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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 54—शिमशोन

    यह अध्याय न्यायियों 13 से 16 पर आधारित है

    सर्वव्यापी स्वधर्म-त्याग के समय में भी परमेश्वर के श्रद्धालु उपासक इज़राइल के छुटकारे के लिये विनती करते रहे। यद्यपि प्रकट रूप से कोई उत्तर नहीं मिला, यद्यपि लगातार कई वर्षो तक देश पर अत्याचारियों का पलड़ा भारी होता रहा, परमेश्वर उनके लिये सहायता जुटा रहा था। पलिश्तियों के अत्याचार के प्रारम्भिक वर्षों में ही एक बालक उत्पन्न हुआ जिसके माध्यम से परमेश्वर उन बलवन्त शत्रुओं की ताकत को वश में करना चाहता था।PPHin 579.1

    पलिशित तराईं से लगे हुए पहाड़ी प्रदेश की सीमा पर सोरा का छोटा सा शहर था। दान का गोत्र उन थोड़े से घरानों में से था जो सार्वजनिक धर्मत्याग के दौरान यहोवा के प्रति सत्यनिष्ठ बने रहे, और दान के गोत्र से मनोह का परिवार सोरा में वास करता था। मनोह की सन्तानहीन पत्नी को परमेश्वर के स्वर्गदूत’ ने प्रकट होकर यह सन्देश दिया कि उसने एक पुत्र उत्पन्न होगा, जिसके माध्यम से परमेश्वर इज़राइल को छुटकारा दिलाना प्रारम्भ करेगा। इस सन्दर्भ में स्वर्गदूत ने उसकी निजी आदतों से सम्बन्धित और उसके पुत्र के पालन-पोषण के बारे में भी निर्देश दिये, “इसलिये अब सावधान रह कि न तो तू दाखमधु या और किसी प्रकार की मदिरा पिए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए।’ और यही प्रतिबंध प्रारम्भ से ही उस बालक पर भी लागू होना था, और इसके अतिरिक्त उसके सिर के केश नहीं काटे जाने थे, क्योंकि जन्म से ही उसे एक नाजीर के तौर पर परमेश्वर के लिये अर्पित किया जाना था।PPHin 579.2

    उस स्त्री ने अपने पति के साथ जाकर, स्वर्गदूत का वर्णन करने के पश्चात्‌, उसके सन्देश को दोहराया। फिर, इस डर से कि उनको सुपुर्द किये इस महत्वपूर्ण कार्य में वे कोई गलती न कर बेठें, पति ने प्रार्थना की, “परमेश्वर का वह जन जिसे तू ने भेजा था फिर हमारे पास आए, और हमें सिखलाए कि जो बालक उत्पन्न होने वाला है उसके साथ हमें क्या करना चाहिये।”PPHin 579.3

    जब स्वर्गदूत दोबारा प्रकट हुआ, मनोह ने उत्सुकतावश पूछताछ की, “उस बालक के जीने का तरीका कैसा होगा और उसका व्यवसाय क्‍या होगा?” पिछली बार दिये गए निर्देश को दोहराया गया, “जितनी वस्तुओं की चर्चा मैंने इस स्त्री से की थी उन सब से यह परे रहे। यह कोई वस्तु जो दाखलता से उत्पन्न होती है, न खाए, और न दाखमधु या और किसी भांति की मदिरा पिए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए, जो जो आज्ञा मैंने इसको दी थी उसी को यह माने।PPHin 579.4

    परमेश्वर के पास मनोह के प्रतिश्रुत सन्‍तान से करवाने के लिये एक महत्वपूर्ण कार्य था, और इस काम के लिये उसमें वे आवश्यक योग्यताएँ सुरक्षित करने के लिये, माँ और बेटे दोनों की आदतों को सावधानी से नियंत्रित करना था ।मनोह की पत्नी के लिये स्वर्गदूत का यह निर्देश था, “ना तो उसे दाखमधु और ना ही कोई किण्वित पेय पदार्थ पीने देना” “और ना ही कोई अशुद्ध वस्तु । जिस सब की मैंने आज्ञा दी है, उसका उसे पालन करने दे।” माँ की आदतों के द्वारा बच्चा अच्छे या बुरे के लिये प्रभावित होता है। स्वयं उसे सिद्धान्त से नियन्त्रित होना चाहिये और यदि वह अपने बच्चे का भला चाहती है तो उसे आत्म-संयम और आत्म-त्याग का अभ्यास करना चाहिये। विवेकहीन सलाहकार माँ पर प्रत्येक इच्छा और लालसा को तृप्त करने की आवश्यकता पर जोर देंगे, लेकिन ऐसी शिक्षा झूठी और हानिकारक होती है। माँ को स्वयं परमेश्वर के आदेशानुसार आत्म-संयम का अभ्यास करने को कहा गया है।PPHin 580.1

    माता और पिता, दोनों ही इस उत्तरदायित्व में भागीदार हैं। दोनो ही अपनी निज विशेषताएँ, मानसिक व शारीरिक, अपना स्वभाव और प्रवृति अपनी संतान में संकामित करते हैं । पैतृक असंयम के कारणवश संतान मे नैतिक और मानसिक क्षमता और शारीरिक शक्ति का अभाव होता है। मदिरापान वाले और तम्बाकू खाने वाले अपनी अतृप्य तृष्णा, अपने उत्तेजनापूर्ण कर सकते है और करते है। व्यभिचारी प्रायः अपनी अपवित्र इच्छाओं और घृणास्पद रोगों को अपने वंशजो के लिये विरासत के तौर परदेते है। संतानों के पास प्रलोभन का प्रतिकार करने की शक्ति अपने अभिभावकों से कम होने के कारण प्रत्येक पीढ़ी अपनी प्रवृति के अनुसार नीचे गिरते जाते हैं। काफी हद तक माता-पिता न केवल अपने बच्चों की विकृत प्रवृतियों और हिंसक आवेगों के लिये उत्तरदायी है वरन उन हजारों की दुर्बलताओं का भी कारण है जो बहरे, अन्धे, रूग्ण या मूर्ख पैदा होते है।PPHin 580.2

    प्रत्येक माता-पिता को पूछना चाहिये, “हम उस बच्चे के लिये क्‍या करे जो उत्पन्न होने वाला है?” प्रसवपूर्व प्रभाव की आवृत्ति को कोई लोग महत्वहीन समझते है, लेकिन उन इब्री अभिभावकों को स्वर्ग से दिया गया निर्देश, जिसे दो बार स्पष्ट और औपचारिक रूप से दोहराया गया, इस बात की पुष्टि करता है कि सृष्टिकर्ता इस विषय को किस प्रकार देखता है।PPHin 580.3

    यह पर्याप्त नहीं था कि प्रतिश्रुत बालक को अपने अभिभावकों से एक अच्छी विरासत मिले। इसके बाद विवेकपूर्ण प्रशिक्षण और सदव्यवहार का विकास होना अनिवार्य था। परमेश्वर ने निर्देश दिया कि भावी न्यायाधीश और इज़राइल के मुक्तिदाता को बचपन से आत्म-संयम में प्रशिक्षण दिया जाए। उसे जन्म से नाजीर होना था, इस कारण उसके लिये हमेशा के लिये दाखमधु या किण्वित पेय पदार्थों का प्रयोग प्रतिबंधित था। आत्म संयम, आत्म-त्याग और आत्म-नियन्त्रण बच्चों को बचपन से सिखाया जाना चाहिये।PPHin 581.1

    स्वर्गदूत की निषेधाज्ञा में, (प्रत्येक अशुद्ध वस्तु’ सम्मलित थी। भोजन वस्तुओं के शुद्ध या अशुद्ध होने का अंतर निरा रीति-सम्बन्धी और एकपक्षीय अधिनियम नहीं था, वरन्‌ वह स्वास्थ्य संबंधी सिद्धान्तों पर आधारित था। जिस आश्चर्यजनक प्राण-शक्ति ने हजारों वर्षो से यहूदी लोगों को विशिष्टता प्रदान की है, उसे काफी हद तक इस अन्तर को मान्यता देने से जोड़ा जा सकता है। आत्म-संयम के सिद्धान्तों को किण्वित पेय पदार्था के प्रयोग से भी आगे ले जाया जाना चाहिये। अपचनीय और उत्तेजनापूर्ण भोजन भी स्वास्थ्य के लिये प्राय: उतनाही हानिकारक होता है और कई बार मादकता के बीज बो देता है। वास्तविक आत्म-संयम हमें सिखाता है कि हम हानिकारक वस्तुओं को पूर्णतया त्याग दे और स्वास्थ्यवर्धक वस्तुओं का विवेकपूर्ण प्रयोग करें। बहुत कम हैं वे लोग जो समझते है, जैसा कि उन्हें समझना चाहिये कि उनकी आहार सम्बन्धी आदतों का उनके स्वास्थ्य, उनके आचरण, इस संसार में उनकी उपयोगिता और उनकी सनातन नियति से कितना गहरा सम्बन्ध है। स्वाभाविक इच्छाएँ हमेशा नैतिक और बौद्धिक शक्तियों के पराधीन होना चाहिये। शरीर को विवेक का दास होना चाहिये ना कि विवेक को शरीर का। PPHin 581.2

    मनोह से की गई पवित्र प्रतिज्ञा एक पुत्र के जन्म के द्वारा नियत समय पर परिपूर्ण हुई, और उस बालक का नाम शिमशोन रखा गया। लड़का जब बड़ा हुआ तो यह प्रमाणित हो गया कि वह असाधारण शारीरिक शक्ति का स्वामी था। हालाँकि शिमशोन और उसके माता-पिता यह भली भाँति जानते थे कि यह उसकी कसी हुई मॉस-पेशियों पर निर्मर होनी थी, वरन्‌ उसके नाजीर होने में थी जिसका प्रतीक उसके लम्बे अनकटे केश थे। यदि शिमशोन ने, अपने माता-पिता के समान पवित्र आज्ञा का निष्ठापूर्ण पालन किया होता तो उसकी नियति श्रेष्ठठर और आनन्दमय होती। लेकिन मूर्तिपूजकों की संगत ने उसे भ्रष्ट कर दिया। सोरा शहर पलिशितियों के देश के समीप था, इसलिये शिमशोन ने उनके साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए। अपनी नौजवानी में अनैतिक प्रेमसम्बन्ध स्थापित हो गए जिसके प्रभाव ने उसके सम्पूर्ण जीवन को अन्धकारमय बना दिया । तिम्ना के पलिश्ति शहर में रहने वाली एक नवयुवती ने शिमशोन को आकर्षित किया और शिमशोन ने उसे अपनी पत्नी बनाने का संकल्प लिया। परमेश्वर का भय मानने वाले उसके माता-पिता, जिन्होंने उसको उसके उद्देश्य के विपरीत परामर्श देने का प्रयत्न किया, उनको उसने उत्तर दिया, “वह मुझे बहुत अच्छी लगती है।” माता-पिता ने उसकी इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया और विवाह हो गया।PPHin 581.3

    जब वह पुरूषत्व में प्रवेश करने की वाला था-उस समय में जब उसे ईश्वरीय विशेष कार्य को क्रियान्वित करना था- अन्य समयों से अधिक महत्वपूर्ण जब उसे परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिये था-शिमशोन ने स्वयं को इज़राइल के शत्रुओं से सम्बद्ध कर लिया। उसने यह नहीं पूछा कि वह अपनी पसन्द की वस्तु को पाकर परमेश्वर की बेहतर महिमा कर सकता था या वह स्वयं को उस स्थान पर रख रहा था जहाँ वह उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता था जो उसके जीवन से सम्पन्न होना था। जो सबसे पहले परमेश्वर को सम्मानित करने का प्रयास करते हैं, उन्हें परमेश्वर बुद्धिमत्ता का आश्वासन देता है, लेकिन स्वयं को सन्तुष्ट करने पर तुले हुए लोगों के लिये कोई प्रतिज्ञा नहीं।PPHin 582.1

    कितने है जो उसी मार्ग पर चल रहे हैं जिस पर शिमशोन चला था। कितनी बार विवाह धर्मियों और अधर्मियों के बीच सम्पन्न होते हैं क्‍योंकि पति और पत्नी के चयन में रूझान को प्राथमिकता दी जाती है। दोनो ही पक्ष न तो परमेश्वर का परामर्श लेते हैं और ना ही उसके गौरव को देखते हैं। वैवाहिक सम्बन्ध पर मसीहत का नियन्त्रकारी प्रभाव होना अनिवार्य है, लेकिन प्राय: ऐसा होता है कि इस सम्बन्ध से जुड़ा उद्देश्य मसीही सिद्धान्तों के अनूकूल नहीं होता। शैतान परमेश्वर के लोगों को अपनी प्रजा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिये उकसाने कर, उन पर अपने आधिपत्य को दृढ़ करने के लगातार प्रयास कर रहा है, और इसको सम्पूर्ण करने के लिये वह हृदय में अपवित्र भावनाएँ जागृत करने का प्रयत्न करता है। लेकिन परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से अपने वचन में अपने लोगों निर्देश दियाहै कि वे उनके साथ सम्बन्ध ना जोड़ें जिनमें उसके प्रेम का वास नहीं। “और मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव? या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? और मूर्तियों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध?? 2 कुरिन्थियों 6:15,16।PPHin 582.2

    विवाह समारोह के अवसर पर शिमशोन का इज़राइल के परमेश्वर से घृणा करने वालों के साथ परिचय हुआ। जो भी स्वेच्छा से ऐसे सम्बन्ध जोड़ता है, वह काफी हद तक, अपने साथियों के रीति-रिवाजों और आदतों से सहमत होने की आवश्यकता को महसूस करता है। इस तरह बिताया हुआ समय, व्यर्थ गवॉने से ही बुरा है। ऐसे विचारों को माना जाता है और ऐसे शब्द बोले जाते हैं जो सिद्धान्त के गढ़ को गिरा देते है और आत्मा के किले को दुर्बल बना देते हैं।PPHin 583.1

    वह पत्नी, जिसे पाने के लिये शिमशोन ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया था, विवाह समारोह के समापन के पूर्व ही अपने रीति के प्रति विश्वासघाती प्रमाणित हुई । उसके विश्वासघात से कोधित होकर, कुछ समय के लिये शिमशोन ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया और सोर में अपने घर अकेला ही चला गया। बाद में दया करके, जब वह अपनी पत्नी को लाने के लिये लौटा, तो उसने उसे अन्य पुरूष की पत्नी पाया। पलिश्तियों की दाख की बारियों और खेतों को नष्ट करके शिमशोन ने अपना प्रतिशोध लिया, जिससे भड़क कर उन्होंने उसी स्त्री की हत्या कर दी, जबकि उन्हीं की धमकियों ने उससे वह छल करवाया था जिसके कारण यह क्लेश आरम्भ हुआ। PPHin 583.2

    अश्कलोन के तीस पुरूषों को मारकर और एक सिंह को निहत्थे वअकेले घात कर अपनी आश्चर्यजनक शक्ति का प्रमाण दे चुका था। शिमशोन ने अब, अपनी पत्नी की नृशंस हत्या से कोधित होकर, पलिश्तियों पर चढ़ाई कर “बड़ी निष्ठुरता के साथ बहुतों को'मार डाला।” तब अपने शत्रुओं के पास से सुरक्षित लौटने की इच्छा से, वह ‘“एताम नामक चट॒टान’ की दरार में जाकर रहने लगा जहाँ यहूदा का गोत्र रहता था।PPHin 583.3

    एक शक्तिशाली सेना ने उसका इस स्थान तक पीछा किया, और यहूदा के वासियों ने अत्यन्त भयभीत होकर, शिमशोन को उसके शत्रुओं के हाथों में देकर नीचतापूर्ण कार्य किया। तदनुसार, यहूदा के तीन हजार पुरूष एताम नामक चट्टान में उसके पास गए। लेकिन ऐसी अनुकूल परिस्थिति में भी उन्होंने उस पर चढ़ाई करने का दुस्साहस नहीं किया होता, यदि वे आश्वस्त नहीं होते कि वह अपने निज देशवासियों को हानि नहीं पहुँचाएगा। शिमशोन इस बात के लिये सहमत हो गया कि उसको बाँधकर पलिश्तियों को सौंप दिया जाए, लेकिन उसने यहूदा वासियों से शथप ली कि वे स्वयं उस पर प्रहार नहीं करेंगे, और इस रीति से उसे बाध्य नहीं करेंगे कि वह उन्हें नष्ट कर डाले। उसने उनके द्वारा स्वयं को दो नई रस्सियों से बंधने दिया और उल्लास भरे प्रदर्शनों के साथ उसे उसके शत्रुओं की छावन में ले जाया गया। लेकिन जब उनकी ललकार पहाड़ो की गूंज को जागृत कर रही थी, ‘तब यहोवा का आत्मा उस पर बहुतयात से उतरा। उसने नई रस्सियों को ऐसे टुकड़े-टुकड़े कर डाला मानो वह आग में जला सन हो। फिर उस हथियार को ले, जो उसे सबसे पहले मिला, जो कि केवल एक गधे के जबड़े की हड्डी थी, पर भाले या तलवार से भी अधिक कारगर प्रमाणित हुई, उसने पलिश्तियों पर ऐसा प्रहार किया कि वे डरकर भाग खड़े हुए और अपने पीछे एक हजार पुरूषों को मैदान में मरा हुआ छोड़ गए।PPHin 583.4

    यदि इज़राइली शिमशोन के साथ एक होकर इस विजय की आगे की कार्यवाही करने को तैयार होते तो इस समय स्वयं को अपने दमनकारियों से स्वतन्त्र करा लेते। लेकिन वे हतोत्साहित और कायरतापूर्ण हो गए थे। अधर्मियों के निष्कासन में जिस कार्य को करने की आज्ञा इज़राइलियों को परमेश्वर ने दी थी, उसकी उन्होंने उपेक्षा की थी, और उनकी निर्दयता को सहन करते हुए उनकी अपमानजनक प्रथाओं में उनके साथ सम्मिलित हो गए थे, और जब तक यह उनके ही विरूद्ध संचालित न की गई, वे उनके अन्याय का भी प्रतिपालन करते रहे। जब वे स्वयं अत्याचारी के अधीन हो गए, वे सरलता से उस दुर्दशा के अधीन हो गए, जिससे, यदि उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया होता, वे बच सकते थे। परमेश्वर द्वारा उनके लिये मुक्तिदाता खड़ा करने के बाद भी, वे प्रायः उसे छोड़कर, शत्रु के सहयोगी हो जाते थे।PPHin 584.1

    शिमशोन की इस विजय के पश्चात्‌ इज़राइलियों ने उसे न्यायाधीश बना दिया और उसने बीस वर्ष तक इज़राइल पर राज किया। लेकिन एक गलत कदम दूसरे के लिये मार्ग तैयार करता है। पलिश्तियों में से पत्नी लेकर शिमशोन ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्‍लघंन किया था, और फिर से उसने नियम विरूद्ध लालसाओं की तृप्ति के लिये उनके बीच जोखिम उठाया जो अब उसके शत्रु थे। अपनी उस शक्ति में विश्वास रखकर, जिसने पलिशि्तियों को इतना भयभीत कर दिया था,उसने गाज़ा की एक कसबी से भेंट करने, वहाँ जाने का दुस्साहस किया । नगरवासियों को उसकी उपस्थिति की जानकारी मिली और वे प्रतिशोध लेने के लिये आतुर थे। उनका शत्रु उनके शहरों में से सबसे आरक्षित शहर की सीमाओं के भीतर था, और वे शिमशोन को दबोचने के लिये निश्चिन्त थे, और अपनी विजय को सम्पन्न करने के लिये केवल प्रातः: काल तक रूके। मध्यरात्रि को शिमशोन को जागृत किया गया। अन्तरात्मा की दोष लगाती आवाज ने उसे ग्लानि से भर दिया और उसे स्मरण हुआ कि उसने नाजीर के तौर पर ली गईं शपथ का खंडन किया था। लेकिन उसके पाप के बावजूद, परमेश्वर की दया उस पर बनी हुई थी। उसके छूटकारे के लिये एक बार फिर उसकी असाधारण शक्ति ने साथ दिया। वह नगर के फाटक तक गया और उसने उसके दोनों स्तम्भों और किवाड़ों को बेड़ों समेत उखाड़ लिया और अपने कन्धों पर रखकर उन्हें उस पहाड़ की चोटी पर ले गया, जो हेब्रोन के सामने है। PPHin 584.2

    लेकिन बाल-बाल बचने पर भी उसने अपना पापमय चाल-चलन नहीं त्यागा । उसने पलिशितियों के बीच जाने का दुस्साहस तो नहीं किया, लेकिन वह उन कामुकतापूर्ण सुखों का भोग करता रहा जो उसे विनाश की ओर धकेल रहे थे। उसकी जन्मभूमि से बहुत दूर नहीं, ‘सोरेक नामक घाटी में रहने वाली दलील नाम की एक स्त्री से वह प्रीति करने लगा।” दलील का तात्पर्य है ‘उपभोक्‍क्ता’ । सोरेक की घाटी अपनी दाख की बारियों के लिये प्रसिद्ध है, यह भी उस अस्थिर नाजीर के लिये प्रलोभन थे, जो मदिरापान करके परमेश्वर और पवित्रता से संलग्न करने वाले एक अन्य बन्धन को तोड़ चुका था। पलिश्ती अपने शत्रु की गतिविधियों पर चौकट दृष्टि जमाए हुए थे और जब उसने इस नए मोह से स्वयं को नीचे गिराया, तो उन्होंने दलील के माध्यम से, उसके विनाश को सम्पन्न करने का संकल्प किया।PPHin 585.1

    प्रत्येक पलिश्ती प्रान्‍्त से एक-एक व्यक्ति चुनकर एक प्रतिनिधि मण्डल सोरेक की घाटी में भेजा गया। जब तक उसकी महाशक्ति उसके पास थी, उन्होंने उसे वश में करने का दुस्‍स्साहस नहीं किया, लेकिन यदि सम्भव था, तो वे उसकी शक्ति के रहस्य को जानना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने दलील को रिश्वत देकर, उसे रहस्य का पता लगाकर उन्होंने बताने को कहा। PPHin 585.2

    जब दलील ने प्रश्नों के साथ शिमशोन से अनुरोध किया, तो शिमशोन ने उसे कई ऐसी प्रक्रियाएं बताकर जिनके द्वारा वह साधारण मनुष्य के सामान हो जाता, भरमाया। जब उसने इस विषय को परखा, तो झूठ पकड़ा गया। उसने शिमोन को झूठ बोलने के लिये उलाहना दी और कहा, “तेरा मन तो मुझ से नहीं लगा, फिर तू क्‍यों कहता है कि मैं तुझसे प्रेम करता हूँ? तूने तीनों बार मुझसे छल किया, और मुझे नहीं बताया कि तेरी शक्ति कहाँ वास करती है?” तीन बार शिमशोन को स्पष्ट प्रमाण मिला कि पलिशितयों ने उसे नष्ट करने के लिये उसकी सम्मोहिनी के साथ सन्धि कर ली थी, लेकिन जब दलील का उद्देश्य विफल रहा, उसने इस विषय को गम्भीरता से नहीं लिया, और शिमशोन ने बिना सोचे समझे अपने मन से डर निकाल दिया।PPHin 585.3

    दलील के प्रत्येक दिन आग्रह करने पर “उसकी आत्मा इतनी दुखित हो गईं, मानो वह मरने वाला हो, लेकिन एक धूर्त शक्ति ने उसे दलील के पास से दूर न होने दिया। पराजित होकर शिमशोन ने रहस्य को खोल दिया, “मेरे सिर पर उस्तरा कभी नहीं फेरा गया, क्‍योंकि मैं माँ के पेट से ही नाज़ीर हूँ यदि मेरा मुण्डन कर दिया जाए, तो मेरी शक्ति इतनी घट जाएगी कि मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊंगा।” तत्काल ही एक दूत को पलिश्तियों के सरदारों पास भेजा गया और उनसे आग्रह किया गया कि वे अविलम्ब उसके पास चले आएँ । जब योद्धा सो रहा था, उसके सिर के घने बाल काट दिये गए। फिर जैसा उसने पहले तीन बार किया था, पुकारा “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में है। अचानक से उठकर, शिमशौन ने पहले की तरह अपने बल का उपयोग कर उन्हें नष्ट करने पर विचार किया, लेकिन उसकी शक्तिहीन भुजाओं ने उसका साथ नहीं दिया और वह समझ गया कि “यहोवा उसके पास से चला गया है।” जब उसका मुण्डन कर दिया गया, दलील उसे तंग करके कष्ट पहुँचाने लगी और इसप्रकार उसकी शक्ति की परखकरने लगी, क्योंकि पलिशि्ती ने तब तक उसके निकट आने का दुस्साहस नहीं किया जब तक उन्हें उसके शक्तिहीन हो जाने का आश्वासन न मिला। फिर उन्होंने उसको पकड़कर उसकी आँखें फोड़ डाली और उसे गाजा ले गए। यहाँ उसे उनके बन्दीगृह में बेड़ियों से जकड़ दिया गया और उससे कठिन परिश्रम कराया गया। PPHin 586.1

    क्या परिवर्तन था उसके लिये जो इज़राइल का शूरवीर और न्यायी रहा था! अब वह निर्बल, अन्धा, कैद में, सबसे तुच्छ कामों के लिये निम्नीकृत कर दिया गया! थोड़ा थोड़ा करके उसने अपनी पवित्र बुलाहट के नियमों को खंडित किया था। परमेश्वर ने उसको बहुत समय तक सहन किया, लेकिन जब उसने स्वयं को पाप के वश में इस सीमा तक होने दिया कि उसके रहस्य को खोल दिया, तब यहोवा उसके पास से चला गया। उसके बालों में मात्र कोई गुण नहीं था, उसके बाल परमेश्वर के प्रति उसकी सत्यनिष्ठा या स्वामिभक्ति का प्रतीक थे, और फिर मनोवेग की सन्तुष्टि में जब इस प्रतीक की बलि चढ़ा दी गईं, तो वे आशीषें जिनका प्रतीक वह बाल थे, भी गवाँ दी गई।PPHin 586.2

    कष्ट और अपमान में, जो पलिश्तियों के लिये मनोरंजन था, शिमशोन को अपनी दुर्बलता के बारे इतना कुछ ज्ञात हुआ, जितना पहले कभी नहीं हुआ था और उसके कष्ट ने उसे प्रायश्चित करने के लिये विवश कर दिया। जैसे-जैसे उसके बाल बढ़ने लगे, उसकी शक्ति धीरे-धीरे लौटने लगी, लेकिन उसे जंजीरों मे जकड़ा हुआ और असहाय कैदी समझ कर, उसके शत्रुओं को कोई सन्देह नहीं हुआ।PPHin 587.1

    पलिशितियों ने अपनी विजय का श्रेय अपने देवी-देवताओं को दिया, और मग्न होकर इज़राइल के परमेश्वर को ललकारा। समुद्र के संरक्षक, मछली देवता, दागोन के सम्मान में एक समारोह आयोजित किया गया। पलिश्ती तराई के एक छोर से दूसरे छोर तक के गावों और शहरों से लोग और उनके सरदार एकत्रित हुए। विशाल मन्दिर और छत के गलियारों में उपासकों का जमघट लग गया। यह उत्सव और हर्षोल्लास का दृश्य था। बलि की भेंट की धूमधाम के बाद संगीत और सहभोज था। फिर दागोन की शक्ति के उत्कृष्ट जयचिन्ह के तौर पर शिमशोन को भीतर लाया गया। उसके आने पर लोग चिल्ला उठे। लोगों और सरदारों ने उसके दुख का उपहास किया और उस देवता की उपासना की जिसने ‘उनके देश के विनाशक’ को पराजित किया था। कुछ समय पश्चात, मानो वह थक गया हो, शिमशोन ने मन्दिर की छत को थामने वाले दो बीच के स्तम्भों का सहारा लेकर खड़े प्रभु यहोवा, मेरी सुधि ले, “हे परमेश्वर, इस बार मुझे शक्ति दे कि मैं पलिश्तियों से बदला लूँ।” तब शिमशोन ने अपनी शक्तिशाली भुजाओं के घेरे में स्तम्भों को लिया और वह झुका और छत धराशाही हो गई, और एक ही झटके में वह पूरा जनसमूह नष्ट हो गया। “इस प्रकार जिनको उसने मरते समय मार डाला वे उनसे भी अधिक थे जिन्हें उसने अपने जीवन में मार डाला था। PPHin 587.2

    वह मूर्ति और उसके उपासक, याजक और खेतिहर, योद्धा और महापुरूष सभी दागोन के मन्दिर के मलवे के नीचे एक साथ दब गए। और उन्हीं के बीच था उसका दीर्घकाय शरर जिसे परमेश्वर ने अपने लोगों का मुक्तिदाता होने के लिये चुना था। इस भयानक पराजय का समाचार इज़राइल के देश में पहुँचा, और शिमशोन के परिजन पहाड़ो से उतर कर आए और, निर्विरोध अपने मृत नायक के पार्थिव शरीर को ले आए। और वे “उसे उठाकर ले गए, और सोरा और एश्ताएओल के मध्य उसके पिता मनोह की कब्र में मिट्टी दी।PPHin 587.3

    परमेश्वर की प्रतिज्ञा कि शिमशोन के द्वारा वह “पलतिशितियों के हाथों से इज़राइल को छुटकारा दिलाना आरम्भ करेगा”, पूरी हुई, लेकिन कितना कलंकित और भयानक है उस जीवन का इतिहास जो परमेश्वर के लिये सराहना और कूल के लिये महिमा हुआ होता। यदि शिमशोन अपनी अपनी पवित्र बुलाहट के प्रति सत्यनिष्ठ होता, तो उसके सम्मान और उत्थान में परमेश्वर का उद्देश्य परिपूर्ण होता। लेकिन वह प्रलोभन के आगे हार गया और अपने दायित्व में खरा नही उतरा, और उसका विशेष कार्य पराजय, बन्धुत्व और मृत्यु में परिपूर्ण हुआ।PPHin 588.1

    शारीरिक रूप से शिमशोन पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली पुरूष था, लेकिन आत्म-संयम, सत्यनिष्ठा और दृढ़ता में वह मनुष्यों में सबसे निर्बल था। कई लोग प्रबल आवेग को ओजस्वी चरित्र समझने की भूल करते हैं, लेकिन यथार्थ में जो अपने आवेगों के अधीन होता है वह निर्बल मनुष्य होता है। मनुष्य की वास्तविक महानता उन भावनाओं की शक्ति से मापी जाती है, जिन्हें वह नियन्त्रित करता है, ना कि उनसे जो उसे नियन्त्रित करती है।PPHin 588.2

    परमेश्वर की सरक्षा व देखभाल शिमशोन पर थी, जिससे कि वह उस कार्य को सम्पन्न करने के लिये तैयार किया जा सके, जिसके लिये उसे बुलाया गया था। अपने जीवन के प्रारम्भ से ही वह शारीरिक शक्ति, बुद्धिजीवी क्षमता और नैतिक पवित्रता के लिये अनुकूल परिस्थितियों से घिरा हुआ था। लेकिन दुष्कमी सहभागियों के प्रभाव में उसने परमेश्वर पर अपनी पकड़ को जाने दिया, जो मनुष्य की एकमात्र सुरक्षा है, और बुराई का ज्वार उसे बहा ले गया। जिन्हें कर्तव्य के मार्ग में परखा जाता है वे निश्चित रहे कि परमेश्वर उन्हें सुरक्षित रखेगा, लेकिन यदि मनुष्य जानबूझकर प्रलोभन में पड़ता है, वह शीघ्र ही या देर से गिरेगा।PPHin 588.3

    उन्हीं को जिन्हें परमेश्वर एक विशेष कार्य के लिये अपने साधन के रूप में उपयोग करना चाहता है, शैतान अपनी पूरी ताकत से पशथभ्रष्ट करने का प्रयत्न करता है। वह हमारी निर्बलताओं पर आक्रमण करता है, हमारे चरित्र की त्रुटियों के माध्यम से हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व को नियन्त्रित करता है, और वह जानता है कि यदि इन त्रुटियों को संजोया जाए तो वह सफल होगा। लेकिन किसी को पराजित होने की आवश्यकता नहीं। बुराई की शक्ति को अपने निज साधारण प्रयत्नों से जीतने के लिये मनुष्य को अकेले नहीं छोड़ दिया गया है। सहायता पास ही है और यह प्रत्येक उस प्राणी को दी जाएगी जो वास्तविकता में उसे पाना चाहता है। परमेश्वर के दूत, जो याकूब द्वारा स्वप्नदर्शन में देखी गईं सीढ़ी पर चढ़ते-उतरते रहते है, प्रत्येक इच्छुक प्राणी की सर्वोच्च स्वर्ग तक चढ़ने में सहायता करेंगे।PPHin 588.4

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