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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 10—बाबुल का टावर(मीनार)

    हाल ही में जलप्रलय द्वारा नैतिक भ्रष्टता से रिक्त की गई निर्जन पृथ्वी को जनपूर्ण करने के लिये परमेश्वर ने नूह के घराने, केवल एक परिवार को संरक्षित किया था और उसने नूह के लिये घोषणा की थी, “मैंने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि में ध्मी पाया है” लेकिन नूह के तीन पुत्रों में जल्द ही वह विशेषताएं उत्पन्न हो गई जो जलप्रलय पूर्व के जगत में थी।। मानव वंश के होने वाले निर्माता शेम, हाम और येपेत में उनकी भावी पीढ़ी के चरित्र का पूर्वाभास था।PPHin 110.1

    ईश्वरीय प्रेरणा से प्रभावित होकर बोलते हुए नूह ने मानवता के इन पिताओं से उत्पन्न होने वाली तीन महान पीढ़ियों के इतिहास कीभविष्यद्वाणी की । पिता के बजाय पुत्र के माध्यम से, हाम के वंशजों का पता लगाकर उसने घोषणा की, “कनान शापित हो वह अपने भाई बन्धुओं के दासों का दास हो ।” हाम के अस्वभाविक अपराध द्वारा प्रकट हुआ कि उसकी आत्मा ने संतानोचित श्रद्धा का बहुत पहले त्याग कर दिया था और यह उसके चरित्र की अपवित्रता और दुष्टता को दिखाता है। यह दुष्टतापूर्ण विशेषताएं कनान और उसके वंशजों में चिरआयु हो गई और उनके निरन्तर अपराध बोध ने उन्हें परमेश्वर के न्याय का पात्र बना दिया ।PPHin 110.2

    दूसरी ओर, पिता के लिये शेम और येपेत की श्रद्धा, जो ईश्वरीय व्यवस्था के प्रति श्रद्धा थी, के परिणाम स्परूप उनके वंशजो को सुनहरे भविष्य का आश्वासन मिला। इन पुत्रों के सन्दर्भ में कहा गया, “शेम का परमेश्वर यहोवा धन्य है ओर कनान शेम का दास हो। परमेश्वर येपेतक वंश को फैलाए और वह शेम के तम्बुओं में बसे और कनान उसका दास हो।” शेम का वंश चुने हुए लोगों का परमेश्वर की वाचा का, प्रतिश्रुत उद्धारकर्ता का वंश होना था। शेम का परमेश्वर यहोवा था। उसके द्वारा अब्राहीम और इज़राइल के लोगों को आना था, जिनके द्वारा मसीह का आना लिखित था। भजन संहिता 144:15में लिखा है “जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्‍या ही धन्य है”। और येपेत, “शेम के तम्बुओं में बसे ।” येपेत के वंशजो के लिये विशेष रूप से सुसमाचार की आशीष का प्रावधान था।PPHin 110.3

    कनान के वंशज मूर्तिपूजा के अत्यन्त अपमानजनक रूप में डूब गए। हालांकि पूर्वकथित शाप के अनुसार उन्हें दासत्व में जाना था, लेकिन सदियों तक उस शाप को रोका गया था। परमेश्वर ने उनके अधर्म और भ्रष्टाचार को उस समय तक सहन किया जब तक कि उन्होंने ईश्वरीय सहनशीलता की सीमाओं को पार न कर दिया। उसके बाद उन्हें बेदखल कर दिया गया और वे शेम और येपेत के वंशजो के दास बन गए।PPHin 111.1

    नूह की घोषणा क्रोध का कोई स्वेच्छाधारी आक्षेप नहीं था और ना ही समर्थन की घोषणा। उस घोषणा से उसके पुत्रों के चरित्र या नियति निर्धारित नहीं हुए। बल्कि उससे उनेक द्वारा विकसित चरित्र और उनके द्वारा अलग-अलग जीवन के मार्गों के चयन का आगामी परिणाम ज्ञात हुआ। यह घोषणा उनके अपने चरित्र और व्यवहार के सन्दर्भ में परमेश्वर का उनके और उनके वंशजो के लिये प्रयोजन की अभिव्यक्ति थी ।नियमानुसार, संतानों में उनके माता-पिता का स्वभाव और प्रवृति अंतर्निहित होती है और वे उनके उदाहरण का अनुसरण करते है। इसी तरह एक के बाद एक पीढ़ी के बच्चे अपने माता-पिता के पापों को दोहराते है। इस तरह हाम की दुष्टता और अनादर की भावना उसके वंशजो में पुनः उत्पन्न हुई और कई पीढ़ियों के लिये शाप का कारण बनी। सभोपदेशक 9:18में लिखा है, “एक पापी बहुत सी भलाई का नाश करता है।’PPHin 111.2

    दूसरी ओर, शेम को अपनीपितृभक्ति के लिये बहुतायत से पुरूस्कत किया गया और उसके वंशजो में धर्मी पुरूषों के कितने ही प्रतिष्ठित वंश है। भजन संहिता 37:48,26 में लिखा है, “यहोवा खरे लोगों की आयु की सुधि रखता है” “और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है।” “इसलिये जान रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा ही परमेश्वर है, यह विश्वासयोग्य ईश्वर है, जो उससे प्रेम रखते और उसकी आज्ञाएं मानते है, उनके साथ वह हजार पीढ़ी तक अपनी वाचा का पालन करता और उन पर करूणा करता रहता है ।व्यवस्थाविवरण 7:9PPHin 111.3

    कुछ समय तक नूह के वंशज पहाड़ी में, जहां जहाज आ कर रूका था, वास करते रहे। जैसे-जैसे उनकी संख्या में वृद्धि हुई, अधर्म के कारण उनमें विभाजन आ गया। जो लोग अपने सृष्टिकर्ता को भूल जाना चाहते थे और उसकी व्यवस्था के प्रतिबन्ध से स्वतन्त्र होना चाहते थे, उन्हें अपने परमेश्वर का भय मानने वाले साथियों के उदाहरण और शिक्षा से निरंतर चिड़चिड़ाहट होती थी, और कुछ समय पश्चात उन्होंने परमेश्वर के उपासकों से अलग होने का निर्णय लिया। योजनानुसार उन्होंने फरात नदी के तट पर शिनार के मैदान की ओर प्रवास किया।PPHin 111.4

    यहां उन्होंने एक नगर का निर्माण करने का निश्चय किया और उसमें संसार का अजूबा कहलाने योग्य विलक्षण ऊंचाई वाला टावर बनाने का विचार किया । ये कठिन कार्य लोगों को उपनगरों में तितर-बितर होने से रोकने के लिये नियोजित किए गए। परमेश्वर ने मनुष्य को सारी पृथ्वी पर फैल जाने का, उसकी पुनःपूर्ति का और उसको अपने अधीन करने का निर्देश दिया था, लेकिन इन बाबुल के निर्माताओं ने अपने समाज को एक निकाय में संगठित रखने का और राजवाद, जो अंततः समस्त प्रथ्वी को सम्मिलित कर लेता, की स्थापना करने का संकल्प किया। इस तरह उनका नगर एक सर्वव्यापी साम्राज्य का महानगर बन जाता, अपने गौरव के कारण वह संसार के सत्कार और प्रशस्ति का पात्र होता और उसके निर्माता प्रतिष्ठित माने जाते। वह गगनचुम्बी भव्य स्मारक के रूप में खड़ा होता, जिससे उनकी प्रसिद्धि नवीनतम पीढ़ियों में भी चिरायु हो जाती । PPHin 112.1

    शिनार के मैदान के वासी परमेश्वर की इस वाचा में विश्वास नहीं करते थे कि वह धरती पर दोबारा जलप्रलय नहीं आने देगा। उनमें से कई लोगो ने परमेश्वर के अस्तित्व को नकारा और प्राकृतिक कारणों को जलप्रलय के लिये उत्तरदायी ठहराया। अन्य किसी सर्वोच्च प्राणी में विश्वास करते थे और यह कि जल प्रलय पूर्व संसार को उसने विनाश किया और कैन के हृदय के समान उनके हृदय भी उसका विरोध करने लगे। टावर के निर्माण में उनका एक उद्देश्य यह भी था कि दूसरे जलप्रलय के आने पर वे अपनी सुरक्षा कर सकें [उन्होंने सोचा कि भवन को जलप्रलय के जल की पहुँच से अधिक ऊँचा बनाने से वे स्वंय को संकट की सम्भावना से परे रख सकते हैं। चूंकि वे बादलों के क्षेत्र में पहुँच पाते, उन्होंने जलप्रलय का कारण जान पाने की आशा की। यह सम्पूर्ण उपकम, टावर की युक्‍क्ति बनाने वालों के घमण्ड को और ऊंचा करने और आगामी पीढ़ियों के हृदय को परमेश्वर से दूर करने और उन्हें मूर्तिपूजा करने के लिये बाध्य करने को किया गया।PPHin 112.2

    जब टावर का निर्माण आंशिक रूप से सम्पन्न हुआ तो उसका एक भाग निर्माण करने वालों का निवास स्थान बना दिया गया, भव्य ढंग से सुसज्जित व सुशोभित किये गए अन्य कक्ष मूर्तियों के लिये समर्पित किये गए लोग अपनी सफलता पर प्रसन्‍न हुए और उन्होंने सोने-चांदी के देवी-देवताओं की प्रशंसा की और इस तरह स्वयं को धरती और आकाश के राजा के विरूद्ध किया। अचानक से इतनी समृद्धिपूर्वक प्रगति कर रहे काम पर रोक लगा दी गई। निर्माताओं के उद्देश्यों को शून्य पर लाने के लिये स्वर्गदूतों को भेजा गया। टावर अत्यन्त ऊँचाई पर पहुँच चुका था और शिखर पर चढ़े कार्यकर्ताओं का तल पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं के साथ प्रत्यक्ष संचार असम्भव था, इसलिये अलग-अलग स्थान पर पुरूषों को नियुक्त किया गया जिनका काम था, आवश्यक सामग्री की सूची या कार्य सम्बन्धी निर्देशों को ग्रहण कर अपने से निचले स्थान पर नियुक्त कार्यकर्ता को सूचित करे। जैसे ही यह सन्देश एक से दूसरे के पास पहुँचने लगा भाषा में गड़बड़ी उत्पन्न कर दी गईं, जिससे वह सामग्री मंगवाई जाती, जिसकी आवश्यकता न थी और जो निर्देश दिये जाने थे प्रायः उसके विपरीत होते ।अव्यवस्था और निराशा छा गईं। सम्पूर्ण कार्य में रूकावट आ गई। सामनन्‍्जस्य या सहयोग की संभावना खत्म हो गई। निर्माता उनके बीच अदभुत असम्मति का कारण जान पाने में असमर्थ हो गए और अपने क्रोध और निराशा में एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे। कलह और रकक्‍तपात में उनके संघ का अंत हो गया। परमेश्वर के क्रोध के प्रमाण के रूप में स्वर्ग से प्रवाहित बिजली ने टावर का ऊपरी हिस्सा अलग कर भूमि पर गिरा दिया। मनुष्य को यह आभास कराया गया कि एक परमेश्वर है जो स्वर्ग में राज्य करता है। PPHin 112.3

    इस समय तक सभी मनुष्य एक ही भाषा बोलते आए थे; अब जो एक दूसरे की बोली समझते थे, मण्डलियों में संगठित हुए, कोई इस रास्ते गया और कोई दूसरे रास्ते गया। “इस प्रकार यहोवा ने उनको वहां से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।” यह विसर्जन धरती को जनपूर्ण करने का साधन था, और इस तरह परमेश्वर का उद्देश्य उसी साधन से सम्पन्न हुआ जो मनुष्य ने उसके परिपूर्ण होने को रोकने के लिये प्रयोग किया था।PPHin 113.1

    लेकिन कितना नुकसान हुआ उन लोगों का जो परमेश्वर के विरूद्ध खड़े हुए! यह उसका उद्देश्य था कि जैसे-जैसे मनुष्य पृथ्वी के विभिन्‍न भागों में जाकर राज्यो की स्थापना करेंगे, वे अपने साथ उसकी इच्छा का ज्ञान भी ले जायेंगे और आगामी पीढ़ियों में सत्य का प्रकाश बिना कम हुए पहुँचेगा। धार्मिकता का निष्ठावान प्रचारक, नूह जलप्रलय के बाद तीन सौ पचास वर्षो तक जीवित रहा, शेम पांच सौ वर्षो तक, और इस प्रकार उनके वंशजों को परमेश्वर की अपेक्षाओं और परमेश्वर का उनके बाप-दादाओं के प्रति व्यवहार के इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। लेकिन वे इन अरूचिकर सत्यों को सुनने के लिये तैयार नहीं थे, उन्हें अपने ज्ञान में परमेश्वर को बनाए रखने में कोई इच्छा नहीं थी और भाषाओं की गड़बड़ी के कारण, बहुत हद तक वे उनसे बोल-चाल नहीं रख सकते थे जो उनको प्रकाश दे सकते थे। PPHin 113.2

    बाबुल के निर्माताओं ने परमेश्वर के प्रति बड़बड़ाने की भावना को बढ़ावा दिया। आदम के लिये परमेश्वर की दयालुता, नूह के साथ उसकी पवित्र वाचा को कृतज्ञतापूर्वक याद करने के बजाए उन्होंने पहले जोड़े को अदन की वाटिका से खदेड़ने और जलप्रलय द्वारा संसार को नष्ट करने में उसपर कठोरता का आरोप लगाया था। परमेश्वर को कठोर और स्वेच्छाकारी मानकर उसके विरूद्ध बड़बड़ाने में वे सबसे निष्ठुर तानाशाह के राज को स्वीकृति दे रहे थे। शैतान बलिदान की भेंटो को जो मसीह की मृत्यु का आदिरूप थी, निनदा का विषय बनाना चाहता था, और जैसे-जैसे मनुष्य का विवेक मूर्तिपूजा से अन्धकारमय होता गया, उसने उन्हें इन भेटों और बलिदानों के बजाय देवी देवताओं की वेदियों पर अपने बच्चों की बलि चढ़ाने को उकसाया। मनुष्य के परमेश्वर से दूर हो जाने पर न्याय, पवित्रता और प्रेम जैसे पवित्र गुणों का स्थान अत्याचार, हिंसा और करता ने ले लिया।PPHin 114.1

    बाबुल के लोगों ने ऐसी सरकार की स्थापना करने का निश्चय किया, जिसमें परमेश्वर का हस्तक्षेप न हो। उनमें से कुछ ऐसे थे जिनमें परमेश्वर का भय था लेकिन वे अधर्मियों के स्वांगों से ठगे गए थे और उनके षड़यंत्र में फंस गए थे। इन निष्ठावान लोगों की खातिर परमेश्वर ने अपना न्याय विलम्बित किया और लोगों कोअपना वास्तविक चरित्र दर्शाने का समय दिया। इसके विकसित होने पर परमेश्वर के पुत्रों ने उन्हें उनके उद्देश्य से विचलित करने का प्रयत्न किया, लेकिन लोग अपने स्वर्ग को चुनौती देने वाले उपकम में पूर्णतया संगठित थे। यदि वे बिना रूकावट चलते रहते, तो संसार अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही भ्रष्ट हो जाता। उनके संघ का आधार उपद्रव था, राज्य जिसकी स्थापना स्वयं को उच्चतर करने के लिये की गईं, लेकिन जिसमें परमेश्वर का कोई अधिकार या आदर नहीं होता। यदि इस संघ को अनुमति दे दी गई होती तो एक महान शक्ति योग्यता ने धार्मिकता और उसके साथ पृथ्वी पर से शान्ति, खुशहाली और सुरक्षा को निर्वासित कर दिया होता। ईश्वरीय व्यवस्था, जो “पवित्र, न्यायसंगत और अच्छी है,'के स्थान पर मनुष्य उन आज्ञाओं को लागू करने के लिये प्रयत्नशील थे जो उनके स्वार्थी और निर्दयी हृदय के उद्देश्यों के अनुकूल थी।PPHin 114.2

    परमेश्वर का भय मानने वालों ने उससे हस्तक्षेप करने की विनती की। “और परमेश्वर उस नगर और उस मीनार को, जिसे मनुष्य के पुत्रों ने बनाया था, नीचे उतर कर आया”,नगर और गुम्मट बनाने वालों के उद्देश्य को पराजित किया और उनकी निभीकता के स्मारक को उलट दिया। उसने उनकी भाषा में गड़बड़ी उत्पन्न करी और इस तरह विद्रोह के उनके उद्देश्य पर रोक लगाईं। परमेश्वर मनुष्य की भ्रष्टता को बहुत देर तक सहता है ताकि उन्हें पश्चताप के लिये पर्याप्त अवसर मिले, लेकिन उनकी न्यायसंगत व पवित्र आज्ञा के अधिकार का विरोध करने वाली उनकी सब युक्तियों की वह सुधि लेता है। समय-समय पर सत्ता के प्रभुत्व को थामने वाला अदृश्य हाथ अधर्म को रोकने के लिये बढ़ाया जाता है। असंदिग्ध प्रमाण दिया गया है कि जगत का सृष्टिकर्ता, बुद्धिमत्ता, प्रेम और सत्य में अनंत वह अद्वितीय आकाश और धरती का सर्वोच्चशासक है और उसकी प्रभुता को ललकारने वाला कोई भी दण्डमुक्त नहीं हो सकता । PPHin 115.1

    बाबुल निर्माताओं की युक्तियों का अन्त पराजय और अपमान में हुआ। उनके घमण्ड का स्मारक उनकी मूर्खता का स्मारक बन गया। लेकिन फिर भी मनुष्य स्वयं पर निर्भर होते हुए, परमेश्वर की आज्ञा को अस्वीकार करते हुए, उसी रास्ते पर चल रहे हैं। इसी सिद्धान्त को शैतान ने स्वर्ग में कार्यन्वित करने की चेष्ठा की थी, जिसने कैन को भेंट चढ़ाने में नियन्त्रित किया था। PPHin 115.2

    वर्तमान में भी गुम्मट बनाने वाले है। विज्ञान के अनुमानित निष्कर्षों से नास्तिक अपने सिद्धान्तों का निर्माण करते हैं और परमेश्वर के प्रकाशित वचन का तिरस्कार करते है। वे परमेश्वर की पवित्र सत्ता को दण्डाज्ञा देने का विचार करते हैं। वे उसकी आज्ञा को तुच्छ समझते है और मानव-प्रधान तक के पर्याप्त होने की ढींग मारते है। सभोपदेशक 8:11 में लिखा है, फिर “बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फ॒र्ती से नहीं दी जाती, इस कारण मनुष्य का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है।’PPHin 115.3

    तथाकथित मसीही जगत में कई लोग बाईबिल की स्पष्ट शिक्षा से मुहँ फेर लेते हैं और सुखदायी कल्पित कहानियों और मानव-प्रधान अनुमानों से एक सम्प्रदाय बनाते है और स्वर्ग की और बढ़ने के मार्ग के रूप में अपने गुम्मट की ओर संकेत करते है। मनुष्य वाग्मिता (उत्तम बोली) के होठों से अत्यन्त आकर्षित होता है जबकि वह सिखाती है कि पापी मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा, और परमेश्वर की आज्ञा न मानने पर भी उद्धार प्राप्त हो सकता है। यदि मसीह के तथाकथित अनुयायी परमेश्वर के आदर्श को ग्रहण करें तो वह उन्हें एकता में बांधेगा, परन्तु जब मानव की बुद्धिमता को पवित्र-वचन से श्रेष्ठतर माना जाता है, तब विभाजन और मतभेद होता है। ‘बाबुल’ शब्द असंगत सम्प्रदायों और धर्म-मंत्रों की वर्तमान अव्यवस्था का उचित प्रतीक है, जिसे भविष्यद्वाणी(प्रकागतवाक्य 14:8, 8:12)अन्तिम समय की जगत-प्रेमी कलीसियाओं के लिये प्रयोग करती है। PPHin 115.4

    कई लोग धन और आधिपत्य प्राप्त करके अपने लिये एक स्वर्ग बनाने की चेष्टा करते हैं। वे “ठट्ठा मारते है, और दुष्टता से अन्धेर की बात बोलते हैं, वे डींग मारते है।”-भजन संहिता 73:8 और इस तरह वे ईश्वरीय शक्ति का तिरस्कार कर मानव अधिकारों को रोंद डालते हैं। घमण्डी कुछ समय तक शक्तिशाली हो सकते है और अपने हर काम में सफलता देख सकते है, लेकिन अंत में उन्हें केवल निराशा और दुर्दशा हाथ लगेगी ।PPHin 116.1

    परमेश्वर द्वारा परीक्षण का समय निकट है। वह जो सर्वोच्च है, यह देखने नीचे उतरेगा कि मनुष्य की संतानों और मानव के घमण्ड के काम क्षतिग्रस्त होंगे। भजन संहिता 33:43, 14, 10, 11 में लिखा है, “यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, वह सब मनुष्यों को निहाराता है, अपने निवास के स्थान से वह पृथ्वी के सभी रहने वालों को देखता है”। “यहोवा जाति-जाति की युक्‍्ति को व्यर्थ कर देता है, वह देश-देश के लोगों की कल्पनाओं को निष्फल करता है। यहोवा की युक्ति सदा स्थिर रहेगी, उसके मन की कल्पनाएं पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहेंगी ।’PPHin 116.2

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