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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 56—एली और उसके पुत्र

    यह अध्याय 4 शमूएल 2:12-36 पर आधारित है

    एली इज़राइल में याजक और न्यायाध्यक्ष था। परमेश्वर की प्रजा में वह सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च पद पर आसीन था। उसे याजकता के पवित्र कार्यों के लिये ईश्वर द्वारा नियुक्त किया गया था, और देश पर उच्चतम न्यायिक अधिकारी के स्थान पर बैठाया गया था और इस कारण उसे उदाहरण के रूप में देखा जाता था और इज़राइल के सभी घराने उससे प्रभावित थे। हालाँकि उसे प्रजा पर शासन करने के लिये नियुक्त किया गया था, लेकिन वह अपने ही परिवार को सुशासित नहीं कर सका। एली एक क्षमाशील पिता था। शान्ति और सहूलियत से लगाव रखते हुए, उसने अपने बच्चों की बुरी आदतों और तीव्र अभिलाषाओं पर रोक लगाने के अधिकार का प्रयोग नहीं किया। उन्हें दृढ़तापूर्वक टोकने या दण्डित करने के बजाय, वह उनकी इच्छा के आगे झुक जाता या उन्हें उनके रास्ते पर जाने देता। अपने पुत्रों की शिक्षा को अपना सबसे महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व समझने के बजाय, उसने इस विषय को प्राथमिकता नहीं दी। इज़राइल के याजक और न्यायाध्यक्ष को परमेश्वर द्वारा उसके सुपुर्द किये गए बच्चों को संचालित और नियन्त्रित करने के कर्तव्य के बारे में अन्धेरे मेंनहीं रखा गया था। लेकिन एली ने इस कर्तव्य का अनुपालन नहीं किया, क्योंकि ऐसा करने से उसे अपने पुत्रों की इच्छा के विरूद्ध जाना होता, और यह अनिवार्य हो जाता कि वह उन्हें रोके या दण्डित करे। इस पद्धति के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली भयानक परिस्थितियों पर विचार किये बिना, उसने अपने पुत्रों को मनमानी करने दी और उस कार्य की उपेक्षा की जो उन्हें जीवन के कर्तव्यों और परमेश्वर की सेवा टहल क लिये सुयोग्य बनाता।PPHin 598.1

    परमेश्वर ने अब्राहम के सन्दर्भ में कहा था, “मैं जानता हूँ कि वह अपने पुत्रों और परिवार, जो उसके पीछे रह जाएँगे, आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहे, और न्याय और परख करते रहें”-उत्पत्ति 18:19 । लेकिन एली ने अपने पुत्रों को उसे नियन्त्रित करने की अनुमति दी। पिता अपने पुत्रों की प्रजा बन गया। आज्ञा उल्लंघन का श्राप उसके पुत्रों की कार्यविधि में भ्रष्टाचार और बुराई की छाप से स्पष्ट था। वे ना तो उचित रूप से परमेश्वर के चरित्र को और ना ही उसकी व्यवस्था की पवित्रता को सराहते थे। उसकी सेवा-टहल करना उनके लिये साधारण बात थी। बचपन से वे मिलापवाले तम्बू और उसकी विधियों के अभ्यस्तथे, लेकिन और अधिक श्रद्धायुक्त होने के बजाय, वे उसकी पवित्रता और महत्ता का आभास तक खो चुके थे। पिता ने उसके अधिकार के प्रति उनके आदर के अभाव को सही नहीं किया, ना ही पवित्र स्थान की औपचारिक विधियों के प्रति उनके अनादर पर रोक लगाई और तब वे प्रौढ़ावस्था में पहुँचे तो वे विद्रोह और संदेहवाद के घातक फलों से परिपूर्ण थे। PPHin 598.2

    हालाँकि वे धर्मकिया के लिये पूरी तरह से अयोग्य थे, उन्हें परमेश्वर के सम्मुख सेवा-टहल करने के लिये मिलाप वाले तम्बू में याजकों का स्थान दिया गया। परमेश्वर ने बलि की भेंट चढ़ाने के सन्दर्भ में विशेष निर्देश दिये हुए थे, लेकिन इन दुष्ट पुरूषों ने परमेश्वर की सेवा-टहल में भी प्रभुत्व के प्रति अनादर दिखाया और जिस भेंट को अत्यन्त नियमित रूप से चढ़ाया जाना था उसके नियमों पर ध्यान नहीं दिया। मसीह की मृत्यु की और संकेत करते हुए ये बलिदान लोगों के ह्दयों में आने वाले उद्धारकर्ता में विश्वास को बनाए रखने के लिये चढ़ाया जाता था। इस कारण यह अति आवश्यक था कि भेंट से सम्बन्धित परमेश्वर के निर्देशों का नियमित रूप से पालन किया जाए । मेलबलि विशेष रूप से परमेश्वर के प्रति धन्यवाद की अभिव्यक्ति थी। इन भेंटों में वेदी पर केवल चरबी को जलाया जाता था, याजकों के लिये एक निश्चित विशेष भाग अलग किया जाता था, लेकिन बड़ा वाला भाग भेंट देने वालों को लौटा दिया जाता था, जिसे वह एक बलिदान सम्बन्धी प्रीतिभोज में अपने दोस्तों के साथ खाता था। इस प्रकार धन्यवाद और विश्वास में उनके मनों को उस महान बलिदान की ओर आकर्षित करना था जो जगत को पापमुक्त करने आने वाला था। PPHin 599.1

    एली के पुत्रों ने, इस सांकेतिक विधि की औपचारिकता को समझने के बजाय केवल इस बात पर विचार किया कि वह इसको आत्म-सन्तुष्टि का साधन कैसे बना सकते थे। उनके लिये आवंटित मेलबलि के अंश से असंतुष्ट उन्होंने एक अतिरिक्‍त भाग की मांग की, और वार्षिक पर्वों के समय चढ़ाई गईं बहुसंख्य भेंटे याजकों को लोगों के सौजन्य से स्वयं को धनवान बनाने का अवसर प्रदान करती थी। उन्होंने न केवल अपने अधिकार से अधिक की माँग की परमेश्वर को भेंट के रूप में चढ़ाई गई चरबी के जल जाने तक रूकने से भी इन्कार कर दिया। वे लगातार अपने मनचाहे भाग की माँग करते और यदि उन्हें मना किया जाता तो वे उसे बलपूर्वक लेने की धमकी देते। PPHin 599.2

    याजकों की ओर से इस श्रद्धाहीनता ने विधि को उसके पवित्र और विधिवत महत्ता से वंचित कर दिया और लोगों ने “यहोवा की भेंट का तिरस्कार’ किया । जिस महान प्रतिरूपक बलिदान की उन्हें प्रतीक्षा करनी थी,वह अब मान्य न रहा, “उन जवानों का पाप यहोवा की दृष्टि में बहुत भारी हुआ।’PPHin 600.1

    इन अधर्मी याजकों ने अपने भ्रष्ट और नीचतापूर्ण कार्या के द्वारा अपने पवित्र कार्यभार का निरादर किया और परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन भी किया, और ये परमेश्वर के पवित्र मण्डप को अपनी उपस्थिति से दूषित करते रहे।PPHin 600.2

    मण्डली के कई लोगों ने होप्नी और पीनहास की भ्रष्ट युक्ति पर कोधित होकर, आराधना के नियुक्त स्थानपर आना बन्द कर दिया। इस रीति से जिस धर्म किया को परमेश्वर ने पवित्र ठहराया था,वह दुष्ट मनुष्यों के पापों से सम्बद्ध होने के कारण घृणित और अपेक्षित हो गई, और वे जिनके हृदयों का झुकाव बुराई की ओर था, उन्हें पाप करने के लिये प्रोत्साहन मिला। अधर्म भ्रष्टाचार और मूर्तिपूजा भी व्यापक रूप से प्रचलन में थे।PPHin 600.3

    अपने पुत्रों को पवित्र स्थान में सेवा-टहल करने की अनुमति देकर बहुत बड़ी गलती की थी। किसी न किसी बहाने उनकी गतिविधियों को क्षमा करके वह उनके पापों के प्रति अन्धा हो गया, लेकिन फिर अन्त में वे वहाँ पहुँच गए जहाँ वह अपने पुत्रों के अपराधों से आँखे न चुरा सका। लोगों ने उनके हिंसक कृत्यों की शिकायत की ओर महायाजक अत्यन्त खेदित और शोकित हुआ। अब वह चुप न रह सका। लेकिन उसके पुत्रों की परवरिश ऐसे हुईं थी कि वे स्वयं के अलावा और किसी के बार में नहीं सोचते थे और अब उन्हें और किसी की चिन्ता नहीं थी। उन्होंने अपने पिता के दुख को देखा, लेकिन उनके कठोर हृदय विचलित नहीं हुए। उन्होंने उसकी विनम्र ताड़ना को सुना, लेकिन वे प्रभावित नहीं हुए। हालाँकि उन्हें उनके पापों के परिणाम के लिये भी चेतावनी दी गई, उन्होंने बुराई का चाल-चलन नहीं बदला। यदि एली ने अपने दुष्ट पुत्रों के साथ न्यायसंगत व्यवहार किया होता, तो उन्हें याजकीय कार्यभार से निकाल दिया गया होता और उन्हें मृत्युदण्ड दिया जाता। उन पर सार्वजनिक अपमान और दण्डादेश से बचाने के लिये उसने उन्हें पवित्र पदों पर आसीन रहने दिया। उसने अपने पुत्रों द्वारा परमेंश्वर की पवित्र आराधना में भ्रष्टाचार को सम्मिलित होने दिया और सत्य के विषय पर उस चोट को आघात करने दिया जिसके निशान कई वर्षो तक मिटाए जा सके। लेकिन जब इज़राइल के न्यायाध्यक्ष ने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया, परमेश्वर ने इस विषय को अपने हाथ में ले लिया।PPHin 600.4

    “तब परमेश्वर का एक जन एली के पास आया और उससे कहने लगा, यहोवा यो कहता है कि जब तेरे मूल पुरूष का घराना मिस्र में फिरौन के घराने के वंश में था, तब में उस पर निश्चय प्रकट नहीं हुआ था? और क्‍या मैंने उसे इज़राइल के सब गोत्रों में से इसलिये चुन नहीं लिया था कि मेरा याजक होकर मेरी वेदी के ऊपर चढ़ावा चढ़ाए और धूप जलाए, और मेरे सामने एपोद पहना करे? और क्‍या मैंने तेरे मूलपुरूष के घराने को इज़राइलियों के सारे बलि भेंट न दिए थे? इसलिये तुम उन बलि भेंटो और अन्नबलियों को, जिन्हें मैंने अपने धाम में चढ़ाने की आज्ञा दी है, पाँव तले क्यों रौंदते हो? और तू क्‍यों अपने पुत्रों को मुझ से अधिक आदर देता है, कि तुम लोग मेरी इज़राइली प्रजा की अच्छी से अच्छी भेंट खाकर मोटे हो जाओ? इसलिये इज़राइल के परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है कि मैंने कहा तो था कि तेरा घराना और तेरे मूल पुरूष का घराना मेरे सामने सदैव चला करेगा, परन्तु अब यहोवा की वाणी यह है कि यह बात मुझ से दूर हो, क्योंकि जो मेरा आदर करे मैं उनका आदर करूंगा, और जो मुझे तुच्छ जाने वे छोटे समझे जाएँगे। और मैं अपने लिये एक विश्वासयोग्य याजक, ठहराऊंँगा, जो मेरे हृदय और मन की इच्छा के अनुसार किया करेगा, और मैं उसका घर बसाऊंगा और स्थिर करूँगा, और वह मेरे अभिषिक्त के आगे हमेशा चलेगा।”PPHin 601.1

    परमेश्वर ने एली पर आरोप लगाया कि वह अपने पुत्रों को प्रभु से अधिक सम्मान करता था। जिस भेंट को परमेश्वर ने इज़राइल के लिये आशीष के रूप में नियत की थी, एली ने उसे घृणा का पात्र बना दिया, जबकि उसे अपने पुत्रों को उनके घृणास्पद और अधर्मी चाल-चलनके लिये लज्जित करना चाहिये था। जो अपने बच्चों के प्रेम में अन्धे होकर, उनकी अपनी ही इच्छा के अनुसार, उन्हें उनकी स्वार्थपूर्ण मनोकामनाओं की सन्तुष्टि करने देते हैं और बुराई को सुधारने और पाप की निनदा करने के लिये परमेश्वर के प्रभुत्व का प्रयोग नहीं करते, वे यह प्रकट करते है कि जितना सम्मान वे परमेश्वर का करते है, उससे अधिक सम्मान वे अपने बच्चों का कर रहे है। वे परमेश्वर को गौरवान्वित करने के बजाय, अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिये अधिक चिन्तित होते है, वे परमेश्वर को प्रसन्‍न करने के इच्छुक होने के बजाए, अपने बच्चों को प्रसन्न करने के अधिक इच्छ॒क होते हैं।PPHin 601.2

    परमेश्वर ने एली को उसके लोगों के नैतिक और धार्मिक स्थिति और विशेष रूप से उसके पुत्रों के चरित्र के लिये उत्तरदायी ठहराया, क्‍योंकि एली इज़राइल का न्यायाध्यक्ष और एक याजक था। उसे सर्वप्रथम नम्र उपायों द्वारा बुराई पर रोक लगाने का प्रयास करना चाहिये था, लेकिन यदि ये सफल नहीं होते, तो उसे कठोर साधनों को अपनाकर पाप को रोकना चाहिये था। पाप की निंदा न करके और पापी को दण्डित ना करके उसने प्रभु को अप्रसनन्‍न किया। इज़राइल को शुद्ध रखने के लिये उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था। जिनमें गलतियों की कटु आलोचना करने का बहुत कम साहस होता है या जो अपने आलस या उदासीनता के कारण परमेश्वर की कलीसिया या अपने परिवार को शुद्ध करने का कोई प्रयास नहीं करते, वे उस बुराई के लिये उत्तरदायी ठहराए जाते है, जो कर्तव्य की उपेक्षा के कारण उत्पन्न हो सकती है। उन बुराईयों के लिये, जिन्हें हम याजकीय या पैतृक अधिकार से रोक सकते थे, हम उसी प्रकार उत्तरदायी है, मानों वह क॒त्य हमने किये हो।PPHin 602.1

    एली ने अपने परिवार के पारिवारिक संचालन के लिये परमेश्वर के नियमों के अनुसार नहीं चलाया। उसने अपने निजी निर्णयों का अनुसरण किया। प्रेम ही प्रेम में पिता अपने पुत्रों के बचपन में उनके द्वारा किये गए पाप और गलतियों को अनदेखा करता रहा, और स्वयं को इस बात से संतोष दिलाता रहा कि उनके बड़े होने पर उनकी पापमय प्रवृति दूर हो जाएगी। कई आज भी यही गलती करते है। वे सोचते है बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिये परमेश्वर के वचन में दिये गए तरीके से बेहतरतरीका उनके पास है। वे उनमें गलत प्रवृतियों को बढ़ावा देते है और यह बहाना लगाकर आग्रह करते है, “अभी यह दण्ड भुगतने के लिये बहुत छोटे है। इनके बड़े होने तक ठहर जाओ, फिर इनके साथ तकं-विर्तक किया जा सकता है।” इस प्रकार गलत आदतों को परिपक्व होने के लिये छोड़ दिया जाता है और वे उनका अतिरिक्त स्वभाव बन जाती है। बच्चे बिना नियन्त्रण के चरित्र के उन अवगुणों के साथ बड़े हो जाते है जो उनके लिये एक आजीवन श्राप की तरह होते है और अन्य लोगों में भी उत्पन्न हो सकते है। PPHin 602.2

    घरानों पर इससे बड़ा श्राप नहीं हो सकता कि नौजवानों को मनमानी करने की अनुमति दी जाए। जब अभिभावक बच्चों की प्रत्येक इच्छा को मान लेते है और जानते हुए भी उन्हें वह करने देते है जो उनके लिये हानिकारक है, तो बच्चे उनका आदर करना छोड़ देते है। वे परमेश्वर और अन्य मनुष्यों के अधिकार का भी सम्मान नहीं करते और शैतान की इच्छा के वश में हो जाते है। एक अव्यवस्थित परिवार का प्रभाव समस्त समजात के लिये अनर्थकारी और व्यापक होता है। वह एक बुराई के ज्वार के समान बढ़ जाता हे और परिवारों, समाजों और सरकारों पर दुष्प्रभाव डालता है।PPHin 603.1

    एली के पद के कारण उसका प्रभाव सामान्य मनुष्य के प्रभाव से अधिक विस्तृत था। सम्पूर्ण इज़राइल में उसके पारिवारिक जीवन का अनुकरण किया जाता था। उसके उपेक्षापूर्ण और अनुशासनहीन तरीकों के अनिष्टकर परिणाम उन सैकड़ों घरों में दिखाई दिये, जो उसके उदाहरण अनुसार ढल गये थे। यदि बच्चों को कुकर्मा में व्यस्त होने दिया जाता है, और माता-पिता तथाकथित घार्मिक बने रहते है, तो परमेश्वर का सत्य निंदनीय ठहरता है। एक घर या एक परिवार की मसीहत की सबसे उत्तम पहचान उसके प्रभाव से उत्पन्न चरित्र की विशिष्टता में होती है। कर्म धार्मिकता के सबसे सकात्मक व्यवहार से अधिक प्रभावशाली होते है। यदि धर्मगुरू परमेश्वर में विश्वास के लाभ के साक्षी के रूप में एक सुव्यवस्थित परिवार की परवरिश के लिये सच्चे मन से, निरंतर और अत्यन्त सावधानी से प्रयास करने के बजाय अपने शासन में आचार भ्रष्ट और अपने बच्चों की बुरी आदतों के प्रति नम्नर होते हैं, तो वे एली जैसे कर्म कर रहे हैं, और मसीह के उद्देश्य का अपमान कर रहे है, और स्वयं पर और अपने परिवारों को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। किसी भी परिस्थिति में पैतृक अनिष्ठा का पाप गम्भीर है, परन्तु यही पाप दस गुना अधिक बड़ा है जब यह उनके परिवारों में विद्यमान होता है जिन्हें प्रजा के गुरूओं के तौर पर नियुक्त किया गया है। जब ये अपने परिवारों को नियन्त्रण में रखने में असफल होत है, तब अपने गलत उदाहरण से, वह कई लोगों को पथ-भ्रष्ट करते है। उनका अपराध दूसरों के अपराध से बड़ा है क्योंकि उनका पद अधिक उत्तरदायी है।PPHin 603.2

    यह प्रतिज्ञा की गई थी कि हारून का परिवार सदेव परमेश्वर के आगे-आगे चलेगा, लेकिन इस प्रतिज्ञा की शर्त यह थी उन्हें अपने विकृत रूझानों का अनुसरण या स्वयं को सन्तुष्ट ना करके, अपने चाल-चलन से परमेश्वर को महिमा पहुँचानी थी, और हृदय की एकनिष्ठता से मिलाप वाले तम्बू के कार्य के लिये समर्पित होतना था। एली और उसके पुत्रों को परखा गया, और प्रभु ने उनको उसकी सेवा-टहल या धर्म किया में याजकों के उत्कृष्ट पदों के लिये पूर्णतया अयोग्य पाया। परमेश्वर ने घोषणा की, “मुझसे दूर हो जाओ।” वह उनके लिये वैसा नहीं कर सका, जैसा वह चाहता था, क्‍योंकि उन्होने अपनी भूमिका नहीं निभायी।PPHin 603.3

    जो पवित्र कार्यों में कार्यरत होते हैं, उनका उदाहरण ऐसा होना चाहिये जो लोगों को परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और उसकी आज्ञा के उल्लंघन के प्रति भय से प्रभावित करे। जब मनुष्य पुनर्मिलाप और करूणा सम्बन्धित परमेश्वर के सन्देश को लोगों तक पहुँचाने के लिये मसीह के स्थान पर’ खड़े होकर, अपनी पवित्र बुलाहट को प्रयोग अपनी कामुक या स्वार्थपूर्ण तृप्ति के लिये आवरण के तौर पर करते हैं, तो वे स्वयं को शैतान के सफल कमक या कार्यकर्ता बना लेते है। होप्नी और पीनहास की भाँति वे मनुष्य से ‘परमेश्वर की भेंट का तिरस्कार’ करवाते है। वे कुछ समय के लिये गुप्त रूप से अपने दुष्टकर्म कर सकते है, लेकिन आखिरकर जब उनका वास्तविक चरित्र सामने आता है, तब लोगों के विश्वास को ऐसा झटका लगता है कि उनका धर्म पर से विश्वास उठ जाता है। उनका मन उन सब पर सन्देह करने लगता है जो परमेश्वर के वचन को सिखाने में आस्था दिखाते है। मसीह के सच्चे दास के सन्देश को सन्देह के साथ ग्रहण किया जाता है। यह प्रश्न लगातार उठता है “कहीं यह व्यक्ति भी उसकी तरह तो नहीं होगा जिसे हमने इतना पवित्र समझा, लेकिन वह इतना भ्रष्ट निकला”? इस प्रकार मनुष्य की आत्मा पर से परमेश्वर के वचन का प्रभाव समाप्त हो जाता है।PPHin 604.1

    अपने पुत्रों को दी गई, एली की फटकार में एक गम्भीर और भयावह सन्देश है-- वह सन्देश जिस पर उन सब को मनन करना चाहिये जो पवित्र कार्या में कार्यरत है: “यदि एक मनुष्य दूसरे के विरूद्ध पाप करे, तो न्यायी उसका न्याय करेगा, परन्तु यदि कोई मनुष्य यहोवा के विरूद्ध पाप करे, तो उसके लिये कौन विनती करेगा?” यदि उनके अपराधों से केवल उनके सहवासियों को आघात पहुँचा होता, तो न्यायाध्यक्ष ने अर्थदण्ड नियत करके और क्षतिपूर्ति मॉगकर सुलह करवा दी होती, और उस प्रकार दोषी को क्षमा-दान मिल जाता। और यदि वे घृष्ट पाप के दोषी होते, तो उनके लिये पापबलि का चढ़ावा चढ़ा दिया जाता। लेकिन पाप बलि चढ़ाने में सर्वोच्च परमेश्वर के याजकों के तौर पर उनकी सेवा-टहल के साथ उनके पापों का ऐसा ताना बाना था कि प्रजा के सम्मुख परमेश्वर के कार्य इतना इतना दूषित और तिरस्कत हुआ कि उनके लिये कोई प्रायश्चित स्वीकार नहीं किया जा सकता था। उनका अपना पिता, महायाजक होते हुए भी, उनके पक्ष में मध्यस्थता करने का दुस्साहस न कर सका, वह उन्हें पवित्र परमेश्वर के कोध से नहीं बचा सका। समस्त पापियों में, वे सबसे अधिक दोषी है, जो उन साधनों की उपेक्षा करते है, जिन्हें परमेश्वर ने मनुष्य के छुटकारे या उद्धार के लिये प्रदान किया है- जो “परमेश्वर के पुत्र को अपने लिये फिट कूस पर चढ़ाते हैं और प्रकट रूप से उस पर कलंक लगाते है।-इब्रियों 6:6।PPHin 604.2