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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 62—दाऊद का अभिषेक

    यह अध्याय 1 शमूएल 16:1-13 पर आधारित है

    यरूशलेम के कुछ मील दक्षिण में, “परमेश्वर का नगर” बेतलेहम है, जहाँ शिशु यीशु को चरनी में झूला झुलाने और पूरब दिशा से तीन मजूसियों के उसे दण्डवत करने के लिये आने से एक हजार वर्ष से भी पहले,यिशे के पुत्र, दाऊद का जन्म हुआ। उद्धारकर्ता के आगमन से सदियों पूर्व दाऊद, लड़कपन में बेतलेहम के चारों ओर के पहाड़ो पर चरती हुईं भेड़ो की रखवाली करता था। यह साधारण चरवाहा स्वयं के लिखे गीत गाया करता था और उसकी वीणा उसकी मधुर आवाज की धुन की संगत करती थी। प्रभु ने दाऊद को चुना था, और उसकी भेड़ो के साथ उसके एकान्त जीवन में, वह उसे उस कार्य के लिये तेयार कर रहा था जो वह भविष्य में उसके सुपुर्द करने को था।PPHin 667.1

    जब दाऊद चरवाहे के जीवन के एकान्तवास में रह रहा था, प्रभु परमेश्वर उसके बारे में शमूएल से बात कर रहा था। “यहोवा ने शमूएल से कहा, मैंने शाऊल को इज़राइल पर राज्य करने के लिये तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय में विलाप करता रहेगा। अपने सींग में तेल भर कर चलममैं तुझ को बेतलेहमवासी यिशै के पास भेजता हूँ. क्‍योंकि मैने उसके पुत्रों में से एक को राजा होने के लिये चुना है। एक बछिया साथ ले जाकर कहना, मैं यहोवा के लिये यज्ञ करने को आया हूँ। और यज्ञ पर यिशै को न्योता देना, तब मैं तुझे बता दूँगा कि तुझ को क्‍या करना है, और जिसको मैं तुझे बताऊं उसी का मेरी ओर से अभिषेक करना। तब शमूएल ने यहोवा के कहने के अनुसार किया, और वह बेतलेहम को गया। उस नगर के पुरनिये थरथराते हुए उससे मिलने को गए और कहने लगे, “क्या तू मित्रभाव से आया है? और उसने कहा, ‘हाँ में मित्रभाव’ से आया हूँ।” पुरनियों ने यज्ञ का न्योता स्वीकार किया और शमूएल ने यिशै और उसके पुत्रों को भी बुलाया। वेदी खड़ी की गई और बलि तैयार थी। यिशै का पूरा घराना उपस्थित था, सबसे छोटे पुत्र दाऊद को छोड़कर, जिसे भेड़ो की रखवाली के छोड़ना सुरक्षित नही था। PPHin 667.2

    यज्ञ समाप्त होने पर, बलि के भोज में सम्मिलित होने से पूर्व, शमूएल ने यिशे के पुत्रों के कलीन डील-डौल अर्थात रंग-रूप का भविष्यसूचक निरीक्षण प्रारम्भ किया। एलीआब सबसे बड़ा था, और अन्यों के तुल्य उसकी कद-काठी और सुदर्शनता शाऊल की सी थी। उसकी सुदर्शन मुखाकति और सुडौल विकसित रूप ने भविष्यद्वक्ता का ध्यान आकर्षित किया। उसके राजकमारों जैसे रंग-रूप पर दृष्टि डालकर शमूएल नेसोचा, “निश्चय ही यह वही पुरूष है जिसे परमेश्वर ने शाऊल के उत्तराधिकारी के रूप में चुना है” और वह ईश्वरीय स्वीकृति की प्रतीक्षा करने लगा ताकि वह उसका अभिषेक करे। लेकिन यहोवा बाह्य रंग-रूप को नहीं देखता। एलिआब परमेश्वर का भय नहीं मानता था। यदि उसे सिंहासन पर बेठाया जाता, तो वह एक घमण्डी, श्रमसाध्य शासक होता। प्रभु ने शमूएल से कहा, “न तो उसके रूप पर दृष्टि कर और न उसके कद की ऊँचाई पर, क्‍योंकि मैंने उसे अयोग्य जाना है, क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है, मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा दृष्टि मन पर रहती है।” बाहरी सुन्दरता किसी को परमेश्वर के लिये स्वीकार्य नहीं बनाती, चरित्र और आचरण में प्रकट बुद्धिमत्ता और उत्कृष्टता, मनुष्य की वास्तविक सुन्दरता को अभिव्यक्त करती है, और वह अंतरस्थ योग्यता, हृदय की श्रेष्ठता है, जो सेनाओं के प्रभु के साथ हमारी स्वीकृति को निर्धारित करती है। दूसरों की और हमारी परख में इस सच्चाई का एहसास कितनी गहराई से करना चाहिये। हम शमृूएल की गलती से सीख सकते कि जो अनुमान डील-डौल की शालीनता या चेहरे की सुन्दरता पर आधारित होता है, कितना व्यर्थ है। हम देख सकते है कि हृदय की गुप्त बातों को, और स्वर्ग से विशेष प्रबोधन के अभाव में परमेश्वर सम्मति को समझने में मनुष्य की बुद्धिमता कितनी असमर्थ है। परमेश्वर के उसके सृजन किये प्राणियों के सम्बन्ध में विचार और तरीके हमारे सीमित विवेक से बहुत ऊपर है, लेकिन हम आश्वस्त रहें कि उसके बच्चे उस स्थान की पूर्ति के लिये अवश्य लाए जाएँगे, जिसके लिये वे योग्यता प्राप्त हैं, और उनके हाथों में सौंपे गए कार्य को सम्पन्न करने के लिये उन्हें सुयोग्य किया जाएगा, और ऐसा तभी होगा जब वे अपनी इच्छा को परमेश्वर के आगे समर्पित करदेंगे, ताकि उसकी परोपकारी योजानाएँ मनुष्य के दुराग्रहसे विफलनहो ।PPHin 667.3

    शमूएल एलीआब का निरीक्षण कर आगे बढ़ गया और यज्ञ में उपस्थित छहों भाईयों पर उसने दृष्टि डाली, लेकिन प्रभु ने उनमें से किसी को चुनने का संकेत नहीं दिया। पीड़ाजनक दुविधा में शमूएल ने सबसे छोटे नौजवान पर दृष्टि की, भविष्यद्वक्ता किंकर्तव्यमूढ़ और हैरान रह गया। उसने यिशे से पूछा, “क्या तेरे सभी पुत्र यहाँ है?” पिता ने उत्तर दिया, “नहीं, छोटा तो रह गया, और वह भेड़ों को चरा रहा है।” शमूएल ने निर्देश दिया कि उसे बुलवाया जाए और कहा, “जबतक वह वहाँ न आए तब तक हम नहीं बेठेंगे।PPHin 668.1

    सन्देशवाहक के अप्रत्याशित बुलावे के कारण अकेला चरवाहा चौंक गया; सन्देशवाहक ने घोषणा की कि भविष्यद्वक्ता बेतलेहम आया है और उसने दाऊद को बुलाया है। उसने आश्चर्य से पूछा कि इज़राइल का न्यायी और भविष्यद्वक्ता उससे मिलने के लिये क्‍यों इच्छुक है; लेकिन बिना देर किये उसने बुलावे का पालन किया, “वह देखने में सुडौल था, उसकी मुखाकृति सुदर्शन थी और चेहरे पर लालिमा थी ।” जब शमूएल ने प्रसन्‍नतापूर्वक इस रूपवान, पुरूषोचित, शालीन चरवाहे को देखा प्रभु की वाणी ने भविष्यद्वक्ता से कहा, “उठ, इसका अभिषेक कर, क्योंकि वह यही है।” युवा चरवाहे के दीन कार्यभार में दाऊद ने स्वयं को साहसी और विश्वसनीय प्रमाणित किया था और अब परमेश्वर ने उसे अपने लोगो का कप्तान होने के लिये चुना। “तब शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाईयों के मध्य में उसका अभिषेक किया, और उस दिन से प्रभु का आत्मा दाऊद पर उतरता रहा। भविष्यद्क्ता ने अपना नियम कार्य संपन्‍न कर लिया था, और वह हार्दिक संतोष के साथ रामा लौटा।PPHin 669.1

    शमूएल ने इस कार्य के बारे में यिशै के परिवार को भी नहीं बताया था, और दाऊद के अभिषेक की विधि गुप्त रूप से सम्पन्न की गई थी। वह विधि नौजवान के लिये उसकी आसनन उत्कृष्ट नियति का संकेत थी, ताकि आने वाले वर्षा के विभिन्‍न अनुभवों और संकटों के बीच, यह ज्ञान, उसके जीवन के माध्यम से सम्पन्न होने वाले परमेश्वर के उद्देश्य के प्रति उसे कर्तव्यनिष्ठ रहने की प्रेरणा दे।PPHin 669.2

    दाऊद को दिया गया यह महान सम्मान उसे गर्वित करने के लिये नहीं था। जिस ऊँचे पद को वह ग्रहण करने वाला था, उसके बावजूद वह परमेश्वर की योजनाओं की, उसी के समय और उसी के तरीके से, प्रगति अर्थात विकास की प्रतीक्षाकरने में सन्तुष्ट, अपने व्यवसाय को चुपचाप निभाता रहा। अभिषिक्त होने से पहले जैसा, वह दीन और आडम्बरहीन युवा चरवाहा पहाड़ो में लौट गया और उतनी ही नग्रता से अपनी भेड़ो की चौकसी और सुरक्षा करता था। लेकिन एक नई प्रेरणा से वह अपनेभजनों की रचना करता और अपनी वीणा बजाता था। उसके सामने व्यापक रूप से फैला हुआ प्राकृतिकपर्यावरण सम्पन्न सौन्दर्य का परिदृश्यथा। फलों के गुच्छोंसे लदी दाखलताएँ, धूप में चमक उठती थी। जंगल के वृक्ष अपनी हरी-भरी पत्तियों के साथ हवा में झूम उठते थे। उसने सूर्य को आकाश को प्रकाशमान करते देखा, जो दुल्हे के समान अपने कक्ष से बाहर आया और जो दौड़में भागने के लिये एक सशक्त घावक सा आनन्दमयी था। पहाड़ों की गगनचुम्बी चोटियाँ थी, दूरस्थ दिशा में मोआब के प्राचीर समान पर्वत टीले उठे हुए थे, और इन सब के ऊपर था स्वर्ग का हल्का नीला मेहराब! और उसके पार परमेश्वर था। दाऊद उसे देख नहीं सकता था, लेकिन उसकी कृतियाँ उसकी प्रशंसा से भरपूर थी। जल धाराओं और चरागाहों, पर्वतों और जंगल को उज्जवल करता दिन का प्रकाश मन को ऊपर की ओर प्रकाश के पिता, प्रत्येक भले और उत्कृष्ट उपहार के रचयिता, को देखने के लिये उठाता। उसके सृष्टिकर्ता के तेज और चरित्र के नित्य रहस्योद्वाटनों ने युवा कवि के हृदय को प्रशंसा और आनन्द से भर दिया। परमेश्वर और उसकी कृतियों पर मनन-चिन्तन करने से दाऊद की हार्दिक और मानसिक क्षमता उसके आगामी जीवन के कार्य के लिये मजबूत और विकसित हो रही थी। वह प्रतिदिन परमेश्वर के निकटतम संपर्क में आ रहा था। उसका मन लगातार नये प्रसंगों की गहनता में प्रवेश कर रहा था जिससे उसको भजन लिखने और वीणा के संगीत को जगाने की प्ररेणा मिलती थी। उसके स्वर की मधुर धुन हवा में होकर पहाड़ो में गूँजती मानो स्वर्ग में स्वर्गदूतों के गीतों की गूँज हो। PPHin 669.3

    निर्जन पहाड़ों में भटकने और परिश्रम के उन वर्षो के परिणामों को कौन माप सकता है? परमेश्वर के साथ और प्रकृति के साथ संपर्क, भेड़ो की देखभाल, संकट और छुटकारे, आनन्द और शोक, जो उसके दीन हिस्से में थे, वे ना केवल दाऊद के चरित्र को ढालने और उसके भविष्य के जीवन को प्रभावित करने के लिये थे, वरन्‌ इज़राइल के मधुर गायक के भजनों के माध्यम से, आने वाले युगों में परमेश्वर के लोगों के हृदयों में विश्वास और प्रेम को जागृत कर उन्हें उस परमेश्वर के सदा-स्नेहशील हृदय के और निकट लाने के लिये थे-उस परमेश्वर के पास जिसमें उसके सभी प्राणी जीवित है। PPHin 670.1

    नौजवानी की स्फर्ति और सुदर्शनता में दाऊद, पृथ्वी के संभ्रातों के साथ उच्च पद को ग्रहण करने की तैयारी कर रहा था। परमेश्वर द्वारा दिये गए उपहारों के तौर पर, उसकी प्रतिभाओं को पवित्र पिता की महिमा को बढ़ाने के लिये प्रयोग किया गया। मनन और चिन्तन के अवसरों ने उसे बुद्धिमता और पवित्रता से परिपूर्ण किया जिसके कारण वह परमेश्वर और स्वर्गदूतों में प्रिय ठहरा। जब उसने परमेश्वर की प्रवीणता पर सोच-विचार किया, उसके अन्तर्मन में परमेश्वर की और अधिक स्पष्ट धारणा उत्पन्न हुई। अव्यक्त प्रसंग दीप्तिमान हुए और कठिनाईयों को सरल किया गया, उलझनों को अनुरूप किया गया, और प्रत्येक किरण ने उद्धारकर्ता और परमेश्वर की महिमा के लिये भक्ति के मधुर गीत और उत्साह की नईं उमंग को प्रवाहित किया। जो प्रेम उसे संवेदनशील बनाता था, जो कष्ट उस पर आते थे, जो विजय उसकी होती थी, ये सब उसके सक्रिय विचारों के विषय थे, और जब वह अपने जीवन की घटनाओं में परमेश्वर के प्रेम को देखता था, उसका हृदय और भी क॒तज्ञता और उत्कृष्ट श्रद्धा से धड़कने लगता था, उसकी आवाज का माधुर्य बढ़ जाता था और वह अधिक आनन्दित होकर वीणा बजाता, और वह युवा चरवाहा ज्ञान से ज्ञान में, शक्ति से शक्ति में, अग्रसर होता गया, क्‍योंकि परमेश्वर का आत्मा उस पर था।PPHin 670.2

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