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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 41—यरदन में स्वधर्म-त्याग

    यह अध्याय गिनती 25 पर आधारित है

    आनन्दित ह्दयों और परमेश्वर में नवीनीकृत विश्वास के साथ इज़राइल की सेनाएं बाशान से लौट आई थी। उन्होंने लाभप्रद भू-खण्ड पर अधिकार प्राप्त कर लिया था और वे कनान पर तत्काल विजय पाने के लिये आश्वस्त थे। उनके और प्रतिज्ञा के देश के बीच में केवल यरदन नदी थी। नदी के पार एक उपजाऊ मैदान था जो हरियाली से आवृत था, कई झरनों से प्रवाहित धाराओं से तरित था और ताड़ के घने वृक्षों से आच्छादित था। मैदान की पश्चिमी सीमा पर यरीहो के महल और मीनारें थीं जो ताड़ की वृक्षवाटिकाओं से इतने घिरे हुए थे कि यरीहो को ‘ताड़ के पेड़ो का शहर’ कहा जाता था।PPHin 462.1

    यरीहो के पूरब में, जिस पठार पर वे चल रहे थे, उसके और नदी के बीच एक मैदान था जो कई मील चौड़ा था और नदी के किनारे कुछ दूरी तक फैला हुआ था। इस परिरक्षित घाटी की जलवायु, उष्णकटिबन्ध की जलवायु के समान थी, और यहां शित्तीम या कीकी के वृक्षों की भरमार थी जिससे इस मैदान का नाम, ‘शित्तीम की घाटी” पड़ा। इज़राइलियों ने यहां पड़ाव डाला, और नदी के किनारे की वृक्ष वाटिकाओं उन्हें एक उपयुक्त आश्रयस्थल मिला।PPHin 462.2

    लेकिन इस आकर्षक परिवेश के मध्य उनका सामना एक ऐसी बुराई से होना था जो बीहड़ के जंगली जानवरोंया हथियारबंध सैनिकों की शक्तिशाली सेनाओं से भी अधिक घातक थी। प्राकृतिक सुविधाओं से सम्पन्न, वह देश वहाँ के निवासियों द्वारा दूषित कर दिया गया था। मुख्य देवता, बाल की सार्वजनिक आराधना में, सबसे अपमानजनक और अधर्मी दृश्यों को अभिनीत किया जाता था। हर तरफ मूर्तिपूजा और व्यभिचार के लिये विख्यात स्थान थे, उनके नाम ही लोगो के भ्रष्टाचार और दुष्टता के संकेतक थे। PPHin 462.3

    इस परिवेश ने इज़राइलियों पर मलिनकारी प्रभाव डाला। उनके मन लगातार प्रस्तावित भ्रष्ट विचारों से परिचित हो गए। उनके आरामदेह और निष्किय जीवन ने नीतिमग्रष्ट करने वाले प्रभाव उत्पन्न किये, और लगभग स्वयं से अनजान वे परमेश्वर से दूर हो रहे थे और उस अवस्था में आ रहे थे जिसमें वे आसानी से प्रलोभन का शिकार हो जाते। यरदन के किनारे पड़ाव डालते समय, मूसा कनान में स्थापित होने की तैयारी कर रहा था। इस कार्य में महान अगुवा पूरी तरह व्यस्त था, लेकिन लोगों के लिये असमंजस और प्रत्याशा का यह समय बहुत कष्टकर था, और कुछ ही सप्ताह बीते थे कि उनका इतिहास सदाचार और निष्ठा से हटकरअत्यन्त भयावह अपसरण से दूषित हो गया।PPHin 462.4

    प्रारम्भ में इज़राइलियों और उनके मूर्तिपूजक पड़ोसियों के बीच सीमित संपर्क था, लेकिन कुछ समय पश्चात मिश्यानी स्त्रियाँ चुपके से छावनी में आने लगी। उनके आने से कोई खलबली नहीं मची, और उनकी युक्‍्तियाँ इतने गुप्त रूप से संचालित की थी कि मूसा का ध्यान इस विषय की ओर नहीं लाया गया। इब्रानियों के साथ संगति में, इन स्त्रियोंका लक्ष्य इब्रियों को परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने के लिये उकसाना उनका ध्यान मूर्तिपूर्जक विधियों और रीति-रिवाजों की ओर आकर्षित करना और उन्हें मूर्तिपूजा में जाना था। ये लक्ष्य, मित्रता के स्वांग में ध्यान से संगुप्त थे, ताकि इनका सन्देह लोगों के अभिभावकों को भी नहीं हुआ। PPHin 463.1

    बिलाम के परामर्श अनुसार, मोआब के राजा ने मोआबी देवताओं के सम्मान में एक भव्य पर्व का आयोजन किया, और गुप्त रूप से प्रबन्ध किया गया कि बिलाम इज़राइलियों को इस पर्व में सम्मिलित होने को मनाए। बड़ी संख्या में लोग इस उत्सव को देखने के लिये उसके साथ हो लिये। उन्होंने निषिद्ध क्षेत्र में जाने का दुस्साहस किया, और शैतान के जाल में फेस गए। नृत्य और संगीत से मोहित, और अधर्मी स्त्रियों के सौंदर्य से आकर्षित होकर, उन्होंने यहोवा के प्रति अपनी स्वामिभक्ति को त्याग दिया। जैसे-जैसे वे आमोद-प्रमोद और सहभोज में सम्मिलित हुए, मदिरापान ने उनकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया और आत्म-संयम के बाँध को तोड़ दिया। आवेग के वश में, अपनी अंतरात्मा को अश्लीलता से मलिन कर वे मूर्तियों को दण्डवत करने के लिये तैयार हो गए।PPHin 463.2

    कुछ ही समय में इज़राइल की छावनी में, घातक रोग की तरह यह जहर फैल गया। जो युद्ध में अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते थे, वे अधर्मी स्त्रियों के छल-कपट से पराजित हो गए। लोग प्रेमान्ध से प्रतीत हो रहे थे। प्रतिष्ठित व्यक्ति और प्रधान आज्ञा का उल्लंघन करने मेंसर्वप्रथम थे, और इतने लोग दोषी थे कि स्वधर्म त्याग पूरे देश में सर्वव्यापी हो गया। “इज़राइली बालपोर देवता को पूजने लगे।” जब मूसा को इस पाप को देखने के लिये जागृत किया गया, उनके शत्रुओं के षड़यन्त्र इतने सफल हो गए थे कि पोर पर्वत पर होने वाली व्यभिचारी पूजा में इज़राइली केवल सम्मिलित ही नहीं हो रहे थे, वरन्‌ मूर्ति-पूजा सम्बन्धित विधियाँ इज़राइल के डेरों में भी पालन की जाने लगी थी। वृद्ध अगुवा कोध से भर गया, और परमेश्वर का कोप भड़क उठा।PPHin 463.3

    उनकी अधर्मी प्रथाओं ने इज़राइलियों के लिये वह कर दिया जो बिलाम का जादू-टोना नहीं कर सका। इन प्रथाओं ने उन्हें परमेश्वर से अलग कर दिया। शीघ्र आने वाली दण्डाज्ञाओं के द्वारा लोगों को उनके पाप की घोरता के प्रति जागरूक किया गया। छावनी में ऐसी महामारी फैली कि उसमें लाखों लोग मारे गए। परमेश्वर ने आदेश दिया कि स्वधर्म त्याग के अगुवो को न्यायियों द्वारा मृत्यु दण्ड दिया जाए। आदेश का तत्परता से पालन किया गया। अपराधियों का वध किया गया, और उनके शवों को समस्त इज़राइल की दृष्टि में टॉगा गया, ताकि प्रजा, यह देखकर कि उनके अगुवों के साथ इतना कठोर व्यवहार किया गया, उनके पाप के प्रति परमेश्वर की घृणा और उनके विरूद्ध उसके कोध के प्रकोप का गहराई से आभास कर सके। PPHin 464.1

    सभी को लगा कि दण्ड न्यायसंगत था, और लोग शीघ्र ही मिलापवाले तम्बू में गए और दीन होकर आँसुओं के साथ अपने पापों का अंगीकार किया। जब वे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, परमेश्वर के सम्मुख रो रहे थे, जब महामारी मृत्यु सम्बन्धित अपना कार्य कर रही थी, और न्यायी अपने कठोर कार्यभार को कार्यन्वित कर रहे थे, इज़राइल का एक प्रधान, जिग्नरी, ‘मिद्यान के एक घराने” की राजकमारी, एक मिद्यानी कसबी के साथ छावनी में निडरतापूर्वक आया और उसे अपने तम्बू में ले गया। पाप कभी भीइससे अधिकनिडरऔर उद्यण्डनहीं था ।नशे में चूर, जिम्नी ने अपने ‘सदोम समान पाप’ की घोषणा की, और अपनी निरलज्जता में आनन्दित हुआ । याजकों और अगुवों ने दीन व दुखी होकर, “वेदी और आँगन के बीच” रोते हुए और परमेश्वर से उसके लोगों को दण्डित ना करने की विनती करते हुए दण्डवत किया था, जबकि पूरी मण्डली की उपस्थिति में, इज़राइल के इस प्रधान ने अपने पाप का प्रदर्शन किया, मानों परमेश्वर के प्रतिशोध को ललकारना चाहता हो और छावनी के न्यायियों की हँसी उड़ाना चाहता हो। महायाजक एलीआजार का पुत्र पीनहास, मण्डली के मध्य से उठा, और हाथ में एक बरछी लेकर, “उस इज़राईली पुरूष के डेरे में भीतर गया” और दोनो को मार दिया। इस पर मरी थम गईं, और जिस याजक ने पवित्र आदेश को कार्यान्वित किया था, उसे इज़राइल के सम्मुख सम्मानित किया गया, और उसको और उसके घराने को हमेशा केलिये याजकता सौंपी गई। PPHin 464.2

    पवित्र सन्देश था, “पीनहास ने मेरी जलजलाहट को इज़राइलियों पर से दूर किया, इसलिये तू कह दे कि में उससे शान्ति की वाचा बाँधता हूँ. और वह उसके लिये, और उसके बाद उसके वंश के लिये, सदा के याजकपद की वाचा होगी, क्‍योंकि उसमें अपने परमेश्वर के लिये जलन उठी, और उसने इज़राइलियों के लिये प्रायश्चित किया।PPHin 465.1

    शित्तिम में पाप के कारण इज़राइलियों पर आईं दण्डाज्ञा ने उस विशाल समुदाय के उत्तरजीवियों को नष्ट कर दिया, जिन्होंने चालीस वर्ष पूर्व अपने ऊपर ली थी, “वे अवश्य ही बीहड़ में मृत्यु को प्राप्त होंगे।” यरदन की तराईयों में पड़ाव के दौरान, पत्रि निर्दशानुसार की गई जनगणना से ज्ञात हुआ कि, “जिन इज़राइलियों को मूसा औरयाजक हारून ने सिने के बीहड़ में गिना था, उनमें से एक भी पुरूष इस समय के गिने हुओं में न था.........यपुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़, उनमें से एक भी पुरूष नहीं बचा।”-गिनती 26:64,65।PPHin 465.2

    परमेश्वर ने इज़राइल पर दण्डाज्ञा भेजी क्‍योंकि वे मिद्यानियों के बहकावे में आ गए, लेकिन प्रलोभन देने वाले ईश्वरीय न्याय के प्रकोप से बचकर नहीं निकल सकते थे। एमोलिकियों ने इज़राइल पर रपीदीम में आक्रमण किया था और सेना के पिछले वर्ग के थक और क्षीण लोगों पर चढ़ाई की थी, लेकिन जिन मिद्यानियों ने उन्हें पाप में छलावे द्वारा घसीटा उन्हें परमेश्वर की दण्डाज्ञा का शीघ्र ही एहसास कराया गया।क्योंकि वे सबसे खतरनाक शत्रु थे। “मिद्यानियों से इज़राइलियों का बदला ले (गिनती 31:2),मूसा को यह परमेश्वर का आदेश था, “बाद को तू अपने लोगों से जा मिलेगा।” इस जनादेश का तत्परता से पालन किया गया। प्रत्येक घराने से एक हजार पुरूषों को चुना गया और उन्हें पीनहास के नेतृत्व में बाहर भेजा गया।” और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, उसके अनुसार उन्होंने मिद्यानियों से युद्ध करके सब पुरूषों को घात किया। जिन लोगों को उन्होंने मार डाला, उनमें पांच मिद्यानी राजा भी थे? उन्होंने बोर के पुत्र बिलाम को भी तलवार से मार डाला ।”-गिनती 31:7,8 । आक्रमण करने वाली सेना के द्वारा बन्दी बनाई गई महिलाओं को मूसा के आदेश पर, मृत्यु के घाट उतार दिया गया और उन्हें इज़राइल के शत्रुओं में सबसे अधिक दोषी और खतरनाक ठहराया गया।PPHin 465.3

    परमेश्वर के लोगों के विरूद्ध उत्पात की योजना बनाने वालों का ऐसा अन्त हुआ। भजन संहिता में 9:18 में लिखा है, “अन्य जातिवाली ने जो कुआ खोदा था, उसी में वे आप गिर पड़े, जो जाल उन्होंने लगाया था, उसमें उन्ही का पाँव फेस गया ।”-भजन संहिता 9:15। “क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा, वह अपनी धरोहर को नहीं छोड़ेगा। परन्तु न्याय फिर धर्म के अनुसार किया जाएगा।” ” वे धर्मी का प्राण लेने को दल बाँधते हैं, और निर्दोष को प्राणदण्ड देते हैं।” “उसने उनका अनर्थ उन्हीं पर लौटाया है, और वह उन्हें उन्ही की बुराई के द्वारा नष्ट करेगा ।-भजन संहिता 94:14,15,21,23।PPHin 466.1

    जब बिलाम को इब्रियों को श्राप देने के लिये बुलाया गया, वह अपने जादू-टोने से उनको क्षति नहीं पहुँचा सका, क्‍योंकि प्रभु ने “याकूब में अनर्थ नहीं पाया” था, और ना ही उसने “इज़राइल में श्रष्टता देखी थी।”-गिनती 23:21,23 । लेकिन जब प्रलोभन में पड़कर उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा का उललघंन किया, उनका प्रतिरक्षक उनसे दूर हो गया। जब परमेश्वर के लोग उसकी आज्ञाओं के प्रति निष्ठावान होते हैं, तो “कोई मंत्र याकूब पर नहीं चल सकता और इज़राइल के विरूद्ध कोई भविष्यवाणी है।” इस कारण उन्हें छल-कपट से पाये जाने के लिये शैतान की सम्पूर्ण शक्ति और कपटी युक्तियाँ प्रयोग में लाई जाती है। यदि परमेश्वर की व्यवस्था के संरक्षक होने का दावा करने वाले उसके सिद्धान्तों का उल्लंघन करने वाले बन जाते हैं, तो वे परमेश्वर से स्वयं को दूर कर लेते हैं, और वे अपने शत्रुओं के सम्मुख खड़े होने में असमर्थ होंगे।PPHin 466.2

    इज़राइली, जो मिद्यान के जादू-टोने या हथियारों से वशीभूत न हो सके, वे मिद्यान की भ्रष्ट स्त्रियों के शिकार हो गए। शैतान की सेवा टहल में प्राप्त, ऐसी है वह शक्ति, जो उस स्त्री ने आत्माओं को फँसाने और नष्ट करने के लिये प्रयोग की है। नीतिवचन 7:26में लिखा है, “क्योंकि बहुत से लोग उसने मार गिराए हैं। उसके घात किये हुओं की एक बड़ी सख्या है।” इसी प्रकार शेत की सनन्‍तान को उनकी निष्ठा से दूर किया गया, और वे पवित्र भ्रष्ट हो गए। इसी प्रकार यूसुफ को प्रलोभन दिया गया। इसी प्रकारइज़राइल के न्यायी, शिमशोन ने अपनी शक्ति को पलिश्तियों के हाथों खो दिया। यहां दाऊद ने ठोकर खाई। और सबसे बुद्धिमान राजा, सुलेमान, जिसे तीन बार परमेश्वर का प्रिय कहा गया था, आवेग का दास बना और उसने उसी सम्मोहन शक्ति के लिये अपनी सत्यनिष्ठा को बलिदान कर दिया।PPHin 467.1

    “परन्तु ये सब बातें, जो उन पर पड़ी, दृष्टांत की रीति पर थी, और वे हमारी चेतावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते है, लिखी गई है। इसलिये जो समझता है, “में स्थिर हूँ” वह चौकस रहे कि कहीं गिर न पड़े-1 कुरिन्थियो 10:11,12। शैतान भली भांति जानता है कि मनुष्य के हृदय में उसे किस बात को सम्बोधित करना है। वह जानता है- क्योंकि उसने हजारों वर्षो से पैशाचिक प्रगाढ़ता से अध्ययन किया है- प्रत्येक प्राणी में आसानी से प्रभावित होने वाले विषय, और सभी पीढियों में उसने इज़राइल के प्रधानों और शक्ति मनुष्यों को उन्हीं प्रलोभनों से पराजित किया है, जो बालपोर में इतने सफल रहे थे। तब से अब तक के युगों में अत्यन्त कमजोर व्यक्ति फैले हुए हैं जो कामुक अतिभोग की कमजोरी में फेस कर रह गये। जैसे-जैसे हम अन्तिम समय के समीप आते है, जब लोग स्वर्गीय कनान की सीमाओं पर खड़े है, पहले की तरह, शैतान उन्हें उस समृद्ध देश में प्रवेश करने से रोकने के लिये अपने प्रयत्नों को दुगना कर देगा। वह प्रत्येक मनुष्य केलिये जाल बिछाता है। वे केवल अनभिज्ञ और असम्य ही नहीं जिन्हें रक्षित होने की आवश्यकता है, शैतान अपने प्रलोभन उनके लिये भी तैयार करेगा, जो सबसे पवित्र कार्यों के लिये उच्च पदों पर आसीन है। यदि वह उनसे उनकी आत्मा को भ्रष्ट करवा सकता है, तो उनके द्वारा कई लोगों को नष्ट कर सकता है। आज भी वह उन्ही माध्यमों का प्रयोग करता है जो उसने तीन हजार वर्ष पूर्व अपनाए थे। सांसारिक मित्रता द्वारा, सौन्दर्य के आकर्षण से, भोग-विलास आमोद-प्रमोद, सहभोज या मदिरापान के माध्यम से वह सातवीं आज्ञा के उल्लंघन के लिये प्रलोभन देता है।PPHin 467.2

    इससे पहले कि वह उन्हें मूर्तिपूजा के लिये मनाता शैतान ने छल से इज़राइल को व्यभिचार के लिये भरमाया। जो परमेश्वर की छवि का निरादार करेंगे और अपने निजी शरीर में उसके मन्दिर को दूषित करेंगे, वे परमेश्वर के प्रति किसी भी अपमान से अपने दुष्ट हृदयों की मनोकामना को सन्तुष्ट करने में नहीं हिचकिचाएगें। कामुक अतिभोग विवेक को क्षीण और आत्मा को भ्रष्ट कर देता है। पाश्विक प्रवृति की सन्तुष्टि द्वारा नैतिक और मानसिक शक्तियाँ निष्किय हो जाती है, और आवेग के दास के लिये परमेश्वर की व्यवस्था के पवित्र दायित्व को जानना, प्रायश्चित का आभार मानना, और आत्मा का सही मूल्यांकन करना असम्भव है। भलाई, पवित्रता, सत्य, परमेश्वर के लिये श्रद्धा, पवित्र वस्तुओं के प्रति प्रेम-- वे सभी पवित्र लगावऔर शिष्ट इच्छाएं जो मनुष्य को स्वर्ग से जोड़ती हैं- कामुकता की अग्नि में भस्म हो जाती है। वह प्राणी एक कलंकित, उजाड़ बंजर भूमि, दुष्ट आत्माओं का गढ़ और “प्रत्येक अशुद्ध और घृणास्पद चिड़िया का पिंजरा” बन जाता है।” परमेश्वर के स्वरूप में सृजन किये हुए प्राणियों को पशुओं के स्तर पर उतार दिया जाता है।PPHin 468.1

    मूर्तिपूजकों के साथ संगति करने ओर उनके उत्सवों में सम्मिलित होने से इब्रियों ने परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन किया जिससे राष्ट्र पर दण्डाज्ञा आईं। आज भी मसीह के अनुयायियों को अधर्मियों की संगति में ले जाकर और उनके मनोरंजन में सम्मिलित कराकर, शैतान उन्हें पाप के लिये आकर्षित करने में सफल होता है। 2 कुरिन्थियों 6:17 में लिखा है, “उनके बीच में से निकलो और अलग रहो, और अशुद्ध वस्तु को मत छुओ ।” परमेश्वर आज भी अपने लोगों से सिद्धान्तों, आचरण और रीति-रिवाजो में संसार से अलग होने की उतनी ही अपेक्षा करता है, जितनी कि प्राचीन काल में इसने इज़राइल से की थी। यदि वे वचन की शिक्षा को निष्ठा से अपनाएँगे, तो यह विशिष्टता बनी रहेगी, अन्यथा यह नहीं हो सकता। इब्रियों को आत्मसंगत करने के विरूद्ध दी गई चेतावनी, मसीहीलोगों को अधर्मियों के रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुरूप होने की निषेधाज्ञा से अधिक प्रत्यक्ष और स्पष्ट नहीं थी। मसीह हमसे कहता है, “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है-1 यहुन्ना 2:5। “संसार से मित्रता करना परमेश्वर से बेर करना है? अतः जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह स्वयं को परमेश्वर का बैरी बनाता है”-याकूब 4:4। मसीह के अनुयायियों को स्वयं को पापियों से अलग करना है, और अपने संग-साथ का चयन तभी करना है जब उन पर उपकार करने का अवसर हो। जो हमारे ऊपर, हमें परमेश्वर से दूर करने के लिये प्रभाव डालते है, हम उनकी संगति से किनारा करने के लिये अत्यन्त निर्णायक नहीं हो सकते। “हमें परीक्षा में न पड़ने दे।” जब हम यह प्रार्थना करते है, हमे जहाँ सम्भव हो परीक्षा से दूर रहना है। PPHin 468.2

    जब इज़राइली दिखावटी शान्ति और सुरक्षा की अवस्था में थे, वे पाप में ले जाए गए। उन्होनें परमेश्वर को सदा अपने आगे नहीं रखा, प्रार्थना की उपेक्षा की, और आत्मविश्वास की भावना को पनपने दिया। सहजता और असंयम ने आत्मा के गढ़ को असुरक्षित कर दिया, और भ्रष्ट विचारों ने प्रवेश पाया। वे दीवारों के भीतर के देशद्रोही थे जिन्होंने सिद्धान्तों के गढ़ो को उखाड़ फेंका ओर इज़राइल को शैतान के वश में होने दिया। इसी प्रकार आज भी शैतान आत्मा को विनाश तक पहुँचाना चाहता है। इससे पहले कि मसीही खुला पाप करे, उसके हृदय में, संसार के लिये अज्ञात, एक लम्बी प्रारम्भिक कार्यविधि चलती है। मन शुद्धता और पवित्रता से एकाएक भ्रष्टाचार, दुष्टता और अपराध में नहीं उतर आता है। परमेश्वर के स्वरूप में सृजन किये हुओं को पाश्विक या शैतानी छवि में उतारने में समय लगता है। निहारने से हमबदल जाते हैं। अपवित्र विचारों का भोग करने से, मनुष्य अपने मन को इस तरह शिक्षित कर सकता है कि जिस पाप से उसने कभी घृणा की थी वही उसके मन को भाने लगेगा।PPHin 469.1

    शैतान प्रत्येक भ्रष्ट करने वाली बुराईयों और अपराध को लोकप्रिय करने के लिये हर साधन का प्रयोग कर रहा है। हम अपने शहरों की सड़को पर, किसी उपन्यास में प्रस्तुत या किसी विज्ञापन को देखे बिना नही चल सकते। मन को पाप के साथ परिचित होने की शिक्षा दी जाती है।PPHin 469.2

    तुच्छ व दुष्ट लोगों द्वारा अपनाए गए मार्गों को दैनिक पत्रिकाओं में लोगों के सम्मुख रखा जाता है और रोमांचक कथाओं के माध्यम से उनके जुनून को उत्तेजित किया जाता है। वे नीचतापूर्ण अपराधों के बारे में इतना सुनते और पढ़ते है, कि उनका पहले वाला अंतर्मन, जो दृश्यों से उत्पन्न डर से कॉपं जाता था, कठोर हो जाता है, और वे इन विषयों के बारे में अत्यधिक रूचि के साथ विचार करने लगते हैं।PPHin 469.3

    वर्तमान जगत और तथाकथित मसीही लोगों के भी कई लोकप्रिय मनोरंजनों का उद्देश्य वही होता है जो अधर्मियों का था। उनमें से कुछ ही ऐसे होते है जिनसे शैतान आत्माओं को नष्ट करने का ब्यौरा नहीं लेता। नाटक के माध्यम से वह बुराई को गौरवान्वित करने और आवेग को उत्तेजित करने के लिये सदियों से कार्य कर रहा है। सिद्धान्तों के प्रतिरोध को तोड़ने और कामुक अति भोग के लिये द्वार खोलने हेतु शैतान नृत्यशाला और उसका आकर्षक प्रदर्शन व विस्मयकारी संगीत, छद्दावेष, नृत्य और ताश खेलने की मेज का प्रयोग करता है। आमोद-प्रमोद के प्रत्येक समारोह में जहाँ घमण्ड को प्रोत्साहन दिया जाता है यास्वाभाविक इच्छा की पूर्ति की जाती है, जहाँ लोगों को परमेश्वर को भूलने और सात्विक रूचियों के प्रति उदासीन होने को प्रेरित किया जाता है, वहाँ शैतान आत्मा को अपनी जंजीर में जकड़ रहा होता है।PPHin 469.4

    नीतिवचन 4:23 में बुद्धिमान पुरूष का परामर्श है, “सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर, क्‍योंकि जीवन का मूल स्रोत वहीं है।” नीतिवचन 23:7में लिखा है, “जैसा मनुष्य अपने मन में विचार करता है, वैसा वह आप है।” पवित्र अनुग्रह से हृदय का नवीनीकरण करना चाहिये, अन्यथा जीवन की पवित्रता की अपेक्षा व्यर्थ होगी। जो भी मसीह के अनुग्रह के बिना एक सदाचारी व उत्कृष्ट चरित्र का निर्माण करने का प्रयत्न करता है, वह अस्थिर रेत पर अपना घर बना रहा है। प्रलोभन की भयानक आँधी में यह निश्चय ही गिर जाएगा। दाऊद की प्रार्थना प्रत्येक आत्मा का निवेदन होना चाहिये, “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा को नये सिरे से उत्पन्न कर ।”-भजन संहिता 51:10। और पवित्र वरदान के भागी बनकर हमें “परमेश्वर की समार्थ्य से विश्वास के द्वारा रक्षा”(1 पतरस 1:5)के होते हुए सब प्रकार से सन्‍्तोषप्रद बनाना है। PPHin 470.1

    फिर भी प्रलोभन का प्रतिरोध करने के लिये हमें एक कार्य करना है। जो शैतान की युक्तियों का शिकार नहीं होना चाहते उन्हें आत्मा के सभी मार्गों को सुरक्षित रखना चाहिये। जो अपवित्र विचारों का सुझाव देते हैं, उन सब चीजों को पढ़ने, देखने या सुनने से दूर रहना चाहिये। आत्मा के शत्रु द्वारा सुझाव के रूप में दिये हुए प्रत्येक विषय पर मनको भटकने के लिये नहीं छोड़ना चाहिये। प्रेरित पतरस कहता है, “इस कारण अपनी बुद्धि की कमर बांधकर, और सचेत रहकर... ...अपनी अज्ञानता के समय की पुरानी अभिलाषाओं के सदृश न बनो, पर जैसा तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चाल-चलन में पवित्र बनो ।-1 पतरस 1:13-15 ।फिलिप्पियों 4:8में पौलुस कहता है, “जो जो बातें सत्य उचित है, और जो जो बाते पवित्र है, और जो जो बातें सुहावनी है, और जो जो बाते मनभावनी है, अर्थात जो भी सदगुण और प्रशंसा की बाते हैं, उन पर ध्यान लगा।” इसके लिये हार्दिक प्रार्थना और निरंतर जागरूकता की आवश्यकता होगी । हमें पवित्र आत्मा के स्थायी प्रभाव का सहयोग चाहिये होगा, जो मन को स्वर्ग की ओर आकर्षित करेगा, और उसे पवित्र और शुद्ध चीजों पर मनन करने का अभ्यस्त बनाएगा। और हमें परमेश्वर के वचन का लगातार अध्ययन करना चाहिये। “युवा अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? परमेश्वर के वचन के अनुसार चल कर।” भजन लिखने वाला कहता है, “मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरूद्ध पाप न करूं। -भजन संहिता 119:9,11।PPHin 470.2

    बेतपोर में इज़राइल के पाप के कारणवश प्रजा पर परमेश्वर की दण्डाज्ञा आई और हालाँकि वही पाप इस युग में इतनी शीघ्रता से दण्डित न हो, लेकिन उनका प्रतिफल मिलना निश्चित है। 1 कुरिन्थियों 3:17में लिखा है, “यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नष्ट करेगा तो परमेश्वर उसे नष्ट करेगा।” प्रकृति ने इन अपराधों के लिये भयानकदण्डाज्ञाएं निर्धारित की है-वे दण्डाज्ञाएँ ,जो शीघ्र या विलम्ब से, आज्ञा उल्लंघन करने वालों को दी जाएगी। अन्य पापों की तुलना में इन पापों के कारण हमारी जाति का इतना भयंकर पतन हुआ, और संसार दुख और रोग की अति से श्रापित हुआ। मनुष्य अपने सहवासियों से अपने पाप को छुपाने में सफल हो सकता है, लेकिन वे कष्ट, रोग, मूर्खता या मृत्यु के रूप में उतना ही प्रतिफल पाएँगे। और इस जीवन के उस पार दण्डाज्ञा की कचहरी अविनाशी दंड के प्रतिफल को लिये खड़ी है। “ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य में वारिस नहीं होंगे” लेकिन शैतान और उसके दूतों के साथ उसका स्थान उस “आग की झील” में होगा जो “दूसरी मृत्यु है।”-(गलतियों 5:21, प्रकाशित वाक्य 20:14)PPHin 471.1

    नीतिवचन 5:3,4 में लिखा है, “पराई स्त्री के होठों से मधु टपकता है, ओर उसकी बाते तेल से भी चिकनी होती है, परन्तु परिणाममें यहजहरजेसीकड़वीऔर दो धारवाली तलवारजैसी तेज होतीहै।” इसी पुस्तक के पद 8-11 में लिखा हे, “ऐसी स्त्री से दूर ही रह, और उसकी ढयोढ़ी के पास भी न जाना, कही ऐसा न हो कि तू अपना यश औरों के हाथ, और अपना जीवन क्र जन के वश में कर दे, या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरे, और परदेसी मनुष्य तेरे परिश्रम का फल अपने घर में रखे, और तू अपने अन्तिम समय में जब कि तेरा शरीर क्षीण हो जाए, तब तूरोता बिलखता रह जाए ।” नीतिवचन 2:18,19में लिखा है, “उसका घर मृत्यु की ढलान पर है।” “जो उसके पास जाते है, उनमें से कोई भी लौटकर नहीं आता।” नीतिवचन 9:18 के अनुसार, “उसे स्त्री के अतिथि अघोलोक के निचले स्थानों में पहुँचे है।PPHin 471.2

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