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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    परिचय

    यह रचना बाईबल इतिहास के उन विषयों को जो अपने आप में नए नहीं है, इस तरह प्रस्तुत करती है कि उन्हें एक विशेष महत्व मिलता है; यह कार्यशीलता को उजागर करती है और कई गतिविधियों के महत्वपूर्ण प्रभाव को बताती है और संक्षिप्त रूप से उल्लिखित बाईबल के महत्वपूर्ण लेखों पर प्रकाश डालती है। इस प्रकार उन दृश्यों में वो महत्व और जीवंतता है जो नया और चिरस्थायी प्रभाव डालते है। इस तरह के प्रकाश से परमेश्वर का चरित्र और उसके उद्देश्य पूरी तरह उजागर होते हैं, शैतान के छल-कपट और वह साधन जिससे उसको अन्त में परास्त किया जाएगा, सामने आते है, मानव हृदय की कमजोरियाँ सामने आती है और हमें पता चलता है कि किस तरह परमेश्वर का अनुग्रह हमें बुराई पर विजय पाने के लिये सक्षम बनाता है। यह सब वचन की सच्चाई को मनुष्य पर प्रकट करने में परमेश्वर के उद्देश्य के अनुरूप है। जब पवित्र-शास्त्र की सहायता से परीक्षण किया जाता है, तब उस एजेन्सी का पता चलता है जिसने यह रहस्योदघाटन किया है और यह तरीका परमेश्वर आज भी मनुष्य के पुत्रों को निर्देश देने के लिये अपनाता है।PPHin 6.1

    आदि में मानव अपनी पवित्रता और निष्कपटता में परमेश्वर से व्यक्तिगत निर्देशन पाता था, जैसा कि वर्तमान में नहीं, परन्तु फिर भी मनुष्य एक ईश्वरीय शिक्षक से वंचित नहीं है क्‍योंकि उसे यह पवित्र आत्मा, जो परमेश्वर का प्रतिनिधि है, के रूप में प्रदान किया गया है। इसलिये प्रेरित पौलुस कहता है कि परमेश्वर के अनुयायिओं के पास एक निश्चित ईश्वरीय प्रकाश का विशेषाधिकार है और पवित्र-आत्मा के सहयोगी बनाए जाने के कारण वे प्रबुद्ध है-इब्रानियों 10:32, 6:4। यहुन्ना भी कहता है, “किन्तु तुम्हारा तो उस परम पवित्र ने आत्मा के द्वारा अभिषेक कराया है।” यीशु मसीह अपने चेलों को छोड़ने वाला था, उसने उन्होंने उनसे वायदा किया “मैं परम पिता से विनती करूँगा। और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक देगा, ताकि वह सदा तुम्हारे साथ रह सके ।” यहुन्ना 14:16PPHin 6.2

    यह बताने के लिये कि किस तरह कलीसिया में यह प्रतिज्ञा का पूर्ण होना निश्चित था, पौलुस अपनी दो पत्रियों में घोषणा करता है कि अन्त समय तक कलीसिया को आत्मा के वरदान दिये गए हैं-(कुरिन्थियों 12, इफसियों 4:8--13, मत्ती 28:20)। इसके अलावा कई स्पष्ट भविष्यद्वाणियाँ घोषित करतीPPHin 6.3

    है कि अन्तिम दिनों में पवित्र-आत्मा का विशेष प्रवाह होगा और यीशु मसीह के दूसरे आगमन से पहले कलीसिया के पास यीशु मसीह की साक्ष्य होगी-(प्रेरितों के काम 2:17-20, 39;:1 कुरिन्थियों 1:7; प्रकाशित वाक्य 12:17; प्रकाशित वाक्य 19:140)। इन तथ्यों में हम परमेश्वर का अपने लोगों के प्रति दायित्व और प्रेम का प्रमाण देखते हैं क्योंकि कलीसिया को उसके अनुभव के किसी भी अन्य भाग से अधिक अन्तिम समय की आपदाओं का सामना करते समय कार्यविधि के साधारण ही नहीं, वरन्‌ असाधारण तरीकों में भी पवित्र आत्मा की एक सानन्‍्तवना देने वाले, एक शिक्षक और एक मार्गदर्शक के रूप में उपस्थिति की आवश्यकता होगी। PPHin 7.1

    पवित्र-शास्त्र उन विभिन्‍न माध्यमों की और इशारा करता है जिनके द्वारा पवित्र-आत्मा मानव जाति का मार्गदर्शन करने और उनकी समझ को ज्योतिमान करने हेतु उनके मन और मस्तिष्क पर काम करेगा। स्वप्न और ईश्वरीय दर्शन इसका उदाहरण है। इस तरह परमेश्वर मनुष्य के पुत्रों के साथ संपर्क करेगा। परमेश्वर का वायदा है, “यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूँगा या स्वप्न में उससे बात करूँगा।” गिनती 12:6PPHin 7.2

    इसलिये परमेश्वर ने कहा, “बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आँखे बन्द थी उसी की यह वाणी है, ईश्वर के वचनों को सुनने वाला और परमप्रधान के ज्ञान को जानने वाला, जो दण्डवत में पड़ा हुआ खुली हुई आँखों से सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है”। गिनती 24:15,16।PPHin 7.3

    इस प्रकार, यह जानने के लिये कि परमेश्वर ने मनुष्य को परख-अवधि के दौरान, कलीसिया में पवित्र आत्मा के स्वयं प्रकट होने की योजना किस हद तक बनाई, पवित्र शास्त्र की गवाही का विवेचन करना अत्यन्त रूचि का विषय बन जाता है।PPHin 7.4

    उद्धार की योजना के बनाए जाने के पश्चात, परमेश्वर, जैसा कि हमने देखा, अभी भी, अपने पुत्र की सेवकाई और पवित्र दूतों के माध्यम से मनुष्य के साथ संपर्क कायम रख सकता था, हालाँकि पाप ने मनुष्य और उसके बीच एक खाई पैदा कर दी थी। कभी-कभी वह मनुष्य से रूबरू बात करता था जैसे कि मूसा के साथ, लेकिन अधिकतर वह स्वप्न और ईश्वरीय दर्शन का तरीका अपनाता था। संसार का ये साधन पवित्र लेख में कई जगह वर्णन किया गया है। हनोक, जो आदम से सातवीं पीढ़ी में था, यीशु मसीह के दूसरे आगमन की अपेक्षा में था, “देखो, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया”। यहूदा 1:14PPHin 7.5

    “भकक्‍तजन पवित्र-आत्मा की प्रेरणा से परमेश्वर की ओर से बोलते थे”-2 पतरस 1:21 यद्यपि लोगों की आत्मिकता कमजोर होने पर भविष्यद्वाणी की आत्मा का परिचालन गायब होना प्रतीत होता है, लेकिन वह उन सारे संकटो के समय जिनका कलीसिया ने अनुभव किया, और उन सभी युगों में जो बदलाव के साक्षी है विद्यमान रही है। जब यीशु के अवतार के लिए उल्लेखनीय युग आया, तब यहुन्ना बपतिस्मा देने वाले के पिता ने पवित्र आत्मा से भरपूर होकर भविष्यद्वाणी की-लूका 1:67 । शिमौन को बताया गया कि जब तक वह प्रभु को नहीं देख लेगा तब तक वह मृत्यु नहीं देखेगा और जबयीशु के माता-पिता उन्हें यहोवा को अर्पण करने मन्दिर में लाए, तब शिमौन आत्मा के प्रभाव से मन्दिर में आया, बालक यीशु को अपनी गोद में लिया और उसे आशिषित करते हुए उससे सम्बन्धित भविष्यद्वाणी की। उसी समय हन्नाह, जो एक नबी थी, आई और जो लोग यरूशलेम के छुटकारे की बाट जोह रहे थे, उन सब को उस बालक के बारे में बताया-लूका 2:26,36।PPHin 8.1

    यीशु के अनुयायियों द्वारा प्रचार के दौरान पवित्र-आत्मा के प्रवाह की घोषणा नबी ने इन शब्दों में की-“उन बातों के बाद में सब प्राणियों पर अपना आत्मा उण्डेलूँगा, तुम्हारे बेटे-बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगे और तुम्हारे पुरनिये स्वप्न देखेंगें और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगें तुम्हारे दास और दासियों पर भी में उन दिनों में अपना चमत्कार अर्थात लू और आग और धुएं के खम्भे दिखाऊंगा। यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धकारमय होगा और चन्द्रमा रक्त सा हो जाएगा।“योएल 2:28-31।PPHin 8.2

    पेंटिकास्ट के दिन, पतरस ने उस समय के सुन्दर दृश्य का वर्णन करते हुए, इस भविष्यद्वाणी को उद्धृत किया, “आग के समान दो भागों वाली जीभ हर चेले पर बैठ गईं और वे पवित्र आत्मा से भरपूर होकर अन्य भाषाओं में बोलने लगे। और जब दूसरे लोगों ने प्रेरितों का उपहास करते हुए कहा, “ये सब कुछ ज्यादा ही नयी दाखरस चढ़ा गए है” पतरस ने उत्तर दिया, “ये लोग पिये हुए नहीं है, जैसे कि तुम समझ रहे हो, क्योंकि अभी तो दिन का तीसरा पहर ही है। बल्कि यह वह बात है जिसके बारे में योएल नबी ने कहा था। ” और फिर उसने भविष्यद्वाणी को उद्धृत किया, जैसे कि योएल की पुस्तक में पाई जाती है, लेकिन “बाद में” शब्द के बदले पतरस ने “अन्तिम दिनों में” शब्दों का प्रयोग किया, ताकि हम इस तरह पढ़े “अंतिम दिनों में ऐसा होगा कि मैं सभी मनुष्यों पर अपनी आत्मा उँडेल दूँगा।”PPHin 8.3

    इससे साबित होता है कि पवित्र-आत्मा के प्रवाह से जुड़ी हुई भविष्यद्वाणी उस दिन से पूरी होना शुरू हुई, क्योंकि कोई पुरनिये स्वप्न नहीं देख रहे थे और ना ही जवान युवक और युवतियाँ दर्शन देख रहे थे या भविष्यद्वाणी कर रहे थे, ना ही लहू और आग के अजूबे और धुए के स्तम्भ प्रकट हुए, और सूर्य अन्धकारमय नहीं हुआ, ना ही चन्द्रमा लहूँ जैसा हुआ। लेकिन फिर भी जो वहां देखा गया वह योएल की भविष्यद्वाणी के पूरे हाने से जुड़ा हुआ था। यह भी प्रमाणित होता है कि पवित्र-आत्मा के उँडेले जाने से सम्बन्धित भविष्यद्वाणी इस एक प्रकटीकरण में समाप्त नहीं हो जाती क्‍योंकि यह समय से लेकर प्रभु के आगमन के शुभ दिन तक के दिनों के लिये है।PPHin 9.1

    लेकिन पेंटिकोस्ट का दिन योएल के अलावा औरों की भविष्यद्वाणियों से भी जुड़ा था। यीौशु मसीह के अपने कहे वचन भी इस दिन पूरे हुए। सलीब पर चढ़ने से पहले, अनुयायियों के साथ अपने आखिरी संवाद में उसने कहा, “मैं परम पिता से विनती करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक देगा ताकि वह सदा तुम्हारे साथ रह सके”-यहुन्ना 14:161 “किन्तु सहायक अर्थात पवित्र-आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा तुम्हें सब कुछ बताएगा और जो कुछ मैंने तुमसे कहा है उसे तुम्हें याद दिलाएगा।(पद 26)। “किन्तु जब सत्य का आत्मा आएगा तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य की राह दिखाएगा।।”-यहुन्ना 16:13। जी उठने पश्चात यीशु ने अपने चेलों से कहा, “और अब मेरे परम पिता ने मुझसे जो प्रतिज्ञा की है, उसे मैं तुम्हारे लिये भेजूँगा। किन्तु तुम्हें इस नगर में उस समय तक ठहरे रहना होगा, जब तक तुम स्वर्ग की शक्ति से युक्त न हो जाओ ।” लूका 24:49 ।PPHin 9.2

    पेंटिकोस्ट के दिन चेले स्वर्ग की शक्ति से युक्त हो गए। लेकिन यीशु मसीह की यह प्रतिज्ञा उस अवसर तक ही सीमित नहीं थी, यीशु ने उन्हें यही प्रतिज्ञा दूसरे रूप से दी, “याद रखो, इस सृष्टि के अंत तक मैं तुम्हारे साथ रहूँगा ।-मत्ती 28:20 मरकुस बताता है कि किस तरह यीशु उनके साथ हमेशा रहेगा ।वह कहता है, “उसके शिष्यों ने बाहर जाकर हर जगह उपेदश दिया, उनके साथ प्रभु काम कर रहा था। प्रभु ने वचन को आश्चर्यकर्म की शक्ति से युक्त करके सत्य सिद्ध किया।”- मरकुस 16:20। और पेंटिकोस्ट के दिन पतरस ने पवित्र-आत्मा की कार्य विधि की नित्यता की गवाही दी जिसका वो साक्षी था। जब अभिशस्त यहूदियों ने प्रेरितों से पूछा, “हमें क्या करना चाहिये?” पतरस ने उत्तर दिया, “मन फिराओ और अपने पापों की क्षमा पाने के लिये तुम में से हर एक को यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेना चाहिये। फिर पवित्र आत्मा का उपहार पा जाओगे। क्‍योंकि यह प्रतिज्ञा तुम्हारे लिये, तुम्हारी संतानों के लिए और उन सब के लिये है जो बहुत दूर स्थित है। यह प्रतिज्ञा उन सबके लिये है जिन्हें हमारा प्रभु परमेश्वर अपने पास बुलाता है (प्रेरितों के काम 2:37-39) । यह निश्चित रूप से, आने वाले समय के लिये, जब तक अनुग्रह मनुष्य को मसीह के क्षमाशील प्रेम को स्वीकार करने के लिये आमन्त्रित करता रहेगा, पवित्र आत्मा के परिचालन को, उसके विशेष प्रदर्शनों में भी, सम्भव बनाता है। अटठाईस वर्ष पश्चात, पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखे अपने पत्र में कलीसिया के समक्ष उस प्रश्न पर एक औपचारिक तक रखा, “हे भाईयों, मैं नहीं चाहता कि तुम आत्मिक वरदानों के विषय में अज्ञात रहो”-1 कुरिन्थियों 12:1। इस बात को वह इतना महत्वपूर्ण मानते है कि इस विषय को मसीही कलीसिया में समझा जाना चाहिये ।यह कहने के बाद कि यद्यपि आत्मा एक है, इसमें संचालन की विविधता है, और यह समझाते हुए कि वे विविधताएं क्‍या है, पौलुस ने मानव शरीर व शरीर के विभिन्‍न अंगो का उदाहरण दिया, यह बताने के लिये कि कलीसिया का गठन भी अलग-अलग योग्यताओं और वरदानों से हुआ है। जैसे शरीर के हर अंग का अलग कार्य है और दूसरे अंगो के साथ मिलकर वह एक सामंजस्यपूर्ण इकाई बनाता है, उसी तरह एक उत्तम धार्मिक संस्था का गठन करने के लिये पवित्र आत्मा विभिन्‍न प्राणियों के माध्यम से काम करती है। पौलुस फिर आगे कहता है, “और परमेश्वर ने कलीसिया में अलग-अलग व्यक्ति नियुक्त किये है, प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ्य के काम करने वाले, फिर चंगा करने वाले, और उपकार करने वाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बोलने वाले।”PPHin 9.3

    कलीसिया में कुछ एक को नियुक्त करने’ का तात्पर्य यहीं तक सीमित नहीं है कि यदि परिस्थितियाँ पक्ष में हो तो आत्मिक वरदानों को प्रकट होने का रास्ता खुला है। बल्कि इसका अभिप्राय है कि उन्हें कलीसिया के सच्चे आध्यात्मिक संगठन के स्थायी अंग बनाना था और यदि ये सक्रिय संचालन में नहीं होंगे तो कलीसिया भी उस मानव शरीर की स्थिति में होगा, जो दुर्घटना या बीमारी के कारण असहाय और अपंग हो जाता है। एक बार कलीसिया में नियुक्त होने के बाद, ये वरदान तब तक रहना चाहिये, जब तक इन्हें औपचारिक रूप से ना हटाया जाए। लेकिन ऐसा कोई लेख नहीं कि इन्हें कभी हटाया गया हो।PPHin 10.1

    पांच वर्ष पश्चात इसी प्रेरित ने इन्ही वरदानों के सम्बन्ध में इफिसियों को लिखा और वरदानों का उद्देश्य बताते हुए, अप्रत्यक्ष रूप से बताया कि उस उद्देश्य के संपूर्ण होने तक उन्हें लगे रहना है। इफिसियों 4:8, 11-13 में वह कहता है कि वह ऊंचे पर चढ़ा और बन्धुवाई को बान्ध ले गया और मनुष्यों को वरदान दिए” ।.......और उसने कितनों को भविष्यद्धक्ता नियुक्त करके, कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त करके और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त किया, जिससे पवित्र लोग सिद्ध हो जाएं, और सेवा का काम किया जाए और मसीह की देह उन्‍नति पाए। जब तक कि हम सब विश्वास और परमेश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक न हो जाए और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डोल तक न बढ़ जाएं।”PPHin 11.1

    एपोस्टोलिक युग में जिस एकता की स्थिति की कल्पना की गई थी, कलीसिया वहाँ तक नहीं पहुँची। इस युग के बहुत जल्द बाद ही कलीसिया पर आध्यात्मिक स्वधर्म-त्याग का ग्रहण लग गया और निश्चय ही गिरावट की स्थिति के दौरान, मसीह की यह परिपूर्णता और विश्वास की एकता प्राप्त नहीं हुई । और यह तब तक नहीं होगा जब तक अनुग्रह का सन्देश हर कुल, समाज के हर वर्ग, हर त्रुटिपूर्ण संस्था में से उन लोगों को जमा न कर ले, जो सुसमाचार सुधारों में पूर्ण है और परमेश्वर के पुत्र के आगमन की प्रतीक्षा में है। और वास्तव में अपने अनुभव में कलीसिया को अपने लिये सान्तवना और मार्गदर्शन, प्रोत्साहन और संरक्षण हेतु हर उस एजेन्सी की जरूरत तब पड़ेगी, जब अनुभव और कूटिलता के कार्यों के लिये प्रशिक्षण द्वारा अच्छी तरह परिपूर्ण शैतानी शक्तियाँ अपने पाखंड की अति उत्तम रचना से चुने हुए लोगों को भी, अगर संभव हुआ तो, धोखा देगा। इसलिये, बड़े उचित रूप से पवित्र आत्मा के प्रवाह की भविष्यद्वाणी की गई है ताकि अन्तिम समय में कलीसिया का भला हो सके।PPHin 11.2

    आमतौर पर मसीही जगत के वर्तमान साहित्य में अक्सर पढ़ाया जाता है कि आत्मा के वरदान केवल एपोस्टोलिक युग के लिये थे, और ये केवल सुसमाचार के रोपण के लिये दिए गये थे तथा सुसमाचार के स्थापित होने पश्चात इनकी जरूरत नहीं थी। फलस्वरूप ये कलीसिया से जल्द ही गायब हो गए। लेकिन प्रेरित पौलुस ने अपने समय के मसीही लोगों को चेतावनी दी कि “अधर्म का रहस्य” पहले से ही कार्यशील था और उसके जाने के बाद, खतरनाक भेड़िये उनके बीच प्रवेश करेंगे और वह भेड़ो को भी नहीं छोड़ेगे और यह कि उन्हीं के बीच से ऐसे मनुष्य उठेंगे जो शिष्यों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे (प्रेरितों के काम 20:29, 30) ।इसलिये यह असंभव है कि जिन वरदानों को कलीसिया में बुराई से बचाव के लिये रखा गया था, उन्होंने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया था और उनकी जरूरत नहीं थी, क्योंकि उनकी उपस्थिति और सहायता की आवश्यकता, प्रेरितों के स्वयं कार्यशील होने के समय से ज्यादा इन परिस्थितियों में थी।PPHin 12.1

    पौलुस द्वारा कुरिन्थियों को लिखे पत्र के एक अन्य कथन से प्रतीत होता है कि वरदानों की अस्थायी निरंतरता की बहुचर्चित धारणा सही नहीं हो सकती । यह वो अन्तर है जो पौलुस वर्तमान, असिद्ध अवस्था और महिमावान, अमर अवस्था के बीच बताता है। 1 कुरिन्थियों 13:9, 10 में वह कहता है, “क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी । परन्तु जब सर्वसिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा ।बाल्य-अवस्था की विचारों और उन्हें कार्यरत करने की क्षीणता और अपरिपक्वता का उद्धारण देते हुये वह इस वर्तमान अवस्था को समझाता है और इसकी तुलना पुरूषत्व की अवस्था से करता है जिसमें बेहतर परिपक्वता,दूरदशिता और शक्ति होती है।और वह उन वरदानों को उन चीजों की श्रेणी में रखता है जिनकी आवश्यकता इस वर्तमान असिद्ध स्थिति में है लेकिन जब सिद्ध अवस्था आयेगी, इनक लिये हमारे पास अवसर नहीं होगा । पद 12 में वे कहते है, “अब हमें दर्पण में धुंधघला सा दिखाई देता है, परन्तु उस समय आमने-सामने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है, परन्तु उस समय इसे पूरी रीति से पहचानूंगा, जैसे में पहचाना गया हूँ।” फिर वह बताता है कि कौन से विनीत भाव सनातन अवस्था के अनुकूलित हैं और क्‍या विश्वास, आशा, उदारता या प्रेम विद्वमान होंगे, “यह तीन पर इनमें सबसे महान उदारता है।”PPHin 12.2

    इससे पद 8 की भाषा समझ आती है, “प्रेम कभी टलता नहीं” इसका तात्पर्य है कि उदारता, प्रेम की नेसर्गिक भावना हमेशा के लिये रहेगी, यह मानव जाति की आगामी अमर अवस्था का सर्वोच्च गौरव है, “भवष्थिद्वाणियाँ हो, तो समाप्त हो जाएँगी” इसका तात्पर्य है कि समय आएगा जब भविष्यद्वाणियों की आवश्यकता नहीं होगी, और भविष्यद्वाणी का वरदान, कलीसिया में सहायता के रूप में प्रयोग नहीं होगा “भाषाएँ हो तो जाती रहेंगी” इसका तात्पर्य है कि अन्य भाषाओं में बोलने का वरदान काम नहीं आएगा “ज्ञान हो तो मिट जाएगा” इसका तात्पर्य है कि ज्ञान, काल्पनिक नहीं, बल्कि आत्मा का विशेष वरदान होते हुये सनातन जगत में हमें मिले सिद्ध ज्ञान के आगे अनावश्यक हो जाएगा। अब अगर हम यह मानते हैं कि एपोस्टोलिक युग के साथ वरदान समाप्त हो गए क्योंकि उनकी अब आवश्यकता नहीं थी, तो हम स्वयं को उस पद्धति के लिये प्रतिबद्ध कर देते हैं कि एपोस्टोलिक युग कलीसिया का वह कमजोर और बचकाना युग था जब सब कुछ धुंघला सा था, लेकिन उसके बाद का युग, जिसमें खतरनाक भेड़ियों द्वारा भेड़ो का शिकार होना था; अनुयायियों को अपनी और आकर्षित करने के लिये कलीसिया ही में से मनुष्यों को उठाना था; वह सिद्ध ज्योति और ज्ञान का युग था जिसमें एपोस्टोलिक युग के असिद्ध, बचकाना और अन्धकारपूर्ण ज्ञान की जगह न थी। क्योंकि याद रहे,वरदानों की समाप्ति सिद्धता की स्थिति पर पहुँचनें के बाद ही होती है, लेकिन कोई भी सौभ्यतावश यह धारण नहीं रखेगा कि एपोस्टोलिक युग आत्मिक उन्‍नति में अपने उत्तराधिकारी युगों से तुच्छ था और यदि वरदानों की आवश्यकता उस समय थी, तो उनकी आवश्यकता आज भी है।PPHin 12.3

    कुरिन्थियों को इफसियों को लिखे अपने पन्नों में प्रेरित जिन माध्यमों को कलीसिया में नियुक्त वरदानों का नाम देता है, उन वरदानों को हम “उपदेशक”‘ “शिक्षक” “सहायक” और “सरकार” के रूप में पाते है और स्वीकार करते है कि ये कलीसिया में अभी भीबने हुए है। फिर विश्वास, चंगाई, भविष्यद्वाणी इत्यादि को क्‍यों नहीं स्वीकारें? सीमाबद्ध करने के लिये कि कौन सक्षम है, कौन से वरदान कलीसिया से बाहर हो गये है जबकि आरम्भ में सभी वरदानों को बराबरी से नियुक्त किया गया था?PPHin 13.1

    प्रकाशित वाक्य 12:17 को भविष्यद्वाणी का दर्जा दिया गया है जो बताता है कि अन्तिम समय में वरदानों को पुन: स्थापित किया जाएगा। इसकी गवाही के परीक्षण से इस धारणा की पुष्टि हो जाएगी। यह पद स्त्री के बीज और बकिया कलीसिया के बारे में, बात करता है। स्त्री कलीसिया का चिन्ह है, ‘बीज’ कलीसिया को संगठित करने वाले प्रत्येक सदस्य है और ‘बकिया’ मसीही लोगों का आखिरी वंश होगा, ये वो लोग होंगे जो यीशु के दूसरे आगमन के समय धरती पर जीवित होंगे। इस पद में आगे लिखा है कि ये “परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते है” और “इनके पास यीशु की गवाही है”। प्रकाशित वाक्य 19:10 में योौशु की गवाही को “भविष्यद्वाणी की आत्मा कहा गया है। इसे 1 कुरिन्थियों 12:9, 10में कथित वरदानों में “भविष्यद्वाणी का वरदान समझना चाहिये ।PPHin 13.2

    कलीसिया में वरदानो की नियुक्ति ये यह तात्पर्य नहीं है कि हर व्यक्ति को उन्हें प्रयोग में लाना था। यहाँ प्रेरित 4 कुरिन्थियों 12:29 में कहता है, “क्या सब प्रेरित? क्या सब नबी? क्‍या सब शिक्षक?” इत्यादि, इसका उत्तर है “नहीं’ सब नहीं। लेकिन वरदान कलीसिया में परमेश्वर की इच्छानुसार विभाजित है (1 कुरिन्थियों 12:7,11) फिर भी वरदानों को कलीसिया में नियुक्त किया गया और यदि कलीसिया के एक भी सदस्य के पास वरदान है तो वह वरदान ‘कलीसिया’ में है या वह ‘कलीसिया के पास है'। इस कारण आखिरी पीढ़ी के पास यीशु की गवाही या भविष्यद्वाणी का वरदान होना था जैसा कि माना जाता है कि अभी भी है।PPHin 14.1

    पवित्र शास्त्र का एक और भाग जो निःसन्देह अन्तिम समय के संदर्भ में लिखा गया है इसी तथ्य को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। 1 थिस्सलुनीकियों 5 का आरंम्भ प्रेरित इस प्रकार करता है, “इसका प्रयोजन नहीं कि समयों और कालों के विषय मे तुम्हारे पास कुछ लिख जाए, क्‍योंकि तुम स्वयं ठीक से जानते हो कि जैसे रात को चोर आता है, वैसे ही प्रभु कादिन आने वाला है।” चौथे पद में वो कहता है, ” पर हे भाईयों, तुम अन्धकार में नहीं हो कि वह दिन तुम पर चोर की नाई आ सके” फिर वह उन्हें उस घटना के दृष्टिकोण से विविध चेतावनियाँ देता है जैसे कि “पवित्र आत्मा के कार्य का दमन मत करते रहो। नबियों के सन्देशों को कभी छोटा मत जानो। हर बात की असलीयत को परख कर देखो, जो उत्तम है, उसे ग्रहण किए रहो”“(पद 19-20) ।पद 23 में वह प्रार्थना करता है.......... परमेश्वर स्वय तुम्हें पूरी तरह पवित्र करे। पूरी तरह उसको समर्पित हो जाओ और तुम अपने सम्पूर्ण अस्तित्व अर्थात आत्मा, प्राण और देह को प्रभु यीशु मसीह के आने तक पूर्णतः दोष रहित बनाए रखो ।”PPHin 14.2

    इन विचारों के आधार पर क्‍या हमारा यह विश्वास करना उचित नहीं कि भविष्यद्वाणी का वरदान अन्तिम दिनों में कलीसिया में प्रकट होगा और उसके द्वारा काफी मात्रा में प्रकाश फैलेगा और यथासमय अनुदेश दिए जाएऐंगे।।सभी बातों को प्रेरित के अनुसार मानना है, “असलियत को परखो,जो उत्तम है,उसे ग्रहण किए रहो” और उद्धारकर्ता के मानक से परीक्षित होने के लिये “उनके फलों से तुम उन्हें जानोगे ।PPHin 14.3

    भविष्यद्वाणी के वरदान के प्रत्याक्षीकरण हेतु, इस मानक को मान्यता देते हुये, हम इस पुस्तक का विवेचन करने का आग्रह उन लोगो से करते है जो ये विश्वास करते है कि बाईबल परमेश्वर का वचन है और कलीसिया वह देह है जिसका यीशु मसीह है।PPHin 15.1

    अरिय्याह स्मिथPPHin 15.2

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