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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 65—दाऊद की उदारता

    यह अध्याय 1 शमूएल 22:20-23, 23—27 पर आधारित है

    परमेश्वर के याजकों के नृशंस नरसंहार के पश्चात, “अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक का एब्यातार नामक एक पुत्र बच निकला, और दाऊद के पास भाग गया। तब एब्यातार ने दाऊद को बताया कि शाऊल ने यहोवा के याजकों का वध किया है। दाऊद ने एब्यातार से कहा, ‘जिस दिन एदोमी दोएग वहाँ था, उसी दिन मैंने जान लिया था कि वह निश्चय शाऊल को बताएगा। तेरे पिता के समस्त घराने के मारे जाने का कारण मैं ही हुआ। इसलिये तू मेरे साथ निडर रह, जो मेरे प्राण का ग्राहक है, वही तेरे प्राण का भी ग्राहक है, परन्तु मेरे साथ रहने से तेरी रक्षा होगी।’ PPHin 692.1

    अभी भी राजा दाऊद को ढूँढ रहा था और दाऊद को विश्राम करने के लिये और सुरक्षा के लिये कोई स्थान नहीं मिल रहा था। कीला में उसके साहसी जत्थे ने नगर को पलिश्तियों द्वारा बन्दी बनाए जाने से बचाया था, लेकिन वे उन्हीं के द्वारा बचाए गए लोगों के बीच सुरक्षित नहीं थे। कीला से वह जीप नामक जँगल में जाकर रहने लगा। PPHin 692.2

    इस समय, जब दाऊद के मार्ग में कुछ ही अच्छे अनुभव थे, वह योनातन के अप्रत्याशित दर्शन से प्रसन्‍न हुआ, योनातन को उसके शरणस्थान का पता चला था। एक-दूसरे की संगति में बिताए हुए क्षण इन मित्रों के लिये अनमोल थे। उन्होंने अपने विभिनन अनुभवों का वर्णन किया और योनातन ने दाऊद को प्रोत्साहित करते हुए यह कहा, “मत डर, क्‍योंकि तू मेरे पिता शाऊल के हाथ में नहीं पड़ेगा, और तू ही इज़राइल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूँगा, और इस बात को मेरा पिता शाऊल भी जानता है।” जब वे दोनो परमेश्वर के दाऊद के प्रति आश्चर्यजनक व्यवहार के बारे में बात कर रहे थे, पीछा किये जा रहे पलायक को बहुत प्रोत्साहन मिला। “तब उन दोनों ने यहोवा की शपथ खाकर आपस में वाचा बाँधी, तब दाऊद जंगल में रह गया और योनातन अपने घर चला गया।*PPHin 692.3

    योनातन से भेंट करने के पश्चात दाऊद ने अपनी वीणा बजाकर महिमा के गीत गाकर अपनी आत्मा को प्रोत्साहित किया-PPHin 692.4

    “मेरा भरोसा परमेश्वर परहै,
    तुम कैसे मेरे प्राण से कह सकते हो,,
    पक्षी के समान अपने पहाड़ पर उड़ जा,
    क्योंकि देखो, दुष्ट अपने धनुष चढ़ाते हैं,
    और अपने तीर धनुष की डोरी पर रखते है,
    कि सीधे मनवालों पर अन्धियारे में तीर चलाएँ,
    यदि नीवें ढा दी जाएँ तो धर्मी क्या कर सकता है?
    परमेश्वर अपने पवित्र भवन में है,
    परमेश्वर का सिंहासन स्वर्ग में हैं,
    उसकी आँखे मनुष्य की संतान को नित्य देखती है
    और उसकी पलकें उनको जांचती है
    यहोवा धर्मी को परखता है,
    परन्तु वह उनसे जो दुष्ट हैं
    और उप्रदव से प्रीति रखते है
    अपनी आत्मा में घृणा करता है।”
    PPHin 693.1

    -भजन संहिता 11:1-5

    कीला से भाग कर जब दाऊद पहाड़ी देश के जीप नामक जंगल में रह रहा था, तो जीपियों ने गिबा में शाऊल के पास सूचना भेजी कि उन्हें मालूम था कि दाऊद कहाँ छुपा था, और यह कि वे राजा को उसके आश्रयस्थल तक भी ले जाएँगे। लेकिन उनके आशय की चेतावनी पाकर, दाऊद ने अपना स्थान बदल लियाऔर उसने माओन और मृत सागर के बीच पहाड़ों में शरण ली। फिर से शाऊल को सूचित किया गया कि दाऊद एनगदी के जंगल में है। तब शाऊल समस्त इज़राइलियों में से तीन हजार को छाँटकर दाऊद और उसके जनों को बनेले बकरों की चटटानों पर खोजने गया ।” दाऊद के जत्थे में केवल छ: सौ पुरूष थे, जबकि शाऊल तीन हजार की सेना लेकर उसकी ओर अग्रसर हुआ। यिशे का पुत्र और उसके जन एक एकान्त गुफा में आगे की कार्यवाही के लिये परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिये रूके रहे। जब शाऊल पहाड़ों पर चढ़ रहा था, वह मुड़ा और उसने उस गुफा में अकेले प्रवेश किया, जिसमें दाऊद और उसके जन छिपे हुए थे। जब दाऊद के आदमियों ने यह देखा उन्होंने अपने अगुवे से शाऊल को मार डालने का आग्रह किया। इस तथ्य का कि राजा अब उनके अधिकार में था उन्होंने यह तात्पर्य निकाला कि वह निश्चय ही इस बात का प्रमाण था कि स्वयं परमेश्वर ने शत्रु को उनके हाथों में दे दिया था ताकि वे उसे नष्ट कर सके । एक बार तो दाऊद इस पर विचार करने को प्रलोभित हुआ, लेकिन उसकी अंतरात्मा की आवाज ने उससे कहा, “यहोवा के अभिषिक्त को न छू।”PPHin 693.2

    दाऊद के आदमी शाऊल को शान्ति से छोड़ देने को तैयार नहीं थे और उन्होंने अपने सेनापति को परमेश्वर के कहे शब्दों का स्मरण कराया, “में तेरे शत्रु तेरे हाथ में सौंप दूंगा, कि तू उससे मनमाना बर्ताव कर ले। तब दाऊद ने उठकर शाऊल के बागे के छोर को छिपकर काट लिया ।” लेकिन बाद में उसकी अन्तरात्मा ने उसे राजा के वस्त्र को बिगाड़ने भर के लिये झंझोड़ा।PPHin 694.1

    शाऊल उठा, और गुफा से बाहर आकर अपनी खोज में निकल पड़ा कि तब ही उसके कानों में चौंका देने वाली आवाज सुनाई पड़ी, हे मेरे प्रभु, हे राजा ।” उसने पीछे मुड़कर देखा कि कौन उसे सम्बोधित कर रहा था, और देखो, वह यिशे का पुत्र था, जिस व्यक्ति को वह उसने अपने अधिकृत करने का लम्बे समय से अभिलाषी था, ताकि उसे मार सके। दाऊद ने उसे अपना स्वामी मान कर झुककर उसे दण्डवत किया। फिर उसने शाऊल को इन शब्दों में सम्बोधित किया, “जो मनुष्य कहते हैं कि दाऊद तेरी हानि चाहता है तू उनकी क्यों सुनता है? देख, आज तूने अपनी आखो से देखा है कि यहोवा ने आज गुफा में तुझे मेरे हाथ में सौंप दिया था, और किसी ने तो मुझ से तुझे मार डालने को कहा था, परन्तु मुझे तुझ पर तरस आया, और मैंने कहा, “मैं अपने प्रभु पर हाथ न उठाऊँंगा, क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है। फिर, हे मेरे पिता, देख, अपने बागे को छोर मेरे हाथ में देख, मैंने तेरे बागे का छोर तो काट लिया, परन्तु तुझे घात न किया, इससे निश्चय करके जान ले कि मेरे मन में कोई बुराई या अपराध का बोध नहीं है। मैंने तेरे विरूद्ध कोई अपराध नहीं किया, परन्तु तू मेरा प्राण लेने को मानो उसका अहेर करता रहता है।’PPHin 694.2

    जब शाऊल ने दाऊद से यह शब्द सुने वह दीन हो गया और उनकी सच्चाई मानने को विवश हो गया। वह सोच में पड़ गया जब उसे एहसास हुआ कि वह पूर्ण रूप से उसके अधिकार में था जिसकी जान के पीछे वह पड़ा था। दाऊद उसके समक्ष निर्दोष खड़ा था। नग्न भाव से शाऊल ने कहा, “हे मेरे बेटे दाऊद क्या यह तेरा बोल है? तब शाऊल ऊंची आवाज में रोने लगा।” फिर उसने दाऊद से कहा, “तू मुझ से अधिक धर्मी है, तूने तो मेरे साथ भलाई की है, परन्तु मैंने तेरे साथ बुराई की......भला क्‍या कोई मनुष्य अपने शत्रु को पाकर कुशल से जाने देता है? इसलिये जो तूने आज मेरे साथ किया है इसका अच्छा बदला यहोवा तुझे दे। और अब, मुझे मालूम हुआ है कि तू निश्चय राजा हो जाएगा, और इज़राइल का राज्य तेरे हाथ में स्थिर होगा।” और दाऊद ने शाऊल के साथ वाचा बाँधी कि ऐसे होने के बाद भी वह शाऊल के वंश को उसके बाद नष्ट नहीं करेगा और उसके पिता के घराने में से उसका नाम नहीं मिटाएगा।PPHin 694.3

    शाऊल के पिछले किया-कलापों को जानते हुए, दाऊद को राजा के आश्वासनों में विश्वास नहीं था, और ना ही उसकी पश्चतापी अवस्था के बने रहने की आशा थी। इसलिये जब शाऊल अपने घर लौटा, दाऊद पहाड़ो के गढ़ो में ही रहता रहा।PPHin 695.1

    शैतान की शक्ति को समर्पित हो जाने वालों की परमेश्वर के दासों के प्रति संजोयी गई शत्रुता कभी-कभी कृपा-दृष्टि और पुनर्मिलन की भावना में परिवर्तित हो जाती है, लेकिन वह परिवर्तन हर बार देर तक नहीं रहता। दुष्ट मनोवृति के लोग जब परमेश्वर के दासों के विरूद्ध दुष्टतापूर्ण बातें कहते हैं, तो यह विश्वास कि वे गलत थे उनके मन में घर कर लेता है। प्रभु का आत्मा उनके साथ संघर्ष करता है और वे परमेश्वर के सम्मुख अपने हृदयों को दीन करते हैं और उनके सम्मुख भी जिनके प्रभाव को वे नष्ट करना चाहते थे, और वे अपना रूख बदल सकते है। लेकिन जब वे फिर से शैतान के सुझावों के लिये द्वार खोलते है, पुराने सन्देह उभर आते है, पुरानी शत्रुता जागृत हो जाती है और वे उसी काम में जुट जाते है जिसके लिये उन्होंने प्रायश्चित किया था और जिसे उन्होंने कुछ समय के लिये छोड़ दिया था। उन्हीं से जिनके समक्ष उन्होंने अपनी गलती का अंगीकार किया था, वे अत्यन्त कड़वाहट के साथ उनकी निन्दा करते हुए और दोष लगाते हुए बुरा कहने लगते है। ऐसा रास्ता अपनाने वाले प्राणियों का उपयोग शैतान पहले से भी ज्यादा शक्ति के साथ कर सकता है, क्‍योंकि उन्होंने अधिक प्रकाश के विरूद्ध पाप किया हैं। PPHin 695.2

    “शमूएल की मृत्यु हो गई, और समस्त इज़राइलयों ने इकटठे होकर उसके लिये छाती पीटी, और उसके घर ही में जो रामा में था उसको मिट्टी दी ।” शमूएल की मृत्यु इज़राइल के लिये अपूर्णीय क्षति माना गया। एक महान और अच्छा भविष्यद्बकता और एक विशिष्ट न्यायी मृत्यु को प्राप्त हो गया था, और राज्य का दुख गहरा और हार्दिक था। अपनी किशोरवस्था से शमूएल हृदय की अखण्डता के साथ इज़राइल के आगे-आगे चला था, हालाँकि शाऊल मान्यता प्राप्त राजा था, शाऊल का प्रभाव उससे अधिक था, क्योंकि उसका जीवन इतिहास आज्ञाकारिता, भक्ति और स्वामिभक्ति से परिपूर्ण था। हमने पढ़ा कि उसने जीवन भर इज़राइल का न्याय किया।PPHin 695.3

    जब लोगां ने शाऊल की कार्य-प्रणाली की तुलना शमृूएल की कार्य-प्रणाली से की तो उन्होंने देखा कि ऐसे राजा की इच्छा करने में जिसके राज में वे पड़ोसी देशों से भिन्न न होंगे, उन्होंने कितनी बड़ी गलती की थी। कई लोग समाज की स्थिति, जिसमें अधर्म और नास्तिकता किण्वित हो रहे थे, को देख चिंतित थे। उनके शासक के उदाहरण का प्रभाव व्यापक था और इस कारण परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता शमूएल की मृत्यु का शोक मनाना उचित था।PPHin 696.1

    राष्ट्र ने अपने पवित्र शिक्षालयों के अध्यक्ष और संस्थापक को खो दिया था, लेकिन यह सब कुछ नहीं था। इज़राइल ने उसे खोया था जिसके पास वे अपनी गम्भीर समस्याओं को लेकर जाने के अभ्यस्त थे, उसे खोया था जिसने उसके लोगों के सर्वोत्तम सरोकारों के पक्ष में परमेश्वर के साथ लगातार मध्यस्थता की थी। शमूएल की मध्यस्थता ने सुरक्षा की अनुभूति दी थी, क्‍योंकि “धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है।'”-याकूब 5:16। लोगों को अब लग रहा था कि परमेश्वर उन्हें छोड़ रहा था। न्याय को विकृत कर दिया गया और व्यवस्था को गड़बड़ी में बदल दिया गया।PPHin 696.2

    जब राष्ट्र आंतरिक क्लेश से जूझ रहा था, जब परमेश्वर का भय मानने वाली शमूएल की सम्मति की सबसे अधिक आवश्यकता महसूस हो रही थी, परमेश्वर ने अपने वृद्ध दास को विश्राम दिया। उसके शान्त विश्राम-स्थल पर दृष्टि डालते समय, और उसे अपने शासक के रूप में अस्वीकार करने की मूर्खता का स्मरण करते हुए, लोगों के विचार शोकमय थे, क्योंकि स्वर्ग के साथ उसका सम्बन्ध इतना घनिष्ठ रहा था कि वह समस्त इज़राइल को यहोवा के सिंहासन से बाँधता प्रतीत होता था। वह शमूएल ही था जिसने उन्हें परमेश्वर से प्रेम करना और उसकी आज्ञा का पालन करना सिखाया था, लेकिन अब जब वह नहीं रहा, लोगों को लगा कि वे उस राजा की दया पर छोड़ दिये गए थे जो शैतान से सम्बद्ध था और जो लोगो को परमेश्वर और स्वर्ग से अलग कर देगा। PPHin 696.3

    दाऊद शमूएल को मिट्टी देने के समय उपस्थित न हो सका, लेकिन उसने उसके लिये उतना ही गहरा शोक मनाया जितना कि एक विश्वसनीय पुत्र अपने भक्त पिता के लिये करता है। वह जानता था कि शमूएल की मृत्यु ने शाऊल के कर्मा से नियन्त्रण का एक और बन्धन तोड़ दिया था और वह स्वयं को भविष्यद्बक्ता के जीवित होने के समय सुरक्षित होने की तुलना में कम सुरक्षित महसूस कर रहा था। जब शाऊल का ध्यान शमूएल की मृत्यु के शोक में व्यस्त था, दाऊद ने इस अवसर का उपयोग अपने लिये एक और अधिक सुरक्षित स्थान ढूँढने के लिये किया, और वहवहाँ से पारान के जेँंगल में भाग गया। यहाँ पर उसके एक सौ बीसवां और पच्चीसवाँ भजन लिखा। इस निर्जन बीहड़ में, इस एहसास के साथ कि भविष्यद्बक्ता मर चुका था और राजा उसका शत्रु था, उसने गीत गाया।PPHin 696.4

    मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है,
    जो आकाश और पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है
    वह तेरे पाँव को टलने न देगा
    तेरा रक्षक कभी न ऊँघेगा।
    सुन इज़राइल का रक्षक न ऊँघेगा और न सोएगा।
    यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा,
    वह तेरे प्राण की रक्षा करेगा।
    यहोवा तेरे आने जाने में
    तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा ।
    PPHin 697.1

    -भजन संहिता 1421:2-8

    जब दाऊद और उसके आदमी पारान के जंगल में थे, उन्होंने सम्पत्ति सम्पन्न नाबाल नामक एक धनवान व्यक्ति के भेड-बकरी और गाय-बैलों को लुटेरों की लूटपाट से बचाया था। नाबाल कालेब का वंशज था, लेकिन उसका स्वभाव अभद्र और कंजूस था।PPHin 697.2

    भेडो का ऊन कतरने का यानि अतिथि सत्कार का समय था। दाऊद और उसके आदमियों को खाद्य-सामग्री की बहुत आवश्यकता थी, और समय की परम्परा के अनुसार, यिशे के पुत्र ने नाबाल के पास दस आदमियों को भेजा और उनसे कहा कि वे अपने स्वामी के नाम से उसका अभिवादन करे और उससे ऐसा कहे, “तू चिरंजीव रहे, तेरा कल्याण हो, और तेरा घराना सुखी हो और जो कुछ तुम्हारे है ठीक-ठाक हो। मैंने सुना है कि जो तू ऊन कतर रहा है, तेरे चरवाहे हम लोगों के पास रहे, और न तो हम ने उनकी कुछ हानि की और न उनका कुछ खोया। अपने जवानों से यह बात पूछ ले, और वे तुझ को बताएँगे। अतः इन जवानों पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, हम तो आनन्द के समय में आए हैं, इसलिये जो कुछ तेरे हाथ लगे वह अपने दासों और अपने बेटे दाऊद को दे।PPHin 697.3

    दाऊद और उसके आदमी नाबाल के भेड़-बकरियों और चरवाहों के लिये सुरक्षा की दीवार समान रहे थे, और अब इस धनवान पुरूष से उसकी बहुतायत में से कुछ आवश्यकता की सामग्री उन्हें प्रदान करने को कहा गया जिन्होंने उसको इतनी महत्वपूर्ण सेवाएँ दी थी। दाऊद और उसके आदमी उन भेड़-बकरियों और गाय-बैलों से काम चला सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने शिष्टाचार दिखाया। लेकिन उनकी दया नाबाल के लिये लुप्त हो गई । दाऊद को दिये गए उत्तर ने उसके चरित्र की ओर इशारा किया, “दाऊद कौन है? और कौन है यिशै का पुत्र”? आजकल बहुत से दास अपने अपने स्वामी के पास से भाग जाते हैं। क्‍या मैं अपना रोटी-पानी और जो पशु में ने अपने ऊन कतरने वालों के लिये मारे है, लेकर ऐसे लोगों को दे दूँ, जिनको मैं नहीं जानता कि कहाँ के है”?PPHin 698.1

    जब नौजवान खाली हाथ लौटे और उन्होंने सारा वृतान्त दाऊद को सुनाया, तो वह कोध से भर गया। उसने अपने आदमियों को मुठभेड़ के लिये स्वयं को हथियारबन्ध होने की आज्ञा दी, क्‍योंकि वह उस व्यक्ति को दण्डित करने के लिये संकल्पित था जिसने उसे उसी के अधिकार से वंचित किया था और उसकी चोट के साथ अपमान को जोड़ दिया था। यह आवेगपूर्ण गतिविधि शाऊल के स्वभाव से मेल रखती थी ना कि दाऊद के स्वभाव से, लेकिन यिशै के पुत्र को दुख के अनुभव में अभी धेर्य के बारे में सीखना बाकी था। PPHin 698.2

    नाबाल द्वारा दाऊद के आदमियों को भेज दिये जाने के पश्चात्‌ उसका एक नौकर शीघ्र ही उसकी पत्नी, अबीगैल के पास गया। उसने कहा, “दाऊद ने ज॑गल से हमारे स्वामी को आशीर्वाद देने के लिये दूत भेजे थे, और उसने उन्हें ललकार दिया। परन्तु वे मनुष्य हम से बहुम अच्छा बर्तात रखते थे, और जब तक हम मैदान में रहते हुए उनके पास आया जाया करते थे, तब तक न तो हमारी कुछ हानि हुई और न हमारा कुछ खोया। जब तक हम उनके साथ भेड़-बकरिया चराते रहे, तब तक वे रात-दिन हमारी आड़ बने रहे। इसलिये अब सोच विचार कर कि क्‍या करना चाहिये, क्योंकि उन्होंने हमारे स्वामी की और उसके समस्त घराने की हानि करना ठान लिया होगा।PPHin 698.3

    अपने पति की सलाह लिये बगैर और उसको अपना प्रयोजन बताए बिना, अबीगैल ने पर्याप्त सामग्री, गधे पर लद॒वाई और अपने नौकरों के साथ आगे-आगे भेजा, और स्वयं दाऊद के जत्थे से मिलने को निकली। वह उनसे पहाड़ की आड़ में मिली। “दाऊद को देख अबीगैल फर्ती करके गधे पर से उतर पड़ी, और दाऊद के सम्मुख मुहँ के बल भूमि पर गिरकर उसने उसे दण्डवत किया । फिर वह उसके पैरों में गिरकर कहने लगी, ‘हे मेरे प्रभु, यह अपराध मेरे ही सिर पर हो, तेरी दासी तुझ से कुछ कहना चाहती है, और तू अपनी दासी की बातों को सुन ले।” अबीगैल ने दाऊद को उतनी ही श्रद्धा से सम्बोधित किया मानो वह एक मुक्‌टघारी सम्राट से बात कर रही हो। नाबाल ने उपेक्षा में कहा था, “दाऊद कौन है?” लेकिन अबीगैल ने उसे ‘मेरे प्रभु! कहकर सम्बोधित किया। उसने नग्न शब्दों के प्रयोग सेदाऊद के कूद्ध भावों को शान्त करने का प्रयत्न किया, और अपने पति के पक्ष में उससे विनती की। अभिमान या दिखावे से नहीं, वरन्‌ परमेश्वर के प्रेम और बुद्धिमता से परिपूर्ण, अबीगैल ने अपने घराने के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा को प्रकट किया, और उसने दाऊद को स्पष्ट रूप से बताय कि उसके पति का दयाहीन व्यवहार किसी भी प्रकार निजी अपमान के तौर पर उसके विरूद्ध पूर्वविचारित नहीं था, वरन्‌ उसके स्वार्थी और अप्रसन्न स्वभाव का आवेग मात्र था।PPHin 699.1

    “और अब, हे मेरे प्रभु, यहोवा के जीवन की शपथ, और तेरे जीवन की शपथ, कि यहोवा ने जो तुझे खून से और अपने हाथ के द्वारा अपना बदला लेने से रोक रखा है, इसलिये अब तेरे शत्रु और मेरे प्रभु की हानि के चाहने वाले नाबाल ही के समान ठहरे ।” अबीगैल ने दाऊद को उसके उतावले प्रयोजन से पीछे हटने के लिये दिए गए तक॑ का श्रेय स्वयं नहीं लिया, वरन्‌ सारा आदर और सारी महिमा परमेश्वर को दी। फिर उसने मेलबलि के रूप से दाऊद के आदमियों को बहुत सारी सामग्री दी और फिर भी विनती की मानो प्रधान के आकोश को उकसाने के लिये वह उत्तरदायी थी।PPHin 699.2

    अबीगैल ने कहा, “अपनी दासी का अपराध क्षमा कर, क्‍योंकि यहोवा निश्चय मेरे प्रभु का घर बसाएगा और स्थिर करेगा, इसलिये कि मेरा प्रभु यहोवा की ओर से लड़ता है, और जन्म भर तुझ में कोई बुराई नहीं पाई जाएगी।” निहितार्थ द्वारा अबीगैल ने उस पद्धति को प्रस्तुत किया जिसका अनुसरण दाऊद को करना चाहिये था। उसे प्रभु की लड़ाईयाँ लड़नी चाहिये थी। हालाँकि उसे देशद्रोही के समान सताया जा रहा था, उसे व्यक्तिगत अन्याय के लिये प्रतिशोध नहीं लेना था। वह बोली “यद्यपि एक मनुष्य तेरा पीछा करने और तेरे प्राण लेने को उठे, तौभी मेरे प्रभु का प्राण तेरे परमेश्वर यहोवा की जीवनरूपी गठरी में बँधा रहेगा और तेरे शत्रुओं के प्राणों को वह मानों गोफन में रख कर फेंक देगा। जब यहाोवा मेरे प्रभु के लिये यह समस्त भलाई करेगा जो उसने तेरे विषय में कही है, और तुझे इज़राइल पर प्रधान करके ठहराएगा, तब तुझे इस कारण पछताना न होगा, या मेरे प्रभु का हृदय पीड़ित न होगा कि तूने अकारण खून किया, और प्रभु से भलाई करे तब अपनी दासी को स्मरण करना”- 1 शमूएल 25:29-31।PPHin 699.3

    यह शब्द केवल उसी के होठों से आ सकते थे जिसने ऊपर से बुद्धिमता प्राप्त की हो। अबीगैल की धाम्रिकता, एक फूल की सुगन्ध की तरह, अनजाने में चेहरे, बातचीत और कार्यों में प्रवाहित होती थी। परमेश्वर के पुत्र का आत्मा उसके प्राण में बसता थी। उसकी अनुग्रहकारी बोलचाल, दया और शान्ति से परिपूर्ण एक अलौकिक प्रभाव बिखेरती थी। दाऊद के मन को बेहतर प्ररेणा मिली, और जब उसने अपने उतावले प्रयोजन के परिणाम के बारे में सोचा तो वह कॉप उठा। मत्ती 5:9में लिखा है, “धन्य है वे जो मेल कराने वाले है, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।” अच्छा होता यदि इज़राइल की इस स्त्री के समान बहुत सी स्त्रियाँ होती जो कपित भवानाओं को शान्त करती, उतावले आवेग को रोकती और सलूुनिर्दशित बुद्धिमत्ता और शान्तिपूर्ण शब्दों से बड़ी-बड़ी बुराईयों का अन्त करती। PPHin 700.1

    एक समर्पित मसीही जीवन सदैव ही प्रकाश, सुख और शान्ति बिखेरता है। उसमें शुद्धता, चातुर्य, निष्कपटता और उपयोगिता चरितार्थ होता है। वह उस निस्वार्थ प्रेम से नियन्त्रित होता है जो प्रभाव को पवित्र करता है। यह जीवन मसीह से भरपूर होता है और इसका धारक जहाँ भी जाता है वहां वह प्रकाश का मार्ग छोड़ जाता है। अबीगैल एक विवेकपूर्ण सुधारक और सलाहकार थी। उसके प्रभाव और तक॑ की शक्ति से दाऊद का जुनून शान्त हो गया। उसे विश्वास हो गया कि उसने एक अविवेकी पद्धति अपनायी थी और वह अपनी ही भावना पर नियंत्रण खो बैठा था।PPHin 700.2

    दीन हृदय के साथ उसने ताड़ना को ग्रहण किया जो उसी के शब्दों के अनुरूप है, “धर्मी मुझ को मारे तो यह कृपा ठहरेगा।”-भजन संहिता 141:5। उसने अबीगैल को धन्यवाद और आशीर्वाद दिया क्‍योंकि उसने उसे धर्मसंगत परामर्श दिया था। कई है ऐसे जो, ताड़ना प्राप्त करके, उसे प्रशंसनीय मानते है यदि वे ताड़ना को बिना धैर्य खोए प्राप्त करते है, लेकिन कितने कम है जो सुधार को हृदय की कृतज्ञता के साथ स्वीकार करते हैं और उन्हें धन्य ठहराते हैं जो उन्हें पापमय पद्धति को अपनाने से बचाना चाहते हैं।PPHin 701.1

    जब अबीगैल घर लौटी तो उसने देखा कि नाबाल और उसके अतिथि एक भव्य भोज का आनन्द ले रहे थे, जिसे उन्होंने उन्‍मत आनन्दोत्सव के दृश्य में बदल दिया था। दूसरी सुबह तक उसने अपने पति को उस घटना के बारे में नहीं बताया जो दाऊद के साथ उसके साक्षात्कार के दौरान हुई थी। नाबाल हृदय से कायर था, और जब उसे एहसास हुआ कि अपनी मूर्खता के कारण वह मृत्यु के कितना निकट था, उसे लकवा मार गया। इस भय से दाऊद प्रतिशोध के अपने लक्ष्य का छोड़ेगा नहीं, वह अत्यन्त भयभीत हो गया और असहाय जड़ता की अवस्था में गिर पड़ा और दस दिन पश्चात मृत्यु को प्राप्त हो गया। वह जीवन जो परमेश्वर ने उसे दिया था, संसार के लिये श्राप मात्र था। जब वह आनन्द में मग्न था, परमेश्वर ने, जैसे दृष्टान्त में धनवान व्यक्ति से कहा था, नाबाल से कहा, “इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा।” - लूका 12:20।PPHin 701.2

    तत्पश्चात्‌ दाऊद ने अबीगैलसे विवाह कर लिया। वह पहले से ही एक पत्नी का पति था लेकिन उसके समय के राष्ट्रीय रीति रिवाजों ने उसकनिर्णय को विकृत कर दिया थाऔर उसके कर्मों को प्रभावित किया था। इस संसार की प्रथाओं का अनुसरण करने की गलती महापुरूष और भले मानुष भी करते हैं। एक से अधिक पत्नियों के साथ विवाह करने के दुष्परिणाम का एहसास दाऊद को जीवन भर होता रहा।PPHin 701.3

    शमूएल की मृत्यु पश्चात्‌, दाऊद कुछ महीनों तक शान्ति से रहा। यह जीपी लोगों के एकांत स्थान में लौट गया, लेकिन राजा की कृपा-दृष्टि प्राप्त करने की आशा में, इन शत्रुओं उसे दाऊद के छपने के स्थान की सूचना दे दी। इस ज्ञान ने शाऊल के सीने में सोए हुए आवेग के राक्षस को जगा दिया। लेकिन क॒छ मैत्रीपूर्ण गुप्तचरों ने यिशै के पुत्र को सूचना दी कि शाऊल फिर से उसका पीछा कर रहा था, और अपने कुछ आदमियों के साथ अपने शत्रु का ठिकाना ढूंढने निकल पड़ा। रात में, जब वह सावधानी से आगे बड़ रहा था, वे छावनी तक पहुँच गए और उन्होंने अपने सामने राजा और उसके परिचारकों के तम्बू देखे। छावनी में सब चुपचाप सोए थे, इसलिये उन्हें किसी ने नहीं देखा। दाऊद ने अपने मित्रों को शत्रु के मध्य जाने को कहा। “मेरे साथ उस छावनी में शाऊल के पास कौन चलेगा”? इस प्रश्न के उत्तर में अबीशै ने कहा, “तेरे साथ मैं चलूँगा।PPHin 701.4

    पहाड़ों की आड़ में दाऊद और उसके साथी ने शत्रु की छावनी में प्रवेश किया। वे शत्रुओं की सही संख्या सुनिश्चित कर रहे थे, कि उन्होंने सोए हुए शाऊल को देखा, उसका भाला धरती में गढ़ा हुआ था और उसके सिरहाने पानी की सुराही थी। उनके चारों और योद्धा गहरी नींद में सोए हुए थे। अबीशे ने अपना भाला उठाया और दाऊद से कहा, “परमेश्वर ने आज तेरे शत्रु को तेरे हाथ में कर दिया है, इसलिये अब मुझे शाऊल को उसके भाले से ही जमीन में टांक देने दे। मैं इसे एक ही बार में मार दूँगा और मुझे उसे दूसरी बार मारनान पड़ेगा।” वह अनुमति के शब्द की प्रतीक्षा में था कि उसके कानों में यह धीमी सी आवाज आई, “उसे नष्ट न कर, क्योंकि यहोवा के अभिषिक्त पर हाथ डालकर कौन निर्दोष ठहर सकता है?.... यहोवा के जीवन की शपथ यहोवा ही उसको मारेगा या वह अपनी मृत्यु से मरेगा, या वह लड़ाई में जाकर मर जाएगा। यहोवा ना करे कि मैं अपना हाथ यहोवा के अभिषिक्त पर उठाऊं, अब उसके सिरहाने से भाला और पानी की सुराही उठा ले, और हम यहाँ से चले जाए तब दाऊद ने भाले और पानी की सुराही को शाऊल के सिरहाने से उठा लिया, और वे चले गए। किसी ने इसे नहीं देखा और न जाना, और न कोई जागा, क्‍योंकि वे सब इस कारण सोए हुए थे कि यहोवा की ओर से उनमें भारी नींद समा गई थी। कितनी आसानी से प्रभु सबसे बलवन्त को निर्बल कर देता है, सबसे बुद्धिमान से विवेक को दूर कर देता है, और सबसे सर्तक की युक्‍क्ति को निष्फल कर देता है।PPHin 702.1

    जब दाऊद छावनी से सुरक्षित दूरी पर था, वह पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ और उसने उन लोगों को, और अब्नेर को पुकार कर कहा, “क्या तू साहसी मनुष्य नहीं है? इज़राइल में तेरे तुल्य कौन है? तूने अपने स्वामी राजा की चौकसी क्‍यों नही की? एक जन तो तेरे स्वामी राजा को नष्ट करने घुसा था। जो काम तूने किया है वह अच्छा नहीं है। यहोवा के जीवन की शपथ तुम लोग मारे जाने के योग्य हो, क्‍योंकि तुम ने अपने स्वामी यहोवा के अभिषिक्त की चौकसी नहीं की। अब देख, राजा का भाला और पानी की सुराही जो उसके सिरहाने थी वे कहाँ है? तब शाऊल ने दाऊद का बोल पहचानकर कहा, “हे मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तेरी आवाज है? दाऊद ने कहा, “हाँ मेरे स्वामी व राजा, यह मेरी ही आवाज है। और उसने कहा, मेरा स्वामी अपने दास का पीछा क्‍यों करता है? मैंने क्या किया है और मुझ से कौन सी बुराई हुई है? मेरे स्वामी और राजा मेरी बात सुन।” राजा के होठों से फिर स्वीकृति के शब्द निकले, “मैंने पाप किया है, हे मेरे बेटे दाऊद, लौट आ, मेरा प्राण आज के दिन तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरा, इस कारण मैं फिर तेरी कुछ हानि न करूंगा, सुन मैंने मूर्खता की है, और मुझ से बड़ी भूल हुई है।” और दाऊद ने उत्तर देते हुए कहा, “हे राजा, भाले को देख! कोई जवान इधर आकर इसे ले जाए।” हालाँकि शाऊल ने प्रतिज्ञा की थी, “मैं तुझे कोई हानि नहीं पहुँचाऊेगा” दाऊद ने स्वयं को उसके अधीकृत नहीं किया।PPHin 702.2

    राजा के जीवन के प्रति दाऊद के आदर भाव की दूसरी घटना ने शाऊल के मन में गहरा प्रभाव डला और उसने और दीनता के साथ अपने पाप को स्वीकार किया। ऐसी करूणा ने उसे कायल और आश्चर्यवकित कर दिया। दाऊद से विदा लेते हुए वह बोला “हे मेरे बेटे दाऊद, तू धन्य है, तू बड़े-बड़े काम करेगा और तेरे काम सफल होंगे।” लेकिन यिशै के पुत्र को राजा की इसी मन:स्थिति में अधिक समय तक रहने की आशा नहीं थी।PPHin 703.1

    शाऊल के साथ समझौते के प्रति दाऊद निराशा था। उसे प्रतीत होता था कि अन्त में वह निश्चय ही शाऊल की घृणा का शिकार हो जाएगा और इस कारण उसने फिर से पलिश्तियों के देश में शरण लेने का संकल्प किया। अपने नीचे छः सौ पुरूषों सहित वह गत के राजा आकीश के पास चला गया।PPHin 703.2

    इस निष्कर्ष पर, कि शाऊल निश्चय ही अपने हिंसक प्रयोजन को सम्पन्न करेगा, दाऊद परमेश्वर की सम्मति के बगैर पहुँचा था। जब शाऊल षड़यन्त्र रच रहा था और उसके विनाश को सम्पन्न करना चाहा रहा था, प्रभु दाऊद के लिये राज्य को सुरक्षित करने के लिये कार्य कर रहा था। परमेश्वर अपनी योजनाओं को निश्चय ही सम्पन्न करता है भले ही वे मनुष्य की दृष्टि के लिये रहस्यमयी हो। मनुष्य परमेश्वर के तौर-तरीके को नहीं समझ सकता, और प्रकट रूप को देखकर, परमेश्वर की अनुमति से आने वाली विपत्तियों या परख या परीक्षाओं को स्वयं के लिये प्रतिकूल और हानिप्रद समझता है। इसी प्रकार दाऊद ने प्रकट रूप को देखा, और परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की ओर नहीं देखा। उसे इस बात का भी सन्देह था कि वह सिंहासन पर बैठेगा या नहीं। लम्बे समय के संघर्ष ने उसके विश्वास और उसके धेर्य को कम कर दिया था। PPHin 703.3

    प्रभु ने दाऊद को इज़राइल के सबसे कट्टर शत्रु पलिश्तियों की सुरक्षा के लिये नहीं भेजा था। यही राष्ट्र अन्त तक उसके सबसे बड़े शत्रुओं में से एक था, लेकिन फिर भी वह आवश्यकता पड़ने पर सहायता के लिये उनके पास दोौड़ा। शाऊल और अपने समर्थकों में पूर्णतया विश्वास खोकर, उसने स्वयं को शत्रुओं की दया के आगे समर्पित कर दिया। दाऊद एक शूरवीर योद्धा था, और उसने स्वयं को एक बुद्धिमान और सफल योद्धा प्रमाणित किया था, लेकिन पलिश्तियों के पास जाकर वह प्रत्यक्ष रूप से अपने ही भलाई के विरूद्ध कार्य कर रहा था। परमेश्वर ने दाऊद को यहूदा में सत्ता कायम करने के लिये नियुक्त किया था, और इस विश्वास की कमी के कारण उसने परमेश्वर की आज्ञा के बिना अपने कर्तव्य-स्थल को त्याग दिया।PPHin 704.1

    दाऊद के अविश्वास से परमेश्वर का अपमान हुआ। पलिश्ती शाऊल और उसकी सेनाओं से अधिक दाऊद से डरते थे, और स्वयं को पलिश्तियों की सुरक्षा के निहित कर, दाऊद ने उन्हें उसके अपने लोगों की दुर्बलता को प्रकट किया। इस प्रकार उसने निदयी शत्रुओं को इज़राइल का उत्पीड़न करने के लिये प्रोत्साहित किया। दाऊद को परमेश्वर के लोगों के पक्ष में खड़ होने के लिये नियुक्त किया गया था, और प्रभु नहीं चाहता था कि उसके दास उसके लोगों की दुर्बलताओं का खुलासा करके या उनके कशल-क्षेम के प्रति उदासीनता दिखाकर दुष्टों को प्रोत्साहित करे। इसके अतिरिक्त, उसके भाई-बन्धुओं को ऐसा लगा कि वह मूर्तिपूजकों के पास उनके देवी-देवताओं की पूजा अर्चाना करने गया है। इस कृत्य से उसने अपने अभिप्राय के गलत समझे जाने का अवसर प्रदान किया, और कई लोगों की धारणाएं उसके प्रतिकूल हो गई। जो शैतान उससे करवाना चाहता था, उसने वहीं किया और पलिश्तियों की शरण में जाकर, दाऊद ने परमेश्वर और उसके लोगों के शत्रुओं को अत्यन्त प्रसन्न किया। दाऊद ने परमेश्वर की आराधना करना नहीं छोड़ा और ना ही उसके उद्देश्य के प्रति उसकी आस्था में कमी आईं, लेकिन उसने अपनी निजी सुरक्षा के लिये परमेश्वर में अपने विश्वास की बलि चढ़ा दी और इस प्रकार उस सत्यनिष्ठ और धर्मपरायण चरित्र को कलंकित किया जो परमेश्वर अपने दासों में चाहता है।PPHin 704.2

    पलिश्तियों के राजा ने दाऊद का हार्दिक स्वागत किया। इस स्वागत के सौहाद का एक कारण यह था कि राजा दाऊद को पसन्द करता था और दूसरा कि यह कि एक इब्री का उसकी शरण में आना उसके अभिमान के लिये सन्तोषजनक था। आकीश के राज्य में वह विश्वासघात के प्रति सुरक्षित महसूस करता था। वह अपने परिवार, अपनी धन-सम्पत्ति और अपने आदमियों को भी वहाँ ले आया, और सभी को ऐसा लगता था कि वह पलिश्ती प्रदेश में स्थायी रूप से बस जाने के लिये आया था। यह सब आकीश के लिये बड़ा सुखदायक था, जिसने पलायक इज़राइलियों की सुरक्षा करने की प्रतिज्ञा की थी। PPHin 705.1

    प्रदेश में निवास-स्थान के लिये दाऊद के निवेदन करने पर, राजा ने उदारतापूर्वक उसे राजसी शहर में दूर सम्पत्ति के रूप में सिकलग दिया। दाऊद जानता था कि मूर्तिपूजकों के प्रभाव में रहना उसके और उसके आदमियों के लिये खतरनाक होगा। जो नगर पूर्ण रूप से उन्हीं के लिये अलग किया था, उसमें वे गत की तुलना में अधिक स्वतन्त्रता के साथ अपने पमरेश्वर की आराधना कर सकते थे, क्योंकि गत में मूर्तिपूजक विधियाँ केवल बुराई और कष्ट का स्रोत प्रमाणित होते। PPHin 705.2

    इस एकान्त नगर में रहते हुए, दाऊद ने गशूरियों, गिर्जियों और अमालेकियों पर चढ़ाई की, और उसने गत में समाचार लाने के लिये किसी को जीवित नहीं छोड़ा। जब वह युद्ध से लौटा तो उसने आकीश को यह समझाया कि वह अपनी ही जाति, यहूदियों के विरूद्ध युद्ध करता रहा था। इस बहकावे से वह पलिश्तियों के हाथ को प्रबल करने का साधन हुआ, क्‍योंकि राजा ने कहा, “यह अपने इज़राइली लोगों की दृष्टि में अधिक घृणित हुआ है, इसलिये यह सदा के लिये मेरा दास बना रहेगा।” दाऊद जानता था कि उन मूर्तिपूजक जातियों का विनाश परमेश्वर की इच्छा थी, और वह जानता था कि उसे इस कार्य के लिये नियुक्त किया गया था, लेकिन जब उसने छल का अभ्यास किया, वह परमेश्वर की सम्मति के अनुसार नहीं चल रहा था।PPHin 705.3

    “उन दिनों में पलिश्तियों ने इज़राइल से लड़ने के लिये अपनी सेना इकट्ठी की। तब आकीश ने दाऊद से कहा, “निश्चय जान कि तुझे अपने जनों समेत मेरे साथ सेना में जाना होगा।” दाऊद का अपने लोगों पर हाथ उठाने का कोई इरादा नही था, लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि उसे कौन सा रास्ता अपनाना है, जब तक कि परिस्थितियाँ उसके कर्तव्य का संकेत नहीं दे। उसने टाल-मटोल करके राजा को उत्तर देते हुए का, “इस कारण तू जान लेगा कि तेरा दास क्‍या करेगा ।” आकीश ने इन शब्दों को आने वाले युद्ध के संकट में सहायता की प्रतिज्ञा समझा और उसने दाऊद को बहुत सम्मानित करने की और उसे पलिश्ती दरबार में उच्च पद देने की प्रतिज्ञा की।PPHin 705.4

    परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के प्रति दाऊद का विश्वास कुछ-कुछ डगमगाया था, लेकिन उसने स्मरण किया कि शमूएल ने उसे इज़राइल का राजा अभिषिक्त किया था। उसने उन विजयों का स्मरण किया, जो बीते दिनों में परमेश्वर ने उसे उसके शत्रुओं के विरूद्ध दी थी। उसने शाऊल के हाथ से बचाने में परमेश्वर की दयालुता की समीक्षा की और एक पवित्र अमानत के साथ विश्वासघात न करने का संकल्प किया। हालाँकि इज़राइल के राजा ने उसका प्राण लेना चाहा था, दाऊद ने अपनी सेना को उसके लोगों के शत्रुओं के साथ नहीं जोड़ा।PPHin 706.1

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