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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 37—वह चट्टान जिसपर चोट की गई

    यह अध्याय गिनती 20:1-13 पर आधारित है

    यह पहली बार हुआ था कि होरेब में उस चट्टान से वह जीवनदायी जल की नदी प्रवाहित हुई जिसने बीहड़ में इज़राइल की तृप्त किया। उनके भ्रमण के दौरान, जहाँ भी आवश्यकता पड़ती थी, उन्हें परमेश्वर की दया के चमत्कार के द्वारा जल प्रदान किया जाता था। लेकिन होरेब से जल बहता नहीं रहता था। जब भी उन्हें अपनी यात्रा में जल की आवश्यकता होती थी, वहीं पर, उनके पड़ाव के पास, चट्टान की दरारों से जल फूट पड़ता था।PPHin 416.1

    वह मसीह था, जिसने अपने वचन की सामर्थ्य से, इज़राइल के लिये स्फर्तिदायक सरिता के प्रवाह को सम्भव किया। “सब ने एक ही आत्मिक जल दिया, क्योंकि वे उस आत्मिक चटटान से पीते थे जो उनके साथ-साथ चलती थी, और वह चट्टान मसीह था।”-1 कुरिन्थियों 10:4; वही सब सांसारिक और आत्मिक आशीषों का स्रोत था। मसीह, जो सच्ची चट्टान है, उनके भ्रमण के दौरान उनके साथ था। “वह जब उन्हें निर्जल देशों मं ले गया, तब वे प्यासे न हुए, उसने उनके लिये चटटान से पानी निकाला, उसने चटटान को चीरा और जल बह निकला ।” “निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी ।”-यायाह 48:21, भजन संहिता 105:41।PPHin 416.2

    वह चटटान जिस पर चोट की गई, मसीह का स्वरूप थी इस प्रतीक के माध्यम से सबसे अधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सत्य सिखाये जाते है। जैसे कि चोट की गई चट्टान सेजीवनदायी जल प्रवाहित हुआ, उसी प्रकार, “परमेश्वर का ताड़ा हुआ” “हमारे अपराधों के लिये घायल” “हमारे अधर्म के कार्या के कारण कुचला गया” मसीह पतित वंश के उद्धार की सरिता का स्रोत है। जिस प्रकार चट्टानों पर एक बार चोट की गई, उसी प्रकार मसीह को “बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये” बलिदान होना था। (इब्रानियों 9:28)हमारे उद्धारकर्ता को दूसरी बार बलिदान नहीं होना था, जो उसके अनुग्रह की आशीष चाहते हैं उन्हें पश्चातापी प्रार्थना में अपनी हादिके अभिलाषा को व्यक्त करते हुए, केवल यीशु के नाम से माँगने की आवश्यकता है। ऐसी प्रार्थना सेनाओं के यहोवा के सम्मुख यीशु के घावों को ले आएगी और फिर जीवनदायी लहू की धारा फिर से बह निकलेगी, जिसका प्रतीक इज़राइल के लिये बहाया गया जीवनदायी जल है।PPHin 416.3

    अत्यन्त हर्षोल्लास के प्रदर्शन के साथ, कनान में बस जाने के पश्चात, निर्जल प्रदेश में चटटान से जल के प्रवाहित होने को इज़राइलियों ने पर्व के रूप में मनाया । मसीह के समय में यह पर्व एक अत्यन्त प्रभावशाली धर्म किया बन गया था। मिलापवाले तम्बू के पर्व के अवसर पर जब पूरे देश के लोग यरूशेलेम में एकत्रित होते थे, तब यह धर्म-किया की जाती थी। पर्व के सात दिनों में प्रत्येक दिन याजक संगीत और लैवियों की गायक मण्डली के साथ, सिलोम के सोते से सोने के बर्तन में जल लाने के लिये बाहर जाते थे। उनके पीछे-पीछे उपासको की भीड़ होती थी, जितने कि जलधारा के निकट पहुँचकर जल को ग्रहण कर सकते थे,और प्रफूल्लित धुनें बजती रहती थी, “तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतो से जल भरोगे ।”-यशायाह 12:3 । फिर याजकों द्वारा भरा हुआ जल, पवित्र भजन, “हे यरूशेलेम, तेरे फाटकों के भीतर, हम खड़े हो गए है” (भजन संहिता 122:2)और तुरही के स्वर के बीच मन्दिर में ले जाया जाता था। जल को होमबलि की वेदी पर उँडेल दिया जाता था, और इस दौरान जब स्तुति गान होता था, वाद्य-यन्त्रों और तुरहियों की कर्णप्रिय ध्वनि के साथ जनसाधारण जय-जयकार के साथ उनके साथ मिल जाते थे।PPHin 416.4

    उद्धारकर्ता ने इस प्रतीकात्मक धर्म-किया का प्रयोग लोगों के मन उन आशीषों की ओर, जो देने के लिये वह संसार में आया था, आकर्षित करने के लिये किया। “पर्व के अन्तिम दिन, जो मुख्य दिन है” उसकी वाणी का उच्चारण मन्दिर के प्रॉगण में गूज उठा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पिए। जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र कहता है, “उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी।” यहुन्ना कहता है, “उसने यह वचन पवित्र आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे ।”-यहुन्ना 7:37-39 । बंजर और सूखी भूमि में उमड़ता हुआ, निर्जल प्रदेश का हरा-भरा कराने वाला और मरने वालों की जीवन देने के लिये प्रवाहित होने वाला स्फूर्तिदायक जल, उस पवित्र अनुग्रह का प्रतीक है जो केवल मसीह प्रदान कर सकता है और यह उसी जीवन के जल के समान है, जो शुद्ध करता है, थकान दूर करता है और प्राण को सबल बनाता है। जिसमें मसीह का वास होता है, उसके अन्दरअनुग्रह और शक्ति का कभी न समाप्त होने वाला सोता है। यीशु अपने खोजियों के पथ को उज्जवल करता है और जीवन को उत्साहित करता है। उसके प्रेम को यदि हृदय में ग्रहण किया जाए तो वह सनातन जीवन के लिये अच्छे कार्यों में फलवन्त होता है। यह केवल उसी को आशीषित नहीं करता जिसमें यह फलवन्त होता है, वरन्‌ यह जीवनदायी धारा, अपने चारों ओर के प्यासे लोगों को तृप्त करने के लिये धार्मिकता के कार्या और शब्दों में बहती है।PPHin 417.1

    मसीह ने याकूब के क॒एँ पर सामरी स्त्री के साथ वार्तालाप करते समस इसी उदाहरण का प्रयोग किया था,, “परन्तु जो कोई उस जल में से पीयेगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा, वरन्‌ जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा, जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा ।”-यहुन्ना 4:14 । मसीह इन दोनो का सम्मिश्रण है। वही चट्टान है, वही जीवनदायी जल है।PPHin 417.2

    यही सुन्दर और अर्थपूर्ण उदाहरण सम्पूर्ण बाइबिल में प्रयोग किये गए है। मसीह के आगमन से सदियों पूर्व, मूसा ने उसकी ओर इज़राइल के उद्धार की चटटान जैसे होने का संकेत दिया (व्यवस्थाविवरण 32:15); भजन संहिता लिखने वाले ने उसे, “छुटकारा दिलाने वाला”, “जो चट्टान मुझसे ऊंची है”, “मेरे उद्धार का आधार,” “हृदय की चटटान” “मेरी शरण की चटटान” “मेरी चटटान और मेरा गढ़” कहा है। दाऊद के भजन में उसके अनुग्रह को हरी तराईयों के बीच, शीतल ‘सुखदायी जल’ के रूप में चित्रित किया गया है, जिसके किनारे स्वर्ग का चरवाहा अपनी भेड़ो को चराता है। और फिर वह कहताहै, “तू अपनी सुख की नदी में से उन्हें पिलाएगा, क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है।”-भजन संहिता 19:174, 62:7, भजन संहिता 61:2, 71:26, 94:22, 23:2, 36:8,9। और बुद्धिमान पुरूष कहता है, “मनुष्य के मुहँ के वचन गहरा जल, और उमड़ने वाली नदी बुद्धि के सोते है।-नीतिवचन 18:4। यिर्मयाह के लिये यीशु “बहते जल का सोता है” और जकर्याह के लिये वह “मलिनता और पाप धोने के निमित एक बहता हुआ सोता है।”-यिर्मयाह 2:13, जकर्याह 13:1।PPHin 418.1

    यशायाह उसका वर्णन “सनातन चट्टान” और “तप्त भूमि में बड़ी चटटान की छाया” के रूप में करता है।(यंगयाह 26:4, 32:2)। और इज़राइल के लिये प्रवाहित जीवनदायी धारा का स्पष्ट रूप से स्मरण कराते हुए, वह अमूल्य प्रतिज्ञा का उल्लेख करता है, “जब दीन और दरिद्र लोग जल ढूंढने पर भी न पाएं और उनका तालू प्यास के मारे सूख जाए, मैं यहोवा उनकी विनती सुनूँगा, मैं इज़राइल का परमेश्वर उनको त्याग न दूंगा।” “क्योंकि में प्यासी भूमि पर जल और सूखी भूमि पर धाराएँ बहाऊँगा” “जंगल में जल के सोते फूट निकलेंगे और मरूभूमि में नदियाँ बहने लगेंगी।” निमन्त्रण दे दिया गया है, “अहो, सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ।'”-यंगयाह 41:14, 44:3, यशायाह 55:6, 55:1। पवित्र वचन के अन्तिम पृष्ठों में यह निमन्त्रण गूंजता है। जीवन के जल की नदी, जो “यशब की तरह स्वच्छ” है, परमेश्वर और मेम्ने के सिंहासन से निकलती है, और युगों से अनुग्रहकारी बुलाहट सुनाई दे रहा है”जो प्यासा हो वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल ग्रहण कर ले।”- प्रकाशित वाक्य 22:17। इब्री सेना के कादेश पहुँचने के ठीक पहले, छावनी के निकट, इतने वर्षो से जो जीवनदायी जल बह रहा था, वह थम गया। यह फिर से लोगों को परखने का प्रभु का प्रयोजन था। उन्हें प्रमाणित करनाथा कि वे परमेश्वर के ईश्वरत्व में विश्वास करेंगे या अपने पित्रों के अविश्वास को अपनाएँगे।PPHin 418.2

    अब वे कनान की पहाड़ियों को देख सकते थे। कुछ दिन और चलने के पश्चात वे प्रतिज्ञा के प्रदेश की सीमा पर पहुँच जाने वाले थे। वह एदोम से जो ऐसाब के वंशजो का था, और जिसमें से कनान का निर्धारित मार्ग होकर निकलता था, कुछ ही दूरी पर थे। मूसा को निर्देश दे दिया गया था, “तुम धूमकर उत्तर की ओर चलो। और तू प्रजा के लोगों को मेरी यह आज्ञा सुना कि तुम सेईर के निवासी अपने भाई एसावियों की सीमा के पास से होकर जाने पर हो, और वे तुम से डर जाएंगे। तुम उनसे भोजन मोल लेकर खा सकोगे, और मोल देकर क॒ओं से पानी भरकर पी सकोगे।” व्यवस्थाविवरण 2:3-6। यह निर्देश यह समझाने के लिये पर्याप्त थे कि उनका पानी का प्रयोजन क्यों समाप्त कर दिया गया था, वे कनान देश को एक सीधे मार्ग पर उपजाऊ और जलयुक्‍त देश में से होकर निकलने को थे। परमेश्वर ने उन्हें एदोम में से होकर निकलने वाले बाधारहित यात्रा, भोजन वस्तु खरीदने के अवसर और सेना के लियेपर्याप्त जल का आश्वासन दिया था। जल के चमत्कारी प्रवाह का थम जाना, उनके बीहड़ में भटकने के अन्त के रूप में, प्रसन्‍नता का कारण होना चाहिये था। यदि वे अविश्वास में अन्धे न हुए होते तो वे यह समझ जाते। लेकिन जिस अवसर को परमेश्वर की प्रतिज्ञा का पूरा होने का प्रमाण होने चाहिये था, उसे सन्देह करने और कड़कड़ाने का अवसर बना दिया गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों लोग इस आशा को खो चुके थे कि परमेश्वर उन्हें कनान का स्वामित्व देगा और वे बीहड़ में मिली आशीषों के लिये चिल्लाने लगे।PPHin 419.1

    कनान में प्रवेश करने से पूर्व, उन्हें यह प्रमाणित करना था कि वे परमेश्वर की प्रतिज्ञा में विश्वास करते थे। उनके एदोम पहुँचने से पहले पानी का बहना बन्द हो गया। यहाँ उनके पास दृष्टि के बजाय विश्वास के द्वारा चलने का अवसर था। लेकिन पहली परीक्षा ने उसी उपद्रवी, कृतज्ञहीन भावना को विकसित किया जैसी उनके पितरों द्वारा प्रदर्शित की गई थी। जैसे ही छावनी में पानी के लिये हाहाकार सुनाई पड़ा, वे उनके लिये इतने वर्षो से आवश्यकताओं को पूरी करने वाले हाथ को ही भूल गए, और सहायता के लिये परमेश्वर के पास जाने के बजाए, अपनी निराशा में यह कहकर, परमेश्वर के विरूद्ध बड़बड़ाने लगे, “भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते, जब हमारे भाई यहोवा के सामने मर गए ।।”-गिनती 20:3। इसका तात्पर्य यह है वे चाहते थे किवे भी उस संख्या में होते जो कोरह के विद्रोह में नष्ट हो गए थे।PPHin 419.2

    उनकी चिल्लाहट मूसा और हारून की ओर थी, “तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल ने क्‍यों ले आए हो कि हम अपने पशुओं समेत यहाँ मर जाएँ । और तुम ने हम को मिस्र से क्‍यों निकालकर इस बुरे स्थान में पहुँचाया हैं? यहां तो बीज, या अंजीर, या दाखलता, या अनार, कुछ नहीं है, यहां तक कि पीने का कुछ पानी भी नहीं है।PPHin 419.3

    तब अगुवे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जाकर अपने मुह के बल गिरे। फिर से “यहोवा का तेज उनको दिखाई दिया” और मूसा को निर्देश दिया गया, “उस लाठी को ले, और तू अपने भाई हारून समेत मण्डली को इकटठा करके उनके देखते हुए उस चट्टान से बात कर, तब वह अपना जल देगी, इस प्रकार से तू चट्टान में से जल निकाल कर मण्डली के लोगों के लिये ला।PPHin 420.1

    दोनों भाई मण्डली के आगे-आगे चले। मूसा के हाथ में परमेश्वर की लाठी थी। अब वे वृद्ध हो चले थे। अत्यन्त लम्बे समय से उन्होंने इज़राइल के हठीलेपन और अतिक्रमण को सहन किया था, लेकिन अब अन्त में, मूसा का धेर्य टूट गया। उसने कहा, “हे दंगा करने वालों सुनो, क्या हम को इस चटूटान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा?” और चट्टान से बात करने के बजाय, जैसे कि परमेश्वर ने आदेश दिया था, उसने लाठी दो बार चट॒टान पर मारी।PPHin 420.2

    चट्टान में से मण्डली को सन्तुष्ट करने के लियेपानी बहुतायत से फूट निकला। लेकिन एक गम्भीर गलती की गईं थी। मूसा ने चिड़चिड़ी भावना से वह वाक्य कहा था। उसके कहे शब्द पवित्र कोध की अभिव्यक्ति ना होकर मानवीय आवेग का वचन था क्‍योंकि परमेश्वर का अपमान हुआ था। ‘हे दंगा करने वालों सुनो, “उसने कहा था। यह आरोप सही था, लेकिन सत्य को भी आवेग या अधीरता से नहीं कहना चाहिये। जब परमेश्वर ने मूसा को इज़राइल पर उनके विद्रोह का दोषारोपण करने को कहा, तो वह आज्ञा उसके लिये कष्टदायक थी और इज़राइलियों के लिये भी असहनीय थी, लेकिन परमेश्वर ने सन्देश देने में उसकी सहायता की। लेकिन जब मूसा ने उन पर आरोप लगाना स्वयं के ऊपर ले लिया, तो उसने परमेश्वर के आत्मा को दुःख पहुँचाया और लोगों के लिये हानिकारक ठहरा। उसमें धेर्य और आत्म-संयम का अभाव स्पष्ट था। इस प्रकार लोगों को प्रश्न करने का अवसर मिल गया कि उसका पहले वाला तरीका परमेश्वर के निर्देशन में था या नहीं और अपने पापों को पाप न मानने का बहाना मिल गया। वे कहने लगे कि उसका तरीका प्रारम्भ से ही आलोचना और आक्षेप का विषय रहा था। अब उन्हें दास के माध्यम से भेजे गए परमेश्वर की असहमति या फटकार का तिरस्कार करने का मनचाहा बहाना मिल गया।PPHin 420.3

    मूसा ने परमेश्वर में अविश्वास प्रकट किया। “क्या हम जल लेकर आए?” उसने प्रश्न किया, मानों परमेश्वर वह नहीं करता जिसकी उसने प्रतिज्ञा की थी। प्रभु ने दोनो भाईयों सेकहा, “तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया मुझे इज़राइलियों की दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया ।” जब पानी का बहना थम गया, लोगों के बड़बड़ाने और विद्रोह से परमेश्वर की प्रतिज्ञा के पूरिपूर्ण होने में स्वयं उनका विश्वास डगमगा गया था। पहली पीढ़ी को बीहड़ में विनाश का दण्ड उनके अविश्वास के कारण मिला था, लेकिन उनकी सन्तान में वही भावना प्रकट हुई। क्या ये भी प्रतिज्ञा को पाने में असफल होंगे? थके हुए और निराश, मूसा और हारून ने लोकप्रिय भावना के प्रवाह को रोकने का कोई प्रयत्न नहीं किया था। यदि उन्होंने स्वयं परमेश्वर में अटल विश्वास प्रकट किया होता तो उन्होंने इस विषय को लोगों के सम्मुख ऐसे प्रकाश में रखा होता कि वे इस परीक्षा में खरे उतरने के योग्य हो जाते। न्यायियों के तौर पर उनमें निहित अधिकार के निर्णयात्मक, तत्पर अभ्यास से, वे लोगों की कुड़कड़ाहट को शान्त कर सकते थे। यह उनका कर्तव्य था कि उनके लिये काम करने हेतु परमेश्वर के कहने से पहले, स्थिति में सुधार लाने के लिये वे अपनी क्षमतानुसार प्रत्येक प्रयत्न करे। यदि कादेश में बड़बड़ाहट पर तत्परता से रोक लगा दी गई होती, बुराईयों का कितना लम्बा ताँता बन्धने से रोका जा सकता था!PPHin 420.4

    अपने अविवेकपूर्ण कृत्य से मूसा ने उस सबक की नैतिक शक्ति समाप्त कर दी, जो परमेश्वर सिखाना चाहता था। चट॒टान, मसीह का प्रतीक था, जिस पर एक बार चोट की गईं, ठीक उसी प्रकार मसीह को भी एक बार बलिदान होना था [दूसरी बार चट॒टान से केवल बात करने की आवश्यकता थी, जैसे कि हमें आशीषों को केवल यीशु के नाम से मांगने की आवश्यकता होती है। चट्टान पर दूसरी बार चोट करने से मसीह के उस सुन्दर स्वरूप का महत्व नष्ट हो गया था।PPHin 421.1

    इससे बढ़कर, मूसा और हारून ने वह अधिकार धारण कर लिया था जो केवल मसीह का है। ईश्वरीय बीच-बचाव की आवश्यकता ने अवसर को धार्मिक किया का रूप दे दिया और इज़राइल के अगुवों को इसे परमेश्वर के प्रति आदर से लोगों को प्रभावित करने के लिये और उसकी अच्छाई और समार्थ्य में उनके विश्वास को वृढ़ करने के लिये संशोधित करना चाहिये था। जब उन्होंने कोधित होकर कहा, “क्या हम इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालकर लाए”? उन्होंने स्वयं को परमेश्वर के स्थान पर रख दिया, मानो सामर्थ्य स्वयं उन्ही में विद्यमान थी, जबकि वे मानवीय दुर्बलताओं और भावावेश से युक्‍त मनुष्य थे। लोगों की लगातार बड़बड़ाहट से थका हुआ, मूसा अपने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को भूल गया और ईश्वरीय सामर्थ्य के अभाव में उसके लिये मानवीय दुर्बलता के प्रदर्शन द्वारा अपने कीर्तिमान को क्षति पहुँचाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। जो व्यक्ति अपना कार्य सम्पन्न करने तक शुद्ध, दृढ़ और निःस्वार्थ रह सकता था, पराजित हो चुका था। इज़राइल की प्रजा के सम्मुख परमेश्वर का अनादर हुआ था, उस समय जब उसकी अत्याधिक प्रशंसा और महिमाकी जानी चाहिये थी।PPHin 421.2

    इस अवसर पर परमेश्वर ने उन पर दण्डाज्ञा की घोषणा नहीं की जिनकी युक्ति ने मूसा और हारून को इस प्रकार उत्तेजित किया था। सारी ताड़ना अगुवों को मिली। जो परमेश्वर के प्रतिनिधियों के रूप में खड़े हुए थे, उन्होंने उसका मान नहीं रखा था। मूसा और हारून स्वयं व्यथित थे, इस तथ्य को अनदेखा कर कि लोगो का बुड़बुड़ाना उनके प्रति नहीं वरन्‌ परमेश्वर के विरूद्ध था। अपने ही बारे में सोचने से, स्वयं से सहानुभूति रख कर, वे अनजाने में पाप में पड़ गये और लोगों के सम्मुख उनके पाप परमेश्वर के सम्मुख रखने में असफल रहे।PPHin 422.1

    तत्काल घोषित दण्डाज्ञा अत्यन्त अपमानजनक और कठोर थी। “परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, “तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया और मुझे इज़राइलियों की दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिये तुम इस मण्डली को उस देश में पहुँचाने न पाओगे जिसे मैंने उन्हें दिया है।” विद्रोही इज़राइल के साथ उन्हें यरदान पार करने से पहले मृत्यु को प्राप्त होना था। यदि ताड़ना और ईश्वरीय चेतावनी के होते हुए, मूसा और हारून आवेशपूर्ण भावना में लिप्त होते या स्वाभिमान को संजोय रखते, तो उनका दोष और भी गम्भीर हो जाता। लेकिन उन पर स्वैच्छिक या जानबूझकर किये गए पाप को आरोप नहीं लगा, क्‍योंकि वे अचानक आई परीक्षा में पड़ गए थे और उनका पश्चताप हार्दिक और तत्काल था। परमेश्वर ने उनके प्रायश्चित को स्वीकार किया, यद्यपि उनका पाप लोगों में क्षति पहुँचा सकता था उसकी दण्डाज्ञा को क्षमा नहीं किया जा सकता था।PPHin 422.2

    मूसा ने अपने दण्ड को गुप्त नहीं रखा, बल्कि लोगों से कहा कि क्‍योंकि वह परमेश्वर को महिमा पहुँचाने में असफल रहा, इसलिये वह उनका प्रतिज्ञा के देश में नेतृत्व नहीं कर सकता था। उसने उन्हें उसको दी गई दण्डाज्ञा पर ध्यान देने को कहा, और उसके बाद मनन करने को कहा कि जिस दण्डाज्ञा के लिये वे अपने पापों के कारणवश दोषी थे उसका आरोप एक तुच्छ मनुष्य पर लगाकर बड़बड़ाने को परमेश्वर किस तरह सहन करेगा। उसने उन्हें यह भी बताया कि किस तरह उसने दण्डाज्ञा की क्षमा के लिये परमेश्वर से विनती की थी, लेकिन उसकी विनती स्वीकार नहीं की गई।” परन्तु यहोवा तुम्हारे कारण मुझ से रूष्ठ हो गया और मेरी न सुनी ।”-व्यवस्थाविवरण 3:26 ।PPHin 422.3

    परीक्षा या कठिनाई के प्रत्येक अवसर पर इज़राइली मूसा पर मिस्र से उन्हें लिवा लाने का आरोप लगाने को तत्पर रहते थे, मानो परमेश्वर की इस विषय में कोई भूमिका नही थी। अपनी सभी यात्राओं के दौरान जब मार्ग में आई कठिनाईयों की शिकायत की थी और अपने अगुवों के विरूद्ध कुड़कुड़ाए थे, तब मूसा ने कहा था, “तुम्हारा बुड़बुड़ाना परमेश्वर पर है, वो में नहीं, वरन्‌ परमेश्वर है जिसने तुम्हें छुटकारा दिलाया है।” लेकिन चट्टान के सम्मुख उसके ये अविवेकपूर्ण शब्द, “क्या हम जल निकालकर लाएँ”?उन पर लगाए गए लोगों के आरोप का वास्तविक अंगीकार था, और उनके अविश्वास की पुष्टि करता था और उनकी बुड़बुड़ाहट को सही ठहराता था। प्रतिज्ञा के देश में मूसा का प्रवेश निषेध कर, परमेश्वर उनके मनों से यह प्रभाव हमेशा के लिये मिटा देना चाहता था। इसमें अचूक प्रमाण था कि मूसा उनका अगुवा नहीं था वरन्‌ वह स्वर्गदूत जिसके बारे में परमेश्वर ने कहा, “सुन, मैं एक दूत तेरे आगे-आगे भेजता हूँ जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा, और जिस स्थान को मैं ने तैयार किया है उसमें तुझे पहुँचाएगा। उसके सामने सावधान रहा, और उसकी बात मानना........इसलिये कि उसमें मेरा नाम रहता है ।”-निर्गमन 23:20,21 ।PPHin 422.4

    मूसा ने कहा, “यहोवा तुम्हारे कारण मुझसे रूष्ठ हो गया।” सभी आँखें मूसा पर लगी हुई थी और उसके पाप की परछाईं परमेश्वर पर पड़ी, जिसने उसे अपने लोगों का अगुवा नियुकक्‍त किया था। पाप पूरी प्रजा को ज्ञात था, और यदि इसे गम्भीरता से नहीं लिया जाता तो वो इस धारणा को जन्म देता कि महत्वपूर्ण पदों वालों में उकसाहत की अति की स्थिति में अविश्वास और अधीरता को क्षमा किया जा सकता है। लेकिन जब यह घोषण की गई कि उस एक पाप के कारणवश हारून और मूसा कनान प्रदेश में प्रवेश नहीं कर सकते थे, लेकिन लोगजान गये कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं लेता, और यह कि वहआज्ञा का उल्लंघन करने वाले को अवश्य ही दण्डित करेगा।PPHin 423.1

    इज़राइल का इतिहास, आने वाली पीढ़ियों के लिये चेतावनी और निर्देशन के लिये उल्लिखित किया जाना था। भविष्य की पीढ़ियों के लिये स्वर्ग के परमेश्वर को एक निष्पक्ष शासक के रूप में देखना आवश्यक था, जो पाप को कभी भी न्यायसंगत नहीं ठहराता है। लेकिन बहुत कम है जो पाप की अत्यधिक पापमयता को समझते है। मनुष्य स्वयं को सांत्वना देता है कि परमेश्वर इतना भला है कि वह आज्ञा उललघंन करने वाले को दण्ड नहीं देगा। लेकिन बाइबल के इतिहास के प्रकाश में यह स्पष्ट है कि परमेश्वर की भलाई और उसका प्रेम उसे पाप को विश्व की शान्ति और खुशहाली के लिये घातक बुराई मानकर, वैसा ही बर्ताव करने को वचनबद्ध करता है।PPHin 423.2

    मूसा की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता भी उसकी गलती के प्रतिफल को टाल नहीं सके। परमेश्वर ने लोगों के इससे गम्भीर पाप भी क्षमा किये थे, लेकिन वह अगुवे के पापों के साथ वैसा बर्ताव नहीं कर सकता था जैसा कि उसका अनुसरण करने वालों के साथ करता ।उसने मूसा को धरती के सभी अन्य पुरूषों से अधिक सम्मानीय ठहराया था। उसने अपना तेज उस पर प्रकट किया था, और उसके माध्यम से अपनी आज्ञाओं को इज़राइल तक पहुँचाया था। मूसा को अधिक मात्रा में प्रकाश और ज्ञान का लाभ उठाया था, इसलिये उसका पाप और गम्भीर हो गया था। पिछली सत्यनिष्ठा एक गलत कृत्य की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकती। मनुष्य को जितने अधिक विशेषाधिकार और प्रकाश प्रदान किये जाते हैं, उतना ही बड़ा उनका उत्तरदायित्व होता है, उसकी असफलता उतनी ही भारी होती है, और उसका दण्ड उतना ही कठोर होता है। PPHin 423.3

    मनुष्य के दृष्टिकोण से, मूसा किसी जघन्य अपराध का दोषी नहीं था, उसका पाप साधारणतया होने वाले पापों में एक था। भजन संहिता में 106:33में कहा गया है, “मूसा बिना सोचे बोल उठा।” मानवीय निर्णय के अनुसार यह साधारण प्रतीत हो सकता है, लेकिन यदि परमेश्वर ने अपने सबसे निष्ठावान और सम्मानीय दास इस पाप के साथ इतनी कठोरता से व्यवहार किया, वह अन्य व्यक्तियों में इसे क्षमा नहीं करेगा। आत्म प्रशंसा की भावना, अपने भाई-बन्धुओं की निंदा करने की प्रवृति, परमेश्वर को अप्रसन्‍न करती है। जो इन पापों में पड़ते है, वे परमेश्वर के काम को सन्देहास्पद बना देते हैं, और सन्देहवादियों को उनके अविश्वास का बहाना दे देते है। जितना महत्वपूर्ण किसी का पद, और जितना अधिक उसका प्रभाव होता है, उसे दीनता और धेर्यशीलता विकसित करने की उतनी ही अधिक आवश्यकता होती है।PPHin 424.1

    यदि परमेश्वर की सन्‍तानों को विशेषकर उन्हें जो उत्तरदायित्व वाले पदों पर कार्यरत है, परमेश्वर को द्वारा महिमा को स्वयं ले लेने को मनाया जा सकता है, तो शैतान अत्यन्त प्रसन्‍न होता है। उसने विजय पा ली होती है। इसी प्रकार उसका पतन हुआ था। इसी प्रकार वह दूसरे को विनाश की ओर प्रलोभित करने में सबसे अधिक सफल होता है। हमें शैतान की युक्तियों से सावधान करने के लिये परमेश्वर ने अपने वचन में आत्म-प्रशंसा के खतरे का ज्ञान देने के लिये सबक दिये है। हमारे स्वभाव की ऐसी कोई तीव्र इच्छा नहीं, मस्तिष्क की ऐसी कोई क्षमता या हृदय को कोई ऐसा झुकाव नहीं, जिसे प्रत्येक क्षण, परमेश्वर के आत्मा के नियन्त्रण में होने की आवश्यकता ना हो। मनुष्य को परमेश्वर द्वारा दी गई ऐसी कोई आशीष नहीं, ना ही उसके द्वारा अनुमति प्राप्त कोई परीक्षा है, सिवाय इसके कि यदि हम शैतान को तनिक भी सुवअसर दे तो, वह हमें बर्बाद करने और सताने व प्रलोमित के लिये, इन्हीं का प्रयोग कर सकता है और करेगा। अत: किसी के पास कितना ही आध्यात्मिक प्रकाश क्‍यों ना हो; उसे कितनी ही आशीषें और परमेश्वर की कृपा दृष्टि प्राप्त क्यों न हो, उसे परमेश्वर के सम्मुख सर्वदा दीन होकर रहना चाहिये, और यह प्रार्थना करते रहने चाहिये कि परमेश्वर उसके प्रत्येक विचार को निर्देशित करेगा और उसकी प्रत्येक तीव्र इच्छा को नियन्त्रित करेगा।PPHin 424.2

    वे सब जो धार्मिकता का दावा करते हैं, आत्मासुरक्षा के लिये और सबसे अधिक उकसाहट की स्थिति में आत्मा-संयम का अभ्यास करने के लिये कर्त॑व्यबद्ध है। मूसा के ऊपर रखे गये उत्तरदायित्व को बोझ अधिक था, कुछ ही लोग होंगे जिन्हें उसके समान इतनी कठोरता से परखा जाएगा, फिर भी उसके पाप की क्षमा के लिये इसकी अनुमति नहीं दी गईं। परमेश्वर ने अपने लोगों के लिये बहुतायत से प्रयोजन किया है, यदि वे उसके सामर्थ्य पर निर्भर करेंगे, तो वे कभी भी परिस्थितियों को खिलौना नहीं बनेंगे। सबसे मोहक प्रलोभन भी पाप को क्षमा नहीं दिला सकता । मन और मस्तिष्क पर सहन करने को कितना ही दबाव क्‍यों न हो, आज्ञा उललघंन हमारा निजी क॒त्य है। किसी को पाप करने के लिये बाध्य करना पृथ्वी या नरक के बस में नहीं हैं। शैतान हमारे दुर्बल पक्ष पर प्रहार करता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि हम पराजित हों। आक्रमण कितना ही अप्रत्याशित या सशक्त क्‍यों न हो, परमेश्वर ने हमारे लिये सहायता प्रदान की है, उसकी सामर्थ्य से हम विजय प्राप्त कर सकते हें PPHin 425.1