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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 59—इज़राइल का पहला राजा

    यह अध्याय 1 शमूएल 8-12 पर आधारित हैPPHin 629.1

    इज़राइल की सरकार परमेश्वर के नाम में और उसके अधिकार से प्रशासित की जाती थी। मूसा, सत्तर पुरनियों, प्रधानों और न्यायियों का काम परमेश्वर द्वारा दिये गए नियमों को लागू करना था। उनके पास राष्ट्र के लिये निमय बनाने का अधिकार नहीं था। राष्ट्र के रूप मेंडजराइल के अस्तित्व की अवस्था यह थी और यही रही। एक काल से दूसरे काल में परमेश्वर द्वारा प्रेरित मनुष्यों को लोगों को निर्देश देने और नियमों के प्रवर्तन में निर्देशन करने के लिये भेजा गया।PPHin 629.2

    प्रभु को पूर्वाभास था कि इज़राइल एक राजा की इच्छा करेगा, परन्तु उसने उन सिद्धान्तों में बदलाव के लिये सहमति नहीं दी, जिनके आधार पर राज्य की स्थापना हुई थी। राजा को परमप्रधान का प्रतिनिधि होना था। परमेश्वर को राष्ट्र के प्रमुख के रूप में मान्यता दी जानी थी, और उसकी व्यवस्था भूमि की सर्वोच्च व्यवस्था के रूप में लागू की जानी थी। (परिशिष्ट देखे नोट 8)PPHin 629.3

    जब इज़राइली पहली बार कनान में बसे, तो उन्होंने धर्मशास्त्र के सिद्धान्तों को स्वीकार किया, और देश यहोशू के शासन में समृद्ध हुआ। लेकिन जनसंख्या में वृद्धि और अन्य देशों के साथ मेल-मिलाप से परिवर्तन आया। लोगों ने अपने मूर्तिपूजक पड़ोसियों के कई रीति-रिवाजों को अपनाया और इस तरह, काफी हद तक उन्होंने अपने विशिष्ट पवित्र चरित्र को त्याग दिया। धीरे-धीरे परमेश्वर के प्रति उनकी श्रद्धा भी समाप्त हो गई और उन्होंने उसके चुने हुए लोग होने के सम्मान का मान रखना भी छोड़ दिया। मूर्तिपूजक सम्राटों के धमूधामवाले प्रदर्शनों से आकर्षित होकर, वे अपनी सादगी से थक गए। जनजातियों अर्थात विभिन्‍न गोत्रों में ईर्ष्या और द्वेष उत्पन्न हो गए। आंतरिक मतमभेदों ने उन्हें कमजोर बना दिया; वे लगातार अपने मूर्तिपूजक शत्रुओं के आक्रमण के निशाने पर थे, और लोग यह मानने लगे थे कि अन्य राष्ट्रों में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिये, सभी जनजातियों को एक सशक्त केन्द्र सरकार के तहत एकजुट हो जाना चाहिये। परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने से हटकर, उनमें पवित्र परमप्रधान परमेश्वर के आधिपत्य से स्वतन्त्र होने की इच्छा जागृत हुई और इस प्रकार सम्पूर्ण इज़राइल में राजशाही के माँग व्यापक हो गई।PPHin 629.4

    यहोशू के दिनों से शासन का संचालन इतनी ज्ञानपूर्णत और सफलता के साथ नहीं हुआ था जितना की शमूएल के प्रशासन के समय हुआ। याजक, न्यायी और भविष्यद्वक्ता के तीन कार्यभारों के लिये परमेश्वर द्वारा नियुक्त उसने अपने लोगों के कल्याण के लिये अथक और निःस्वार्थ उत्साह से परिश्रम किया था और उसके बुद्धिमतापूर्ण नियंत्रण में राज्य समृद्ध हुआ था। व्यवस्था पुनः स्थापित हुईं, धार्मिकता को बढ़ावा दिया गया और उस समय के लिये असंतोष की भावना पर रोक लगाई गईं। लेकिन बढ़ती आयु के साथ, भविष्यद्वक्ता शासन के दायित्व को दूसरों के साथ बॉटने को विवश हो गया, और उसने अपने दो पुत्रों को अपने सहायकों के रूप में नियुक्त किया। शमूएल रामा में अपना कार्यभार के कर्तव्य सम्भाले रहा, नौजवान को देश की दक्षिणी सीमा के पास लोगों के बीच न्यायिक प्रशासन के लिये बेशबा में रखा गया।PPHin 630.1

    शमूएल ने पूरे राष्ट्र की सहमति से अपने पुत्रों को यह कार्यभार सौंपा था, लेकिन वे अपने पिता के चयन में खरे नहीं उतरे। प्रभु ने मूसा के माध्यम से अपने लोगों को विशेष निर्देश दिए थे कि इज़राइल के शासकों को न्यायापूर्वक न्याय करना चाहिये, विधवा और पितृहीनों के साथ न्यायसंगत व्यवहार करना चाहिये, और घूस नहीं लेनी चाहिये। लेकन शमूएल के पुत्र “लाभ देखकर पहले जैसे नहीं रहे;वे घूस लेने लगे और न्याय को विकृत करे लगे।” भविष्यद्वक्ता के पुत्रों ने उन सिद्धान्तों पर ध्यान नहीं दिया, जिनसे वह उनके हृदय को प्रभावित करना चाहता था। उन्होंने अपने पिता के पवित्र निःस्वार्थ जीवनशैली को नहीं अपनाया थां। एली को दी गई चेतावनी ने शमूएल के दिमाग पर वह प्रभाव नहीं छोड़ा था, जो उसे करना चाहिये था। वह अपने पुत्रों के साथ, कुछ हद तक अत्यन्त क्षमाशील रहा था, और परिणाम उनके चरित्र और जीवन में स्पष्ट था।PPHin 630.2

    इन न्यायियों के अन्याय ने बहुत असन्तोष उत्पन्न किया और इस प्रकार लम्बे समय से उस गुप्त वांछनीय परिवर्तन के लिये आग्रह करने का बहाना उपलब्ध हुआ। “इज़राइल के सभी पुरनिये इकट्ठे हुए, और शमूएल से मिलने रामा गए। और उन्होंने उससे कहा, “तुम बूढ़े हो गए हो और तुम्हारे पुत्र ठीक से नहीं रहते और उनका चाल-चलन तुम्हारेचाल-चलन जैसा नहीं हैं, अबतुम अन्य राष्ट्रों की तरह हम पर शासन करने के लिये एक राजा दो।” लोगों के बीच दुर्व्यवहार के मामलों को शमूएल के पास नहीं भेजा गया था। यदि उसके पुत्रों के कमार्ग के बारे में उसे ज्ञात होता, तो उसने अविलम्ब उन्हें अपदस्थ कर दिया होता, लेकिन याचिकाकर्ता ऐसा नहीं चाहते थे। शमूएल ने देखा कि उसका वास्तविक प्रेरक असन्तोष और गव॑ था उनकी माँग एक सोचे समझे और सुनिश्चित प्रयोजन का परिणाम थी। शमूएल के विरूद्ध कोई शिकायत नहीं की गई थी। सभी ने उसके प्रशासन की अखण्डता और बौद्धिकता को स्वीकार किया; लेकिन वृद्ध भविष्यद्बक्ता ने अनुरोध को स्वयं की निदां और स्वयं को हटाए जाने का प्रत्यक्ष प्रयास समझा। हालाँकि, उसने अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं किया, ना ही उसने उन्हें फटकार लगाई, लेकिन प्रार्थना में यहोवा के सम्मुख यह बात रखी और केवल उसी से सम्मति माँगी।PPHin 630.3

    प्रभु ने शमूएल से कहा, “वही करो जो लोग तुमसे करने को कहते है। उन्होंने तुमको अस्वीकार नहीं किया है। उन्होंने मुझे अस्वीकार किया है। वे नहीं चाहते कि में उन पर राज करूँ। उस दिन से, जब मैं उन्हें मिस्र से निकाल कर लाया, आज तक उनके द्वारा किये गए सभी कार्यों के अनुसार, उन्होंने मुझको छोड़कर अन्य देवी-देवताओं की उपासना की है, और वे तुम्हारे साथ भी वही कर रहे है।” PPHin 631.1

    लोगों के व्यवहार को अपने ऊपर व्यक्तिगत रूप से लेकर दुखी होने पर भविष्यद्बक्ता को झिड़का गया। उन्होंने उसके लिये निरादर प्रकट नहीं किया था, वरन्‌ उस परमेश्वर के अधिकार का अपमान किया था, जिसने अपने लोगों के शासकों को नियुक्त किया था। जो परमेश्वर के विश्वसनीय सेवक से घृणा करते है और उसे अस्वीकार करते हैं, वे केवल मनुष्य के लिये ही नहीं, वरन्‌ उस गुरू की अवमानना करते है, जिसने उसे भेजा था। वह परमेश्वर के कहे शब्द है, उसकी दी हुई फटकार और सम्मति,जिन्हें अमान्य कर दिया जाता है ;वह उसकी प्रभुता है जिसको अस्वीकार किया जाता है।PPHin 631.2

    इज़राइल के सबसे समृद्ध दिन वे थे जब यहोवा को उसके राजा के रूप में मान्यता प्राप्त थी- जब उसके द्वारा स्थापित प्रशासन और व्यवस्था को अन्य देशों के सरकार और नियमों की तुलना में श्रेष्ठ माना जाता था। प्रभु की आज्ञाओं के स्दंर्भ से मूसा ने घोषणा की थी “इन नियमों का सावधानी से पालन करो। यह अन्य राष्ट्र को सूचित करेगा कि तुम बुद्धि और समझ रखते हो। जब उन देशों के लोग इन नियमों के बारे में सुनेगे तो वे कहेंगे कि ‘सचमुच इस महान राष्ट्र के लोग बुद्धिमान और समझदार है ।”-व्यवस्थाविवरण 4:6। लेकिन परमेश्वर की व्यवस्था से दूर होकर वे वैसा बनने में असफल रहे जैसा परमेश्वर उन्हें बनाना चाहता था। और फिर उनके पापों के कारण उत्पन्न बुराईयों का आरोप उन्होंने परमेश्वर की सत्ता पर लगाया। इतने अन्धे हो गए थे वे पाप के कारण ।PPHin 631.3

    प्रभु ने अपने भविष्यद्कताओं के माध्यम से, भविष्यवाणी की थी, कि इज़राइल एक राजा द्वारा प्रशासित होगा, लेकिन इसके आगे यह नहीं कहा गया कि इस प्रकार का शासन उनके लिये सर्वोत्तम था या परमेश्वर की इच्छानुसार था। उसने लोगों को स्वेच्छा से चलने की अनुमति दे दी, क्योंकि उन्होंने उसकी सम्मति के मार्गदर्शन में चलने से इन्कार कर दिया था। होशे कहता है कि परमेश्वर ने कोध में आकर उन्हें एक राजा दिया (हो) 13:11)। जब मनुष्य, परमेश्वर से सलाह लिये बिना या उसकी प्रकट इच्छा के विरूद्ध, अपनी मनमानी करने लगते है, तो परमेश्वर उनकी इच्छा को इसलिये पूर्ण करता है कि उन्हें मनमानी के दुष्परिणाम के कटु अनुभव के द्वारा अपनी मूर्खता का आभास हो और वे अपने पापों का प्रायश्चित करें। मानवीय घमण्ड और बुद्धिमत्ता अविश्वसनीय मार्गदर्शक है। परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध , हृदय जिसकी अभिलाषा करता है, वह अन्त में आशीष के बजाय श्राप के रूप में सामने आता है।PPHin 632.1

    परमेश्वर चाहता था कि लोग केवल उसे एक नियम-दाता और शक्ति स्रोत के रूप में देखे। परमेश्वर पर निर्भर होने के आभास से वह निरंतर उसकी ओर आकर्षित होंगे। उत्कृष्ट और शिष्ट बनकर वे उस नियति के लिये सुयोग्य हो जाएँगे जिसके लिये प्रभु ने उन्हें उसके चुने हुए लोगों के रूप में बुलाया है। लेकिन जब एक व्यक्ति को सिंहासन पर बैठाया जाता था, तो लोगों का ध्यान परमेश्वर पर से हट जाता था। वे मनुष्य की सामर्थ्य में अधिक विश्वास रखने लगते और परमेश्वर में उनकी आस्था घट जाती। राजा की गलतियाँ उन्हें पाप का मार्ग दिखाती और राष्ट्र को परमेश्वर से अलग कर देती।PPHin 632.2

    शमूएल को लोगों के निवेदन को स्वीकार करने का निर्देश दिया गया और प्रभु की असहमति की चेतावनी देने को और उन्हें उनके अपनाए मार्ग के परिणामों से अभिज्ञ करने को भी कहा गया। “शमूएल ने लोगों से वे सारी बातें कही जो यहोवा ने कही थी।” उसने स्पष्ट रूप से उनके सम्मुख उन कठिन परिस्थितियों को रखा जिनका सामना उनको करना पड़ेगा और उनकी उस समय की स्वतन्त्र और समृद्ध अवस्था और आने वाली अत्याचार की अवस्था का तुलनात्मक वर्णन किया। उसने बताया कि उनका राजा अन्य राजशाहों के आडम्बर और विलासिता का अनुसरण करेगा और ऐसा करने के लिये जान और माल दोनों का कष्टपूर्ण बलादग्रहण किया जाना अनिवार्य होगा। उसकी सेवा-टहल के लिये उनके सबसे बलवन्त नौजवानों की माँग करेगा। उन्हें उसके आगे-आगे चलने वाले सारथी, घुड़सवार और धावक बनाया जाएगा। उन्हें उसकी सेवा मे भर्ती होना होगा, और उन्हें उसके खेतों में हल चलाना पड़ेगा, उसकी फसलों की कटाई करनी होगी और उसकी सेवा-टहल के लिये युद्ध के अस्त्र-शस्त्र बनाने होंगे। इज़राइल की पुत्रियाँ शाही घराने में हलवाई और नानबाई होगी। अपनी राजसी अवस्था को सम्भालने के लिये वह उन भू-खण्डो को उनसे छीन लेगा, जो यहोवा ने अपने लोगों को दी थी। उनके दासों में से सबसे योग्य, और उनके मवेशियों को भी वह ले जाकर “अपने काम पर लगा देगा। इस सब के अलावा राजा उनकी पूरी आय, उनके श्रम के काम, या उनके खेतों की उपज का दसवाँ हिस्सा माँगेगा'। आखिर में उसने कहा, “तुम सब उसके नौकर बन जाओगे।” “और उस दिन तुम अपने राजा की वजह से रोओगे,, जिसे तुमने चुना होगा और प्रभु उस दिन तुम्हारी नहीं सुनेगा।” राजशाही का बलादग्रहण कितना ही कष्टदायक क्‍यों न हो, राजशाही के संस्थान के पश्चात, उसे जब मन चाहे विस्थापित नहीं किया जा सकता था।PPHin 632.3

    लेकिन लोगों ने उत्तर दिया, “नहीं, लेकिन हम पर एक राजा निश्चय होगा कि हम भी अन्य राज्यों की तरह हो, हमारा राजा हमारा न्याय करे, हमारे आगे-आगे जाए और हमारे लिये युद्ध करे।” PPHin 633.1

    “अन्य राज्यों की तरह ।” इज़राइली यह नहीं समझ पाए कि इस सन्दर्भ में अन्य राज्यों की तरह नहीं होना एक विशेषाधिकार और आशीष था। परमेश्वर ने इज़राइलियों को अन्य सभी जातियों से अलग किया था, जिससे वह उन्हें अपनी विशेष निधि बना सकें। लेकिन श्रेष्ठ सम्मान को तिरस्कृत करके, मूर्तिपूजकों के उदाहरण को ह्दय में सांसारिक रीति-रिवाजों और परम्पराओं को अपनाने की तीव्र इच्छा विद्यमान है। परमेश्वर से दूर जाकर वे संसार से प्राप्त होने वाले लाभ के लिये महत्वाकाँक्षी हो जाते हैं। मसीही लोग संसार के देवता की उपासना करने वालों के रीति-रिवाजों का अनुकरण करने के लिये निरन्तार प्रयास करते हैं। कई आग्रह करते है कि सांसारिक लोगों के साथ मिलकर और उनके रीति-रिवाजों को अपनाकर वे अधर्मियों पर अधिक प्रभाव डाल सकते थे। लेकिन जो भी इस पद्धति का प्रयोग करते हैं वे स्वयं को शक्ति के स्रोत से अलग कर लेते है। संसार के मित्र बनकर, वे परमेश्वर के शत्रु हो जाते है। सांसारिक विशिष्टता के लिये वे उस अवर्णनीय सम्मान को त्याग देते हैं, जिसके लिये परमेश्वर ने उन्हें बुलाया है, अर्थात उसकी स्तुति जिसने हमें अन्धकार से बाहर निकालकर उसके अदभुत प्रकाश में बुलाया है। PPHin 633.2

    गहरी उदासी के साथ शमूएल ने लोगों के शब्दों को सुना, लेकिन प्रभु ने उससे कहा, “जैसा वे कह रहे है वैसा ही कर, और उनके लिये एक राजा चुन ले। भविष्यद्वक्ता ने अपना कर्तव्य पूरा कर दियाथा। उसने ईमानदारी से चेतावनी प्रस्तुत कर दी थी और उसे अस्वीकार कर दिया गया था। भारी मन से उसने लोगों को भेजा और वह स्वयं शासन में बड़े बदलाव के लिये तैयार होने के लिये वहाँ से गया।PPHin 634.1

    शमूएल के जीवन की शुद्धता और निःस्वार्थ भक्ति, इज़राइल की विषयासक्त, घमण्डी प्रजा और स्वार्थी याजकों के लिये चिरस्थायी फटकार थी। यद्यपि उसने किसी आडम्बर की कल्पना नहीं की और ना कोई प्रदर्शन किया था, उसके श्रम पर स्वर्ग की मुहर थी। संसार का उद्धारकर्ता उसका सम्मान करता था, वह उद्धारकर्ता जिसके मार्गदर्शन में उसने इब्रियों पर शासन किया। लेकिन लोग उसकी भक्ति और धार्मिकता से थक चुके थे। उन्हें उसके दीन अधिकार से घृणा थी और उन्होंने उसे उस व्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया जो राजा बनकर उनपर राज करें। PPHin 634.2

    शमूएल के चरित्र में हमें मसीह की समानता का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। वह हमारे उद्धारकर्ता के जीवन की पवित्रता थी जिसने शैतान के कोध को भड़काया। वह जीवन जगत की ज्योति था, और मनुष्यों के ह्दय की गुप्त दुष्टता को उजागर करती थी। मसीह की पवित्रता ने ही धार्मिकता के ढोंगी गुरूओं के अति कर आवेगों को उसके विरूद्ध उत्तेजित किया। मसीह पृथ्वी के सम्मानों और निधि के साथ नहीं आया, लेकिन उसके द्वारा किये गए कार्यों से यह स्पष्ट हो गया कि उसकी सामर्थ्य अन्य सभी सांसारिक प्रधानों की सामर्थ्य से अधिक थी। यहूदी को आशा थी कि मसीह उन पर से अत्याचारियों के जुए को तोड़ डालेगा। लेकिन वे उन पापों को संजोए हुए थे जिन्होंने उस जुए को उनकी गर्दनों पर बाँध रखा था। यदि मसीह ने उनके पापों को आच्छादित किया होता और उनके धार्मिकता को सराहा होता, तो वे उसको राजा तो स्वीकार कर लेते;लेकिन अपने पापों के लिये उसकी निर्भय निनन्‍्दा को वे सहन नहीं करते। चरित्र की उस सुन्दरता से जिसमें उदारता, निर्मलता और पवित्रता का स्थान सबसे ऊपर था, जिसमें पाप के अलावा और किसी चीज से घृणा नहीं थी, वे घृणा करते थे। संसार के प्रत्येक युग मे ऐसा ही हुआ है। स्वर्ग से प्राप्त प्रकाश उन सब को निंदंनीय ठहराता है जो उसकी ज्योति में चलना नहीं चाहते। जब पाप से घृणा करने वालों के उदाहरण से पाखण्डियों की निंदा होती हे, तो वे सत्यनिष्ठ लोगों को सताने और उन पर अत्याचार करने के लिये शैतान के कर्मक बन जाते है। “वास्तव में जो परमेश्वर की सेवा में नेकी के साथ जीना चाहते है, वे सताए जाएँगे।”-2 तीमुथियुस 3:12।PPHin 634.3

    हालाँकि इज़राइल के लिये राजतंत्रीय शासन की भविष्यवाणी की गईं थी, उनके राजा के चयन का अधिकार परमेश्वर ने स्वयं के पास सुरक्षित रखा था। अभी तक चयन को पूरी तरह परमेश्वर पर छोड़कर इब्री परमेश्वर के अधिकार का सम्मान करते थे। बिनयामीन के गोत्र से कीश के पुत्र, शाऊल को चुना गया।PPHin 635.1

    भावी राजा की व्यक्तिगत विशेषताएँ ऐसी थी कि वे हृदय के घमण्ड को सन्तुष्ट करती थी जिसके कारण एक राजा के होने की अभिलाषा जागृत हुईं । “वहां इज़राइलियों में शाऊल से अधिक सुन्दर कोई नहीं था ।”1शमूएल 9:2 । कुलीन और गरिमापूर्ण व्यवहार का धारक, नौजवानी में, सुदर्शन और कद में ऊंचा, बाहरी आकर्षक विशेषताओं के होते हुए भी उसमें वास्तविक बुद्धिमता के गुणों का अभाव था। अपनी किशोरावस्था में उसने अविवेकपूर्ण और आवेशपूर्ण जुनून पर नियन्त्रण रखना नहीं सीखा था, और ना ही उसे पवित्र अनुग्रह के सामर्थ्य का आभास हुआ था, जिसमें परिवर्तन लाने की शक्ति होती है।PPHin 635.2

    शाऊल एक धनवान और प्रभावशाली मुखिया का पुत्र था, लेकिन उस समय की सादगी के अनुसार वह अपने पिता के साथ एक खेतिहर के कर्तव्यों में व्यस्त था। उसके पिता के कुछ पशु पहाड़ों पर भटक गए थे, इसलिये एक सेवक को साथ लिये वह उन्हें ढूंढने निकला। तीन दिनों तक वे व्यर्थ में दूँढते रहे, फिर जब वे शमूएल के घर, रामा से कुछ ही दूर था, उस सेवक ने खोए हुए पशुओं के सम्बन्ध में भविष्यद्क्ता से पूछताछ करने का प्रस्ताव रखा। “मेरे पास एक शेकेल चाँदी का चौथा हिस्सा है, जो मैं परमेश्वर के दास को दूँगा कि वह हम को बताए कि हम किधर जाएँ ।” यह उस समय की परम्परा के अनुसार था। यदि कोई व्यक्ति पद या कार्यभार में स्वयं से श्रेष्ठ व्यक्ति से भेंट करता था, तो आदर प्रकट करने के लिये वह उसे छोटी सी भेंट देता था।PPHin 635.3

    नगर के समीप पहुँचने पर, उनकी भेंट कुछ नवयुवतियों से हुईं जो पानी भरने आईं थी, और शाऊल और उसके सेवक ने उनसे भविष्यद्वक्ता का पता पूछा। उत्तर में उन्हें कहा गया कि एक धार्मिक विधि होने को थी, और भविष्यद्वकता वहाँ आ चुका था और ऊँचे स्थान’ पर भेंट चढ़ाई जाएगी और उसके बाद बलिदान सम्बन्धी सहभोज होगा। शमूएल के प्रशासन के तहत बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ था। जब परमेश्वर की ओर से उसे पहली बार बुलाया गया था, मिलापवाले तम्बू की विधियों का तिरस्कार किया जाता था। “वे यहोवा को भेंट की गईं बलि के प्रति श्रद्धा नहीं रखते थे ।-1 शमूएल 2:17। लेकिन अब परमेश्वर की आराधना पूरे राज्य में की जाती थी, लोग धार्मिक विधियों में रूचि दिखाते थे। पवित्र स्थान में कार्य संपादन न होने के कारण, कुछ समय के लिये बलि की भेंट कहीं और चढ़ाई जाती थी, और इस कार्य के लिये लैवियों और याजकों के नगर, जहाँ लोग निर्देश प्राप्त करने जाते थे, चुने गए थे। इन नगरों के सबसे ऊंचे टीले बलि के स्थान के रूप में चुने जाते थे इसलिये यह “उच्च स्थान” कहलाते थे। PPHin 636.1

    नगर के फाटक पर भविष्यद्बक्ता स्वयं शाऊल से मिला। परमेश्वर ने शमूएल पर प्रकट किया था कि इज़राइल के लिये चुना हुआ राजा स्वयं उसके सम्मुख प्रस्तुत होगा। जब वे आमने-सामने खड़े हुए परमेश्वर ने शमूएल से कहा, “यही वह व्यक्ति है जिसके बारे में मैंने तुमसे कहा था। यह मेरे लोगों पर शासन करेगा।PPHin 636.2

    शाऊल ने शमूएल से निवेदन किया, “कपया बता कि भविष्यद्क्ता का घर कहा है?” शमूएल ने उत्तर दिया, “मैं ही भविष्यद्वक्ता हूँ। उसे आश्वासन देते हुए कि खोए हुए पशु मिल गए थे, शमूएल ने उससे ठहरने और सहभोज में सम्मिलित होने का कहा, और साथ ही साथ उसे उसकी महान नियति का भी संकेत दिया, “अब तुम्हें सारा इज़राइल चाहता है। वे तुम्हें और तुम्हारे पिता के परिवार के सभी लोगों को चाहते है।” भविष्यद्बक्ता से यह सुनकर सुनने वाले का हृदय गदगद हो गया। वह उन शब्दों के महत्व को समझ गया, क्योंकि एक राजा की माँग सम्पूर्ण राज्य के लिये अत्यन्त उत्सुकता का विषय बन गया था। फिर भी विनयपूर्ण दीनता से शाऊल ने उत्तर दिया, “किन्तु मैं तो बिन्यामीन परिवार समूह का एक सदस्यहूँ जो इज़राइल में सबसे छोटा परिवार समूह है। आप क्‍यों कहते हैं कि इज़राइल मुझको चाहता है?PPHin 636.3

    शमूएल आगन्तुक को सभा स्थल पर ले गया जहाँ नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति एकत्रित हुए थे। उनके मध्य में, भविष्यद्वक्ता के निर्देशानुसार, सम्मान का स्थान शाऊल को दिया गया और सहभोज से समय सबसे उत्तम भाग उसके सम्मुख रखा गया। विधियों के सम्पन्न होने के पश्चात, शमूएल अपने अतिथि को अपने निजी निवास पर ले गया, और वहाँ छत पर उसके साथ बताचीत की और उसके सम्मुख उन महान सिद्धान्तों को रखा जिनके आधार पर इज़राइल की सत्ता स्थापित की गई थी, और इस प्रकार, कुछ हद तक, उसे इस ऊंचे पद के लिये तैयार करना चाहा। PPHin 637.1

    दूसरे दिन, सुबह होने पर, भविष्यद्वक्ता शाऊल के साथ गया। नगर पार करके, उसने सेवक को आगे जाने को कहा, फिर उसने शाऊल को सीधे खड़े होकर उस सन्देश को प्राप्त करने को कहा जो परमेश्वर ने उसे दिया, “फिर शाऊल ने विशेष तेल की एक कृप्पी ली। शमूएल ने शाऊल के सिर पर तेल उँडेला और उसे चूमते हुए कहा, “यहोवा ने तुम्हारा अभिषेक अपने लोगों का प्रमुख बनाने के लिये किया है। तुम यहोवा के लोगों पर नियन्त्रण करोगे। तुम उन्हेंउन शत्रुओं से बचाओगे जो उन्हे चारों ओर से घेरे हुए है। यहोवा ने तुम्हारा अभिषेक (चुनाव) अपने लोगों का शासक होने के लिये किया है। एक चिन्ह प्रकट होगा जो प्रमाणित करेगा कि यह सत्य है।” इस बात का प्रमाण देने के लिये कि यह परमेश्वर के अधिकार से किया गया था, उसने उन घटनाओं की भविष्यवाणी की जो उसकी घर वापसी की यात्रा के द्वारा घटित होने वाली थी, और उसने शाऊल को आश्वासन दिया कि परमेश्वर का पवित्र आत्मा उसे राजा के पद के लिये सुयोग्य बनाएगा। भविष्यद्वक्ता ने कहा, “यहोवा का आत्मा तुझ पर उतरेगा, और तू परिवर्तित होकर और ही मनुष्य हो जाएगा। और जब ये चिन्ह तुझे दिखाई पड़ेंगे, तब जो काम करने का अवसर तुझे मिले उसमें लग जाना, क्योंकि परमेश्वर तेरे संग रहेगा। PPHin 637.2

    जैसे ही शाऊल वहाँ से चला, सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा था। बिन्यामीन की सीमा पर पहुँच कर उसे बताया गया कि उसके सोए हुए पशु मिल गए थे। ताबोर की तराई में उसे तीन पुरूष मिले जो बेथेल से परमेश्वर की आराधना करने वाले थे। उनमें से एक ने बलि के लिये तीन बकरी के बच्चे पकड़े हुए थे, दूसरे ने तीन रोटी और तीसरे ने बलि सम्बन्धी सहभोज के लिये एक दाखरस की बोतल ली हुई थी। उन्होंने शाऊल को व्यवहारिक अभिनन्दन किया और तीन रोटी में से दो रोटी उसे दे दी। उसके अपने शहर गिबा में “उच्च स्थान’ से लौटता हुआ भविष्यद्बक्ताओं का समूह सितार, डफ और बांसूरी की धुन पर परमेश्वर की प्रशंसा के गीत गा रहे थे। जैसे ही शाऊल उनके पास पहुँचा, परमेश्वर का आत्मा उस पर भी उतरा और वह भी उसके साथ प्रशंसाके गीत गाने लगा, ओर भविष्यद्वाणी करने लगा। वह इतनी वाक्पटुता और पांडित्य से बोला, और उनकी विधि में इतनी निष्ठा से सम्मिलित हुआ कि उससे जो परिचित थे वे आश्चर्य करते हुए बोले, “कीश के पुत्र को यह क्‍या हुआ? क्या शाऊल भी भविष्यद्वक्ताओं में से एक है?PPHin 637.3

    जब शाऊल ने भविष्यद्बकताओं के साथ आराधना की, पवित्र आत्मा के द्वारा उसमें बहुत परिवर्तन आया। ईश्वरीय शुद्धता और पवित्रता का प्रकाश प्राकृतिक हृदय के अन्धकार पर चमका। उसने स्वयं को ऐसे देखा मानो वह परमेश्वर के सम्मुख हो। उसने पवित्रता की सुन्दरता को देखा। अब उसे पाप और शैतान के विरूद्ध संग्राम प्रारम्भ करने के लिये बुलाया गया और उसे यह एहसास दिलाया गया कि इस संघर्ष में उसका सामर्थ्य पूर्णतया परमेश्वर की ओर से आया था। उद्धार की योजना, जो घैँधली और अनिश्चित प्रतीत हो रही थी, अब उसको समझ आ गई। परमेश्वर ने उसे उसके उच्च पद के लिये साहस और बुद्धि प्रदान किये। उसने उस पर अनुग्रह और सामर्थ्य के स्रोत को प्रकट किया, और पवित्र अधिकारों और अपने निजी कर्तव्य के बारे में उसकी समझ को प्रबुद्ध किया।PPHin 638.1

    शाऊल का राजा के रूप में अभिषेक किये जाने के बारे में इज़राइली प्रजा को नहीं बताया गया था। परमेश्वर के चयन को सार्वजनिक तौर पर प्रकट किया जाना था। इस कार्य के लिये शमूएल ने मिस्पा में लोगों की सभा बुलाई । ईश्वरीय मार्ग दर्शन के लिये प्रार्थना की गई, और इसके बाद चयन का विधिवत समारोह हुआ। एकत्रित हुई प्रजा चुपचाप इस कार्य की प्रतीक्षा करती रही। गोत्र, परिवार और घरानों को कमानुसार खड़ा किया, और फिर कीश के पुत्र शाऊल को चुने हुए व्यक्ति की तरह संकेत किया गया। लेकनि शाऊल सभा में नहीं था। स्वयं पर एक महान उत्तरदायित्व के आने के आभास के कारण शाऊल चुपचाप पीछे हट गया था। उसे प्रजा के पास लाया गया, जिन्होंने सन्‍तोष और गर्व के साथ देखा कि वह एक कुलीन और राजसी आचरण का था और “लोगों से लम्बा था।” शमूएल भी उसे प्रजा के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बोला, “क्या तुमने यहोवा के चुने हुए को देखा है कि सारे लोगों में कोई उसके बराबर नहीं?” और उत्तर देते हुए सब लोग ललकार कर बोले उठे, “राजा चिरंजीव रहे।”PPHin 638.2

    शमूएल ने इसके बाद ‘राजा की राजनीति’ को लोगों के सम्मुख रखा और उन सिद्धान्तों का वर्णन किया जिन पर राजशाही शासन आधारित था और जिसके द्वारा उन्हें संचालित किया जाना था। राजा को एक निरंकश सम्राट ना होकर, अपने अधिकर को सर्वोच्च परमेश्वर के अधीन रखना था। इस सम्बोधन का उल्लेख पुस्तक में किया गया , जहाँ शासक के प्राधिकारों और प्रजा के विशेषाधिकारों और अधिकारों का वर्णन किया गया। यद्यपि लोगों ने शमूएल की चेतावनी का तिरस्कार किया था, सत्यनिष्ठ भविष्यद्बक्ता, उसकी अभिलाषाओं के आगे समर्पण करने को विवश होकर भी, जहाँ तक सम्भव था, उनकी स्वाधीनता की सुरक्षा करने के लिये प्रयत्नशील था।PPHin 639.1

    हालाँकि सामान्य तौर पर लोग शाऊल को राजा के रूप में स्वीकार करने के लिये तैयार थे, लेकिन एक बड़ा दल विपक्ष में था। इज़राइल के गोत्रों में सबसे छोटे गोत्र बिन्यामीन में से राजा का चुना जाना और वह भी सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली, यहूदा और एप्रैम की उपेक्षा कर, एक ऐसा अपमान था जिसे वे सहन नहीं कर पाए। उन्होंने शाऊल के प्रति स्वामिभक्ति या उसके लिये परम्परागत भेंट लाने से इन्कार कर दिया। जो राजा की माँग करने में सबसे अधिक उतावले थे उन्होंने ही परमेश्वर द्वारा नियुकक्‍त व्यक्ति को कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करने से मना कर दिया। प्रत्येक दल के सदस्यों का अपना प्रीतिपात्र था, जिसे वह सिंहासन पर बैठा देखना चाहते थे, और उनमें से कई अगुवे इस सम्मान को स्वयं के लिये चाहते थे, और उनमें से कई हृदय ईर्ष्या और द्वेष से जल रहे थे। महत्वकांक्षा और घमण्ड के प्रयत्न निराशा और असंतोष मे प्रमाणित हुए थे।PPHin 639.2

    इन परिस्थितियों में शाऊल ने राजसी सम्मान को ग्रहण करना उचितनहीं समझा । शमूएल को पहले की तरह शासन करने को छोड़कर, वह गिबा को लौट गया। उसे वहाँ से सम्मानपूर्वक एक दल के साथ भेजा गया, जो उसके चुनाव में ईश्वरीय चयन को देखकर, उसे बनाए रखने को संकल्पित थे। लेकिन शाऊल ने सिंहासन पर अपने अधिकार को बलपूर्वक बनाए रखने का कोई प्रयत्न नहीं किया । बिन्यामीन के पहाड़ी प्रदेश में अपने घर जाकर वह खेतिहर के कर्तव्यों में व्यस्त हो गया और अपने आधिपत्य की स्थापना को पूर्णतया परमेश्वर पर छोड़ दिया।PPHin 639.3

    शाऊल की नियक्ति के तुरन्त बाद नाहाश राजा के नेतृत्व में अम्मोनियों ने यरदन के पूर्व के प्रान्त पर चढ़ाई की और गिलाद के याबेश नगर में डेरा डाला । वहाँ के निवासियों ने अम्मोनियों के अधीन होने के प्रस्ताव द्वारा उनके साथ शान्तिपूर्ण समझौता करना चाहा। इसके लिये निर्दयी राजा केवल इस शर्त पर सहमत हुआ कि उनमें से प्रत्येक की दाहिनी आंख फोड़ कर उनको उसकी शक्ति का स्थायी साक्षी बनाया जाए।PPHin 640.1

    घेराव किये हुए नगर के लोगों ने सात दिनों का समय माँगा। इसके लिये अम्मोनी यह सोचकर सहमत हो गए कि वे अपनी अपेक्षित विजय के सम्मान को और ऊंचा कर सकेंगे। याबेश से दूतों को तत्काल भेजा गया, जिससे कि यरदन के पश्चिम के गोत्रों से सहायता प्राप्त की जा सके। वे समाचार लेकर गिबा पहुँचे, और इससे भय व्यापक रूप से फैल गाय। रात को शाऊल बिैलों के पीछे-पीछे मैदान में चला आ रहा था कि उसने लोंगों के चिललाकर रोने की आवाज सुनी जो किसी विपत्ति का सन्देश दे रही थी। उसने पूछा, “लोगों को क्या हुआ कि वे रोते है?” जब अपमानजनक कहानी दोहराई गई उसकी दबी हुई शक्तियाँ जागृत हो गई। “परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा.......और उसने एक जोड़ी बैल लेकर उसके टुकड़े-टुकड़े किये, और यह कहकर दूतों के हाथ से इज़राइल के सारे देश में कहला भेजा, जो कोई आकर शाऊल के पीछे न हो लेगा उसके बैलों के साथ ऐसा ही किया जाएगा।” PPHin 640.2

    शाऊल के नेतृत्व में, बेजक की तराई में तीन हज़ार पुरूष एकत्रित हुए। दूतों को तत्काल ही गिलाद के याबेश नगर में इस आश्वासन के साथ भेजा गया कि सबुह होने पर अर्थात उसी दिन जब उन्हें अम्मोनियों के आगे समर्पण करना था, उन्हें अवश्य ही सहायता प्राप्त होगी। शाऊल की सेना तीव्र गति से रातों-रात यरदन को पार कर “रात के अन्तिम पहर पर” याबेश पहुँचे। गिदोन की तरह, शाऊल ने अपनी सेना को तीन टुकड़ियों में बॉँटा और उस पहर अम्मोनियों की छावनी पर टूट पड़ा जब, खतरे का अन्देशा ना होने से, वे विलकुल असुरक्षित थे। उसके बाद जो हुआ उसने बहुत नरसंहार हुआ। “और जो बच निकले वे वहाँ तक तितर-बितर हो गए कि कही भी दो जन भी इकटठे न रहे।”PPHin 641.1

    शाऊल की तत्परता और साहस और इतनी विशाल सेना के सफल संचालन में प्रदर्शित उसका सेनापत्य वे गुण थे जो इज़राइल अपने राजा में देखना चाहते थे, जिससे कि वे अन्य राष्ट्र के समान हो सकें। उन्होंने अब शाऊल का राजा के रूप में अभिनन्‍्दन किया, और विजय का श्रेय मानवीय साधनों को देते हुए वे भूल गए कि परमेश्वर के विशेष आशीर्वाद के अभाव में उनके सभी प्रयत्न व्यर्थ होते। इस उत्साह में किसी-किसी ने प्रस्ताव रखा कि जिन्होंने पहले शाऊल के अधिकार को स्वीकार करने से मना कर दिया था, उन्हें मार डाला जाए। लेकिन राजा ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “आज के दिन कोई भी मार डाला न जाएगा, क्योंकि आज यहोवा ने इज़राइलियों की छुटकारा दिया है। यहाँ शाऊल ने अपने स्वभाव में परिवर्तन होने का प्रमाण दिया। जीत का श्रेयस्वयं को देने के बजाए, उसने परमेश्वर की महिमा की। प्रतिशोध की इच्छा न दिखाकर उसने क्षमाशीलता और सहानुभूति की भावना को प्रकट किया। यह इस बात का निश्चय प्रमाण है कि परमेश्वर का अनुग्रह हृदय में वास करता है।PPHin 641.2

    शमूएल ने अब गिलगल में एक राष्ट्रीय सभा के आयोजन का प्रस्ताव रखा, जिससे कि वहाँ राज्य को सार्वजनिक तौर पर शाऊल को दिया जाए। ऐसा ही किया गया, “वहीं उन्होंने यहोवा को मेलबलि चढ़ाए, और वहीं शाऊल और सब इज़राइलियों ने अत्यन्त आनन्द मनाया।”PPHin 641.3

    गिलगल में इज़राइल ने पहला पड़ाव डाला था। यहीं पर यहोशू ने, पवित्र निर्देश द्वारा, यरदन को चमत्कारी रूप से पार करने के स्मारक के रूप में बारह पत्थरों के स्तम्भ को स्थापित किया था। यहीं पर खतने की विधि को दोहराया गया था। यही पर मरूस्थल में पड़ाव और कादेश में किए गए पाप के पश्चात पहला फसह का पर्व मनाया गया था। यहीं पर मन्‍ना का मिलना बन्द हुआ था। यहीं पर यहोवा की सेनाओं के कप्तान ने स्वयं इज़राइल के सेना प्रमुख के रूप में प्रकट किया था। इसी जगह से उन्होंने यरीहां और ऐ के लिये कूच किया था। यहीं आकान को उसके पाप का दण्ड मिला था और यहीं पर गिबोनियों के साथ वह सन्धि की गईं, जिसके माध्यम से इज़राइलियों को परमेश्वर की सम्मति लेने की उपेक्षा के लिये दण्डित किया गया। इतनी सारी उत्सावर्धक घटनाओं से जुड़ी इस तराई पर शमूएल और शाऊल खड़े हुए, और जब उनका स्वागत करती आवाजे शान्त हुई, वृद्ध भविष्यद्बक्ता ने राज्य के शासक के रूप में अपने अन्तिम शब्द कहे।PPHin 641.4

    “सुनो, जो कुछ तुम ने मुझ से कहा था उसे मानकर मैंने एक राजा तुम्हारे ऊपर ठहराया है। और अब देखो वह राजा तुम्हारे आगे-आगे चलता है, और अब मैं बूढ़ा हूँ. और मेरे बाल सफेद हो गए हैं, और मेरे पुत्र तुम्हारे पास है, और मैं लड़कपन से लेकर आजतक तुम्हारे सामने कार्य करता रहा हूँ। में उपस्थित हूँ. इसलिये तुम यहोवा के सामने और उसके अभिषिक्त के सामने साक्षी दो कि मैंने किसका बैल लिया है? या किसका गधा ले लिया? या किस पर अत्याचार किया? या किस के हाथ से अपनी आंख बन्द करने के लिये घूस ली? बताओ, और मैं तुमको लौटा दूँगा।PPHin 642.1

    एक आवाज में लोगों ने उत्तर दिया, “तूने न तो हम पर अन्धेर किया, न हम पर अत्याचार किया, और न किसी के हाथ से कुछ लिया है।’PPHin 642.2

    शमूएल केवल अपनी कार्य प्रणाली को न्यायसंगत ठहराने का प्रयत्न नहीं कर रहा था। उसने पहले से ही राजा और प्रजा को शासित करने वाले सिद्धान्तों का वर्णन किया था, और वह अपने उदाहरण का प्रभाव उसके कहे शब्दों पर डालना चाहता था। बचपन से ही वह परमेश्वर के कार्य से जुड़ा हुआ था और उसके लम्बे जीवन के दौरान परमेश्वर की महिमा और इज़राइल के सर्वोच्च कल्याण का लक्ष्य हमेशा उसके सम्मुख रहा था।PPHin 642.3

    इज़राइल की समृद्धि की कोई भी आशा करने से पहले उन्हें परमेश्वर के सम्मुख प्रायश्चित करना था। पाप के फलस्वरूप उन्होंने परमेश्वर में अपना विश्वास और राज्य पर शासन करने की उसकी सामर्थ्य और बुद्धिमता के संदर्भ में अपने विवेक को खो दिया था-उन्होंने परमेश्वर के उद्देश्य को उसी के द्वारा सही प्रमाणित करने की उसकी योग्यता में अपना विश्वास खो दिया था। सच्ची शान्ति प्राप्त करने से पहले यह आवश्यक है कि जिस पाप के लिये वे दोषी है उसका अंगीकार करे। उन्होंने राजा की माँग के लक्ष्य को घोषित कर दिया था, “कि हमारा राजा हमारा न्याय करे, और हमारे आगे-आगे जाकर हमारे लिये युद्ध करे।” शमूएल ने इज़राइल के इतिहास को उस दिन से दोहराया जब परमेश्वर उन्हे मिस्र से निकालकर लाया था। राजाओं का राजा यहोवा उनके आगे-आगे गया था, और उनके लिये उसने लड़ाईयाँ लड़ी थी। प्रायः उनके पाप उन्हें उनके शत्रुओं के अधिकार में बेच देते थे, लेकिन जैसे ही वे अपने पापमय तौर-तरीकों से मुहँ फेर लेते थे, करूणामयी परमेश्वर उनके लिये एक उद्धारकर्ता भेजा था। यहोवा ने गिदोन और बाराक, “और यिप्ताह और शमूएल को भेजकर तुमको तुम्हारे चारों ओर के शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया और तुम निडरता से रहनेलगे ।” और जब उन पर संकट आया तो वे बोले” हम पर एक राजा राज्य करेगा, “और भविष्यद्वक्ता ने कहा ऐसा उन्होंने तब कहा, “जब तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारा राजा था।PPHin 642.4

    शमूृएल ने आगे कहा, “अब तुम खड़े रहो, और इस बड़े काम को देखो जिसे यहोवा तुम्हारी आँखो के सामना करने पर है। आज क्‍या गेहूँ की कटनी नहीं हो रही? मैं यहोवा का पुकारूगा और वह मेघगर्जन करेगा और मेंह बरसाएगा, तब तुम जान लोगे, ओर देख भी लोगे कि तुमने राजा माँगकर यहोवा की दृष्टि में बहुत बड़ा पाप किया है। तब शमूएल ने यहोवा को पुकारा, और यहोवा ने उसी दिन मेघगर्जन किया और मेंह बरसाया, और सब लोग यहोवा से और शमूएल से अत्यन्त डर गए।” अन्न की कटाई के समय, मई और जून में पूरब में कोई वर्षा नहीं हुई। आसमान साफ था, और मन्द-मन्द वायु प्रवाहित हो रही थी। इस ऋतु में इतने भयंकर तूफान ने लोगों को भयभीत कर दिया। लोगो ने दीन होकर अपने पाप का अंगीकार किया- जिस पाप के लिये वे दोषी थे। “अपने दासों के निमित अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना कर कि हममर न जाए, क्‍योंकि हमने अपने सारे पापों से बढ़कर यह बुराई की है कि एक राजा की माँग की।” PPHin 643.1

    शमूएल ने लोगों को निराशा की अवस्था में नहीं छोड़ा, क्योंकि ऐसा करने से एक बेहतर जीवन के सभी प्रयत्नों पर रोक लग जाती। शैतान उन्हें परमेश्वर को कठोर और निर्मम मानने के लिये बाध्य कर देता और वे कई प्रलोभनों का शिकार बन जाते। परमेश्वर दयावान और क्षमाशील है, जो हमेशा अपने लोगों पर कृपा-दृष्टि करने का इच्छुक होता है जब वे उसका कहा मानते हैं। “दास के माध्यम से परमेश्वर का सन्देश था, “डरो मत, तुम ने यह सब बुराई तो की है, परन्तु अब यहोवा के पीछे चलने से फिर मत मुड़ना, परन्तु अपने सम्पूर्ण मन से उसकी उपासना करना, और मत मुड़ना, नहीं तो ऐसी व्यर्थ वस्तुओं के पीछे चलने लगोगे जिनसे न कुछ लाभ और न छुटकारा हो सकता है, क्‍योंकि वे व्यर्थ हैं। यहोवा अपनी प्रजा को कभी नहीं तजेगा।”PPHin 643.2

    शमूएल ने स्वयं के अपमान के सन्दर्भमें कुछ नहीं किया और न ही उस अकृतज्ञता की निंदा की जो इज़राइल ने उसकी जीवन भर की भक्ति के प्रति दिखाई थी, लेकिन उसने उन्हें अपने कभी न समाप्त होने वाली रूचि का आश्वासन दिया, “ऐसा कभी न हो कि में तुम्हारे लिये प्रार्थना करना छोड़कर, यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरूँ, मैं तो तुम्हे अच्छा और सीधा मार्ग दिखाता रहूँगा। केवल यहोवा का भय मानो और सच्चाई से अपने सम्पूर्ण मन के साथ उनकी उपासना करो, क्योंकि यह तो सोचो कि उसने तुम्हारे लिये कितने बड़े-बड़े काम किये हैं। परन्तु यदि तुम बुराई करते ही रहोगे, तो तुम और तुम्हारा राजा दोनो मिट जाओगे।”PPHin 643.3