Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

कुलपिता और भविष्यवक्ता

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First
    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents

    अध्याय 45—यरीहो का पतन

    यह अध्याय यहोशू 5:13-15, 6,7 पर आधारित है

    इब्रियों ने कनान में प्रवेश कर लिया था, लेकिन उसके अपने अधिकृत नहीं किया था, और मनुष्य की दृष्टि में उसपर स्वामित्व प्राप्ति का संघर्ष लम्बा और कठिन होना निश्चित था। वह एक सशक्त जाति से जनपूर्ण था, जो अपने भू-खण्ड पर घुसपैठ का विरोध करने के लिये तैयार खड़े थे। सभी घराने एक-दूसरे के साथ एक सर्वसामान्य संकट के भय से बंधे हुए थे। उनके घोड़े, लोहे के बने युद्ध-रथ, देश के बारे में उनका ज्ञान, और युद्ध में उनका प्रशिक्षण उनके लिये अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होने वाला था। और तो और यह प्रदेश किलों से सुरक्षित था-'जिसकी शहरपनाह आकाश से बातें करती है।”-व्यवस्थाविवरण 9:1 केवल शक्ति के आश्वासन में, जो उनकी अपनी नहीं थी, इज़राइल आसान संघर्ष में सफलता की अपेक्षा कर सकते थे।PPHin 499.1

    प्रवेश का सबसे शक्तिशाली गढ़-यरीहो का विशाल और समद्ध शहर उनके बिल्कल सामने था, लेकिन गिलगल में उनके पड़ाव से कुछ दूरी पर था। एक उपजाऊ तराईं की सीमा पर जो विभिन्‍न उपजों से भरपूर था, जिसके महल और मन्दिर अवगुण व भोग-विलास के कन्द्र थे, अपने विशाल परकोटों के पीछे, यह घमण्डी शहर इज़राइल के परमेश्वर को चुनौती देता था। यरीहो, चन्द्रमा की देवी ऐश्टरोथ के लिये विशेष रूप से समर्पित मूर्तिपूजा का मुख्य स्थान था। कनानियों के धर्म में जो सबसे अधिक भ्रष्टाचारी और नीच था, वह यहां केन्द्रित था ।इजराईल के लोग, जिनके मन में बेतपोर में उनके पाप के भयानक परिणाम अभी भी ताजा थे, इस अधर्मी शहर को केवल भय और घृणा से देख सकते थे।PPHin 499.2

    यहोशू की दृष्टि में यरीहों को शक्तिहीन करना कनान पर विजय का पहला चरण था। लेकिन सर्वप्रथम उसने ईश्वरीय मार्गदर्शन का आश्वासन मांगा, जो उसे प्रदान किया गया। इज़राइल के परमेश्वर से उसके लोगों के आगे-आगे जाने के लिये प्रार्थना और मनन करने छावनी से दूर जाकर, उसने विशाल डील-डौल और रोबदार उपस्थिति, “हाथ में नंगी तलवार लिये हुए” एक हथियारबन्ध योद्धा को देखा। यहोशू ने उसे चुनौतीपूर्ण शब्दों में पूछा, “क्या तू हमारी ओर का है या बैरियों के पक्ष का है?” और उसे उत्तर मिला, “मैं यहोवा की सेना का प्रधान होकर अभी आया हूँ।” “अपनी जूती पाँव से उतार, क्‍योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्र है” यहोशू को दी गई इस आज्ञा ने, जो होरेब में मूसा को भी दी गईं थी, रहस्यमयी आगन्तुक का वास्तविक चरित्र प्रकट कर दिया। वह मसीह था, अत्यधिक प्रशंनीय एकमात्र, जो इज़राइल के अगुवे के सम्मुख खड़ा था। आदरयुक्त भय के साथ यहोशू ने मुहँ के बल गिरकर उसको दण्डवत किया, और उसने यह आश्वासन सुना, “सुन, मैं यरीहो को उसके राजा और शूरवीरों समेत तेरे वश में कर देता हूँ” और उसने नगर के बन्दीकरण के लिये निर्देश प्राप्त किये। PPHin 499.3

    पवित्र आज्ञा का पालन करते हुए यहोशू ने इज़राइल की सेना का संचालन किया । कोई आक्रमण नहीं करना था। उन्हें केवल परमेश्वर के सन्दूक को उठाए हुए और नरसिंगे फूंकते हुए, नगर के चारों ओर चक्कर लगाना था। सर्वप्रथम आएयोद्धा, चुने हुए पुरूषों का एक समूह, जो इस बार अपने कौशल या उत्कृष्ट निपुणता से नहीं, वरन्‌ परमेश्वर द्वारा दिये गये निर्देशों के पालन द्वारा जीतने के लिये आए। नरसिंगे लिये हुए सातयाजकों ने उनका अनुसरण किया। फिर परमेश्वर का सन्दूक, जो पवित्र महिमा से घिरा हुआ था, और जिसे पवित्र कार्यभार को दर्शाती हुई पोषाक पहने याजकों ने उठाया हुआ था। इज़राइल की सेना, प्रत्येक गोत्र अपने झण्डे के साथ, पीछे-पीछे हो ली। ऐसा था वह जुलूस जिसने उस नगर के चारों ओर चक्कर लगाया। यरीहो की सड़को में प्रतिध्वनित होती और पहाड़ों में गूँजता नरसिंगों का प्रभावशाली स्वर और विशाल सेना के पदचापों के अलावा अन्य कोई आवाज सुनाई नहीं दी। परिकमा समाप्ति कर, सेना चुपचाप अपने तम्बुओं में लौट आई, और सन्दूक को पवित्र मण्डप में अपने निर्धारित स्थान पर रख दिया गया। PPHin 500.1

    नगर के चौकीदार ने सावधान होकर और आश्चर्य से प्रत्येक गतिविधि को अंकित किया, और अधिकारियों को सूचित किया। वे इस प्रदर्शन का अभिप्राय नहीं जानते थे, लेकिन जब उन्होंने इस विशाल सेना को, पवित्र सन्दूक और उसकी सेवा में याजकों को दिन में एक बार नगर की परिकमा करते देखा, तो इस दृश्य के रहस्य ने पुरोहित और प्रजा दोनों के ह्दयों को भय से भर दिया। वे फिर सेअपनी सशक्त सुरक्षा का निरीक्षण करते, यह सोचते हुए कि वे निश्चयही सफलतापूर्वक सबसे शक्तिशाली आक्रमण का प्रतिरोध कर सकते थे । कईयों ने इस धारणा का उपहास किया कि उन असाधारण प्रदर्शनों के माध्यम से कोई क्षति पहुँच सकती थी। अन्य, श्रद्धायुक्त भय से भर गए, जब उन्होंने उस जुलूस को प्रतिदिन नगर की परिकमा करते हुए देखा। उन्होंने स्मरण किया कि इन लोगों के सम्मुख लाल समुद्र के दो भाग हो गए थे, ओर उनके लिये यरदन नदी के बीच से मार्ग निकाला गया था। वे नहीं जानते थे कि परमेश्वर उनके लिये और कौन से आश्चर्य कर्म करने को था छः दिनों तक इजराईली सेना ने नगर की परिकमा की। सातवाँ दिन आया, और प्रात: काल की पहली किरण के साथ, यहोशू ने परमेश्वर की सेनाओं को संचालित किया। अब उन्हें यरीहो की सात बार परिकमा करने का निर्देश दिया गया और नरसिंगे के शब्द पर जय-जयकार करने को कहा गया, क्योंकि यहोवा ने वह नगर उनको दे दिया था।PPHin 500.2

    विशाल सेना समर्पित प्राचीरों की विधिवत परिकमा करती रही। प्रातः: काल की निस्तद्वता को खंडित करने वाले नरसिंगे के कभी-कभी आने वाले स्वर और कई पेरों की नपी-तुली चलने की आवाज के सिवाय, सब कुछ शांत था। प्राचीरों पर तैयार पहरेदार बढ़ते हुए डर से देखते है कि जैसे ही प्रथम परिकमा पूरी हुई, दूसरी प्रारम्भ हुई, फिर तीसरी, उसके बाद चौथी, फिर पाँचवी और फिर छठी। इन रहस्यमयी गतिविधियों का लक्ष्य क्या हो सकता था? कौन सी प्रभावशाली घटना आसनन्‍्न थी? उन्हें अधिक समय तक रूकना नहीं पड़ा। जैसे ही सातवी परिकमा समाप्त हुई, लम्बा जुलूस रूक गया, नरसिंगे, जो कुछ समय के लिये शान्त थे, अब इतने जोर के साथ फूंके गए कि धरती काँप उठी। ठोस पत्थर की दीवारें, अपने परकोटों और विशाल मीनारों के साथ डगमगाए और अपनी नींव से ऊपर उठ गए और घड़ाक की आवाज के साथ पृथ्वी पर ढेर हो गए। यरीहो के निवासी डर से शक्तिहीन हो गए, और इज़राइल की सेना ने आगे बढ़कर नगर को अपने अधिकार में ले लिया।PPHin 501.1

    इज़राइलियों ने अपनी सामर्थ्य से विजय प्राप्त नहीं की थी। विजय पूरी तरह से परमेश्वर की हुई थी, और भूमि के पहले फल की तरह, नगर और जो कुछ भी उसमें था, यहोवाके लिये बलिदान के रूप में अर्पण किया जाना था। इजराईल को इस बात से प्रभावित करना था कि कनान के अधीनीकरण में उन्हें स्वयं के लिये नहीं लड़ना था, वरन्‌ परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने का माध्यम होना था, अपनी पदोन्नति या धन की चाह न रख कर, उनके राजा यहोवा को महिमा पहुँचानी थी। अधीकरण से पूर्व आदेश दिया गया था, “और नगर और जो कुछ उस में है यहोवा के लिये अर्पण की वस्तु ठहरेगी ।” और तुम अर्पण की हुई वस्तुओं से सावधानी से अपने आप को अलग रखना, कहीं ऐसा न हो कि अर्पण की हुईं वस्तु में से तुम कुछ ले लो, और इस प्रकार इज़राइल छावनी को भ्रष्ट करके उसके कष्ट में डाल दो ।” PPHin 501.2

    नगर के सभी वासियों को, और उसमें रहने वाले प्रत्येक जीवित प्राणी को, “क्या पुरूष, क्‍या स्त्री, क्या जवान, क्‍या बूढ़े, वरन्‌ बेल,भेड़, बकरी, गधे और जितने नगर में थे, उन सभी को उन्होंने अर्पण की वस्तु जानकर तलवार से मार डाला ।” भेदियों की शपथ के अनुसार केवल निष्ठावान राहाब और उसके घराने को जीवित छोड़ा गया। स्वयं नगर को जला दिया गया, उसके महल और मन्दिर, भोग-विलास की वस्तुओं सहित भव्य भवन, भारी-भारी परदे और कीमती वस्त्र, सब अग्नि को समर्पित कर दिये गए। जो आग में भस्म नहीं हो सकता था, “चाँदी, सोना, पीतल और लोहे के पात्र” उनको यहोवा के भवन की धर्म किया के लिये समर्पित कर दिया गया। नगर का स्थान ही श्रापित कर दिया, यरीहो को गढ़ के रूप में कभी भी निर्मित नहीं होना था; ईश्वरीय शक्ति द्वारा गिराई गईं दीवारों को पुनः खड़ी करने की परिकल्पनाकरने वाला तक दण्ड का भागी होगा। सम्पूर्ण इज़राइल की उपस्थिति में यह पवित्र घोषणा की गईं, “जो मनुष्य उठकर इस नगर यरीहों को फिरसे बनाए, वह यहोवा की ओर से श्रापित हो। जब वह उसकी नींव डालेगा तब उसका ज्येष्ठ पुत्र मरेगा और जब वह उसके फाटक लगवाएगा, तब उसका छोटा पुत्र मर जाएगा। PPHin 502.1

    यरीहो के लोगों का सम्पूर्ण विनाश, कनान वासियों से सम्बन्धित मूसा द्वारा पहले दिये गए आदेशों का पूरा होना था, “तू उन्हें पूरी रीति से नष्ट कर डालना” व्यवस्थाविवरण 7:21 । कई लोगों को लगता है कि यह आज्ञा बाईबल के अन्य अंशों में प्रेम और करूणा रखने की आज्ञा के विपरीत है, लेकिन यथार्थ में यह भलाई और अनन्त बुद्धिमता का आदेश है। उन्हें ना केवल सच्चे धर्म के उत्तराधिकारी होना था, वरन्‌ उसके सिद्धान्तों को सम्पूर्ण जगत में प्रसारित करना था। कनानियों ने स्वयं को अत्यन्त नीचतापूर्ण व भ्रष्ट अधर्म को समर्पित कर दिया था, और इसलिये यह अनिवार्य था कि प्रदेश को उससे रहित किया जाए जो परमेश्वर के अनुग्रहकारी प्रयोजनों के परिपूर्ण होने में बाधा डाले।PPHin 502.2

    कनान वासियों को प्रायश्चित करने का पर्याप्त अवसर प्रदान किया गया था। चालीस वर्ष पूर्व लाल समुद्र को खोले जाने और मिस्र पर भेजी गई विपत्तियों ने इज़राइल के परमेश्वर के सर्वशक्तिमान होने का प्रमाण दिया था। और अब मियगद्यान के राजाओं की गिलाद और बाशान की पराजय ने भी प्रमाणित कर दिया था कि यहोवा सभी देवी-देवताओं से श्रेष्ठ है। बालपोर के घृणास्पाद रीति-रिवाजों में सम्मिलित होने के कारण दण्डाज्ञाओं में परमेश्वर के चरित्र की पवित्रता और अधर्म के प्रति उसकीघृणा व्यक्त की गई थी। यरीहो के वासी इन सभी घटनाओं से परिचित थे, और कई राहाब के विश्वास को भी जानते थे, लेकिन उन्होंने मानने से मना कर दिया कि वह यहोवा, इज़राइल का परमेश्वर, “ऊपर आकाश में, और नीचे पृथ्वी पर परमेश्वर है।” जल-प्रलय से पूर्व के वासियों की भाँति कनानी भी स्वर्ग को अपमानित और पृथ्वी को दूषित करने के लिये जीवित थे। और प्रेम और न्याय दोनों की यही माँग थी कि परमेश्वर के विरोधियों और मनुष्य के शत्रुओं का तत्परता से अन्त किया जाए।PPHin 502.3

    कितनी आसानी से इज़राइल की सेनाओं ने यरीहो की दीवारों को धराशाही कर दिया, वह घमण्डी प्रदेश जिसके परकोटों ने चालीस वर्ष पूर्व अविश्वासी भेदियों को भयभीत कर दिया था! इज़राइल के सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा था, “मैंने यरीहों का नगर तेरे हाथों में दे दिया।'उसवचनके आगे मानवीय शक्ति प्रभावहीन थी।PPHin 503.1

    इब्रियों 11:30 में लिखा है, “विश्वास ही से यरीहो की दीवारें गिर गई।” परमेश्वर की सेना के कप्तान ने केवल यहोशू से सम्पर्क किया। उसने स्वयं को पूरी प्रजा पर प्रकट नहीं किया, और यह उन पर निर्भर करता था कि वे यहोशू के शब्दों पर विश्वास करे या सन्देह करे, परमेश्वर के नाम से उसके द्वारा दी गई आज्ञाओं का पालन करें या उसके अधिकार का तिरस्कार करें। परमेश्वर के पुत्र के नेतृत्व में उनकी सेवा में उपस्थित स्वर्गदूतों की सेना को वे देख नहीं सकते थे। उन्होंने तक दिया होगा, “यहगतिविधियाँ कितनी निरर्थक हैं, और मेढ़ो के सींग के नरसिंगे फँँकते हुए, शहर की प्राचीरों की परिकमा करने का उपकम कितना मूर्खतापूर्ण है। उन ऊंचे-ऊंचे गढ़ो पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा । लेकिन दीवारों को अन्तत: गिराने से पूर्व, इस धर्म किया को जारी रखने की योजना ने ही इज़राइलियों में विश्वास के विकास के लिये अवसर प्रदान किया। उनके मनों पर यह प्रभाव डालना था कि उनकी शक्ति या सामर्थ्य मनुष्य की बुद्धिमता में नहीं, ना ही उसकी सामर्थ्य में है, वरन्‌ केवल उनके उद्धार देने वाले परमेश्वर में है। इस रीति से उन्हें अपने पवित्र अगुवे पर पूर्ण रूप से निर्भर होने का अम्भस्थ होना था। PPHin 503.2

    परमेश्वर, उस पर विश्वास रखने वालों के लिये महान कार्य करेगा। उसके तथाकथित लोगों के पास अधिक शक्ति इसलियें नहीं है क्‍योंकि वे अपनी बुद्धिमत्ता में अधिक विश्वास करते है, और परमेश्वर को उनके पक्ष में अपनी सामर्थ्य को प्रकट करने का अवसर नहीं देते। यदि उसके बच्चे उसमें पूरी तरह विश्वास करे और निष्ठापूर्वक उसकी आज्ञाओं का पालन करे तो वह प्रत्येक आपातकालीन स्थिति में अपने विश्वासी बच्चों की सहायता करेगा।PPHin 504.1

    यरीहों के पतन के तत्पश्चातू, यहोशू ने ऐ नगर पर आक्रमण करने का संकल्प किया, ऐ यरदन की तराई के पश्चिम की ओर कुछ मीलों की दूरी पर घाटियों के बीच एक छोटा सा शहर है। इस स्थान पर भेजे गए गुप्तचर, यह सूचना लेकर लौट कि वहाँ के निवासी संख्या में कम थे और उन्हें पराजित करने के लिये छोटी सी सेना ही पर्याप्त होगी।PPHin 504.2

    परमेश्वर द्वारा उनके लिये प्राप्त की गई विजय ने इज़राइलियों को आत्म-विश्वासी बना दिया। परमेश्वर ने उन्हें कनान का प्रदेश देने की प्रतिज्ञा की थी, इसलिये वे सुरक्षित महसूस कर रहे थे, और वे इस बात को समझना भूल गए कि केवल ईश्वरीय सहायता ही उन्हें सफलता प्राप्त करवा सकती थी। यहोशू ने भी परमेश्वर से परामर्श लिये बिना ऐ पर विजय की योजना तैयार कर ली। PPHin 504.3

    इज़राइली स्वयं की शक्ति की प्रशंसा करने लगे थे और अपने शत्रुओं को तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। एक आसान विजय की अपेक्षा थी, और ऐसा विचार किया गया कि उस नगर को अधीकत करने के लिये तीन हजार पुरूष पर्याप्त थे। वे नगर के फाटकों के समीप पहुँचे, लेकिन उन्हें अत्यन्त दृढ़ प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। अपने शत्रुओं की संपूर्ण तैयारी और संख्या से भयभीत होकर, वे घबराहट में सीधे ढलान पर भाग खड़े हुए। कनानी उनका तेजी से पीछा कर रहे थे, “तब ऐ के रहने वालों न अपने फाटक से पीछा करके, उतराई में उन्हें मार गिराया।” संख्या की दृष्टि से क्षति थोड़ी ही थी-केवल छत्तीस पुरूष मारे गए- लेकिन पूरी प्रजा के लिये पराजय हतोत्साहक थी। “लोगों के हृदय पिघल गए, और पानी की तरह हो गए।” यह पहली बार हुआ था कि कनानियों के साथ उनका वास्तविक युद्ध हुआ, और यदि इस छोटे से नगर के प्रतिरोधियों ने उन्हें भाग खड़े होने को विवश कर दिया था, तो उनके सम्मुख महान संघर्ष का क्‍या परिणाम होगा? यहोशू ने इस असफलता को परमेश्वर कीअसफलता.की अप्रसनन्‍नता की अभिव्यक्ति के रूप में देखा और दुख और भय से प्रभावित, “उसने अपने वस्त्र फाड़े और सन्दूक के सामने मुंह के बल गिरकर पृथ्वी पर सॉँझ तक पड़े रहे, और उन्होंने अपने-अपने सिर पर धूल डाली।”PPHin 504.4

    यहोशू ने परमेश्वर से कहा, “हाय, प्रभु यहोवा, तू अपनी इस प्रजा को यरदन पार क्‍यों ले आया? क्‍यों हमें एमोरियों के वश मे करके नष्ट करने के लिये ले आया है? हाय प्रभु, में क्या कहूँ जब इज़राइलियों ने अपने शत्रुओं को पीठ दिखाई है? क्‍योंकि कनानी वरन्‌ इस देश के सब निवासी यह सुनकर हम के घेर लेंगे, और हमारा नाम पृथ्वी पर से मिटा डालेंगे, फिर तू अपने बड़े नाम के लिये क्‍या करेगा?PPHin 505.1

    यहोवा की ओर से उत्तर था, “उठ, खड़ा हो जा, तू क्‍यों इस भाँति मुहँ के बल पृथ्वी पर पड़ा है? इज़राइल ने........जो वाचा मैंने उनसे अपने साथ बंधवाई थी उसको उन्होंने तोड़ दिया है।” यह समय था तत्पर और निश्चित कार्यवाही का, ना कि निराश होने या विलाप करने का। छावनी में गुप्त पाप था, और परमेश्वर के लोगों के साथ उसकी आशीष और उपस्थिति होने से पूर्व उस पाप को ढूंढ कर दूर करना था। “यदि तुम अपने मध्य में से अर्पण की वस्तु का सत्यनाश न कर डालोगे, तो मैं आगे को तुम्हारे संग नहीं रहूंगा। PPHin 505.2

    परमेश्वर की आज्ञा की अवमानना उसने की थी जिसे उसकी दण्डाज्ञा को क्रियान्वित करने के लिये नियुक्त किया गयाथा। और आज्ञा उल्लंघन करने वाले के दोष के लिये पूरी मण्डली को उत्तरादयी ठहराया गया, “उन्होंने अर्पण की वस्तुओं में से तो ले ही लिया, वरन्‌ चोरी भी की, और छल करके उसको अपने सामान में रख लिया। यहोशू को उसे दूँढ निकालने और अपराधी को दण्ड देने का आदेश दिया गया। दोषी की पहचान करने के लिये चयन का प्रयोग किया जाना था। अपराधी की ओर प्रत्यक्ष रूप से संकेत नहीं करके कुछ समय तक विषय को सन्देहास्पद रखा जाना था, ताकि लोगों को स्वयं में विद्यमान पापों के लिये उत्तरदायी होने का एहसास हो, जिससे कि वह परमेश्वर के सम्मुख दीन हो और अपने हृदयों को टटोलें। PPHin 505.3

    भोर होते ही, यहोशू ने गोत्रों के अनुसार लोगों को एकत्रित किया और वह प्रभावशाली व पवित्र विधि प्रारम्भ हुईं। कई चरणों में खोज की गईं। भयावह कसौटी कसती गई । सबसे पहले गोत्र को, फिर परिवार को, फिर घराने को और फिर पुरूष को पकड़ा गया, और यहूदा के गोत्र में से कमी के पुत्र आकान को इज़राइल के कष्टकर के रूप में परमेश्वर की अंगुली द्वारा संकेत किया गया।PPHin 505.4

    उसके दोष को अविवादस्पद स्थापित करने के लिये और इस आरोप के लिये कोई आधार नहीं छोड़ने के लिये कि उसका दण्ड न्यायसंगत नहीं था, यहोशू ने विधिवत रूप से आकान को सच्चाई स्वीकार करने के लिये अनुरोध किया। उस निंदनीय व्यक्ति ने अपने अपराध का पूर्ण अंगीकार किया “सचमुच मैने इज़राइल के परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप किया है, जब मुझे लूट में शिनार देश का एक सुन्दर ओढ़ना, और दो सौ रोकेल चांदी, और पचास रोकेल सोने की एक ईंट दिख पड़ी? तब मैंने उनका लालच करके उन्हें रख लिया, वे मेरे डेरे के भीतर भूमि में गड़े है, ओर सब के नीचे चाँदी है।” तत्काल ही दूतों को तम्बू में भेजा गया, जहाँ उन्होंने बताए हुए स्थान से मिट्‌टी हटाई और, “उन्होंने देखा कि वस्तुएं उसके डेरे में गड़ी है, और सब के नीचे चाँदी थी। उनको उन्होंने डेरे में से निकालकर यहोशू और......यहोवा के सामने रख दिया।”PPHin 506.1

    दण्डाज्ञा सुनाई गई और उसका तुरन्त पालन किया गया। यहोशू ने उससे कहा, “तू ने हमे क्‍यों कष्ट दिया है? आज के दिन यहोवा तुझी को कष्ट देगा।” आकान के पाप के लिये लोगों को उत्तरादयी ठहराया गया था और उन्होंने उसका परिणाम भुगता था, और इस कारण, उन्हें उनके प्रतिनिधियों के द्वारा उसके दण्ड में भूमिका निभानी थी। “सब इज़राइलियों ने उस पर पथराव किया।”PPHin 506.2

    फिर उस स्थान पर और उसके दण्ड के साक्ष्य के रूप में एक पत्थर का ढेर लगाया गया। “इस कारण उस स्थान का नाम आज तक “आकोर’ तराईं पड़ा है जिसका अर्थ है ‘कष्ट'। बाईबल में इतिहास क पुस्तक में उसका स्मृतिपत्र लिखा गया है, “आकोर, इज़राइल को कष्ट देने वाला।”-1 इतिहास 2:7।PPHin 506.3

    आकान का पाप परमेश्वर के सामर्थ्य के सबसे उत्तम प्रदर्शनों और सबसे प्रत्यक्ष और गम्भीर चेतावनियों को चुनोती देते हुए किया गया। “तुम अर्पण की हुईं वस्तुओं से सावधानी से अपने आप को अलग रखो, ऐसा न हो कि अर्पण की हुईं वस्तु ठहराकर बाद में उसकी अर्पण की वस्तु में से कुछ ले लो, और इस प्रकार इज़राइल छावनी को भ्रष्ट करके उसके कष्ट में डाल दो” यह घोषणा समस्त इज़राइल के लिये थी। यह आज्ञा उनके आश्चर्यजनक रूप से यरदन नदी पार करने के तुरन्त बाद, लोगों के खतने की विधि द्वारा परमेश्वर की वाचा की स्वीकृति देने के बाद, फसह का पर्व मनाने के बाद और परमश्वर की सेना के कप्तान, वाचा के स्वर्गदूत के प्रकट होने के बाद दी गई। इसके पश्चात्‌ यरीहो को पराजित किया गया, जो इस बात का प्रमाण था कि परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करने वालों को विनाश निश्चित था।यह तथ्य कि इज़राइल की विजय केवल ईश्वरीय शक्ति से सम्मव हुई थी, और यह कि यरीहो का स्वामित्व उन्हें अपनी निजी योग्यता से प्राप्त नहीं हुआ था, इस आज्ञा को महत्वपूर्ण ठहराता था कि उनके लिये लूट की वस्तुओं को ग्रहण करना प्रतिबंधित था। परमेश्वर ने, अपने वचन के सामर्थ्य से, इस गढ़ को जीता था, विजय उसकी थी, और नगर और उसमें की सभी वस्तुएँ उसको समर्पित की जानी थी।PPHin 506.4

    लाखों इज़राइलियों में केवल एक ही व्यक्ति था, जिसने दण्डाज्ञा और विजय की घड़ी में परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने का दुस्साहस किया था। आकान का लालच शिनार के कीमती वस्त्र को देखने से जागृत हुआ, यहाँ तक कि जब उसका इस कारण मृत्यु से आमना-साना हुआ उसने इसे “शिनार देश का एक सुन्दर ओढ़ना” कहा। एक पाप ने दूसरा पाप करने की प्रेरणा दी और परमेश्वर के भण्डार को समर्पित सोने और चांदी को हथिया लिया- उसने परमेश्वर को कनान प्रदेश की भूमि के पहले फलों से वंचित रखा।PPHin 507.1

    आकान को विनाश तक पहुँचाने वाले घातक पाप की जड़े लालच में थी, जो सब पापों में सबसे सामान्य और सहज माना जाता है। जबकि अन्य अपराधों को जाँच पड़ताल और दण्ड का सामना करना पड़ता है, दसवीं आज्ञा का खंडन शायद ही कभी निंदा का विषय होता है। इस पाप की घोरता, और इसके भयानक परिणाम, आकान के इतिहास के सबक हैं।PPHin 507.2

    लालच धीमे-धीमे विकसित होने वाला पाप है। आकान ने लाभ के लालच को संजोया था जब तक कि वह एक आदत बन गया, और उसे ऐसी जजीरो में जकड़ा जिन्हें तोड़ना लगभग सम्भव था। इस पाप को बढ़ावा देते हुए, इज़राइल पर विपत्ति लाने के विचार पर वह भयभीत हो गया होगा; लेकिन उसका प्रत्यक्ष ज्ञान पापसे शिथिल हो गया था, और प्रलोभन के आगे वह एक आसान शिकार हो गया।PPHin 507.3

    ऐसी ही सुस्पष्ट और विधिपूर्ण चेतावनियों के होते हुए भी, क्या आज भी ऐसे ही पाप नहीं किये जाते? जिस प्रकार आकान को यरीहों की लूट की वस्तुओं को हथियाने पर प्रतिबन्ध था उस प्रकार हमें भी लालच करना प्रत्यक्ष रूप से निषिद्ध है। परमेश्वर ने उसे मूर्तिपूजा घोषित किया है। हमें चेतावनी दी गई है, “तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते ।”-मत्ती 6:24। “चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो”,लूका 12:15। “तुम में किसी प्रकार के लोभ की चर्चा तक न हो”-इफसियों 5:3। हमारे सम्मुख आकान, यहूदा, हनन्याह और सफीरा का भयानक अन्त है। इन सब के पीछे ‘सुबह का तारा’ लूसिफेर का अन्त है, जिसने पदोन्नति के लालच में स्वर्ग के परम आनन्द और धवलता को हमेशा के लिये खो दिया। फिर भी, इन सभी चेतावनियों के बावजूद लालच बहुत फैला हुआ है।PPHin 507.4

    सभी स्थानों पर उसका लिसलिसा पथ दिखाई देता है। यह परिवारों में असंतोष और मतभेद उत्पन करता है, यह गरीबों में धनवानों के प्रति ईर्ष्या और घृणा को उकसाता है, यह धनवानों का निर्धनों के प्रति कष्टकर अत्याचार को प्रोत्साहन देता है। और यह पाप केवल संसार में ही नहीं, वरन्‌ कलीसिया में भी विद्यमान है। यहाँ भी “दश्वांश और चन्दे” में स्वार्थ, धनलोलुपता, ठगी, धर्मदान की उपेक्षा, और परमेश्वर के भाग की चोरी का प्रचलन कितना सामान्य है! बड़े दुख की बात है कि कलीसिया के प्रतिष्ठित लोगों में भी कई आकान है। कई कली व्यक्ति, गिरजाघर में आते है, परमेश्वर की मेज पर बैठते हैं, लेकिन उनकी सम्पत्ति में अवैध लाभ की वस्तुएँ छुपी होती हैं, वे वस्तुएँ जो परमेश्वर द्वारा श्रापित है। शिनार के सुन्दर वस्त्र के लिये लाखों स्वर्ग के लिये उनकी आशा और अंत: करण की सहमति का त्याग कर देते है। कई लोग अपनी सत्यनिष्ठा और सार्थकता हेतु उनकीयोग्यता का, चाँदी के सिक्‍कों की थेली के लिये सौदा कर लेते है। कष्ट उठाते हुए दरिद्रों की पुकार पर ध्यान नहीं दिया जाता है, सुसमाचार का प्रकाश अपने मार्ग मे बाधित होता है, मसीही व्यवसाय को झुठलाने वाली प्रथाएं सांसारिक व्यक्तियों के तिरस्कार को सुलगाता है, लेकिन फिर भी लालची व्यवसायी निधि को ढेर लगाना जारी रखता है। मलाकी में, परमेश्वर कहता है, “क्या मनुष्य परमेश्वर को धोखा दे सकता है? पर देखो, तुम मुझ को धोखा देते हो।” PPHin 508.1

    आकान के पाप के कारण सम्पूर्ण राष्ट्र का अनर्थ हुआ। एक व्यक्ति के पाप के कारण परमेश्वर कलीसिया से तब तक अप्रसन्‍न रहेगा जब तक पाप को ढूंढ कर दूर न कर दिया जाए। कलीसिया को जिस प्रभाव से सबसे अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है वह प्रत्यक्ष विरोधियों अधर्मियों या मूर्तिपूजकों से नहीं वरन्‌ मसीह के असंगत आचार्यों के प्रभाव से सावधान रहने की आवश्यकता है। यही वे लोग हैं, जो इजराईल परमेश्वर की आशीषों पर रोक लगा देते हैं और उसके लोगों को शक्तिहीन कर देते हैं।PPHin 508.2

    जब कलीसिया कठिनाई में होती है, जब उदासीनता और आध्यात्मिक अवनति विद्यमान रहती है, और परमेश्वर के शत्रुओं को जीतने का अवसर देती हैं, तब अपनी अप्रसन्‍न अवस्था पर रोने और मुट्ठी बन्द करने के बजाय, उसके सदस्यों को पता लगाना चाहिये कि कहीं उनकी छावनी में कोई आकान तो नहीं। दीनता और आत्म विश्लेषण के साथ प्रत्येक को परमेश्वर की उपस्थिति को बाहर रखने वाले गुप्त पापों को पहचानना चाहिये।PPHin 509.1

    आकान ने अपना दोष स्वीकार किया, लेकिन उसके अंगीकार करने से उसको लाभ होने में बहुत देर हो चुकी थी ।उसने इज़राइल की सेना को ऐ से पराजित और हतोत्साहित होकर लौटते देखा था, लेकिन फिर भी उसने आगे आकर अपने पाप का अंगीकार नहीं किया। उसने यहोशू और इज़राइल के पुरनियों को अकथनीय दुख के साथ पृथ्वी पर झुके हुए देखा था। यदि उसने उस समय अपना पाप स्वीकार किया होता, तो उसने वास्तविक प्रायश्चित का कुछ प्रमाण दिया होता, लेकिन वह तब भी चुप रहा। उसने किये हुए महान पाप की घोषणा सुनी थी, और उस पाप के स्वभाव का स्पष्ट विवरण भी सुना था, लेकिन उसके होठ पर मानो ताला लगा हुआ था। फिर औपचरिक जांच पड़ताल की गई । उसकी आत्मा किस प्रकार भय से काँप उठी जब उसके गोत्र की ओर संकेत किया गया, फिर उसके परिवार और फिर घराने को। लेकिन तब भी उसने अंगीकार के शब्द न कहे, जब तक कि परमेश्वर ने उस पर अंगुली नहीं रखी । फिर, जब उसका पाप और छुपाया नहीं जाया सकता था, उसने सच्चाई को स्वीकार किया। कितनी बार ऐसे पाप स्वीकरण किये जाते है। तथ्यों को उनके प्रमाणित होने के पश्चात स्वीकार करने औरउन पापों का अंगीकार करने में जिनसे केवल हम और परमेश्वर परिचित हैं बहुत अन्तर है। यदि आकान को यह आशा नहीं होती कि पापों का अंगीकार करने से वह अपने अपराध के परिणाम को रोक लेगा, तो उसने कभी अंगीकार नहीं किया होता। लेकिन उसके पाप के अंगीकरण से केवल यह प्रमाणित हुआ कि उसको दिया गया दण्ड न्यायसंगत था। पाप के लिये कोई वास्तविक प्रायश्चित नहीं था, कोई पछतावा नहीं था, उद्देश्य में कोई परिवर्तन नहीं था और ना ही पाप के प्रति घृणा थी। प्रत्येक मनुष्य से सम्बन्धित जीवन या मृत्यु के निर्णय के पश्चात जब वे परमेश्वर के न्यायालय के सम्मुख खड़े होंगे, तब दोषियों द्वारा ऐसे ही पाप अंगीकरण किये जाएँगे। उसी पर आने वाले परिणाम उसे अपने पाप को स्वीकार करने के लिये विवश कर देंगे। दण्डाज्ञा का भयावह आभास और तिरस्कार की भयानक अनुभूति के द्वारा आत्मा ऐसा करने के लिये विवश हो जाएगी। लेकिन ऐसे पाप-अंगीकरण पापी को बचा नहीं सकते।PPHin 509.2

    जब तक वे अपनेपापों को अपने सहवासियों से छुपा सकते हैं, कई लोग, आकान की तरह, सुरक्षित महसूस करते है और स्वयं को सन्‍्तोष दिलाते है कि परमेश्वर उनके अधर्म को अंकित करने में कठोर नहीं होगा। बहुत देर हो चुकी होगी जब उनके पाप उन्हें उस दिन ढूंढ निकालेंगे, जब वे कभी भी बलिदान या भेंट से पवित्र नहीं हो सकेंगे। जब स्वर्ग के अभिलेख खोले जाएँगे, न्यायाधीश मनुष्य को उसके पाप शब्दों में घोषित नहीं करेगा, वरन्‌ एक मर्मज्ञ, दोषविभावक दृष्टि डालेगा, और प्रत्येक कर्म जीवन का प्रत्येक लेन-देन अपराधी की स्मृति पर व्यापक प्रभाव डालेगा। जैसे कि यहोशू की दिनों में किया गया, इस व्यक्ति को गोत्र से लेकर परिवार तक ढूंढने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी,उसके अपने होंठ उसके पाप का अंगीकार करेंगे। वह पाप जो मनुष्य की जानकारी से छुपे हुए थे पूरे जगत में घोषित किये जाएँगे।PPHin 510.1

    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents