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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 66—शाऊल की मृत्यु

    इज़राइल और पलिश्तियों के बीच फिर से युद्ध घोषित हुआ। यिजत्रेल के उत्तरी छोर पर “पलिश्ती इकट्ठे हुए, और उन्होंने शूनेम में पड़ाव डाला” जबकि शाऊल और उसकी सेनाओं ने कुछ मील दूर, तराई की दक्षिण सीमा पर गिलबो पर्वत के तले अपना डेरा डाला। इसी तराई से गिदोन ने अपने तीन सौ पुरूषों सहित, मिद्यानी सेना को खदेड़ भगाया था। लेकिन जिस भावना ने इज़राइल को छुटकारा दिलाने वाले को प्रेरित किया था, वह उस भावना से बहुत भिन्न थी जिसने राजा के हृदय को प्रभावित किया था। गिदोन याकूब के सामर्थी परमेश्वर में दृढ़ विश्वास के साथ आगे बड़ा था, लेकिन शाऊल स्वयं को अकेला और असुरक्षित महसूस कर रहा था क्‍योंकि परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया था। जब उसने फैली हुई पलिश्ती सेना पर दृष्टि डाली, “वह डर गया, और उसका मन अत्यन्त भयभीत होकर काँप उठा।”PPHin 707.1

    शाऊल को पता चला था कि दाऊद और उसकी सेना पलिश्तियों के साथ थी, और उसे लगा कि यिशे का पुत्र इस अवसर का लाभ उठाकर उस पर किये गए अत्याचार का प्रतिशोध लेगा। वह अत्यन्त दुखी था। उसी के अविवेकीय आवेग ने उसे परमेश्वर द्वारा चुने हुए को नष्ट करने के लिये उकसाया था और सम्पूर्ण राष्ट्र को खतरे में डाल दिया था। दाऊद का पीछा करने में उसने अपने राष्ट्र की सुरक्षा की उपेक्षा की थी। उसकी असुरक्षित अवस्था का लाभ उठाकर पलिश्ती नगर के मध्य तक पहुँच गये। दाऊद को नष्ट करने के लिये, शैतान शाऊल से दाऊद को ढूंढने का भरसक प्रयत्न करने का आग्रह कर रहा था, यह वही दुष्टात्मा थी जिसने पलिश्तियों को शाऊल के विनाश और परमेश्वर के लोगों की पराज्य के लिये अवसरवादी होने की प्रेरणा दी थी। कितनी बार शैतान द्वारा इसी नीति को प्रयोग में लाया जाता है। वह कलीसियाओं में कलह और ईर्ष्या की चिंगारी सुलगने के लिये अपवित्र हृदयों को प्रभावित करता है, और फिर, परमेश्वर के लोगों की विभाजित अवस्था का लाभ उठाकर, वह अपने दूतों को उनका विनाश करने के लिये जगाता है। PPHin 707.2

    प्रातः:काल शाऊल को पलिश्तियों से युद्ध करना था। आने वाले विनाश की काली छाया ने उसे घेर लिया, वह सहायता और मार्गदर्शन के लिये तड़प उठा। लेकिन उसका परमेश्वर से सम्मति माँगना व्यर्थ ठहरा।PPHin 707.3

    “प्रभु ने न तो स्वप्न के द्वारा उसके उत्तर दिया और न ऊरीम के द्वारा और न भविष्यद्क्ताओं के द्वारा।/ दीनता और ईमानदारी से उसके पास आने वाले एक भी जन से वह मुहँ नहीं फिराता। फिर उसने शाऊल को उत्तर क्‍यों नहीं दिया? राजा ने अपने ही कृत्यों द्वारा परमेश्वर से पूछने के सभी तरीकों के लाभ को खो दिया था। उसने भविष्यवक्ता शमूएल की सम्मति का तिरस्कार किया था, उसने परमेश्वर के चुने हुए, दाऊद को प्रवास दिया था, उसने परमेश्वर के याजकों की हत्या की थी। क्‍या वह स्वर्ग द्वारा नियत किये गए संपर्क के माध्यमों को काट डालने के बाद भी परमेश्वर के उत्तर देने की अपेक्षा कर सकता था? पाप के द्वारा उसने अनुग्रह के आत्मा को दूर कर दिया था, और क्‍या वह परमेश्वर से स्वप्नों और रहस्योदघाटनों द्वारा उत्तर प्राप्त कर सकता था? शाऊल दीनता और पश्चताप के साथ ईश्वर की ओर नहीं फिरा। वह पापों के लिये क्षमा या परमेश्वर के साथ पुर्नमिलन के लिये नहीं, वरन्‌ शत्रुओं से छुटकारे का प्रयास कर रहा था। अपने व्यक्तिगत हठ और विद्रोह के कारण उसने स्वयं को परमेश्वर से अलग कर लिया था। प्रायश्चित के अभाव में वापसी सम्भव नहीं थी, लेकिन अपनी वेदना और निराशा में अभिमानी सम्राट ने अन्य माध्यम से सहायता प्राप्त करने का निश्चय किया। PPHin 708.1

    “तब शाऊल ने अपने कर्मचारियों से कहा, “मेरे लिये किसी ऐसी स्त्री का पता लगाओ जो ओझा हो, ताकि मैं उसके पास जाकर उससे पूछ सकेँ।” शाऊल को प्रेत विद्या की विशेषता का पूरा ज्ञान था। यह प्रभु द्वारा स्पष्ट रूप से निषेध किया गया था, और जो भी इसकी अपवित्र विद्या का अभ्यास करता था, वह मृत्यु की दण्जाज्ञा प्राप्त करता था। शमूएल के जीवित होने के समय, शाऊल ने आदेश दिया था कि सभी ओझाओं और भूत सिद्धि करने वालों को मृत्यु दण्ड दिया जाए, किन्तु अब निराशा से उत्पन्न दुस्साहस के कारण उसने उस ओझा का सहारा लिया जिसे उसने घृणित व्यक्ति के तौर पर निन्दनीय ठहराया था।PPHin 708.2

    राजा को बताया गया कि एन्दोर में एक ओझा रहती थी। इस स्त्री ने स्वयं को शैतान के नियन्त्रण में समर्पित कर दिया था और वह उसकी योजनाओं को सम्पन्नकरती थी, और बदले में ‘बुराई का राजकुमार” उसके लिये आश्चर्यकर्म करता था और उस पर गुप्त बातें प्रकट करता था।PPHin 708.3

    शाऊल भेष बदलकर, केवल दो सेवकों सहित, रातोंरात उस जादूगरनी के आश्रय को ढूंढने निकल पड़ा। क्या ही दयनीय दृश्य था! इज़राइल के राजा को शैतान अपनी इच्छा से बन्दी बनाकर लिये जा रहा था। मनुष्य के पदचाप के लिये कितना अन्धकारमय था वह पथ जो उसके द्वारा चुना गया जो परमेश्वर के आत्मा के पवित्र प्रभाव का प्रतिशोध करके, लगातार मनमानी करता रहा था। उसके दासत्व से भयानक और कौन सा बन्धन इतना भयानक हो सकता है, जो स्वयं को सबसे बुरे तानाशाह यानि स्वयं के नियन्त्रण में दे देता है। परमेश्वर में विश्वास और उसकी इच्छा का पालन ही वे शर्ते थी जिनके आधार पर शाऊल इज़राइल का राजा हो सकता था। यदि वह इन्हें अपनी शासन-अवधि में बनाए रखता, तो उसका राज्य सुरक्षित रहता। पमरेश्वर उसका मार्गदर्शक होता और सर्वशक्तिमन उसकी ढाल। परमेश्वर ने बहुत दिनों तक के साथ धेर्य रखा था, और हालाँकि उसके आग्रह और विद्रोह ने उसकी आत्मा में पवित्र वाणी को शान्त कर दिया था, उसके पास प्रायश्चित का अवसर था। लेकिन जब संकट के समय वह परमेश्वर को पीठ दिखाकर शैतान के साथी से प्रकाश प्राप्त करने गया, उसने उस अन्तिम डोर को भी काट डाला जो उसे उसके सृष्टिकर्ता से बॉघे हुए थी, उसने स्वयं को उस दुष्टात्मा की शक्ति के अधीन कर दिया जिसका अभ्यास उसपर वर्षों से किया जा रहा था, और जो उसे विनाश की अन्तिम सीमा पर ले आयी थी।PPHin 708.4

    अन्धकार की आड़ में शाऊल और उसके सेवकों ने तराई को पार किया, और पलिश्ती सेना के पास से निकलते हुए, खड़ी पहाड़ी को पार कर वे एन्दोर की जादूगरनी के एकान्तवास में पहुँच गये। यहाँ वह स्त्री, जिसके पास सिद्ध प्रेत था, छिपकर रहती थी कि वह गुप्त रूप से अपना अपवित्र जादू टोना करती रहे । शाऊल भेष धारण किये हुए तो था, लेकिन उसके ऊँचे कद और राजसी चाल-ढाल से पता चल गया कि वह साधारण सैनिक न था। स्त्री को सन्देह हुआ कि वह शाऊल था, और कीमती उपहारों ने उसके सन्देह को और बड़ा दिया। जब शाऊल ने विनती की, “प्रेतों के द्वारा मुझे मेरा भविष्य बताओ। उस व्यक्ति को बुलाओ जिसका मैं नाम लूँ।” स्त्री ने कहा, “तुम जानते हो शाऊल ने क्या किया है। उसने ओझा और भाग्यफल बताने वालों को इज़राइल देश छोड़ने को विवश किया है। तुम मुझे जाल में फँसाकर मार डालना चाहते हो।” फिर “शाऊल ने यहोवा की शपथ खाकर उससे कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, इस बात के कारण तुझे दण्ड न मिलेगा।” और जब स्त्री ने कहा, “मैं तेरे लिये किस को बुलाऊँ? उसने उत्तर दिया, ‘शमूएल'।PPHin 709.1

    अपने मन्त्रोच्चारण और जादू-टोने का अभ्यास करने के बाद, उसने कहा, “मैंने देवताओं को पृथ्वी में से चढ़ते हुआ देखा .......एक बूढ़ा पुरूष बागा ओढ़े हुए चढ़ा आता है। तब शाऊल ने निश्चय जानकर कि वह शमूएल है, औंधे मुंह भूमि पर गिरकर दण्डवत किया।PPHin 710.1

    वह परमेश्वर का पवित्र भविष्यवक्ता नहीं था जो ओझा के मंत्रोच्चार की माया से प्रकट हुआ। शमूएल दुष्टात्माओं के उस बसेरे में उपस्थित नहीं था। वह अलौकिक प्रतीति केवल शैतान के शक्ति से उत्पन्न हुई थी। वह शमूएल की आकति को उतनी ही सरलता से धारण कर सकता था जितनी आसानी से उसने बीहड़ में मसीह को प्रलोभन देने के समय प्रकाश के स्वर्गदूतत का रूप धारण किया था। स्त्री के मंत्रोच्चार की माया के प्रभाव में उसके पहले शब्द राजा को संबोधित किये गए, “तूने मुझे क्‍यों धोखा दिया? तू तो शाऊल हैं।” इस प्रकार भविष्यद्बक्ता का अवतार धारण करने वाली दुष्टात्मा का पहला कृत्य इस दुष्ट स्त्री के साथ गुप्त संपर्क कर उसे छल की चेतावनी देना था जिसका अभ्यास उस पर किया गया था। ढोंगी भविष्यवक्ता की ओर से शाऊल के लिये यह संदेश था, “तुने मुझे ऊपर बुलवाकर क्‍यों सताया है?” और शाऊल ने उत्तर दिया, “मैं बड़े संकट में पड़ा हूँ, क्योंकि पलिश्ती मेरे साथ लड़ रहे हैं और परमेश्वर ने मुझे छोड़ दिया, और अब मुझे न तो भविष्यवक्ताओं के द्वारा उत्तर देता है, और न स्वप्नों के, इसलिये मैंने तुझे बुलाया कि तू मुझे जता दे कि मैं क्या करू?PPHin 710.2

    जब शमूएल जीवित था, शाऊल ने उसकी सम्मति को तिरस्कृत किया था और उसकी ताड़ना से वह अप्रसन्‍न हुआ था। लेकिन अब संकट की घड़ी में, उसे महसूस हुआ कि भविष्यवक्ता का मार्गदर्शन ही उसकी एकमात्र आशा थी, और स्वर्ग के प्रतिनिधि के साथ संपर्क करने के लिये उसने व्यर्थ ही नरक के दूत का सहारा लिया था। शाऊल ने स्वयं को पूर्ण रूप से शैतान के अधीन कर दियाथा, और अब, जिसे एकमात्र प्रसन्‍नता विनाश करने और कष्ट पहुँचाने में होती है, अप्रसन्‍न राजा के विनाश को सम्पन्न करने के लिये, इस सुअवसर का लाभ उठाया। शाऊल के वेदनापूर्ण विनती के उत्तर में प्रकट रूप से शमूएल के होठों से यह भयावह सन्देश आया “जब यहोवा तुझे छोड़कर तेरा शत्रु बन गया, तब तू मुझे से क्‍यों पूछता है? यहोवा ने तो जैसा मुझ से कहलवाया था वैसा ही उसने व्यवहार किया है, अर्थात उसने तेरे हाथ से राज्य छीनकर तेरे पड़ोसी दाऊद को दे दिया है। तू ने जो यहोवा की बात न मानी, और न अमालेकियों को उसके भड़के हुए कोप के अनुसार दण्ड दिया था, इस कारण यहोवा ने तुझ से आज ऐसा बर्ताव किया। फिर यहोवा तुझ समेत इज़राइलियों को पलिश्तियों के हाथ में कर देगा।”PPHin 710.3

    उसके विद्रोह के दौरान पूरे समय शैतान ने शाऊल को धोखा दिया और उसकी झूठी प्रशंसा की। प्रलोभन देने वाले का कार्य पाप को छोटा दिखाना, अवज्ञा के पथ को सरल और आकर्षक बताना, परमेश्वर की धमकियों और चेतावनियों के प्रति मन को उदासीन कर देना होता है। अपनी सम्मोहक शक्ति के द्वारा शैतान ने शाऊल को शमूएल की चेतावनियों और झिड़कियों की अवज्ञा करने में न्यायसंगत होने का दावा करवाया। लेकिन अब, संकट के समय में, वह पलटवार करके उसके पाप की गंभीरता को, और क्षमा की आशाहीनता को प्रस्तुत कर, उसे मायूसी की ओर ले गया। उसकी बुद्धि को भ्रष्ट करने और उसके साहूस को नष्ट करने, या उसे विनाश और निराशा में धकेलने के लिये इससे बेहतर और कुछ नहीं चुना जा सकता था। PPHin 711.1

    शाऊल भूख और थकान से बेहोश हुआ जा रहा था, वह भयभीत था और अंतरात्मा से प्रताड़ित था। जैसे ही वह भयावह भविष्यवाणी उसके कानों में पड़ी उसका शरीर आंधी के प्रभाव में बांज वृक्ष की तरह लहराया और वह मुँह के बल धरती पर गिर पड़ा।PPHin 711.2

    ओझा भयभीत हो गई। इज़राइल का राजा उसके सम्मुख मृतक के समान पड़ा था। यदि वह उसके आश्रय-स्थल में नष्ट हो जाता तो उसके लिये क्‍या परिस्थिति होती? उसने शाऊल से उठकर भोजन करने की विनती की, और उसने आग्रह किया कि उसकी अभिलाषा पूरी करने के लिये उसने अपने प्राण दाव पर लगा दिया थे, इसलिये उसे अपने स्वयं के प्राण बचाने के लिये उसकी विनती को स्वीकार करना होगा। उसके सेवकों ने भी विनती की। अन्त में शाऊल मान गया और स्त्री ने एक तैयार किये हुए बछड़े का मास और अखमीरी रोटी फूर्ती से बनाकर उसके आगे परोसा। क्‍या दृश्य था! जादूगरनी की गुफा में, जिसमें कुछ समय पहले विनाश के शब्द गूंज रहे थे, शैतान के दूत की उपस्थिति में, वह जो इज़राइल के राजा के तौर पर परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त था, दिन के भयंकर संघर्ष की तैयारी में, भोजन करने बैठा।PPHin 711.3

    पौ फटने से पहले शाऊल अपने सेवकों सहित, संघर्ष की तैयारी करने के लिये इज़राइल की छावनी में लौट आया। अन्धकार की आत्मा से सलाह लेकर शाऊल ने स्वयं को नष्ट कर लिया था। आशाहीनता की दहशत से उत्तपीड़ित, शाऊल के लिये अपनी सेना को साहस की प्रेरणा देना असम्भव था। सामर्थ्य के स्रोत से अलग होकर वह इज़राइल के परमेश्वर को उसके सहायक के रूप में देखने के लिये विवश नहीं कर सकता था। इस प्रकार अनर्थ की भविष्यवाणी ने अपना कार्य स्वयं सम्पन्न किया।PPHin 711.4

    शुनेम की तराई में और गिलबो की ढलान पर इज़राइल की सेनाओं और पलिश्तियों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ। यद्यपि एन्दोर की गुफा के भयावह दृश्य ने उसके हृदय को निराशा से भर दिया था, फिर भी शाऊल निभीक होकर अपने सिंहासन और अपने राज्य के लिये बहादुरी से लड़ा। लेकिन यह सब व्यर्थ में था। “इज़राइली पुरूष पलिश्तियों के सामने से भागे, और गिलबो नामक पहाड़ पर मारे गए।” राजा के तीन पुत्र भी मारे गए। धनुर्धारियों ने उसे घेर लिया। उसने अपने चारों ओर योद्धाओं को गिरते हुए और अपने राजकुमार पुत्रों को तलवार से घात हुए देखा था। वह स्वयं घायल था, ना वह लड़ सकता था, ना भाग सकता था। बच कर निकल जाना असम्भव था, और पलिश्तियों द्वारा जीवित न पकड़े जाने के लिये निश्चित, उसने अपने हथियार ढोने वाले से कहा, “अपनी तलवार खींचकर मुझमें भोंक दे ।” जब उस व्यक्ति ने परमेश्वर के अभिषिक्त पर हाथ उठाने से मना कर दिया तब शाऊल ने अपनी ही तलवार को खड़ी कर, उस पर गिर कर अपने प्राण ले लिये। PPHin 712.1

    इस प्रकार इज़राइल का पहला राजा आत्म-हत्या का दोष अपने ऊपर लेकर नष्ट हो गया। उसका जीवन असफल रहा था, और वह अपमान और निराशा को प्राप्त हुआ क्‍योंकि उसने स्वयं की विकृत इच्छा को परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध खड़ा किया।PPHin 712.2

    पराजय की सूचना इज़राइल के लिये भय का सन्देश लेकर दूर-दूर तक फेल गई । लोग नगर छोड़ कर भाग गए, और पलिश्तियों नेबिना रूकावट के वहाँ अपना स्वामित्व स्थापित किया। परमेश्वर के स्वतन्त्र शाऊल का शासन उसके लोगों के विनाश का कारण बना। PPHin 712.3

    दूसरे दिन जब पलिश्ती मारे हुओं की सम्पत्ति को लूटने आए, तब उनको शाऊल और उसके तीनों पुत्रों के शव मिले। अपनी विजय की पूरी करने के लिये, उन्होंने शाऊल का सिर काटा, उसके कवच को उसके शरीर से अलग कर दिया, फिर उसका रकक्‍तरंजित सिर और कवच विजय-चिन्ह के तौर पर पलिश्तियों के देश में इसलिये भेजा कि “उसके देवताओं और साधारण लोगों में यह शुभ समाचार पहुँचे।” उसके कवच को आश्तोरेत नामक देवी के मन्दिर में रखा गया और उसके सिर को दागोन के मन्दिर में जड़ दिया गया। इस प्रकार विजय की महिमा का श्रेय इन कृत्रिम देवी-देवताओं को दिया गया और यहोवा के नाम का अपमान किया गया।PPHin 712.4

    शाऊल और उसके पुत्रों के शवों को घसीटकर गिलबो के पास बेतशान नामक शहर में लाया गया जो यरदन नदी के निकट था। यहाँ उन्हें माँसाहारी पक्षियों द्वारा खाए जाने के लिये जंजीरों से लटका दिया गया। लेकिन याबेश-गिलाद के शूरवीर शाऊल के बीते सुखी वर्षो में उसके द्वारा उनके नगर के छुटकारे को स्मरण कर, राजा और उसके पुत्रों के शवों को बचाकर ले आए व उन्हें सम्मानपूर्वक मिट्टी देकर, अपनी कृतज्ञता प्रकट की। रातों-रात यरदन को पार कर वे, “शाऊल और उसके पुत्रों के शव बेतशान की शहरपनाह पर से याबेश में ले आए, और वहीं उन्हें जला दिया, और उन्होंने उनकी हडिडियाँ लेकर याबेश के झाऊ के पेड़ के नीचे गाड़ दी और सात दिन तक उपवास किया।” इस प्रकार चालीस वर्ष पूर्व किये गए श्रेष्ठ कार्य ने शाउऊल और उसके पुत्रों के लिये अपमान और पराजय की उस दुर्भाग्यपूर्ण घड़ी में नम्र और दयावान हाथों द्वारा मिट्टी दिया जाना सम्भव किया।PPHin 713.1