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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 43—मूसा को मृत्यु

    यह अध्याय व्यवस्था विवरण 31-34 पर आधारित है

    उसके लोगों के साथ, परमेश्वर के सभी लेन-देनों में, उसका प्रेम और उसकी करूणा मिली हुईं है, जो उसके कठोर और निष्पक्ष न्याय का असाधारण प्रमाण है। इसे इब्रियों के इतिहास में उदाहरण सहित समझाया गया है। परमेश्वर ने इज़राइल को बहुत आशीषित किया है। उसके प्रति उसकी स्नेहपूर्ण करूणा को मर्मस्पर्शी ढंग से चित्रित किया गया है, “जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला-हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर मँडराती है, अपने पंख फैसलाकर उन्हें अपने परों पर उठा लेती है, वैसे ही यहोवा अकेला ही उसकी अगुवाई करता रहा ।” लेकिन फिर भी उन्हें उनके पापों के लिये कितना शीघ्र और कठोर दण्ड दिया गया। PPHin 481.1

    परमेश्वर का अनन्त प्रेम, एक पतित जाति को बचाने के लिये अपने इकलौते पुत्र की भेंट द्वारा प्रकट किया गया है। मसीह पृथ्वी पर अपने पिता के चरित्र को मनुष्य पर प्रकट करने के लिये आया, और उसका जीवन ईश्वरीय संवदेना और स्नेहशीलता से भरपूर था। और फिर भी मसीह स्वयं घोषणा करता हे, “जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या एक बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।”-मत्ती 5:18। यही वाणी जो धीरजवन्त, प्रेमपूर्ण विनती करते हुए पापी को उसके पास आने का और शान्ति और क्षमा प्राप्त करने का निमन्त्रण देती है, न्याय होने के समय उसकी करूणा का तिरस्कार करने वालों को कहेगी, “मेरेसामने से चले जाओ, हे शापित लोगों ।”-मत्ती 25:41 । सम्पूर्ण बाईबल में परमेश्वर को एक दयालु पिता ही नहीं वरन्‌ धर्मी न्यायाधीश के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि वह दया करने में और, “अधर्म और अपराध और पाप क्षमा” करने में आनन्दित होता है, फिर भी वह “दोषी को किसी प्रकार निर्दोष नहीं ठहराएगा।”-निर्गमन 34:7 ।PPHin 481.2

    सभी जातियों के राजा ने घोषणा की थी कि मूसा इज़राइल की मण्डली को समृद्ध देश में अगुवा बनकर नहीं ले जाएगा, और परमेश्वर के दास की आग्रहपूर्ण गिड़गिड़हाट उसकी दण्डाज्ञा में परिवर्तन न करा सकी। वह जानता था कि उसे मृत्यु को प्राप्त होना है। लेकिन एक क्षण के लिये भी वह इज़राइल के प्रति अपने दायित्व को नहीं भूला। उसने पूरी निष्ठा से मण्डली को प्रतिज्ञा की धरोहर में प्रवेश के लिये तैयार करने की चेष्ठा की थी। पवित्र आज्ञानुसार मूसा और यहोशू तम्बू में लौटे, और बादल का स्तम्भ आकर द्वार पर छा गया। यहाँ लोगों को विधिवत तरीके से यहोशू के प्रभार के सुपुर्द किया गया।PPHin 481.3

    इज़राइल के अगुवे के रूप मे मूसा का कार्य समाप्त हुआ। फिर भी वह स्वयं को लोगों की भलाई में भूल गया। एकत्रित भीड़ की उपस्थिति में, मूसा ने, परमेश्वर के नाम में, अपने उत्तराधिकारी को पवित्र प्रोत्साहन के यह शब्द सम्बोधित किए, “हियाव बांधकर, दृढ़ हो जा, भय न कर, और तेरा मन कच्चा न हो, क्‍योंकि जहाँ-जहाँ तू जाएगा, वहाँ-वहाँ तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।” इसके बाद वह लोगों के अधिकारियों और पुरनियोंकी ओर मुड़ा और उन्हें परमेश्वर द्वारा दिए गए निर्दशों का पालन करने का पवित्र कार्य-भार दिया।PPHin 482.1

    जब लोगों ने उस वृद्ध पुरूष पर अपनी दृष्टि स्थिर की, जो शीघ्र ही उनसे अलग होने को था, उन्होंने उसके अथक परिश्रम, उसके ज्ञानपूर्ण परामर्श और उसकी पिता-समान भावुकता को एक नए और गहरे आभार के साथ स्मरण किया। कितनी बार, जब उनके पाप परमेश्वर की न्यायसंगत दण्डाज्ञा को आमन्त्रित करते थे, मूसा की प्रार्थनाओं के कारण वह उन्हें दण्ड देता था। पश्चताप ने उनके दुख को बड़ा दिया। कड़वाहट के साथ उन्होंने स्मरण किया कि उनकी अपनी विकृतता ने मूसा को उस पाप के लिये उकसाया जिसके लिये मरना था।PPHin 482.2

    उनके प्रिय अगुवे का हटाया जाना, इज़राइल के लिये, उसके (मूसा के) अभियान और जीवन के जारी रहने की स्थिति में मिलने वाली झिड़की या फटकार से, कहीं अधिक प्रभावशाली निन्‍दा थी। परमेश्वर उन्हे आभास करवाना चाहता था कि उन्हें अपने भावी अगुवे का जीवन इतना कष्टपूर्ण नहीं बनाना था जैसा कि उन्होंने मूसा के साथ किया था। परमेश्वर अपने लोगों के साथ उसी के द्वारा दी गई आशीषों के माध्यम से बात करता है, और जब इनका आभार नही माना जाता, तो आशीषों के हटाए जाने द्वारा बात करता है, ताकि उन्हें उनके पाप दिखाए जा सके, और वे उसके पास सहृदय लौट आएँ।PPHin 482.3

    उसी दिन, मूसा को आदेश दिया गया, “नबो नामक चोटी पर चढ़कर कनान देश को देख ले, जिसे में इज़राइल की संतान के अधिकार में दूँगा, तू इस पहाड़ पर चढ़कर मर जाएगा, और अपने लोगों में मिल जाएगा।” पवित्र बुलाहट की आज्ञा का पालन करते हुए, मूसा कईं बार छावनी को छोड़कर, परमेश्वर से सम्पक॑ करने जाता रहा था, लेकिन इस बार उसे एक नए और रहस्यमयी कार्य के लिये प्रस्थान करना था। उसने अपने जीवन को अपने सृष्टिकर्ता के हाथों में समर्पित करने के लिये जाना था। मूसा जानता था कि उसे एकांत में मृत्यु को प्राप्त होना था; किसी सांसारिक मित्र को अनुमति नहीं थी कि वह मूसा के जीवन के अन्तिम क्षणों में उसकी सेवा-टहल करे। उसके सामने जो दृश्य था, उसमें एक रहस्य और भयानकता थी, जिससे उसका हृदय सहम गया। उसकी देख-रेख और उसके प्रेम के पात्र लोगों से अलग होना उसके लिये सबसे कठोर परीक्षा थी- इन लोगों के साथ उसकी रूचि और उसका जीवन लम्बे समय से जुड़े थे। लेकिन उसने परमेश्वर में विश्वास रखना सीखा था और निस्सन्देह विश्वास के साथ उसने स्वयं को और अपने लोगों को परमेश्वर की करूणा और प्रेम को सुपुर्द किया।PPHin 482.4

    अन्तिम बार मूसा अपने लोगों की मण्डली में खड़ा हुआ। फिर से परमेश्वर का आत्मा उसपर आकर ठहरा, और सबसे उत्कृष्ट और मर्मभेदी भाषा में उसने प्रत्येक घराने को आशीर्वाद दिया, और अन्त में वहां उपस्थित सभी लोगों को यह आशीष दी:PPHin 483.1

    “हे यश्रन, ईश्वर के तुल्य और कोई नहीं है,
    वह तेरी सहायता करने को आकाश पर,
    और अपना प्रताप दिखाता हुआ
    आकाशमण्डल पर सवार होकर चलता है।
    अनादि परमेश्वर तेरा गृहधाम है,
    और नीचे सनातन भुजाए हैं।
    वह शत्रुओं को तेरे सामने से निकाल देता,
    और कहता है, उनको सत्यानाश कर दे।
    और इज़राइल निडर बसा रहता है,
    अन्न और नए दाखमधु के देश में याकूब का सोता अकेला ही रहता है,
    और उसके ऊपर के आकाश से ओस पड़ी
    करती है
    हे इज़राइल, तू क्‍या ही धन्य है
    हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा,
    तेरे तुल्य कौन है?
    वह तो तेरी सहायता के लिये ढाल है।’
    PPHin 483.2

    - व्यवस्था विवरण 33:26-29

    मूसा मण्डली से मुड़कर, चुपचाप और अकेला पहाड़ की और चल पड़ा। वह “नबो पहाड़ पर पिसगा की चोटी” पर चढ़ गया। उस एकान्त चोटी पर खड़े होकर, मूसा ने अपनी तेज आंखो से उसके सामने फैले दृश्य को निहारा। दूर पश्चिम में फैला था महान समुद्र का नीला जल? उत्तर में आकाश के नीचे हरमन पर्वत खड़ा था, पूरब में मोआब का पठार था, और उसके आगे था बाशान, इज़राइल की विजय का दृश्य; और दक्षिण में फैला हुआ था वह मरूस्थल जिस वह लम्बे समय तक भटके थे।PPHin 484.1

    एकान्त में मूसा ने, कठिनाईयों और अस्थिरता के अपने जीवन का अवलोकन किया, जब से वह मिस्र में एक प्रत्यशित राज्य और दरबार की प्रतिष्ठा को छोड़कर परमेश्वर के लोगों के साथ अपना स्थान विशेष पाने आया था। उसने यित्रो की भेड़-बकरियों के साथ मरूघर में बिताए कई वर्षा को, ज्वलंतझाड़ी में स्वर्गदूत का प्रकट होने को और इज़राइल के छुटकारे के लिये उसे बुलाए जाने को याद किया। एक बार फिर उसने चुने हुए लोगों के पक्ष में किये गए परमेश्वर की सामर्थ्य के प्रभावशाली चमत्कारों को और उनके उपद्रव और चिरकालीन यात्रा के दौरान परमेश्वर की चिरसहिष्णु करूणा को देखा।PPHin 484.2

    बावजूद इसके कि परमेश्वर ने उनके लिये इतना कुछ किया, मूसा की निजी प्राथनाएँ और उसके परिश्रम के बावजूद, मिस्र छोड़कर आने वाल सेना के व्यस्कों में से केवल दो व्यक्ति प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश योग्य निष्ठावान पाए गए। जब मूसा ने अपने श्रम के परिणाम का अवलोकन किया, बलिदान और परीक्षा का उसका जीवन व्यर्थ सा प्रतीत हुआ। PPHin 484.3

    लेकिन जिस उत्तरदायित्व को उसने सम्भाला था, उसके लिये उसे खेद नहीं था। वह जानता था कि उसका कार्य और विशेष गतिविधियाँ स्वयं परमेश्वर द्वारा निर्धारित थी। जब उसे पहली बार दासत्व से बाहर आए इज़राइल का अगुवा बनने को कहा गया, उस उत्तरदायित्व को सम्भालने के लिये उसे संकोच हुआ, लेकिन जब से उसने उस कार्य को अपने हाथों में लिया उसे उसको पूरी तरह निभाया। जब परमेश्वर ने उसे सेवा-निवृत करने का प्रस्ताव रखा, और इज़राइल को नष्ट करना चाहा, मूसा सहमति नहीं दे सका। हालाँकि उसकी परीक्षाएँ कठिन रही थी, उसने परमेश्वर की कृपा-दृष्टि के विशेष प्रतीकों का आनन्द उठाया था, भीड़में पड़ाव के दौरान, परमेश्वर की सामर्थ्य और महिमा के प्रदर्शनों के साक्षी होने में व उसके प्रेम की सहभागिता मे, उसने पर्याप्त अनुभव प्राप्त किया था, उसे लगा कि कुछ समय के पाप का आनन्द भोगने के बजाय परमेश्वर के लोगों के साथ कष्ट उठाने को पसन्द करके उसने विवेकपूर्ण निर्णय लिया था।PPHin 485.1

    जब उसने परमेश्वर के लोगों के अगुवे में रूप में, पीछेमुड़कर अपने अनुभव को देखा, तो एक गलत कार्य में उसके जीवन इतिहास को बिगाड़ दिया। यदि उस पाप को मिटाया जा सकता, तो उसे लगा कि वह मृत्यु से पीछे नहीं हटता। वह आश्वस्त था परमेश्वर को केवल पश्चताप और प्रतिज्ञा के ‘बलिदान’ की अपेक्षा थी, और मूसा ने फिर से अपने पापों का अंगीकार किया और यीशु के नाम में क्षमा याचना की।PPHin 485.2

    और अब प्रतिज्ञा के देश का परिदृश्य उसको दिखाया गया। देश का प्रत्येक भाग उसके सामने रखा गया, जो दूरी के कारण मंद या अस्पष्ट नहीं थे, लेकिन उसकी आनन्दित दृष्टि के लिये सुस्पष्ट, विशिष्ट और सुन्दर थे। इस दृश्य में इसे ऐसा नहीं दिखाया गया, जैसा वह तब दिख रहा था, वरन्‌ वैसे जैसा वह इज़राइल के अधीनस्थ, परमेश्वर की आशीषों के द्वारा, होने वाला था। उसे लगा मानों वह दूसरे अदन को देख रहा था। यहाँ पर थे लेबनान के देवदारों से आवृत पवर्त, दाख की सुगंध से सुगंधित जैतून से ढके पहाड़, फूले से उजले और अत्यन्त उपजाऊ हरे मैदान, यहां ऊष्णकटिबन्ध के खजूरके वृक्ष, वहां गेहूँ और जाँ के लहराते खेत, चिड़ियो के चहचहाट और नदियों की तरंग से संगीतमय उज्जवल घाटियाँ, सुन्दर वाटिकाएं और उत्तम नगर, ‘समुद्र के सारे धन’ से भरपूर तालाब, पहाड़ों पर घास चरती हुईं भेड़-बकरियाँ और चट्टानों के बीच जंगली मधु मक्ख्यों की जमा की हुई निधि। वास्तव में ऐसे ही देश का, परमेश्वर के आत्मा की प्ररेणा से, मूसा ने इज़राइलियों को वर्णन किया था, “यहोवा से आशीष पाया हुआ.......प्रकाश के अनमोल पदार्थ के लिये, ओस के लिये, वह गहरा जल जो नीचे है उसके लिये और सूर्य के पकाए हुए अनमोल फलों के लिये, प्राचीन पहाड़ो के उत्तम पदार्थ के लिये, और पृथ्वी और जो अनमोल पदार्थ उसमे भरे है, उसके लिये।”PPHin 485.3

    मूसा ने चुने हुए लोगों को कनान में स्थापित हुआ देखा, और हर घराने को अपने ही अधिकृत क्षेत्र में। उसने प्रतिज्ञा के देश के परिनिर्धारण के बाद के उनके इतिहास की झलक देखी, स्वधर्म त्याग और उसकी दण्डाज्ञा की दुखद कहानी उसके सामने रखी गईं। उसने उन्हें पापों के कारण, अधर्मियों के बीच तितर-बितर, इज़राइल से दूर हुए गौरव को, उसके सुन्दर नगर के खण्डहर को, और उसके लोगों को पराए देशों में बन्धक बने देखा। उसने उन्हें अपने पितरों के देश में पुनः स्थापित, और अन्तत: रोम के अधीनस्थ हुआ देखा । उसे समय की धारा में नीचे उतरकर हमारे उद्धारकर्ता के पहले आगमन को देखने की अनुमति दी गई। उसने यीशु को बेतलहेम में शिशु के रूप में देखा। उसने परमेश्वर की स्तूति और पृथ्वी पर शान्ति का सुखद गीतगाती, स्वर्गदूतों की सेना की आवाजों को सुना। उसे यीशु के पास जाते, ज्योतिषियों का मार्गदर्शन करते तारे को आकाश से देखा, और एक महान ज्योति ने उसके मन-मस्तिष्क को भर दिया जब उसने उन भविष्यसूचक शब्दों को सुना, “याकूब में से एक तारा उदय होगा, और इज़राइल में से एक राज दण्ड उठेगा ।”-गिनती 24:17। उसने नासरत में मसीह के दीन जीवन को, चंगाई और सहानुभूति और प्रेम की उसकी सेवकाई को एक घमण्डी और अविश्वासी जाति द्वारा उसके तिरस्कार को देखा। अचम्भित होकर उसने उन्हें परमेश्वर की व्यवस्था के घमण्डपूर्णउन्नयन को सुना, जबकि उन्होंने व्यवस्था देने वाले को अस्वीकृत और तिरस्कत किया। उसने यीशु को जैतून के पर्वत पर देखा जब वह अपने प्रिय देश से विदा लेते हुए रोया। जब मूसा ने उन लोगों के अन्तिम बहिष्कार को देखा, जो स्वर्ग द्वारा धन्य ठहराए गए थे, उन लोगों को जिनके लिये उसने परिश्रम किया था, प्रार्थना की थी और बलिदान किया था, जिनके लिये वह जीवन की पुस्तक में से अपने नाम को मिट॒वा देने के लिये तैयार था, जब उसने इन भयावहशब्दों को सुना, “तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।” -मत्ती 23:38। उसका हृदय वेदना से भर गया, और परमेश्वर के पुत्र के दुख के प्रति सहानुभूति में, उसकी आंखो से दुख भरे आंसू निकल पड़े।PPHin 486.1

    वह उद्धारकर्ता क पीछे-पीछे गतसमनी तक गया, और उसने बाग में वेदना को, धोखे को, उपहास को, कोढ़े मारे जाने को, कूस पर चढ़ाए जाने को देखा। मूसा को ज्ञात हुआ कि जैसे बीहड़ में उसने साँप को ऊपर उठाया था, उसी प्रकार मनुष्य के पुत्र को भी ऊंचा उठायाजाएगा, ताकि जो कोई भी उसमें विश्वास करे “नाश न हो, वरन्‌ अनन्त जीवन पाए”-यहुन्ना 3:16। उद्धारकर्ता वह तेजस्वी स्वर्गदूत जो उनके पूर्वजों के आगे-आगे चला था, उसके प्रति यहूदी जाति द्वारा प्रकट किये ए बैर-भाव और पांखड ने मूसा का हृदय दुख, कोध और भय से भर गया। उसने मसीह को अत्यन्त दुखदायी पुकार को सुना, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने क्‍यों छोड़ दिया?” मरकुस 15:34। उसने मसीह को युसुफ की नई कब्र में लेटे हुएदेखा। अत्यन्त निराशा का अँधेरा संसार को लपेटे हुए प्रतीत हो रहा था। लेकिन उसने दोबारा दृष्टि डाली, और उसे विजेता के रूप में बाहर आते और मण्डली का नेतृत्व करते, स्वर्गदूतों की संगति में स्वर्गारोहण करते देखा। उसने मसीह की अगवानी के लिये चमचमाते फाटकों को खुलते हुए और स्वर्गंदूतों की, उनके सेनापित का विजयगान के साथ स्वागत करते देखा। वहाँ उस पर प्रकट किया गया कि वही होगा जो मसीह की सेवा में होगा, और उसके लिये सनातन फाटकों को खोलेगा। इस दृश्य को देखने पर उसकी मुखाकृति पवित्र तेज से कांतिमान हो गई। उसके जीवन के त्याग और कष्ट परमेश्वर के पुत्र के बलिदान और कष्टों की तुलना में कितने सामान्य थे!”“असाधरण और अनन्त महिमा” के मान की तुलना में कितने तुच्छ!- 2 कुरिन्थियों 4:17। वह प्रसन्‍न था कि भले ही कम मात्रा में, वह मसीह के कष्टों में भागीदार था।PPHin 487.1

    मूसा ने मसीह के अनुयायियों को जगत में सुसमाचार फैलाने के लिये जाते हुए देखा। उसने देखा कि हालाँकि इज़राइल के लोग ‘शरीर के अनुसार’ उस उत्तम नियति के लिये असफल हो गए थे, जिसके लिये परमेश्वर ने उन्हें बुलाया था,अपने अविश्वास के कारण जगत के लिये ज्योति बनने में असफल रहे थे, हालांकि उन्होंने परमेश्वर की दया का तिरस्कार किया था और उसके चुने हुए लोगों के तौर पर मिलने वाली आशीषों को गँवां दिया था- फिर भी परमेश्वर ने अब्राहम के वंशजों को नहीं छोड़ा; जिन गौरवपूर्ण प्रयोजनों को इज़राइल द्वारा पूरा करने का दायित्व उसने अपने ऊपर लिया था, उन प्रयोजनों को पूरा होना था। जो भी मसीह के द्वारा विश्वास की संतान बनते उनकी गणना अब्राहम के वंशजो में होती थी; वे वाचा की प्रतिज्ञाओं के उत्तराधिकारी थे, अब्राहम के समान, उन्हें परमेश्वर की व्यवस्था और उसके पुत्र के सुसमाचार को सम्पूर्ण जगत से परिचित कराना था और उसकी रक्षा करनी थी। मूसा ने सुसमाचार के प्रकाश को यीशु के अनुयायियों के माध्यम से उन लोगों तक चमकते देखा, “जो अच्धेरे में बैठे थे” (मत्ती 4:16), और गैर-यहूदियों के देशों से हजारों को उसकी वृद्धि की चमक की ओर आते देखा यह देखकर वह इज़राइल की समृद्धि और वृद्धि में आनन्दित हुआ।PPHin 487.2

    शैतान का वह कार्य जिसका पालन करके यहूदियों ने मसीह का तिरस्कार किया, मूसा को दिखाया गया, जबकि वे परमेश्वर की आज्ञा का आदर करने का दावा करते थे, अब उसने मसीही जगत को ऐसे ही छलावे में देखा- परमेश्वर की व्यवस्था को अस्वीकार करके भी वह मसीह को ग्रहण करने का दावा कर रहे थे। उसने याजकों और पुरनियों के द्वारा उस अत्यन्त कोधित माँग की सुना था, “ले जा! ले जा! उसे कूस पर चढ़ा।” और उसने तथाकथित मसीही शिक्षकों से इस माँग को सुना, “व्यवस्था को हटाओं!” उसने सबत का पैरों तले रौंदा जाना और उसके स्थान पर एक अप्रामाणिक संस्था का संस्थापन देखा । एक बार फिर मूसा अचरज और भय से भर गया। जो मसीह में विश्वास करते थे वे पवित्र पर्वत पर उसी की आवाज में कही गई व्यवस्था को अस्वीकार कैसे कर सकते थे? कैसे कोई भी जो परमेश्वर का भय मानता था, पृथ्वी और आकाश में उसकी सत्ता के आधार, उसकी व्यवस्था को परे रख सकता था? प्रसन्‍नता से मूसा ने देखा कि व्यवस्था अभी भी कुछ निष्ठावानों द्वारा गौरवान्चित और सम्मानित की जाती थी। उसने परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने वालों को नष्ट करने के लिये सांसारिक शक्तियों का अन्तिम महान संघर्ष देखा। उसने उस समय की देखा जब परमेश्वर पृथ्वी वासियों को उनके अधर्म के लिये दण्डित करने उठेगा, और जिन्होंने उसका भय माना है वे उसके प्रकोप के दिन ढॉके और छुपाये जाएँगे। उसने उसकी व्यवस्था को मानने वालों के साथ परमेश्वर की शान्ति की वाचा को सुना, जब वह अपने पवित्र वास से बोलता है, धरती और आकाश काॉप॑ उठते है। उसने मसीह के दूसरे आगमन को देखा, जब वह महिमा सहित आया, उसने धर्मी मृतकों को अनश्वर जीवन में उठते हुए, और जीवित पवित्रों को बिना मृत्यु को प्राप्त हुए परिवर्तित होते और हर्ष के गीतों के साथ एकसाथ परमेश्वर के नगर जाने के लिये ऊपर उठते हुए देखा। PPHin 488.1

    एक और दृश्य उसकी आंखो के सामने खुला-श्राप से मुक्त हुई प्रथ्वी जो हाल ही में उसके सम्मुख फैलाए हुए प्रतिज्ञा के सुन्दर देश से अधिक सुन्दर थी। वहाँ पाप नहीं था, और मृत्यु प्रवेश नहीं कर सकती थी। वहाँ बचाए हुओं के समुदायों को अपना सनातन निवास मिला। अकथनीय आनन्द के साथ मूसा ने उस दृश्य को देखा- उसके आशाओं से अधिक आनन्दमय छुटकारे की तृप्ति! उनका पृथ्वी भ्रमण हमेशा के लिये समाप्त हो गया था, और परमेश्वर का इज़राइल अनन्तः समृद्ध देश में प्रवेश कर गए।PPHin 488.2

    दर्शन फिर से धैधला गया, और उसकी आँखें दूर तक फैले हुए कनान प्रदेश पर स्थिर हो गई। फिर, एक थके हुए योद्धा की तरह, वह विश्राम करने के लिये लेट गया। “तब यहोवा के कहने के अनुसार उसका दास मूसा वहीं मोआब के देश में मर गया और उसने उसे मोआब के देश में बेतपोर के सामने एक तराई में मिट्टी दी, और आज के दिन तक कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहां है।” कई, जो मूसा के सुझावों पर ध्यान देने को अनिच्छुक रहे थे, जब वह उनके साथ था, वे उसकी कब्र का स्थान जानकर, उसके मृत शरीर पर मूर्तिपूजा करने के खतरे में थे। इस कारण यह बात मनुष्यों से छुपा कर रखी गई। लेकिन परमेश्वर के स्वर्गदूतों ने उसके निष्ठावान दास के शरीर को मिट्टी दी और उसकी एकाकी कब्र पर पहरा दिया। PPHin 489.1

    “और मूसा के तुल्य इज़राइल में ऐसा कोई नबी नहीं उठा, जिससे यहोवा ने आमने सामने बातें की, उन सभी चिन्हों और चमत्कारों में जिन्हे दिखाने के लियेयहोवा ने उसे भेजा.......और उसने सारे इज़राइलियों की दृष्टि में बलवन्त हाथ और बड़े भय के काम कर दिखाए।PPHin 489.2

    कादेश में चट्टान से पानी निकालने का यश परमेश्वर को ना देने में, मूसा के उस एक पाप के कारण, उसका जीवन कलंकित ना हुआ होता, तो मूसा ने प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश किया होता, और वह मृत्यु को देखे बिना स्वर्ग में जाने के लिये परिवर्तित हुआ होता। लेकिन उसे बहुत दिनों तक कब्र में नहीं रहना था। मसीह स्वयं, उन स्वर्गदूतों के साथ जिन्होंने मूसा को गाढ़ा था, सुप्त पवित्र को बुलाने के लिये स्वर्ग से उतरकर नीचे आया। मूसा को परमेश्वर के विरूद्ध पाप कराने में अपनी सफलता पर शैतान अति प्रसन्‍न हुआ था, क्‍योंकि मूसा इस प्रकार मृत्यु के अधीनस्थ हो गया था। महान शत्रु ने घोषणा की कि इस ईश्वरीय कथन ने उसे मृतकों पर अधिकार दे दिया था, “तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा ।””-उत्पत्ति 3:19 । कब्र की शक्ति कभी भी खंडित नहीं हुई थी, कब्र में के सभी लोगों को उसने उसके कैदी होने का दावा किया, जिन्हें उस अन्धेरे काराग्रह से कभी भी छुटकारा नही मिलना था।PPHin 489.3

    पहली बार मसीह मृतकों को जीवन देने वाला था। जैसे ही जीवन का राजकुमार और उसके कांतिमान दूत कब्र के निकट आए, शैतान अपने आधिपत्य के लिये सावधान हो गया। अपने पापी दूतों के साथ, वह उस भू-खण्ड पर अतिक्रमण छेड़ने को खड़ा हुआ, जिसे वह उसका होने का दावा कर रहा था। उसने घमण्ड में कहा कि परमेश्वर का दास उसका कैदी बन गया था। उसने घोषणा की कि मूसा भी परमेश्वर की व्यवस्थाका पालन करने में असमर्थ रहा था, और यह कि यहोवा को देय महिमा उसने स्वयं के लिये ली थी- वही पाप जो स्वर्ग में शैतान के बहिष्कार का कारण बना और अब मूसा, आज्ञा उल्लंघन के कारण शैतान के अधीनस्थ हो गया था। मुख्य देशद्रोही ने पवित्र सत्ता के विरूद्ध उसके द्वारा लगाए गऐ मूलभूत अरोपों को दोहराया और उसके प्रति परमेश्वर के अन्याय की शिकायतों को दोहराया। PPHin 490.1

    मसीह ने शैतान के साथ वादविवाद में पड़ने से स्वयं को नीचा नहीं किया। वह शैतान पर उसके छलावे द्वारा स्वर्ग में किये गये भयानक कर्मा का आरोप लगा सकता था, जिनके कारण स्वर्ग के वासियों की भारी संख्या का नाश हुआ। वह अदन में बोले गए झूठ की ओर संकेत कर सकता था, जिसके कारण आदम से पाप हुआ और मानव जाति पर मृत्यु आई। वह शैतान को याद दिला सकता था कि इज़राइल को बड़बड़ाने और विद्रोह के लिये बहकाने का काम उसी का था, वह इज़राइल जिसने अपने अगुवे के चिरसहिष्णु धैर्य को थका दिया था, और एक असुरक्षित पल की घबराहट में उससे वह पाप करवाया जिसके कारणवश वह मृत्यु के अधिकार के अधीन हो गया था। लेकिनयह कहते हुएकि “परमेश्वर तेरी निंदा करे”-यहूदा 9, मसीह ने इस सब को अपने पिता के सम्मुख रखा ।उद्धारकर्ता अपने शत्रु के साथ किसी विवाद में नही पड़ा, लेकिन उसी समय और वहीं से पतित शत्रु की शक्ति को कम करने और मृतकों को जीवित करने का उसकाकार्य प्रारम्भ हुआ। यहाँ परमेश्वर के पुत्र की सर्वोच्चता का प्रमाण था जिसे शैतान अस्वीकार नहीं कर सकता था। पुनरूत्थान कोसदा के लिये निश्चित कर दिया गया था। शैतान को उसके शिकार से वंचित कर दिया गया, धर्मी मृतक जी उठेंगे।PPHin 490.2

    पाप के कारणवश, मूसा शैतान के अधिकार के अधीन हो गया। अपनी योग्यता अनुसार वह मृत्यु का न्यायसंगत बन्धक था, लेकिन उद्धारकर्ता के नाम में अपने अधिकार को थामे हुए, उसे मृत्यू से जिलाकर अनश्वर जीवन दिया गया। मूसा कब्र से महिमावान होकर बाहर निकला और अपने मुक्तिदाता के साथ परमेश्वर के नगर में ऊपर उठ गया।PPHin 491.1

    मसीह के बलिदान में उदाहरण सहित समझाए जाने से पहले, परमेश्वर के न्यायपरता और प्रेम को कभी भी इतनी सुस्पष्टता से प्रदर्शित नहीं किया गया था, जैसे कि मूसा के साथ उसके व्यवहार में किया गया। परमेश्वर ने कभी न भुलाने वाला एक सबक सिखाने के लिये, मूसा को कनान से बाहर रखा, परमेश्वर सम्पूर्ण आज्ञाकारिता की अपेक्षा करता है और मनुष्य को परमेश्वर को देय महिमा स्वयं ले लेने से सावधान रहना है। मूसा की इस प्रार्थना को परमेश्वर पूरी नहीं कर सकता था कि उसे इज़राइल की मीरास में हिस्सा दे, लेकिन उसने अपने दास को भुलाया या छोड़ा नहीं था। स्वर्ग का परमेश्वर मूसा द्वारा सहन की गई पीड़ा को समझता था, संघर्ष और परीक्षा के इन लम्बे वर्षों को उसने अंकित किया था। पीसगा की चोटी पर परमेश्वर में मूसा को उस मीरास के लिये बुलाया जो सांसारिक कनान से अत्यन्त गौरवशाली थी और अनन्तकाल के लिये थी। PPHin 491.2

    रूपान्तरण के पर्वत (mount of transfiguration) पर मूसा एलिय्याह, जिसका परिवर्तन हुआ था, के साथ उपस्थित था। उन्हें पिता से उसके पुत्र को महिमा और प्रकाश के वाहकों के रूप में भेजा गया था। और इस प्रकार मूसा की, इतनी सदियों पूर्व कीगईप्रार्थना पूरी हुईं। वह लोगों की धरोहर की सीमा में, “पवित्र पर्वत” पर परमेश्वर के साक्ष्य के रूप में, जिसमें इज़राइल की सारी प्रतिज्ञाएँ केन्द्रित थी, खड़ा हुआ। जोस्वर्ग द्वारा इतना उच्च सम्मान प्राप्त थाउसमनुष्यके इतिहास में नश्वर दृष्टि पर प्रकट किया गया यह अन्तिम दृश्य है।PPHin 491.3

    मूसा मसीह का प्ररूप था। उसने स्वयं इज़राइल के सम्मुख घोषणा की थी, “तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे मध्य से, अर्थात तेरे भाईयों में से मेरे समान एक नबी को उत्पन्न करेगा, तू उसी की सुनना। इससे पहले कि मूसा को सांसारिक कनान के लिये इज़राइल की सेना के नेतृत्व के लिये तैयार किया जा सके, परमेश्वर ने उसे कष्ट और गरीबी के शिक्षालय में अनुशासित करना उचित समझा। स्वर्गीय कनान की ओर यात्रा करते हुए, परमेश्वर के इज़राइल के पास एक कप्तान है जिसे ईश्वरीय अगुवे के रूप में उसके विशेष कार्य के लिये तैयारी कराने के लिये मानवीय शिक्षा की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी उसे कष्टों द्वारा सम्पूर्ण बनाया गया; और “जब उसने परीक्षा की दशा में दुख उठाया, तो वह उनकी सहायता कर सकता है जिनकी परीक्षा होती है।”-इब्रानियों 2:18 । हमारे उद्धारकर्ता ने कोई मानवीयदुर्बलता या त्रुटि नहीं दिखाई, लेकिन फिर भी प्रतिज्ञा के देश में हमारे लिये प्रवेश प्राप्त करने के लिये उसने मृत्यु को ग्रहण किया।PPHin 491.4

    “मूसा तो परमेश्वर के सारे घर में सेवक के समान विश्वासयोग्य रहा कि जिन बातों का वर्णन होने वाला था, उनकी गवाही दे। परन्तु मसीह परमेश्वर के घर मे पुत्र के समान अधिकारी है, और उसका घर हम है, यदि हम अपने साहस पर और अपनी आशा मेंविश्वास पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।”-इब्रानियो 3:5.6 ।PPHin 492.1