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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 73—दाऊद के अंतिम वर्ष

    यह अध्याय 2 शमूएल 24, 1 इतिहास 21, 28, 29, 1 राजा पर आधारित है

    अबशालोम की पराजय राज्य में तत्काल शान्ति लेकर नहीं आईं। प्रजा का इतना बड़ा भाग विद्रोह में सम्मिलित हुआ था कि दाऊद गोत्रों से निमन्त्रण प्राप्त हुए बिना राजधानी लौटकर अपने अधिकार को पुनः ग्रहण नहीं करना चाहता था। अबशालोम की पराजय के पश्चात्‌ उत्पन्न अव्यवस्था में राजा को वापस बुलाने की कोई तत्काल और कतसंकल्प कार्यवाही नहीं हुई थी, और अन्त में जब यहूदा ने दाऊद को वापस ले आने का दायित्व उठाया, तो अन्य गोत्रों की ईर्ष्या जागृत हो गई, और एक प्रति-विरोध उत्पन्न हो गया। लेकिन इसे जल्द ही शान्त कर दिया गया, और इज़राइल में शान्ति लौट आई।PPHin 783.1

    दाऊद का इतिहास, मनुष्य में सबसे अधिक वांछनीय - अधिकार, धन-दोलत और सांसारिक सम्मान से सम्बन्धित, आत्मा कोजोखिममे डालने वाले खतरों के लिये अब तक की दी गई साक्षियों में सबसे प्रभावशाली साक्षी है। ऐसी परीक्षा में खरे उतरने के लिये मनुष्यों को तैयार करने हेतु इससे अधिक अनुकूल अनुभव से बहुत कम शायद ही होकर निकले हैं। चरवाहे के तौर पर दाऊद का प्रारम्भिक जीवन, दीनता, धेर्यशील श्रम,और भेड़ो के लिये उसकी नग्नतापूर्ण चौकसी के सबकों के साथ; पहाड़ो के एकान्त में प्रकृति के साथ उसकासंपर्क, संगीत और काव्य के लिये उसकी प्रतिभा को विकसित करते हुए, और उसके विचारों को सृष्टिकर्ता की ओर ले जाते हुए; साहस, सहनशीलता, धेरय और परमेश्वर में विश्वास का अभ्यास कराते हुएबीहड़ में उसके जीवन का चिरकालीन अनुशासन, परमेश्वर द्वारा इज़राइल के सिंहासन के लिये तैयारी के रूप में नियुक्त किया था। दाऊद ने परमेश्वर के प्रेम के अनमोल अनुभवों का आनन्द लिया था, और वह उसकी आत्मा की बहुतायत से आशीषित था; शाऊल के इतिहास में उसने निरी मानवीय बुद्धिमत्ताकी महत्वहीनता को देखाथा। फिर भी सांसारिक सफलता और सम्मान ने दाऊद के चरित्र को इतना दुर्बल कर दिया था कि वह बार-बार प्रलोभनकर्ता के वशीभूत हो जाता था।PPHin 783.2

    मूर्तिपूजकों के साथ मेल-जोल ने उन्हें जातीय रीति रिवाजों का अनुसरण करने को इच्छित किया और सांसारिक ख्याति की महत्वाकांक्षा को सुलगाया। यहोवा कीप्रजा के तौर पर इज़राइल का सम्मान किया जाना था, लेकिन जब अभिमान और आत्म-निर्भरता में वृद्धि हुई, इज़राइल पहले से प्राप्त प्रतिष्ठा से सन्तुष्ट नहीं थे। उन्हें अन्य जातियों में अपनी प्रतिष्ठा की अधिक चिन्ता थी। यह भावना नि:सन्देह ही प्रलोभन को आमन्त्रित करती थी। पराए देशों से अपने राज्य का विस्तार करने की दृष्टि से दाऊद ने उपयुक्त आयु वाले सभी पुरूषों के लिये सैन्य सेवा अनिवार्य कर अपनी सेना में वृद्धि करने का दृढ संकल्प किया। इसे लागू करने के लिये जनगणना करना आवश्यक हो गया। राजा की ओर से यह कार्यवाही अभिमान और महत्वाकांक्षा से प्रेरित थी। लोगो का संख्याकन दाऊद के सिंहासन ग्रहण करने के समय में राज्य की दुर्बलता और उसके शासन काल में उसकी शक्ति और समृद्धि के बीच अन्तर को दर्शाता। इससे राजा और प्रजा दोनो का आत्म-विश्वास, जो पहले से ही बहुत था, और बढ़ जाता। पवित्र शास्त्र में लिखा है, “शैतान ने इज़राइल के विरूद्ध उठकर दाऊद को उकसाया कि इज़राइल की गिनती ले।” दाऊद के समय में इज़राइल की समृद्धि, उसकी सेना की शक्ति या राजा की योग्यता के कारण नहीं, वरन्‌ परमेश्वर की आशीष के कारण थी। लेकिन राज्य के सैन्य साधनों में वृद्धि से पड़ोसी राज्यों पर यह प्रकट होता कि इज़राइल का विश्वास उसकी सेनाओं में था ना कि यहोवा की समार्थ्य में।PPHin 783.3

    हालाँकि इज़राइल के लोग अपनी जातीय श्रेष्ठता पर गर्व करते थे, लेकिन सैन्य सेवा के विस्तार के लिये दाऊद की योजना से वे प्रसन्‍न नहीं थे। प्रस्तावित नामांकन के कारण बहुत असन्तोष फैला, इस कारण से याजकों और न्यायियों के स्थान पर, जिन्होंने पहले जनगणना की थी, सेना के अधिकारियों को नियुक्त करना आवश्यक समझा गया। इस विशेष कार्य का लक्ष्य धर्मतन्त्र के सिद्धान्तों के प्रत्यक्ष रूप से विपरीत था। इससे पहले योआब ने स्वयं को अनैतिक प्रमाणित किया था लेकिन उसने भी आपत्ति जताई। उसने कहा, “यहोवा की प्रजा कितनी ही क्‍यों न हो, वह उसको सौ गुना बढ़ दे, परन्तु हे मेरे प्रभु हे राजा! क्या वे सब राजा के अधीन नहीं हैं? मेरा प्रभु ऐसी बात क्‍यों चाहता है? वह इज़राइल पर दोष लगने का कारण क्‍यों बने? फिर भी राजा की आज्ञा योआब पर प्रबल हुई। तब योआब विदा होकर सारे इज़राइल में घूमकर यरूशलेम को लौट आया।” जब दाऊद के पाप को धिक्‍कारा गया, संख्याकन समाप्त नहीं हुआ था। स्वयं को दोषी स्वीकार कर, “दाऊद ने परमेश्वर से कहा, यह काम जो मैंने किया है, वह महापाप है। परन्तु अब अपने दास का अधर्म दूर कर, मुझ से तो बड़ी मुर्खता हुई है।” अगले दिन प्रातः:काल दाऊद को भविष्यवक्ता गाद द्वारा यह सन्देश मिला, “यहोवा यों कहता है कि चुन ले या तो तीन वर्ष का अकाल पड़े या तीन महीने तक तेरे विरोधी तुझे नष्ट करते रहे, और तेरे शत्रुओं की तलवार तुझ पर चलती रहे या तीन दिन तक यहोवा की तलवार चले, अर्थात मरी देश में फैले और यहोवा का दूत इज़राइली देश में चारों ओर विनाश करता रहे। अब सोच कि मैं अपने भेजने वाले को क्या उत्तर दूँ?PPHin 784.1

    राजा ने उत्तर दिया “मैं बड़े संकट में पड़ा हूँ. में यहोवा के हाथ में पड़ूँ क्योंकि उसकी दया महान है, परन्तु मनुष्य के हाथ में मुझे पड़ना न पड़े।”PPHin 785.1

    देश में मरी फैल गईं, और इज़राइल में सत्तर हजार पुरूष मर मिटे। अभी इसमहान कष्ट ने राजधानी में प्रवेश नहीं किया था कि “दाऊद ने आँखे उठाकर देखा कि यहोवा का दूत हाथ में खींची हुई और यरूशलेम की ओर बढ़ाई हुई एक तलवार लिये हुए आकाश के बीच खड़ा है, तब दाऊद और पुरनिये टाट पहने हुए मुहँ के बल गिर पड़े थे।” राजा ने इज़राइल के पक्ष में परमेश्वर से विनती की, “जिसने प्रजा को गणना करने को कहा क्या वह मैं नहीं? हाँ, जिसने पाप किया और बहुत बुराई की है, वह तो मैं ही हूँ। परन्तु इन भेड़-बकरियों ने क्या किया है? इसलिये हे मेरे परमेश्वर यहोवा! तेरा हाथ मेरे पिता के घराने के विरूद्ध हो, परन्तु तेरी प्रजा के विरूद्ध न हो, कि वे मारे जाए।’PPHin 785.2

    जनगणना के किये जाने से लोगों में मनमुटाव उत्पन्न हो गया। फिर भी उन्होंने स्वयं उन्हीं पापों को संजोया था जिन्होंने दाऊद के द्वारा की गई कार्यवाही को प्रेरित किया था। अबशालोम के पाप के माध्यम से परमेश्वर ने दाऊद को दण्डाज्ञा दी, और इसी प्रकार दाऊद की गलती के माध्यम से उसने इज़राइल के पापों को दण्डित किया।PPHin 785.3

    विनाशक दूत ने अपनी कार्यवाही यरूशलेम के बाहर ही स्थगित कर दी थी। उस समय यहोवा का दूत यबूसी ओर्नान के खलिहान के पास खड़ा था। भविष्यवक्ता के निर्देशानुसार, दाऊद पहाड़ पर गया और वहाँ उसने परमेश्वर के लिये वेदी बनाई “और होमबलि और मेलबलि चढ़ाकर यहोवा से प्रार्थना की, और उसने होमबलि की वेदी पर स्वर्ग से आग गिराकर उसकी सुन ली।” “और यहोवा ने देश के निमित्त विनती सुन ली, तब वह महामारी इज़राइल पर से दूर हो गई।” PPHin 785.4

    जिस स्थान पर वेदी खड़ी की गई, इस समय से हमेशा पवित्र भूमि माना जाना था, ओननीन द्वारा राजा को उपहार के रूप में दिया गया। लेकिन राजा ने उसे इस प्रकार लेना स्वीकार नहीं किया। उसने कहा, “में अवश्य इसका दाम ही देकर इसे मोल लूँगा, जो तेरा है, उसे मैं यहोवा के लिये नहीं लूँगा, और न बिना मोल के होमबली चढ़ाऊंगा। तब दाऊद ने उस स्थान के लिये ओरनान के छः: सौ शेकल सोना तोल दिया।” यह स्थान जहाँ अब्राहम ने अपने पुत्र की बलि चढ़ाने के लिये वेदी बनाई थी, अभी भी स्मरण किया जाता था, और अब यह इस महान छुटकारे के कारण पवित्र ठहराया गया, और आने वाले समय में यह सुलेमान द्वारा निर्माण किए गए मन्दिर का स्थान था।PPHin 786.1

    दाऊद के अन्तिम वर्षो में एक विपत्ति और आनी थी। वह सत्तर वर्ष का हो गया था। उसके प्रारम्भिक घुमक्कड जीवन की कठिनाईयाँ, उसके द्वारा लड़ी गई गईं लड़ाईयाँ, बढ़ती आयु की चिन्ताएँ और कष्ट इन सब ने उसे दुर्बल कर दिया था। हालाँकि उसकाविवेक अभी स्पष्ट और दृढ़ था, बढ़ती आयु और निर्बलता के कारण उसकी अलगाव की इच्छा ने राज्य से घटित होने वाली चीजों का शीघ्र बोध नहीं होने दिया और उसके सिंहासन की छत्रछाया में ही उपद्रव उत्पन्न हो गए। फिर से दाऊद के पिता के तौर पर दयालुतापूर्ण व्यवहार का परिणाम प्रकट हुआ। अदोनिय्याह, जो अब सिंहासन के लिये आकाक्षा कर रहा था, व्यक्तित्व और आचरण में ‘मिला मनुष्य” था, लेकिन वह सिद्धान्तहीन और उतावला था। उसकी किशोरवावस्था में उस पर बहुत कम नियन्त्रण रखा गया था, क्योंकि, “उसके पिता ने जन्म से लेकर कभी भी यह कहकर उदास नहीं किया था, तूने ऐसा क्‍यों किया?” अब उसने परमेश्वर की सत्ता के विरूद्ध उपद्रवः किया, जिसने सुलेमान को सिंहासन के लिये नियुक्त किया था।PPHin 786.2

    स्वाभाविक प्रतिभा और धार्मिक विशेषता को देखते हुए सुलेमान, इज़राइल का शासक बनने के लिये अपने भाई से अधिक योग्य था, और यद्यपि परमेश्वर के चुनाव का स्पष्ट संकेत दे दिया गया था, फिर भी अदोनिय्याह के कई समर्थक थे। योआब, हालाँकि बहुत से अपराधों का दोषी था, इससे पहले सिंहासन के प्रति ईमान रहा था, लेकिन अब वह सुलेमान के विरूद्ध षड़यन्त्र में सम्मिलित हो गया, और ऐसा ही याजक एब्यातार ने भी किया।PPHin 786.3

    विद्रोह की तैयारी पूरी हो चुकी थी। नगर के विल्कुल बाहर षड़यन्यकारी अदोनिय्याह को राजा घोषित करने के लिये एक भोज पर एकत्रित हुए थे जब उनकी युक्तियों को कुछ विश्वसनीय व्यक्तियों की तात्कालिक कार्यवाही द्वारा विफल कर दिया गया, इन व्यक्तियों में प्रमुख थे याजक सादोक, भविष्यवक्ता नातान और सुलेमान की मां बतशेबा। उन्होंने राजा को राज्य में हो रही घटनाओं का वर्णन किया और उसे स्मरण कराया कि पवित्र निर्देश के अनुसार सुलेमान को सिंहासन का उत्तराधिकारी होना था। दाऊद ने तुरन्त सुलेमान के पक्ष में स्वेच्छा से सिंहासन छोड़ दिया। षड़यन्त्र को कृचल दिया गया। उसके प्रमुख कर्ताओं को मृत्यु दण्ड दिया गया। एब्यातार की दाऊद के प्रति पूर्व स्वामिभक्ति और कार्यभार का मान रखते हुए उसका प्राण नहीं लिया गया, लेकिन उसे महायाजक के पद से नीचे उतार दिया गया, और यह पद सादोक के वंश को दे दिया गया, और अदोनिय्याह को उस समय के लिये छोड़ दिया गया, लेकिन दाऊद की मृत्यु के बाद उन्हें अपने अपराध के लिये दण्ड दिया गया। दाऊद के पुत्र पर दण्डाज्ञा के कियान्वन ने, पिता के पाप के प्रति परमेश्वर की घृणा की साक्षी देने वाले चौगुना दण्ड को सम्पन्न किया। PPHin 786.4

    दाऊद के शासन काल के प्रारम्भ से ही, परमेश्वर के मन्दिर का निर्माण करना उसका उसकी सबसे वांछनीय योजना थी। हालाँकि उसे अपनी योजना को क्रियान्वित कराने की अनुमति नहीं थी, उसने फिर भी उसके पक्ष में कम उत्साह और गम्भीरता नहीं दर्शाई। उसने बहुतायत से बहुमूल्य सामग्री प्रदान की थी- सोना, चांदी, गोमेद, पत्थर, विभिन्‍न रंगो के पत्थर, संगमरमर और सबसे बहुमूल्य लकड़ी। और अब वह मूल्यवान खजाना, जो उसने इकट्‌ठा किया था, दूसरों के सुपुर्द किया जाना था, क्योंकि परमेश्वर की उपस्थिति के प्रतीक, वाचा के सन्दूक के लिये किसी और को भवन तैयार करना था।PPHin 787.1

    जब दाऊद ने देखा कि उसका समय निकट था उसने इज़राइल के प्रधानों को बुलाया और राज्य के सब भागों से प्रतिनिधियों को भी बुलाया ताकि वे न्यास में इस धरोहर को ग्रहण कर सके। उसकी इच्छा थी कि वह अपनी मृत्यु पूर्व उन्हे यह दायित्व सौंपे और इस महान कार्य को सम्पन्न कराने में उनका समर्थन और सहमति को प्राप्त करे। अपनी शारीरिक दुर्बलता के कारण यह अपेक्षा नहीं की गईं थी कि वह व्यक्ति रूप में इस अतरंग के लिये उपस्थित होगा, लेकिन परमेश्वर की प्रेरणा उस पर उतरी, और अपने स्वाभाविक सामर्थ्य और उत्साह से बढ़कर उत्साह के साथ वह अन्तिम बार अपनी प्रजा को सम्बोधित कर सका। उसने मन्दिर बनाने की अपनी स्वयं की अभिलाषा और परमेश्वर की आज्ञा कि इस कार्य को उसके पुत्र सुलेमान को सौंप दिया जाए, के बारे में भी बताया। ईश्वरीय आश्वासन यह था, “तेरा पुत्र सुलेमान ही मेरे भवन और ऑगनो को बनाएगा, क्‍योंकि मैंने उसको चुन लिया है कि मेरा पुत्र ठहरे, और मैं उसका पिता ठहरूँगा। यदि वह मेरी आज्ञाओं और नियमों को मानने में आजके दिन के समान दृढ़ रहे, तो मैं उसका राज्य सदा स्थिर रखूंगा।” दाऊद ने कहा, “इसलिये अब इज़राइल अर्थात परमेश्वर की प्रजा की दृष्टि में और परमेश्वर के सामने अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को मानो और उन पर ध्यान करते रहो ताकि तुम इस अच्छे देश के अधिकारी बने रहो, और इसे अपने बाद अपने वंश का सदा का भाग होने के लिये छोड़ जाओ। PPHin 787.2

    दाऊद ने अपने निजी अनुभव से जाना था कि जो परमेश्वर को छोड़ देता है उसका मार्ग कितना कठिन हो जाता है। उसने व्यवस्था भंग करने की दण्डाज्ञा को महसूस किया था और आज्ञा उल्लंघन के प्रतिफल को भुगता था। उसकी सम्पूर्ण आत्मा इस बात के लिये सचेत थे कि इज़राइल के अगुवे परमेश्वर के प्रति ईमानदार हो, और यह कि सुलेमान परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करे और उन पापों से दूर रहे, जिनके कारण उसके पिता की सत्ता कमजोर हो गई, उसका जीवन कष्टपूर्ण हो गया और परमेश्वर का निरादर हुआ। दाऊद जानता था कि सुलेमान के उच्च पद पर रहते हुए उस पर आने वाले प्रलोभनों का सामना करने के लिये हृदय की दीनता, परमेश्वर में स्थायी विश्वास और सदैव की जागरूकता की आवश्यकता थी क्‍योंकि ऐसे विशिष्ट मनुष्य, शैतान के तीरों के निशाने पर होते है। अपने पुत्र की ओर मुड़ते हुए, जिसे सिंहासन का उत्तराधिकारी मान लिया गया था, दाऊद ने कहा, “हे मेरे पुत्र सुलेमान! तू अपने पिता के परमेश्वर का ज्ञान रख, और खरे मन और प्रसन्न जीव से उसकी सेवा करता रह, क्योंकि यहोवा मन को जाँचता है और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है। यदि तू उसकी खोज में रहे तो वह तुझ को मिलेगा, परतु यदि तू उसको त्याग दे तो वह सदा के लिये तुझ को छोड़ देगा। अब चौकस रह, यहोवा ने तुझे एक ऐसा भवन बनाने क लिये चुन लिया है, जो पवित्र स्थान ठहरेगा, हियाव बॉधकर इस काम में लग जा।PPHin 788.1

    दाऊद ने सुलेमान को पवित्र प्ररेणा के द्वारा प्रकट किये गए काम में आने वाले सभी उपकरण, प्रत्येक भाग के नमूने के साथ, मन्दिर निर्माण के लिये विस्तारपूर्वक निर्देश दिये। सुलेमान अभी नौजवान ही था और परमेश्वर की प्रजा के शासन में और मन्दिर निर्माण में उस पर आने वाले भारी उत्तरदायित्व से पीछे हटा। दाऊद ने अपने पुत्र से कहा, “हियाव बाँध और दृढ़ होकर इस कार्य में लग जा। मत डर, और तेरा मन कच्चा न हो क्योंकि यहोवा परमेश्वर जो मेरा परमेश्वर है, वह तेरे संग है, तुझे निराश नहीं करेगा और न तुझे त्यागेगा।’PPHin 788.2

    दाऊद ने फिर से मण्डली से विनती की, “मेरा पुत्र सुलेमान सुकमार लड़का है, और केवल उसी को परमेश्वर ने चुना है, काम तो भारी है, क्योंकि यह भवन मनुष्य के लिये नहीं, यहोवा परमेश्वर के लिये बनेगा। मैने तो अपनी पूरी ताकत के साथ मेरे परमेश्वर के भवन के लिये तैयारी की है”, और फिर उसने उन सभी वस्तुओं को गिनाया जो उसने एकत्रित की थी। और तो और उसने कहा, “मेरा मन अपने परमेश्वर के भवन में लगा है, इस कारण जो कुछ मैंने पवित्र भवन के लियेएकत्रित किया है,उससबसे अधिकर्मे अपनानिज धन भी जो सोना, चाँदी के रूप में मेरे पास है, अपने परमेश्वर के भवनके लिये देता हूँ ; अर्थात तीन हजार किक्‍्कार (लगभग 110 टन) ओपीर का सोना, और सात हजार किक्कार (लगभग 260टन) तायी हुई चाँदी, जिससे कक्षों की दीवारें गढ़ी जाएँ ।’ “अब कौन अपनी इच्छा से यहोवा के लिये अपने को अर्पित कर देता है?” उसने एकत्रित जन समूह से पूछा जो अपने उदार उपहार ले कर आए थे।PPHin 789.1

    मण्डली से एक तत्पर उत्तर मिला, “तब पितरों के घरानो के प्रधानों और इज़राइल के गोत्रों के हाकिमों, ओर सहस्रपतियों और शतपतियों, और राजा के काम के अधिकारियों ने स्वेच्छा से परमेश्वर के भवन के काम के लिये पाच हजार किक्कार (लगभग 490 टन) और दस हजार दकनोन (लगभग 84 किलो) सोना, दस हजार किक्कार (लगभग 375 टन) चांदी, अठारह हजार किक्कार (लगभग 375 टन) पीतल और एक लाख किक्कार (लगभग 3750 टन) लोहा दिया । जिनके पास मणि थे, उन्होंने उन्हें यहोवा के भवन के खजाने के लिये गेशोनी यहीऐल के हाथ में दे दिया ।.......तब प्रजा के लोग आनन्दित हुए, क्योंकि हाकिमों ने प्रसन्‍न होकर खरे मन और अपनी इच्छा से यहोवा के लिये भेंट दी थी और दाऊद राजा बहुत ही आनन्दित हुआ।” PPHin 789.2

    “तब दाऊद ने सारी सभा के सम्मुख यहोवा का धन्यवाद किया और दाऊद ने कहा, हे यहोवा! हे हमारे मूल पुरूष इज़राइल के परमेश्वर! अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू धन्य है! है यहोवा! महिमा, पराकम, शोभा, सामर्थ्य और वैभव, तेरा ही है, क्योंकि आकाश और पृथ्वी में जो कुछ है, वह तेरा ही है, हे यहोवा! राज्य तेरा है, और तू सभी के ऊपर मुख्य और महान ठहरा है। धन और महिमा तेरी ओर से मिलते हैं, और तू सभी के ऊपर प्रभुता करता है। सामर्थ्य और पराकम तेरे ही हाथ में है, और सब लोगों को बढ़ाना और बल देना तेरे हाथ में है। इसलिये अब हे हमारे परमेश्वर! हम तेरा धन्यवाद करते हैं, और तेरे महिमायुक्त नाम की स्तुति करते हैं। मैं क्‍या हूँ? मेरी प्रजा क्या है कि हम को इस रीति से अपनी इच्छा से तुझे भेंट दे कि शक्ति मिले? तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है। तेरी दृष्टि में हम तो अपने सब पुरखाओं के समान पराए और परदेशी है, पृथ्वी पर हमारे दिन छाया के सामन बीत जाते हैं, और हमारा कुछ ठिकाना नहीं। हे हमारे परमेश्वर यहोवा! वह जो बड़ा संचय हम ने तेरे पवित्र नाम का एक भवन बनाने के लिये किया है, वह तेरे ही हाथ से हमें मिला था, और सब तेरा ही है। हे मेरे परमेश्वर! मैं जानता हूँ कि तू मन को जाँचता है और शुचिता से प्रसन्‍न रहता है।PPHin 789.3

    “मैंने तो यह सब कुछ मन की शुचिता और अपनी इच्छा से दिया है, और अब मैंने आनन्द से देखा है कि तेरी प्रजा के लोग जो यहाँ उपस्थित हैं, वे अपनी इच्छा से तेरे लिये भेंट देते है। हे यहोवा! हे हमारे पुरखाओं अब्राहम, इसहाक और इज़राइल के परमेश्वर, अपनी प्रजा के मन के विचारों में यह बात बनाए रख और उनके मन अपनी ओर लगाए रख: मेरे पुत्र सुलेमान का मन ऐसा खरा कर दे कि वह तेरी आज्ञाओं, चेतावनियों और विधियों को मानता रहे और यह सब कुछ करे, और उस भवन को बनाए, जिसकी तैयारी मैंने की है। तब दाऊद ने सारी सभा से कहा, तुम अपने परमेश्वर यहोवा का धन्यवाद करो। तब सभा के सब लोगों ने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा का धन्यवाद किया, और अपना सिर झुकाकर यहोवा को और राजा को दण्डवत किया।” PPHin 790.1

    बड़ी लगन से दाऊद ने मन्दिर के निर्माण और सौन्दर्यकरण के लिये बहुमूल्य वस्तुओं का संचय किया। उसने आनन्द और प्रशंसा के भजनों की रचना की जो आने वाले वर्षो में भवन के प्रॉगणों में गूंजने थे। और अब परमेश्वर में उसका हृदय प्रसन्न हुआ क्‍योंकि पितरों के प्रधानों और इज़राइल के हाकिमों ने उसके निवेदन का इतनी शिष्टता से उत्तर दिया, और स्वयं को उस महत्वपूर्ण कार्य के लिये समर्पित कियाजो उनके सामने था। और जैसे-जैसे उन्होंने अपनी सेवाएँ दी, वे और अधिक कार्य करने की इच्छा करने लगे। अपने निजी धन-सम्पत्ति को शाही खजाने में देकर उन्होंने भेंट में बहुत वृद्धि की। परमेश्वर के भवन के लिये सामग्री जुटाने में दाऊद ने स्वयं की अयोग्यता को गहराई से महसूस किया था, और उसके राज्य के अधिकारियों के तत्पर उत्तर में उनकी स्वामिभक्ति की अभिव्यक्ति ने दाऊद को प्रसन्‍नता से भर दिया, जब उन्होंने स्वेच्छा से अपनी निधि यहोवा के लिये अर्पण की और स्वयं को उसकी सेवा के लिये समर्पित किया। लेकिन वह परमेश्वर ही था जिसने लोगों को यह प्रवृति प्रदान की। मनुष्य को नहीं, वरन्‌ ईश्वर को महिमा पहुँचनी चाहिये। उसी ने लोगों को पृथ्वी का बाहुलय प्रदान किया था और उसकी पवित्र आत्मा ने उन्हें स्वेच्छा से मन्दिर के लिये अनमोल वस्तुएँ लाने के लिये सहमत किया था। सब कुछ परमेश्वर का था, यदि परमेश्वर का प्रेम लोगों के हृदयों को प्रभावित नहीं करता, तो राजा के प्रयत्न व्यर्थ होते, और मन्दिर का निर्माण कभी नहीं हो पाता। PPHin 790.2

    मनुष्य जो भी परमेश्वर की बहुतायत में से प्राप्त करता है, वह परमेश्वर का ही है। पृथ्वी की सुन्दर और मूल्यवान वस्तुएँ मनुष्य के हाथ में उसकी परीक्षा लेने के लिये रखी गई है, ताकि वह उसकी कृपा की सराहना और उसके प्रेम की गहराई को सुन सके। चाहे वह धन का खजाना हो या ज्ञान और बुद्धि का, दोनो को परमेश्वर के कदमों में एच्छिक भेंट के तौर पर रखना है, और देने वाले को दाऊद के साथ कहना है, “तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है।PPHin 791.1

    जब उसे लगा कि मृत्यु निकट है, दाऊद के हृदय पर जो बोझ था वह अभी भी सुलेमान और इज़राइल के राज्य के लिये था, जिसकी समृद्धि व्यापक रूप से राजा की कर्तव्यपरायणता पर निर्भर थी। और उसने सुलेमान को आज्ञा दी और कहा, “मैं संसार की रीति से कच करने वाला हूँ इसलिये तू हियाव बाँधकर पुरूषार्थ दिखा। और जो कुछ तेरे परमेश्वर ने तुझे सौंपा है, उसकी रक्षा करके उसके भागों पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसा ही उसकी विधियों और आज्ञाओं और नियमों और चेतावनियों का पालन करते रहना, सिसे जो कुछ तू करे और जहां कही तू जाए, उसने तू सफल हो, और यहोवा अपना वह वचन पूरा करे जो उसने मेरे विषय में कहा था, “यदि तेरी सन्‍तान अपनी चाल के विषय में ऐसे सावधान रहे कि अपने सम्पूर्ण हृदय और सम्पूर्ण प्राण से सच्चाई के साथ नित मेरे सम्मुख चलते रहे तब तो इज़राइल की राजगद्दी पर विराजने वाले की, तेरे कल में घटी कभी न होगी ।”-2 राजा 2:1-4। PPHin 791.2

    दाऊद के “अन्तिम वचन',, जैसा कि उल्लिखित है, एक गीत है-विश्वास का गीत, ऊंचे सिद्धान्त का गीत और अनश्वर विश्वास का गीत:- PPHin 792.1

    “यिशै के पुत्र की यह वाणी है, इस पुरूष की
    यह वाणी है जो ऊंचे पर खड़ा किया गया,
    और याकब के परमेश्वर का अभिषिक्त,
    और इज़राइल का मधुर भजन गाने वाला है:
    यहोवा का आत्मा मुझमें होकर बोला......
    कि मनुष्यों में प्रभुता करने वाला एक धर्मी होगा,
    जो परमेश्वर का भय मानता हुआ प्रभुता करेगा,
    वह मानो भोर का प्रकाश होगा, जब सूर्य निकलता है,
    ऐसा भोर जिसमें बादल न हो
    जैसा वर्षा के बाद निर्मल प्रकाश के कारण
    भूमि से हरी-हरी घास उगती है।
    क्या मेरा घराना ईश्वर की दृष्टि में ऐसा नहीं है?
    उसने तो मेरे साथ सदा की एक ऐसी वाचा बाँधी है,
    जो सब बातों में ठीक की हुई और अटल भी है।
    क्योंकि चाहे वह उसको प्रकट न करे
    तो भी मेरा पूर्ण उद्धार और पूर्ण अभिलाषा का विषय वही है ।”
    PPHin 792.2

    -2 शमूएल 23:1-5।

    दाऊद का महापतन हुआ था, लेकिन उसके द्वारा किया गया प्रायश्चित हार्दिक था, उसका प्रेम उत्साहपूर्ण था और उसका विश्वास दृढ़ था। उसके पाप, जो बहुत थे, क्षमा हुए, इसलिये उसने बहुत प्रेम किया-लूका 7:47।PPHin 792.3

    दाऊद के भजन सचेतन अपराधबोध की गहराईयों और आत्म-तिरस्कार से लेकर उच्चतम विश्वास और परमेश्वर के साथ उत्कृष्ट संपर्क तक के अनुभव की सम्पूर्ण श्रंखला से होकर निकलते है। उसके जीवन का इतिहास यही बताता है कि पाप केवल दुःख और अपमान लेकर आता है, लेकिन परमेश्वर का प्रेम और उसकी करूणा अगाघ गहराईयों तक पहुँच सकते है, और यह कि विश्वास प्रायश्चित करने वाले प्राणियों को ऊपर उठाता है ताकि वे परमेश्वर के पुत्र ठहराए जा सकें। परमेश्वर के वचन में दिए गए आश्वासनों में यह विश्वसनीयता, न्यायपरायण्ता, और परमेश्वर की अनुबंधित करूणा की सबसे प्रबल साक्षी है।PPHin 792.4

    मनुष्य “छाया की रीति पर ढल जाता है, और कहीं ठहरता नही”, “परन्तुपरमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा।” “परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयों पर युग-युग और उसका धर्म उनके नाती-पोतों पर भी प्रकट होता रहता है; अर्थात उन पर जो उसकी वाचा का पालन करते और उसके उपदेशों को स्मरण कर उन पर चलते है।”(अय्यूब 14:2, यशायाह 40:8, भजन संहिता 103:17,18)।PPHin 793.1

    “जो कुछ परमेश्वर करता है वह सदा स्थिर रहेगा” ”- सभोपदेशक 3:14 । दाऊद और उसके घराने से की गई प्रतिज्ञाएँ महान है, प्रतिज्ञाएँ जो सनातन युगों की बाट जोहती है, और मसीह में परिपूर्ण होती है। प्रभु ने घोषणा कीःPPHin 793.2

    “मैने अपने दास दाऊद से शपथ खाई है.......मेरा हाथ उसके साथ बना रहेगा, मेरी भुजा उसे दृढ़ रखेगी.....मेरी करूणा और सच्चाई उस पर बनी रहेगी, और मेरे नाम के द्वारावह शक्तिशाली होगा। मैं समुद्र में उसके हाथ के नीचे और महानदों को उसके दाहिने हाथ के नीचे कर दूँगा। वह मुझे पुकारकर कहेगा, ‘तू मेरा पिता है, मेरा परमेश्वर और मेरे उद्धार की चटटान है। फिर में उसको अपना पहलौठा और पृथ्वी के राजाओं पर प्रधान ठहराऊंगा। मैं अपनी करूणा उस पर सदा बनाए रहूँगा, और मेरी वाचा उसके लिये अटल रहेगी।”भजन संहिता 8:3-28।PPHin 793.3

    “मैं उसके वंश को सदा बनाए रखूँगा
    और उसकी राजगद्दी स्वर्ग के समान सर्वदा बनी रहेगी ।”
    PPHin 793.4

    -भजन संहिता 8:29।

    “वह प्रजा के दीन लोगों का न्याय करेगा,
    और दरिद्रलोगों को बचाएगा,
    और अन्धेरा करने वालों को चूर करेगा ।
    जब तक सूर्य और चन्द्रमा बने रहेंगे ।
    तब तक लोग पीढ़ी-पीढ़ी तेरा भय मानते रहेंगे।
    उसके दिनों में धर्मी फूले-फलेंगे,
    और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा,
    तब तक शान्तिबहुत रहेगी ।
    वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा ।
    उसका नाम सदा सर्वदा बना रहेगा,
    जब तक सूर्य बना रहेगा,
    तब तक उसका नाम नित्य होता रहेगा
    उसके लोग अपने को उसके कारण धन्य गिनेंगे,
    सारी जातियाँ उसको धन्य कहेंगी।
    PPHin 793.5

    - भजन संहिता 72:4-- 3,17।

    “क्योंकि हमारेलिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है, और प्रभुता उसके काँधे पर होगी, और उसका नाम अदभुत युक्ति करने वाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजक्‌मार रखा जाएगा।” “वह महान होगा और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा, और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा, और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा, और उसके राज्य का अन्त न होगा।” यशायाह 9:6, लूका 1:32,33। PPHin 794.1

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