवाजों में मिल गया। कालेब ने परिस्थिति को समझा, और, परमेश्वर के वचन के पक्ष में खड़े होने का साहस कर, अपनी क्षमता के अनुसार, अपने अविश्वसनीय सहयोगियों के दुष्प्रभाव का प्रतिकार करने का प्रयत्न किया। क्षणभर के लिये, समृद्ध देश के समर्थन में कहे गए उसके आशावान और साहसपूर्ण शब्दों को सुनने के लिये लोग शान्त हो गए। जो कहा गया था उसका खंडन नहीं किया, दीवारे ऊंची थी और कनानी बलवान थे। लेकिन परमेश्वर ने इज़राइलियों को वचन दिया था कि वह देश वह उन्हें देगा। कालेब ने आग्रह किया, “हम अभी चढ़ के उस देश को अपना कर लें, क्‍योंकि निस्सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है।”PPHin 391.3

    लेकिन उन दस गुप्तचरों ने, हस्तक्षेप करते हुए, बाधाओं को और अधिक स्याह रंगो में चित्रित किया, “उन लोगों पर चढ़ाई करने की शक्ति हममें नहीं हैं, क्योंकि वे हमसे बलवान है......जितने पुरूष हमने उसमें देखे वे सब बड़े डील-डौल के हैं। फिर वहां हमने नपीलों को अर्थात नीली जाति वाले अनाकवंशियों को देखा, और हम अपनी दृष्टि में उनके सामने टिड्डे के समान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे।”PPHin 391.4

    ये पुरूष, गलत मार्ग पर चलकर, हठपूर्वक कालेब और यहोशू के, मूसा के और परमेश्वर के विरूद्ध हो गए। प्रत्येक बढ़ते कदम ने उनके संकल्प को और भी दृढ़ कर दिया। उन्होंने निश्चय कर लिया कि कनान पर स्वामित्व प्राप्त करने के प्रत्येक प्रयत्न को वे नाकाम कर देंगे। अपने दुष्प्रभाव को बनाए रखने के लिये उन्होंने स्रत्य को विकृत कर दिया। उन्होंने कहा, “वह देश अपने वासियों को निगल जाता है।’ यह एक बुराही नहीं, वरन्‌ झूठा वृतान्त था। वह अपने आप में ही असंगत थी। गुप्तचरों ने देश को फलवन्त और समृद्ध और लोगों को बड़े डील-डौल वाले बताया था; ऐसा होना असम्भव था यदि वहाँ का वातावरणइतना अस्वास्थ्यपूर्ण होताकि वह देश अपने वासियों को निगल जाता था।” लेकिन जब मनुष्यों अपने हृदयों को अविश्वास को समर्पित कर देते हैं तो वे स्वयं को शैतान के अधीनस्थ कर देते हैं और कोई नहीं जानता कि वह उन्हें कहाँ तक ले जा सकता है। PPHin 392.1

    “तब सारी मण्डली चिल्ला उठी, और रात भर वे लोग रोते ही रहे।” शीघ्र ही विद्रोह और बगावत ने अपनारूप दिखाया क्‍्योंकिशैतान पूर्णतया हावी हो गया; और लोग अपनी सूझ-बूझ खो बेैठे। यह भूलकर कि परमेश्वर उनके दुष्ट व्याख्यानों को सुन रहा था, और यह कि उनके कोध के भंयकर आवेग का बादल के स्तम्भ में ढका “उसकी उपस्थिति का स्वर्गदूत” साक्षी था, उन्होंने मूसा और हारून को भला बुरा कहा। कड़वाहट में वे चिल्‍ला उठे, “भला होता कि हम मिस्र ही मेंमर जाते या इस भीड़ ही में मर जाते”! फिर उनकी भावनाएँ परमेश्वर के विरूद्ध हो गईं:“यहोवा हमें उस देश में ले जाकर क्‍यों तलवार से मरवाना चाहता है? हमारी स्त्रियाँ और बाल-बच्चे तो लूट में चले जाएँगे, क्या हमारे लिये अच्छा नहीं कि हम मिस्र देश को लौट जाएँ? फिर वे आपसमें कहने लगे, आओ, हम किसी को अपना प्रधान बना लें, और मिस्र को लौट चलें।” इस प्रकार उन्होंने न केवल मूसा को वरन्‌ परमेश्वर को भी आरोपित किया कि उन्होंने उस देश की प्राप्ति का उन्हें वचन दिया जो वे प्राप्त न कर सके। और वे इस हद तक चले गए कि उन्होंने अपने लिये एक प्रधान नियुक्त किया, जो उन्हें उनके दासत्व और कष्टों के देश मं लौटा कर ले जाए, जहाँ से सर्वशक्तिमान के सशक्त हाथ ने उन्हें छुटकारा दिलाया था।PPHin 392.2

    अनादर और पीड़ा में, “मूसा और हारून इज़राइलियों की सारी मण्डली के सामने मुहँ के बल गिरे,” और वे नहीं जानते थे कि उन्हें उनके विवेकहीन और आवेगपूर्ण प्रयोजन से कैसे पीछे हटाएँ। कालेब और यहोशू ने उपद्रव को शान्त करने का प्रयत्न किया। दुःख और कोध के प्रतीक के रूप में अपने वस्त्र फाड़कर वे लोगों के बीच में गए और विद्रोहपूर्ण पीड़ा और विलाप के तूफान के शोर से अधिक ऊँची उनकी आवाज सुनाई पड़ी, “जिस देश का भेद लेने को हम इधर-उधर धूम कर आए है, वह अत्यन्त उत्तम देश है। यदि यहोवा हम से प्रसन्‍न हो, तो हम को उस देश में, जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती है, पहुँचकर उसे हमें दे देगा। केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरूद्ध बलवा न करो, और न ही उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे, छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है, उन से न डरो।”PPHin 392.3

    कनानियों के पाप के घड़ा भर चुका था, औरपरमेश्वर अब उनको और सहन करने वाला नहीं था। उसकी सुरक्षा के अभाव में, उन पर आसानी से विजय पाई जा सकती थी। परमेश्वर की वाचा के द्वारा इज़राइल के लिये वह देश निर्धारित था।PPHin 393.1

    लेकिन उन अविश्वसनीय गुप्तचरों के झूठा विवरण ग्रहण किया गया, और उसके माध्यम से सम्पूर्ण मण्डली बहकावे में आ गईं। विश्वासघातियों ने अपना काम कर दिया था। यदि केवल दो व्यक्ति अच्छी खबर लाए होते, और सभी दस लोगों ने परमेश्वर के नाम में उन्हें उस देश को पाने के लिये प्रोत्साहित किया होता, तब भी उन्होंने दस के बजाय अपने दुष्टतापूर्ण अविश्वास के कारण उन दोनों की ही सलाह मानी होती। लेकिन वहाँ पर केवल दो ही थे जो सही की पैरवी कर रहे थे, जबकि दस व्रिदोह के पक्ष में थे।PPHin 393.2

    उन विश्वासघाती गुप्तचरों ने कालेब और यहोशू का ऊँची आवाज में दोषारोपण किया और सारी मण्डली चिल्ला उठी कि उन पर पथराव किया जाए। वे पागलपन में चिल्लाते हुए आगे बड़े, लेकिन अक्समात ही उनके हाथों से पत्थर गिर पड़े, एक चुप्पी सी छा गई और वे डर से कॉपने लगे परमेश्वर ने उनके घातक षड़यन्त्र पर रोक लगाने के लिये हस्तक्षेप किया। अग्नि की लपटों समान उसकी उपस्थिति ने मिलापवाले तम्बू को प्रकाशमान कर दिया। सभी लोगों ने परमेश्वर के संकेत को देखा। यह पहले से अधिक प्रभावशाली था और किसी ने अपने प्रतिरोध को जारी रखने का दुस्साहस नहीं किया। जो गुप्तचर गलत खबर लेकर आए थे, वे भय की मार से दुबक गए और साँस रोककर अपने तम्बुओं में लौट गए।PPHin 393.3

    मूसा उठा और उसने मिलापवाले तम्बू में प्रवेश किया। प्रभु ने उससे कहा, “मैं उन्हें मरी से मारूगा और उनके निज भाग से उन्हें निकाल दूँगा, और तुझ से एक जाति उत्पन्न करूँगा जो उनसे बड़ी और बलवन्त होगी ।” लेकिन मूसा ने फिर से अपने लोगों के लिये विनती की। स्वयं के द्वारा एक शक्तिशाली जाति बनाकर, वह अन्यों के विनाश की सहमति नहीं दे सका। परमेश्वर की करूणा का आग्रह करते हुए उसने कहा, “अब प्रभु की सामर्थ्य की महिमा तेरे इस कथन के अनुसार हो कि यहोवा कोप करने में धीरजवन्त और अति करूणामय है.......अब इन लागों के अधर्म को अपनी बड़ी करूणा के अनुसार, और जैसे तू मिस्र से लेकर यहां तक क्षमा करता रहा है वैसे ही अब भी क्षमा कर दे।PPHin 393.4

    परमेश्वर ने इज़राइल का तत्काल विनाश ना करने का वचन दिया लेकिन उनके अविश्वास और कायरता के कारण वह उसके शत्रुओं का दमन करने के लिये अपनी सामर्थ्य प्रकट नहीं कर सका। इसलिये दया दिखाते हुए, उसने सुरक्षित उपाय के रूप में उन्हें लाल समुद्र की ओर मुड़ जाने को कहा।PPHin 394.1

    विद्रोह करते समय लोगों ने कहा था, “भला होता कि हम इस भीड़ में ही मर जातें” अब इस प्रार्थना का उत्तर देने का समय आ गया था। परमेश्वर ने घोषणा की, “जो बातें तुम ने मेरे सुनते कही है, निःसन्देह मैं उसी के अनुसार तुम्हारे साथ व्यवहार करूंगा। तुम्हारे शव इसी जंगल में पड़े रहेंगे, और तुम सब में से बीस वर्ष के या उससे अधिक आयु के जितने गिए गए थे......परन्तु तुम्हारे बाल-बच्चे, जिनके विषय में तुमनेकहा था कि वे मारे जाएँगे,उन्हें मैं निकालले आऊंगा, और वे उस देश को जान लेंगे, जिसे तुमने तुच्छ जाना है।” और कालेब के विषय में उसने कहा, “परन्तुइस कारण कि मेरे दास कालेब के साथ और ही आत्मा है, और उसने पूरी रीति से मेरा अनुकरण किया है, मैं उसको उस देश में जिसमें वह हो आया है पहुँचाऊँगा, और उसका वंश उस देश का अधिकारी होगा। जैसे गुप्तचरों ने अपनी यात्रा में चालीस दिन व्यतीत किये थे। वेसे ही इज़राइलियों को बीहड़ में चालीस वर्ष भ्रमण करना था।PPHin 394.2

    जब मूसा ने लोगों को पवित्र निर्णय के बारे में बताया, तो उनका कोध शोक में परिवर्तित हो गया। वे जानते थे कि उनको दी गई दबण्डाज्ञा न्यायपूर्ण थी। वे दस विश्वासघाती गुप्तचर भी मरी द्वारा इज़राइल की आंखो के सामने मारे गए। उनके अन्त में लोगों ने स्वयं का भी सर्वनाश देखा।PPHin 394.3

    अब वे अपने दुराचरण के लिये सच्चा प्रायश्चित करते हुए प्रतीत हुए, लेकिन वे अपनी कृतज्ञहीनता और अनाज्ञाकारिता की अनुभूति से नहीं वरन्‌ अपने गलत तरीकों के परिणामों की वजह से दुखी थे। जब उन्होंने देखाकि परमेश्वर के दण्डादेशमें कोई परिवर्तन नहीं हुआतो उनकी स्वेच्छा फिर से जागृत हो गई और उन्होंने घोषणा की कि वे भीड़ में नहीं लौटेंगे। उन्हें शत्रुओं के देश से प्रस्थान करने को कहने में, परमेश्वर ने उनके दिखावटीसमर्पणकोपरखाऔरप्रमाणितकिया कि वहवास्तविकनहीं था। वे जानते थे कि स्वयं को अपनी अविवेकपूर्ण भावनाओं से नियंत्रित होने देने में और उन्हें परमेश्वर को मार डाजने की योजना बनाने में उन्होंने जघन्य अपराध किया था, लेकिन यह जानकर कि उन्होंने एक गम्भीर अपराध किया था, जिसके परिणाम उनके लिये बहुत घातक सिद्ध होने वाले थे, वे केवल भयभीत हुए । उनके हृदयों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और उन्हें वैसे ही अतिक्रमण को घटित कराने का बहाना चाहिये था। यह तब सामने आया, जब परमेश्वर के अधिकार से, उसने उन्हें भीड़ में लौट जाने की आज्ञा दी।PPHin 394.4

    चालीस वर्षों तक इज़राइल को कनान में प्रवेश ना करने का आदेश मूसा, हारून, कालेब और यहोशू के लिये अत्यन्त निराशाजनक था, लेकिन उन्‍होंने बिना शिकायत करे, ईश्वर के निर्णय को स्वीकार किया। लेकिन जो परमेश्वर के उनके प्रति व्यवहार को लेकर शिकायत करते आ रहे थे और मिस्र लौट जाने की घोषणा करते आए थे, वे उन आशीषों के वापिस लिये जाने पर, जिनका उन्होंने तिरस्कार किया था, बहुत रोए और गिड़गिड़ाए। उन्होंने अकारण ही शिकायत की थी, और अब परमेश्वर ने उन्हें रोने के लिये कारण दे दिया। यदि उन्होंने पाप के लिये शोक मनाया होता, तब उनके पाप उनके सम्मुख रखे गएथे तो उनपरदण्डाज्ञा की घोषणानहींकी गई होती लेकिन उन्होंने दण्डाज्ञा के लिये शोक मनाया, उनका दुःख प्रायश्चित नहीं था, और उनको दी गई दण्डाज्ञा कोरद्द नहीं करा सकता था।PPHin 395.1

    रात विलाप करने में बीत गईं, लेकिन भोर के साथ आशा का भी उदय हुआ। उन्होंने अपनी कायरता को मुक्ति देने का संकल्प किया। जब परमेश्वर ने उन्हें ऊपर जाकर उस देश को जीत लेने को कहा था, तब उन्होंने इन्कार कर दिया था, और अब जब उसने उन्हें वापसी का आदेश दिया, तब वे उतने ही विद्रोही थे। उन्होंने उस देश को हड़पकर उस पर अधिकार करने का निश्चय किया, शायद परमेश्वर उनके काम को स्वीकार कर लेता और उनके प्रति उसके उद्देश्य में बदलाव कर देता।PPHin 395.2

    अपने द्वारा नियुक्त समय पर उनके कनान में प्रवेश को परमेश्वर ने उसे उनका विशेषाधिकार और कर्तव्य ठहराया था, लेकिन उनकी दुराग्रही उपेक्षा के कारण यह अनुमति वापस ले ली गईं थी। शैतान ने कनान में उनके प्रवेश को बाधित करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था, और अब ईश्वरीय निषेधाज्ञा के होते हुए भी उसने उन्हें वही करने को उकसाया, जिसको करना उन्होंने तब स्वीकार नहीं किया जब परमेश्वर ने उन्हें कहा था। इस प्रकार उस महाकपटी ने उन्हें दूसरी बार विद्रोह करवाने में विजय प्राप्त की। उन्होंने कनान पर अधिकार प्राप्त करने में अपने प्रयत्नों के साथ परमेश्वर के सामर्थ्य के काम करने पर अविश्वास किया था, और अभी भी वे कार्य को सम्पन्न करने के लिये, ईश्वरी की सहायता के बिना, अपनी निजी क्षमता पर विश्वास कर रहे थे। “हम ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है, अब हम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार चढ़ाई करेंगे और लड़ेंगे ।”-व्यवस्थाविवरण 1:41 । आज्ञा उललघंन द्वारा वे इतनी बुरी तरह अन्धे हो गए थे। परमेश्वर ने कभी भी यह आदेश नहीं दिया था कि “ऊपर जाओ और लड़ो।” उसका यह प्रयोजन कभी भी नहीं था कि वे युद्ध द्वारा उस देश को जीते, वरन्‌ वह चाहता था कि उसकी आज्ञाओं का पालन कर ससे प्राप्त करे।PPHin 395.3

    यद्यपि उनके हृदय परिवर्तित नहीं हुए थे, लोगों को गुप्तचरों के विवरण पर विद्रोह करने की मूर्खता और पापमयता का अंगीकार करने को कायल किया गया था। वे अब उस आशीष के मूल्य को देख सकते थे, जो उन्होंने उतावलेपन में अस्वीकार कर दी थी। उन्होंने स्वीकार कियाकि वह उनका अविश्वास ही था जिसके कारण वे कनान से बाहर हो गए थे। उन्होंने कहा, “हमने पाप किया है”, और स्वीकार किया कि गलती उन्हीं में थी, ना कि परमेश्वर में, जिसपर उन्होंने इतनी दुष्टता से उनको दी गई प्रतीज्ञा को पूरी ना करने का आरोप लगाया था। हालाँकि उनका पाप का अंगीकार करना सच्चे प्रायश्चित से प्रवाहित नहीं हुआ था, इससे उनके साथ परमेश्वर के न्यायसंगत व्यवहार की पुष्टि हो गईं।PPHin 396.1

    प्रभु आज भी मनुष्य को अपनी न्यायसंगतता को स्वीकार कराने के द्वारा उसके नाम को महिमा पहुँचाने के लिये इसी रीति से कार्य करता है। जब उसने प्रेम रखने का दावा करने वाले उसकी समझदारी पर सन्देह करते हैं, उसकी प्रतिज्ञाओं का तिरस्कार करते हैं, और प्रलोभन में पड़कर परमेश्वर के उद्देश्यों को पराजित करने के लिये दुष्ट दूतों के साथ मिल जाते हैं, प्रभु प्रायः परिस्थितियों को इस प्रकार वश में कर लेता है कि वास्तविक प्रायश्चित के अभाव में भी मनुष्य को अपने पाप का विश्वास हो जाता है और वह अपने द्वारा चुने हुए मार्ग की दुष्टता और परमेश्वर के उनके साथ परस्पर व्यवहार में अच्छाई को स्वीकार करने के लिये बाध्य हो जाता है। इस प्रकार परमेश्वर अन्धकार के कार्यों को प्रकट कराने हेतु प्रतिकार के साधनों को सक्रिय करता है। और हालाँकि बुराई करने के लिये उकसाने वाली प्रवृति में मूलतः परिवर्तन नहीं होता, पापों का अंगीकार किया जाता हैजो परमेश्वर के सम्मान की पुष्टि करते है और उसके निष्ठावान झिड़कीदेने वालों को, जिनका विरोध किया गया ओर जिनका गलत ढंग से प्रतिनिधित्व किया गया, सही ठहराता है। ऐसा ही तब होगा जब परमेश्वर का रोष अन्ततः उँडेला जाएगा। जब “प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आएगा कि सबका न्याय करें,” वह उन सब, “भक्तिहीनों को उनके अभक्ति के कामों के विषय में दोषी ठहराएगा ।”-यहूदा 14,15। प्रत्येक पापी को उसकी दण्डाज्ञा की न्यायसंगतता को देखकर स्वीकार कराया जाएगा।PPHin 396.2

    ईश्वरीय दण्डाज्ञा का मान न रखते हुए, इज़राइल ने कनान पर विजय पाने की तैयारी की। युद्ध के हथियारों और सुरक्षा कवच से लैस, वे स्वयं के अनुमान के अनुसार संघर्ष के लिये पूर्णता तैयार थे, लेकिन परमेश्वर और उसके दुखी सेवकों की दृष्टि में वे बुरी तरह से अपूर्ण थे। जब, लगभग चालीस वर्ष पश्चात्‌ परमेश्वर ने इज़राइल को ऊपर जाकर यरीहो को अधीकृत करने का आदेश दिया, उसने उनके साथ जाने की प्रतिज्ञा की। उसकी व्यवस्था से युक्त सन्दूक उनकी सेनाओं के आगे ले जाया जाता था। ईश्वरीय निरीक्षण में, उसके द्वारा नियुक्त प्रधान उनके प्रस्थान का निर्देशन करते थे। ऐसे मार्गदर्शन से, उन पर कोई आपत्ति नहीं आ सकती थी। लेकिन अब अपने अगुवों की औपचारिक निषेधाज्ञा और परमेश्वर की आज्ञा के विपरीत, वाचा के सन्दूक के बिना और बिना मूसा के, वे शत्रु-सेना का सामना करने निकल पड़े।PPHin 397.1

    तुरही ने चेतावनी का संकेत दिया और मूसा ने उन्हें आगाह किया, “तुम यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन क्‍यों करते हो? लेकिनयह सफल नहीं होगा। यहोवा तुम्हारे मध्य में नहीं है, मत चढ़ोनहीं तो शत्रुओं से हार जाओगे। वहाँ तुम्हारे आगे अमालेकी और कनानी लोग हैं, इसलिये तुम तलवार से मारे जाओगे।”PPHin 397.2

    कनानियों ने उस अद्भुत शक्ति के बारे में सुना था जो इन लोगों की रक्षा करती प्रतीत होती थी और उनके पक्ष में किये गए चमत्कारों के बारे में भी सुना था, और अब उन्होंने घुसपैठियों को पीछे धकेलने के लिये एक शक्तिशाली सेना को बुलाया। कोई प्रार्थना नहीं की गई कि परमेश्वर उन्हें विजय प्राप्त करवाए। वह अपने अन्त को पीछे मोड़ने के उद्देश्य से या युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो जाने के लिये आगे बड़े । हालांकि युद्ध करने में वे अप्रशिक्षित थे, वे हथियारों से लैस एक विशाल समूह थे, और उन्हें आशा थी कि वे एक आकस्मिक और भयंकर चढ़ाई के द्वारा समस्त विरोध को दबा देंगे। उन्होंने घृष्टता से उस शत्रु को चुनौती दी जिन्होंने उन पर आक्रमण करने का दुस्साहस नहीं किया था।PPHin 397.3

    कनानियों ने स्वयं को एक पहाड़ी पठार पर तैनात किया हुआ था, जहाँ केवल दुर्गग घाटियों से होकर और खाड़ी व खतरनाक चढ़ाई के बाद ही पहुँचा जा सकता था। इब्रियों की विशाल सेना की पराजय और भयानक हो सकती थी। वे धीमे-धीमे कतारबद्ध होकर पथरीले मार्ग पर चले और उन पर ऊपरी हिस्से से शत्रुओं के घातक अस्त्रों का संकट बना हुआ था। बड़ी-बड़ी चट्टानें लुढ़क कर नीचे आने लगी और उनका मार्ग हताहत लोगों के लहू से रंग गया। जो भी चढ़ाई करके थके हुए चोटी तक पहुँचे, उन्हें गहरे नुकसान के साथ पीछे खदेड़ दिया गया। नरसंहार के क्षेत्र पर मृतकों के शव बिखरे पड़े थे। इज़राइलकी सेना पूर्णतया पराजित हो गई। विनाश और मृत्यु उस विद्रोही प्रयोग का परिणाम था।PPHin 397.4

    आत्म-समर्पण के लिये विवश आखिरकार, बचे हुए लोग “लौटे और प्रभु के सामने रोए” लेकिन “प्रभु ने उनकी आवाज नहीं सुनी ।”-व्यवस्थाविवरण 1:45 । अपनी संकेतक विजय के द्वारा इज़राइल के शत्रु, जो अब तक उस शक्तिशाली सेना के आगमन की भयभीत होकर प्रतीक्षा कर रहे थे, अब आत्म-विश्वास के साथ उनका प्रतिरोध करने को प्रेरित हुए। परमेश्वर द्वारा अपने लोगों के लिये किये गए चमत्कारों से सम्बन्धिम जो भी वृतान्त उन्होंने सुने थे, उन्हें वे अब असत्य मानने लगे, और उन्हें लगा कि डरने का कोई कारण नहीं था। इज़राइल की उस प्रथम पराजय ने, कनानियों को साहस और संकल्प से प्रेरित करके, विजय प्राप्त करने की कठिनाईयों में अत्याधिक वृद्धि कर दी। इज़राइल के लिये कुछ भी नहीं बचा, सिवाय इसके कि वे अपने शत्रुओं के सामने से पीछे हट जाएँ, क्‍योंकि वे जान गए कि वहाँ एक सम्पूर्ण पीढ़ी का मृत्यु पश्चात गाड़ा जाना निश्चित था। PPHin 398.1

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