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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 51—दरिद्रों के लिये परमेश्वर का दायित्व

    धार्मिक विधि के लिये लोगों के एकत्रित होने का बढ़ावा देने के लिये, और दरिद्रों की सहायता के लिये अधिक्य के द्वितीय दश्वांश की अपेक्षा की जाती थी। प्रथम दश्वांश के सम्बन्ध में, परमेश्वर ने घोषणा की थी, “मैं उनको इज़राइलियों का सब दश्वांश उनका निज भाग करके देता हूँ””-गिनती 18:21। दूसरी आज्ञा के सन्दर्भ में उसने आदेश दिया, “जिस स्थान को तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उसमें अपने अन्न और नए दाखमधु, तेल का दश्वांश और अपने भेड़ बकरियों और गाय-बैलों के पहलौठे अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख खाया करना, जिससे तुम उसका भय मानना नित्य सीखेगे।” व्यवस्थाविवरण 14:23। उन्हें दो वर्षो तक यह दश्वांश या इसके समतुल्य राशि, पवित्र स्थान के स्थापन के स्थान पर लेकर आना था। परमेश्वर को धन्यवाद की भेंट और याजक को एक निर्दिष्ट भाग देने के पश्चात भेंटकर्ता को अवशेष का उपयोग एक धार्मिक पर्व में करना होता था, जिसमें लेवी, परदेशी, पितृहीन और विधवाओं को भाग लेना था। इस प्रकार वार्षिक त्यौहारों पर भोज और धन्यवाद की भेंट का प्रबन्ध किया जाता था, और लोगों को लैवियों और याजकों की संगति में आने के लिये आकर्षित किया जाता था, जिससे वे परमेश्वर की सेवा के लिये प्रोत्साहन और निर्देश प्राप्त कर सके।PPHin 545.1

    तीन-तीन वर्ष के बीतने पर, यह दूसरा दश्वांश अपने घरों में निर्धनों और लेवियों के सत्कार के लिये उपयोग में लाना था, जैसा कि मूसा ने कहा, “वे तेरे फाटकों के भीतर खाकर तृप्त हो”-व्यवस्थाविवरण 26:12। यह दश्वांश धर्मार्थ और अतिथ्य के उपयोग के लिये धन-राशि जुटाता था।PPHin 545.2

    निर्धनों के लिये अतिरिक्‍त प्रावधान किया गया। परमेश्वर के भाग को मान्यता देने के पश्चात, ऐसा कुछ नहीं हैं, जो निर्धनों के प्रति उदार, विनम्र और सत्कारशील भावना रखने के आदेश की तुलना में, मूसा द्वारा दिये गये नियमों को और विशिष्ट ठहराता हो। हालाँकि परमेश्वर ने उसके लोगों को बहुत आशिषित करने की प्रतिज्ञा की है, उसकी यह योजना कभी नहीं थी कि वे निर्धनता से पूर्णतया अपरिचित रहे। उसने घोषणा की कि देश के बाहर निर्धन कभी समाप्त नहीं होंगे। उसके लोगों के मध्य में ऐसे लोग अवश्य होंगे जिनके लिये उनके सहानुभूति, विनम्रता, और उदारता का अभ्यास आवश्यक होगा। वर्तमान समय के जैसे, तब भी लोग अनर्थ, बीमारी और सम्पत्ति की क्षति के पात्र होते थे, लेकिन जब तक वे परमेश्वर के निर्देशों का पालन करते रहते थे, उनके बीच में कोई भिखारी नहीं होता था, और ना ही किसी को खाने की घटी होती थी।PPHin 545.3

    परमेश्वर की व्यवस्था निर्धनों को मिट्टी की उपज के एक निश्चित भाग पर अधिकार देती थी। भूख लगने पर कोई भी व्यक्ति स्वतन्त्रता से अपने पड़ोसी के खेत या फलोद्यान में जाकर अन्न या फल खाकर अपनी भूख को तृप्त कर सकता था। इसी अनुमति के तदानुसार यीशु के अनुयायियों ने अन्न की खड़ी बालियों को उखाड़कर खाया, जब वे सबत के दिन एक खेत में होकर निकल रहे थे।PPHin 546.1

    खलिहान, फलोद्यान और दाख की बारी में बटोरे जाने वाला भाग निर्धनों के लिये होता था। मूसा ने कहा, “जब तू अपने खेत की पकी फसल को काटे, और एक पूला खेत में भूल से छूट जाए, तो उसे लेने को फिर न लौटना.......जब तू अपने जैतून के वृक्षों का झाड़े, तब तू डालियों को दूसरी बार नहीं झाड़ना....... जब तू अपनी दाख की बारी के फल तोड़े, तो उसका दाना-दाना न तोड़ लेना, वह परदेसी, अनाथ और विधवा के लिये होगा। और इसको स्मरण रखना कि तू मिस्र देश में दास था।” -व्यवस्थाविवरण 24:19-22, लैवव्यवस्था 19:9,10 ।PPHin 546.2

    प्रत्येक सातवें वर्ष निर्धनों के लिये विशेष प्रावधान रखा जाता था। विश्रामकालीन वर्ष, जैसा कि इसे कहा जाता था, फसल-कटाई के अन्त से प्रारम्भ होता था। संचयन के पश्चात बीजारोपण के समय, लोगों को बीज बोना मना था, बसन्त ऋतु में दाख की बारियों को छाँटना मना था, और उन्हें फसल या अंगूर की पैदावार की अपेक्षा नहीं रखनी थी। भूमि से स्वाभाविक रूप से उत्पन्न फल को वह ताजा-ताजा खा सकते थे, लेकिन उस उपज का थोड़ा सा भी भाग को भण्डारग्रह में ले जाकर रखना मना था। इस वर्ष की उपज परदेशियों, पितृहीनों, विधवाओं और मैदानों के जीव-जन्तुओं के लिये निःशुल्क होती थी। PPHin 546.3

    लेकिन यदि खेत सामान्यतः लोगों की आवश्यकता पूर्ति के लिये ही पर्याप्त उपज उत्पन्न करता, तो वे उन वर्षा में जब कोई उपज इकटठी नहीं की जाती थी, उन्हें किस प्रकार निर्वाह करना था? इस के लिये परमेश्वर की प्रतिज्ञा ने पर्याप्त प्रावधान रखा” मैं तुमको छठवें वर्ष में ऐसी आशीष दूँगा कि भूमि की उपज तीन वर्ष तक काम आएगी। तुम आठवें वर्ष में बोओगे, और पुरानी उपज में से खाते रहोगे, ओर नवें वर्ष की उपज जब तक न मिले, तब तक तुम पुरानी उपज में से खाते रहोगे । - लैवव्यवस्था 25:21,22 । PPHin 546.4

    विश्रामकालीन वर्ष का अनुपालन खेत और खेतिहरों यानि किसानो दोनों के लिये लाभदायक था। एक ऋतु के लिये बिना जोती भूमि बाद में बहुतायत से अन्न उत्पन्न करती थी। लोग खेतों के कठोर परिश्रम से मुक्त हो जाते थे, और हालाँकि इस समय के दौरा कार्य के अन्य विभागों में कार्य किया जा सकता था, लेकिन सभी कुछ समय विश्राम करने में व्यतीत करते थे, जिससे आने वाले वर्षो के कठोर परिश्रम के लिये उनकी शारीरिक शक्ति पूर्वावस्था को प्राप्त कर सके । उन्हें प्रार्थना और चिन्तन के लिये, परमेश्वर की सीख और अपेक्षाओं से स्वयं को परिचित कराने के लिये, और अपने घरानों को निर्देश देने के लिये अतिरिक्त समय मिल जाता था।PPHin 547.1

    विश्रामकालीन वर्ष में दासों को मुक्त किया जाता था, और उन्हें बिना निज भाग दिये नहीं भेजा जाता था। परमेश्वर का निर्देश था, “जब तू उसको स्वतनत्र करके अपवने पास से जाने दे तब उसे खाली हाथ न जाने देना, वरन्‌ अपनी भेड़-बकरियों और खलिहान और दाखमधु के क॒ण्ड में से उसको बहुतायत से देना, तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे जैसी आशीष दी हो, उसी के अनुसार उसे देना ।” व्यवस्थाविवरण 15:13,14।PPHin 547.2

    श्रमिक का परिश्रमिक यथासमय दिया जाना था, “कोई श्रमिक जो दीन और कंगाल हो, चाहे वह तेरे भाईयों में से हो या देश के फाटकों के भीतर रहने वाले परदेशियों में से हो, उस पर अन्धेर न करना। यह जानकर कि वह दीन है और उसका मन मजदूरी में लगा रहता है, मजदूरी करने के दिनही, सूर्यास्त से पहले, तू उसकी मजदूरी देना ।”-व्यवस्थाविवरण 24:14,15। PPHin 547.3

    कार्यरत पलायकों से सम्बन्धित व्यवहार के लिये भी विशेष निर्देश दिए गए, “जो दास अपने स्वामी के पास से भागकर तेरी शरण ले उसको उसके स्वामी के हाथ न पकड़ा देना। वह तेरे बीच जो नगर उसे अच्छा लगे उसी में तेरे संग रहने पाए, तू उसका उत्पीड़न न करना।”-व्यवस्थाविवरण 23:15,16।PPHin 547.4

    निर्धन के लिये, सातवाँ वर्ष ऋण से मुक्ति का वर्ष होता था। इब्रियों को हर समय आदेश दिया जाता था कि वे अपने भाईयों को बिना ब्याज के धन राशि उधार देकर, सहायता प्रदान करें। निर्धन से अत्यधिक ब्याज दर वसूलना बिल्कुल मना था, “यदि तेरे कोई भाई बन्धु कंगाल ही हो जाए, और उसकी दशा तेरे सामने तरस योग्य हो जाए, तो तू उसको सम्भालना, वह परदेशी या यात्री के समान तेरे संग रहे। उससे तू ब्याज या बढ़ती न लेना, परमेश्वर का भय मानना, जिससे तेरा भाई बन्धु तेरे संग जीवन निर्वाह कर सके। उसको ब्याज पर रूपया न देना, और जो भोजन वह करे, उस पर कोई लाभ लेने का प्रयत्न न करना” लैवव्यवस्था 25:35-37 । यदि ऋण मुक्ति के वर्ष तक भी चुकाया ना जा सके, तो मूलधन भी पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता था। लोगों को स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि वे इस कारण से अपने भाई बन्धुओं को आवश्यक सहायता से वंचित न रखे। “यदि तेरे भाईयों में से कोई दरिद्र हो, तो अपने उस दरिद्र भाई के लिये न तो अपना हृदय कठोर करना और न अपनी मुट्ठी कड़ी करना......सचेत रह कि तेर मन में ऐसी बुरा विचार न आए कि सातवाँ वर्ष जो, छुटकारे का वर्ष है, वह निकट है और तू अपने उस भाई पर कृदृष्टि डाले और उसे कुछ न दे, और वह तेरे विरूद्ध यहोवा की दुहाई दे, तो यह तेरे लिये पाप ठहरेगा।” “तेरे देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएँगे, इसलिये मैं तुझे यह आज्ञा देता हूँ कि तू अपने देश में अपने दीन दरिद्र भाईयों को अपना हाथ ढीला करके अवश्य दान देना” “जिस वस्तु की घटी उसको हो, उसकी जितनी आवश्यकता हो उतना अवश्य अपना हाथ ढीला करके उसको उधार देना।”-व्यवस्थाविवरण 15:7-9, 11,8। PPHin 547.5

    किसी को डरने की आवश्यकता नहीं कि उनकी उदारता उनकी घटी का कारण होगी। परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन निश्चय ही समृद्धि में परिणामित होगा। यहोवा ने कहा, “तू बहुत जातियों को उधार देगा, परन्तु तुझे उधार न लेना पड़ेगा, और तू बहुत जातियों पर प्रभुता करेगा, परन्तु वे तुझ पर प्रभुता न कर पाएंगी ।-व्यवस्थाविवरण 15:6।PPHin 548.1

    ‘सात विश्रामवर्षः अर्थात ‘सात गुना सात वर्ष पश्चात छुटकारे का महान वर्ष-जुबली आता था। “तब तू जुबली के महाशब्द का नरसिंगा अपने सारे देश में फुंक्‍कवाना। और उस पचासवें वर्ष को पवित्र मानना और देश के सारे निवासियों के लिये छूटकारे का प्रचार करना, वह वर्ष तुम्हारे यहाँ जुबली कहलाए, उसमें तुम अपनी अपनी निज भूमि और अपने अपने घराने में लौटने पाओगे।” - लैवव्यवस्था 24:9,10।PPHin 548.2

    “तब सातवें महीने के दसवें दिन को, अर्थात प्रायश्चित के दिन” जुबली का नरसिंगा फेंका जाता था। पूरे देश में, जहाँ कहीं भी यहूदी लोग रहते थे, मुक्ति वर्ष के स्वागत के लिये याकूब की सन्तानों को पुकारते हुए, यह महाशब्द सुनाई पड़ता था। प्रायश्चित के दिन, इज़राइल के पापों का ऋण चुकाया जाता था और हार्दिक प्रसन्‍नता के साथ लोग ‘जुबली’ का स्वागत करते थे।PPHin 549.1

    विश्रामकालीन वर्ष के समान, भूमि को न जोता जाना था ना उसकी फसल को काटा जाना और उसकी उपज को निर्धन की आधिकारिक सम्पत्ति माना जाना था। इब्री दासों के उन विशेष वर्गों को जिन्हें विश्रामकालीन वर्ष में स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं हुई थी, उन्हें अब मुक्त कर दिया जाता था। लकिन जो जुबली के वर्ष की विशिष्टता थी वह यह थी कि समस्त अचल सम्पत्ति उसके मूल स्वामी के परिवार को लौटा दी जाती थी। फिर परमेश्वर के विशेष निर्देश द्वारा चिटठी डालकर भूमि का विभाजन किया जाता था। विभाजन के पश्चात किस को भी उसकी भू-संपत्ति का सौदा करने की स्वतन्त्रता नहीं थी। ना ही वह अपनी भूमि को बेच सकता था, जब तक कि निर्धनता उसे विवश न कर दे, और फिर जब भी वह या उसका कोई परिजन उस भूमि को पुनः प्राप्त करना चाहे, तो खरीदने वाले को उसे बेचने से इन्कार नहीं करना था, और यदि इसे खरीदा न जा सके तो वह भूमि जुबली के वर्ष में पुनः उसके प्रथम स्वामी या उसके उत्तराधिकारी की हो जाती थी। PPHin 549.2

    परमेश्वर ने इज़राइल को घोषणा की, “भूमि सदा के लिये बेची न जाए, क्योंकि भूमि मेरी है, और उसमें तुम परदेशी और बाहरी होगे”-लैवव्यस्था 25:23 । प्रजा को इस तथ्य से प्रभावित करना था कि वह भूमि परमेश्वर की थी, जिसका स्वामी होने की अनुमति उन्हें कुछ समय के लिये दी गई थी, और यह कि वह उस भूमि का वास्तविक स्वामी था, मूल स्वत्वधारी, और यह कि वह निर्धनों और अभागों का विशेष ध्यान रखवाला है। लोगों के मनों में इस बात को बैठाना था कि परमेश्वर के जगत में दरिद्रों को स्थान का उतनाही अधिकार है जितना के धनवानों का है।PPHin 549.3

    हमारे दयावान सृष्टिकर्ता द्वारा, कष्टों को कम करने के लिये, आशा की कोई किरण लाने के लिये, परेशान और निराश्रितों के जीवन में प्रसन्‍नता का प्रकाश चमकाने के लिये ऐसे प्रावधान रखे गए।PPHin 549.4

    प्रभु ने सत्ता और सम्पत्ति से असामान्य प्रेम पर रोक लगाईं। एक वर्ग द्वारा लगातार धन का संचय करने से, और दूसरे वर्ग की निर्धनता और पतन से बहुत सी बुराईयाँ उत्पन्न हो जाती। अंकुश के अभाव में धनवानों की सत्ता एकाधिकार हो जाती, और निर्धन, परमेश्वर की दृष्टि में हर तरह से योग्य होने पर भी अपने अधिक समृद्ध भाई-बन्धुओं द्वारा तुच्छ माने जाते। इस उत्पीड़न का आभास निर्धन वर्ग के मनोविकारों को उत्तेजित करता। निराशा और बेबसी की भावना व्याप्त होती जो समाज को नीतिमग्रष्ट करने और प्रत्येक प्रकार के अपराधों के लिये द्वार खोल देती। परमेश्वर द्वारा स्थापित नियम सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिये बनाए गए थे। विश्रामकालीन वर्ष और ‘जुबली’ के प्रयोजन ने, काफी हद तक, उसे सही किया जो मध्यांतर के दौरान राज्य की सामाजिक व राजनैतिक अर्थव्यवस्था में गलत हो गया था। PPHin 550.1

    ये नियम धनवानों व गरीबों दोनो को आशीष देने के लिये बनाए गये थे। वे लालच और स्वयं की प्रशंसा के स्वभाव पर रोक लगाकर, उदारता की नेक भावना को विकसित करते, और सभी वर्गों के बीच विश्वास और सदभावना को बढ़ावा देकर सत्ता के स्थायित्व और सामाजिक व्यवस्था में सहायक होते। हम सभी मानवता के विशाल जाल में बुने हुए हैं, और जो कुछ भी हम दूसरों को ऊपर उठाने और लाभान्वित करने के लिये कर सकते है, वह हम पर आशीषों में प्रतिबिम्बित होगा। निर्धन और धनवान दोनो ही समान रूप से एक-दूसरे पर निर्भर है। जहाँ एक वर्ग उन आशीषों में हिस्सा माँगता है जो परमेश्वर ने उसके उससे अधिक धनवान पड़ोसियों को दी है, और दूसरों को आवश्यकता थी सत्यनिष्ठा सेवा, बुद्धि, हडडी और मॉँसपेशी की ताकत की, जो निर्धन की पूँजी है।PPHin 550.2

    परमेश्वर के निर्देशों का पालन करने की शर्त पर इज़राइल को बहुत आशीषों का वचन दिया, “मैं तुम्हारे लिये समय-समय पर वर्षा भेजूँगा, भूमि अपनी उपज उपजाएगी और मैदान के वृक्ष अपने-अपने फल दिया करेंगे। यहाँ तक कि तुम्हारा अनाज निकालने का काम तब तक चलेगा जब तक अंगूर इकट्ठा करने का समय आएगा, और अँगूर का इकट्ठा करना तब तक चलेगा जब तक बोने का समय आएगा। तब तुम्हारे पास खाने के लिये बहुत होगा, और तुम अपने प्रदेश में सुरक्षित रहोगे। मैं तुम्हारे देश को शान्ति दूंगा। तुम शान्ति से सो सकोगे। कोई तुम्हे भयभीत करने न आएगा, में विनाशकारी जानवरों को तुम्हारे देश से बाहर रखूँगा। और सेनाएँ तेरे देश से नहीं गुजरेंगी। मैं तुम्हारे साथ चलूँगा और तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा और तुम मेरे लोग रहोगे। किन्तु यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करोगे और मेरे ये सब आदेश नहीं मानोगे तो तुम्हारा बीज बोना व्यर्थ होगा, क्योंकि तुम्हारे शत्रु उसकी उपज खा लेंगे। और मैं भी तुम्हारे विरूद्ध हो जाऊंगा, और तुम अपने शत्रुओं से हार जाओगे। तुम्हारे बैरी तुम्हारे ऊपर अधिकार करेंगे, और जब कोई तुम को खदेड़ता भी न होगा तक भी तुम भागोगे” - लैवव्यवस्था 26:4,17।PPHin 550.3

    कई हैं जो बड़े उत्साह से आग्रह करते है कि परमेश्वर की सांसारिक आशीषों में सभी मनुष्यों का बराबर का भाग होना चाहिये। लेकिन यह परमेश्वर का उद्देश्य नहीं था। अवस्था में विविधता कई साधनों में से एक है जिसके माध्यम से परमेश्वर चरित्र को प्रमाणित और विकसित करता है। लेकिन वह चाहता है कि जिनके पास सांसारिक सम्पत्ति है, वे स्वयं को उन वस्तुओं का केवल भण्डारी माने, जिनके सुपुर्द वो साधन किये गए हैं जो जरूरतमंदों और दुखियों के लाभ के लिये उपयोग किये जाने हैं।PPHin 551.1

    मसीह ने कहा है कि निर्धन हमारे साथ हमेशा होंगे और वह अपने अधिकार को अपने पीड़ित लोगों के अधिकार के साथ जोड़ देता है। हमारे उद्धारकर्ता का ह्रदय उसके सबसे दीन और दरिद्र मनुष्य के लिये सहानुभूति दिखाता है। वह कहता है कि वे पृथ्वी पर उसके प्रतिनिधि हैं। उसने उन्हे हमारे मध्य इसलिये रखा है कि ताकि हमारे हृदयों में वह प्रेम जागृत हो सके जैसा वह दुखियों और उत्पीड़ितों के लिये करता है। उनको दिखाई गई उदारता और दया परमेश्वर द्वारा ऐसे स्वीकार की जाती है, मानो वह उसी को दिखाई गईं हो। उनके प्रति उपेक्षा या निर्दयता का कृत्य परमेश्वर के प्रति किया गया माना जाता है।PPHin 551.2

    यदि निर्धनों के लाभ के लिये परमेश्वर द्वारा दी गईं व्यवस्था का कियान्वन जारी रहता, तो कितनी भिन्‍न होती संसार की वर्तमान स्थिति नैतिक, आध्यात्मिक और संसारिक रूप से! आज की तरह स्वार्थ और अंहकार दर्शाया नहीं जाता, वरन्‌ सभी दूसरों के कल्याण और आनन्द के विचार को पनपने देता, और जैसी व्यापक निराश्रयता आज कई देशों में देखी जाती है, यह विद्यमान नहीं होती।PPHin 551.3

    परमेश्वर द्वारा दिए गए सिद्धान्त, उन सभी बुराईयों को होने से रोकते, जो धनवानों के प्रति निर्धनों की घृणा और सन्देह और निर्धनों के प्रति धनवानों के उत्पीड़न का परिणाम है। ये सिद्धान्त अत्यधिक धन दौलत के संचय करने और असीमित भोग विलास की तुष्टि पर रोक लगाकर, उन हजारों के पतन और उनके फलस्वरूप अज्ञानता पर रोक लगाते, जिनकी बेगारी के दम पर यह विपुल सम्पत्ति इकट्‌ठी की जाती है। वे उन समस्याओं का शान्तिपूर्ण उपाय प्रदान करते जो अभी संसार को रक्‍तपात और अराजकता से भर देने का भय उत्पन्न करती है।PPHin 551.4

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