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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 15—इसहाक का विवाह

    यह अध्याय उत्पत्ति 24 पर आधारित है

    अब्राहम वृद्ध हो चला था और जल्द ही मृत्यु को प्राप्त होने वाला था, लेकिन अपने वंश को दिये हुए वचन को परिपूर्ण करने के लिये एक काम बचा हुआ था। इसहाक चुने हुए लोगों का पिता और परमेश्वर की व्यवस्था के संरक्षक के रूप में ईश्वर द्वारा नियुक्त था, लेकिन वह अभी तक अविवाहित था। कनानवासी मूर्तिपूजक थे और परमेश्वर ने उनके और उसके लोगों के बीच अंतर्विवाह वर्जित किया था क्‍योंकि वह जानता था कि ऐसे विवाहों से स्वधर्म त्याग को बढ़ावा मिलता। कुलपिता को अपने पुत्र के चारों ओर दुराचारी तत्वों के प्रभाव का डर था। इसहाक का चरित्र अब्राहम का परमेश्वर में स्वाभाविक विश्वास और उसके प्रतिआज्ञानुकूलताकाप्रतिबिंबथा; पर नौजवान का प्रेमभ्रातृभाव घनिष्ठ था और वह व्यवहार में नम्र और दयालु था। परमेश्वर का भय न मानने वाले की संगति में, सामांजस्य बचाए रखने के लिये, उस पर रिद्धान्तों का त्याग करने का खतरा बना रहता। अब्राहम के मन में अपने पुत्र के लिये पत्नी का चयन एक महत्वपूर्ण विषय था। वह उसका विवाह ऐसी स्त्री से करवाना चाहता था जो उसे परमेश्वर से दूर नहीं ले जाए। PPHin 166.1

    प्राचीन काल में विवाह का प्रबन्ध माता-पिता करते थे, और यह रीति परमेश्वर के उपासकों में प्रचलित थी। कोई भी उससे विवाह करने को बाध्य न था जिससे वह प्रेम नहीं रखता हो, लेकिन अपने प्रेम को प्रदान करने में नवयुवक परमेश्वर का भय मानने वाले व अनुभवी अभिभावकों के निर्णय से मार्गदर्शितहहोते थे। इसके विपरीत कोई भी तरीका अपनाना अभिभावकों का अपमान व अपराध माना जाता था। PPHin 166.2

    अपने पिता के विवेक और प्रेम में विश्वास रखते हुए इसहाक इस विषय को अपने पिता को सौंप देने मेंसन्तुष्ट था और उसे यह भी विश्वास था कि इस चयन में परमेश्वर स्वयं निर्देश देगा। कुलपिता का ध्यान, मेसोपोतामिया देश में अपने पिता के परिजनों की ओर गया। वे मूर्तिपूजा से स्वतन्त्र तो नहीं थे, लेकिन वे सच्चे परमेश्वर का ज्ञान और उसकी उपासना संजोए थे। इसहाक को कनान छोड़कर उनके पास नहीं जाना था, पर वहां से एक स्त्री अपना घर छोड़ कर, जीवित परमेश्वर की पवित्र आराधना को कायम रखने में उसके साथ जुड़ सकती थी। अब्राहम ने यह महत्वपूर्ण काम अपने सबसे वरिष्ठ सेवक को सौंपा जो एक धर्मी, अनुभवी, सही अनुमान लगाने वाला व्यक्ति था व जिसने कई साल निष्ठापूवक उसकी सेवा की थी। उसने अपने इस दास से परमेश्वर के सम्मुख शपथ लने को कहा कि वह कनानियों में से नहीं, वरन मेसोपोतामिया में नाहौर के परिवार से एक कुवांरी स्त्री को चुन कर लाएगा। उसने दास को, इसहाक को साथ ले जाने से मना किया। यदि इसहाक के लिये अपना घर छोड़ कर आने वाली कोई नवयुवती नहीं मिलती तो सन्देशवाहक अपनी शथप से आजाद था। कुलपिता ने यह आश्वासन देते हुए कि परमेश्वर इस अभियान को सफलता का मुकुट पहनाएगा, अपने दास को इस मुश्किल और संवेदनशील कार्य के लिये प्रोत्साहित किया। “स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा,” उसने कहा, “जो मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्म भूमि सेले आया.........वहीं अपना दूत तेरे आगे भेजेगा।” PPHin 166.3

    सन्देशवाहक बिना विलम्ब किए निकल पड़ा। अपने साथ लौट कर आने वाले वैवाहिक समूह और स्वयं की टोली के उपयोग के लिये दस ऊंटो को लिये, इसहाक की भावी पत्नी और उसकी सहेलियों के लिये भी उपहार लिये उसने दमिश्क के भी आगे पूर्व की महान नदी के सीमावर्ती उपजाऊ तराई तक यात्रा की। “नाहौर के शहर” हारान में वह नगर के बाहर एक कुएं के पास बैठे गया, जहां संध्या के समय, स्त्रियाँ जल भरने के लिये आती थी।उसके लिये यह उत्सुकतापूर्ण विचार-मग्न होने का समय था। उसके चयन पर उसके स्वामी के घराने के लिये ही नहीं वरन्‌ आने वाली पीढ़ियों के लिये भी महत्वपूर्ण परिणाम निर्भर थे। अब्राहम के कहे शब्दों को स्मरण कर कि परमेश्वर अपना दूत उसके साथ भेजेगा, उसने सकात्मक मार्गदर्शन के लिये आग्रह के साथ प्रार्थना की। अपने स्वामी के परिवार में अतिथि सत्कार और उदारता के लगातार अभ्यास का अभ्यस्त था, अतः: उसने विनती की कि शिष्टाचार के प्रदर्शन परमेश्वर द्वारा भेजी गई स्त्री का संकेत हो। PPHin 167.1

    प्रार्थना के किये जाते ही उत्तर आ गया। कुएँ पर आईं सभी स्त्रियों में से एक के शिष्टतापूर्ण व्यवहार से वह आकर्षित हुआ। जैसे ही वह कुए से आई, परदेशी उससे मिलने गया और उसके कांधे पर रखे घड़े में से कुछ जल देने को कहा। उसके निवेदन को नम्र उत्तर मिला कि वह ऊउेटों के लिये भी पानी खींचेगी। रीति के अनुसार राजाओं की पुत्रियाँ भी अपने पिता के पशु-समुह के लिये कुएं से पानी खींचती थी। इस तरह माँगा हुआ संकेत दे दिया गया। स्त्री “अति सुन्दर और कवारी थी” और उसकी तत्पर शिष्टता उसके नम्र हृदय और सक्रिय उद्यमी स्वभाव का प्रमाण थी। यहां तक परमेश्वर का हाथ उसके साथ था। उसकी उदारता का उपहारों द्वारा आभार मानकर, उसने उसके माता-पिता के वारे में पूछा और यह जानकर कि वह अब्राहम के भतीजे, बतुएल की पुत्री थी, उसने “सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत किया। PPHin 167.2

    दास ने कन्या के पिता के घर में सत्कार चाहा था, और धन्यवाद करते समय अब्राहम के साथ अपने सम्बन्ध के तथ्य को उजागर किया था। घर लौटने पर, कन्या ने सारा वृतान्त कह सुनाया और लाबान, जो उसकाभाई था, परदेशी और उसके साथियों का सत्कार करने के लिये दौड़ा एलियाज़र अपने प्रयोजन के बारे में, क॒ुएँ पर उसकी प्रार्थना के सम्बन्ध में और उसके संदर्भ में सभी परिस्थितियों के बारे में बताने से पूर्व जलपान करने को तैयार न था। फिर उसने कहा, “यदि तुम मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझसे कहो, और यदि नहीं चाहते हो, तो भी मुझसे कह दो,ताकि मैं दाहिनी ओर या बांई ओर फिर जाऊं ।” तब उसे उत्तर मिला, “यह बात यहोवा की ओर से हुई है, रिबका तेरे सामने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए।PPHin 168.1

    परिवार की सहमति प्राप्त होने के पश्चात, रिबका से पूछा गया यदि वह अपने पिता के घर से इतनी दूर जाना चाहेगी जिससे कि वह अब्राहम के पुत्र से विवाह कर सके। जो कुछ हुआ था, उससे उसने विश्वास किया कि परमेश्वर ने उसे इसहाक की पत्नी के रूप में चुना था और उसने कहा, “हाँ, में जाऊंगी ।” PPHin 168.2

    अपने अभियान की सफलता पर अपने स्वामी की प्रसन्‍नता की कल्पना कर दास लौट जाने को व्याकुल था, और सुबह होते ही वह घर की ओर चल दिया। अब्राहम बीरशेबा में रहता था, और इसहाक पास के देश में भेड़ो को चराकर हारान से सन्देशवाहक के आगमन की प्रतीक्षा करने अपने पिता के तम्बू में लौटा । “सांझ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिये निकला था और उसने आंख उठाकर देखा कि ऊंट चले आ रहे हैं। रिबका ने भी आँखें उठाकर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊँट पर से उतर पड़ी। तब उसने दास से पूछा, “जो पुरूष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, वह कौन है?” दास ने कहा, “वह तो मेरा स्वामी है।” तब रिबका ने घूंघटलेकर अपने मुँह को ढाँक लिया। दास ने इसहाक को अपना सम्पूर्ण वृतान्त सुनाया। तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारे के तम्बू में ले आया और उसको ब्याह कर उससे प्रेम किया, इस प्रकार इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात्‌ शान्ति प्राप्त हुई।PPHin 168.3

    अब्राहम ने परमेश्वर का भय रखने वालों और परमेश्वर का भय नहीं रखने वालों के बीच अंतर्विवाह के परिणाम को कैन के समय से अपने समय तक देखा था। हाजिरा से उसक विवाह और इश्माएल और लूत के वैवाहिक सम्बन्धों के परिणाम उसके सामने थे। अब्राहम और सारे के विश्वास में कमी के परिणामस्वरूप इश्माएल का जन्म हुआ जिससे अधर्मियों और धर्मी वंश में मेल-जोल बढ़ा। PPHin 169.1

    इश्माएल की मूर्तिपूजक पत्नियों के साथ सम्बन्ध और मां के मूर्तिपूजक परिजनों के प्रभाव ने पुत्र पर पिता के प्रभाव को निष्किय कर दिया। हाजिरा की इर्ष्य और उसके द्वारा चुनी गईं इश्माएल के पत्नियों ने उसके परिवार के लिये ऐसा प्रतिबन्ध खड़ा किया, जिस पर अब्राहम ने व्यर्थ में विजय पानी चाही। इश्माएल पर अब्राहम की शिक्षा का प्रभाव तो पड़ा था, लेकिन उसकी पत्नियों के प्रभाव ने उसके परिवार में मूर्तिपूजक को बढ़ावा दिया। अपने पिता से अलग हुए वह परमेश्वर के भय और प्रेम के अभाव में, घर के कलह और प्रतिद्ंद्वेति के कारण लूटमार का असभ्य जीवन जीने को विवश हो गया और “उसका हाथ सबके विरूद्ध और सबके हाथ उसके विरूद्ध” हो गए। (उत्पत्ति 16:12)आने वाले दिनों में उसने अपने पापों का पश्चताप किया और अपने पिता के परमेश्वर के पास लौट आयालेकिन उसके वंश को दी गईं उसके चरित्र की छाप बनी रही। उससे उत्पन्न शक्तिशाली वंश उत्तेजक, मूर्तिपूजक थे जो इसहाक के वंशजो के लिये हमेशा पीड़ाजनक और कष्टदायक थे। PPHin 169.2

    लूत की पत्नी एक स्वार्थी व अधर्मी महिला थी और उससे प्रभावित होकर लूत अब्राहम से अलग हो गया। यदि लूत की पत्नी का प्रश्न नहीं होता, तो लूत विवेकपूर्ण, परमेश्वर का भय रखने वाले कुलपिता के मार्ग-दर्शन से वंचित कभी भी सदोम में न रहता। बीते दिनों में अब्राहम से प्राप्त शिक्षा के अभाव में, अपनी पत्नी के प्रभाव और उस दुष्ट नगर के संपर्क के कारण उसने ईश्वरीय सिद्धान्तों का त्याग कर दिया होता। लूत का विवाह और वास करने के लिये सदोम का चयन कई पीढ़ियों के लिये बुराई के कारण घटित घटनाओं की श्रंखला में, संसार के लिये पहले लिंक थे।PPHin 169.3

    परमेश्वर का भय मानने वाला कोई भी बिना खतरे के स्वयं को परमेश्वर का भय न मानने वाला के साथ नहीं जोड़ सकता। आमोस 3:3में लिखा है, “यदि दो मनुष्य परस्पर सहमत न हो, तो क्‍या वे एक संग चल सकेंगे”? वैवाहिक सम्बन्ध में शान्ति और समृद्धि सम्बन्धित पक्षों की एकता पर निर्भर करते हैं, लेकिन विश्वासी और अविश्वासी के बीच रूचि, झुकाव व उद्देश्य का मौलिक अंतर होता है। वे दो स्वामियों के सेवा कर रहे है, जिनमें कोई सहमति नहीं हो सकती। किसी के सिद्धान्त कितने ही पवित्र और उचित हो, लेकिन एक अविश्वासी साथी के प्रभाव की प्रवृति उसे परमेश्वर से दूर करने की होगी । PPHin 170.1

    जो बिना परिवर्तन के वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, वह परिवर्तन के माध्यम से अपने साथी के प्रति ईमानदार होने के लियेऔरअधिक उत्तरदायी हो जाता है, भले ही धर्म के संदर्भ वे कितने ही अलग क्यों न हो, फिर भले ही परीक्षण और उत्पीड़न सहना पड़े, ईश्वर के अधिकारों को प्रत्येक सांसारिक सम्बन्ध से ऊपर रखना चाहिये। प्रेम और नम्रता की भावना से यह निष्ठा अविश्वासी को जीतने के लिये प्रभावशाली हो सकती है। लेकिन बाईबिल में मसीही लोगों का अधर्मी लोगों के साथ विवाह वर्जित है।2 कुरिन्थियों 6:14 में, परमेश्वर का निर्देश इस प्रकार है, “अविश्वासियों के साथ असमान जुए में न जुतो । PPHin 170.2

    परमेश्वर ने इसहाक को संसार को धन्य करने वाली प्रतिज्ञाओं का उत्तराधिकारी बनाकर बहुत सम्मानित किया, लेकिन फिर भी जब वह चालीस वर्ष का था, पत्नी के चयन के कामक लिये जब उसके पिताने अपने अनुभवी, ईश्वर का भय मानने वाले सेवक को नियुक्त कियाउसने अपने पिता के निर्णय का समर्थन किया । और उस विवाह का परिणाम, जैसे कि शामत्त्रों में प्रस्तुत किया गया है, घरेलू शान्ति का एक सुन्दर व हृदयस्पर्शी चित्र है। “तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारे के तम्बू में ले आया और उसको ब्याह कर उससे प्रेम किया। इस प्रकार इसहाक की माता की मृत्यु के पश्चात शान्ति प्राप्त हुई ।” PPHin 170.3

    कितना अंतर है इसहाक द्वारा अपनाये हुए रास्ते और हमारे समय के नौजवानों व तथाकथित मसीहों द्वारा अपनाए रास्तों में! युवाओं को प्रायः लगता है कि प्रेम के विषय में उन्हें स्वयं से ही परामर्श लेना चाहिये व इसका नियंत्रण न तो ईश्वर के और न ही माता पिता के हाथ में होना चाहिये। पुरूषत्व व नारीत्व की अवस्था में पहुँचने से पूर्व ही वे स्वयं को बिना माता-पिता की सहायता, चयन करने योग्य समझने लगते है। उनकी मूर्खता ज्ञात करने के लिये उनके वैवाहिक जीवन के कुछ ही वर्ष पर्याप्त होते हैं, लेकिन तब तक उसके भयावह परिणामों को रोकने के लिये बहुत देर हो चुकी होती है। इसी असंयम और विवेक के अभाव को, जिसके कारण जल्दबाजी में निर्णय लिया गया, बुराई को बढ़ावा देने की अनुमति दे दी जाती है, जब तक कि वैवाहिक सम्बन्ध एक जहरीले जुए का रूप न ले ले। कई लोगों ने इस जीवन में शान्ति को और आने वाले जीवन की आशा को नष्ट कर दिया है। PPHin 170.4

    यदि कोई विषय है जिस ध्यानपूर्वक सोचना समझना चाहिये और जिसमें अनुभवी व चिरआयु व्यक्तियों की सलाह लेनी चाहिये, वह विषय विवाह से सम्बन्धित है; जीवनभर के लिये दो लोगों को बन्धन में बंधने के लिये कदम उठाने से पहले, प्रार्थनाके माध्यम से ईश्वरीय मार्गदर्शन माँगना चाहिये और बाईबल को सलाहकार के रूप में देखना चाहिये । PPHin 171.1

    अभिभवाकों को अपने बच्चों की आगामी खुशहाली के प्रति स्वयं के उत्तरदायित्व को नहीं भूलना चाहिये। इसहाक का अपने माता-पिता के निर्णय के प्रति सम्मान, उस प्रशिक्षण का परिणाम था जिसने उसे आज्ञाकारितापूर्ण जीवन से प्रीति रखना सिखाया था। हालांकि अब्राहम अपने बच्चों से पैतृक अधिकारों के प्रति सम्मान की अपेक्षा करता था, पर उसका दैनिक जीवन इस बात का साक्ष्य था कि अधिकार स्वार्थी या स्वेच्छाचारी नियन्त्रण नहीं था, वरन्‌ उसका आधार प्रेम था और उनकी भलाई और खुशहाली उसके लक्ष्य थे। PPHin 171.2

    अभिभावकों को यह आभास होना चाहिये कि युवाओं की पसन्द का मार्गदर्शन करना उनका कर्तव्य है, ताकि वे अपने लिये उपयुक्त साथी का चयन कर सके। ईश्वर के सहायतापूर्ण अनुग्रह और स्वयं के शिक्षण और उदाहरण द्वारा, उन्हें बच्चों के बचपन से ही चरित्र को इस तरह ढालना चाहिये कि वे महान व पवित्र रहेंगे और जो अच्छा और सच्चा है उसकी ओर आकर्षित होंगे । समान स्वभाव एक दूसरे को आकर्षित करते है, एक दूसरे की सराहना करते हैं। अच्छाई और पवित्रता और सत्य के प्रति प्रेम को आत्मा में प्रारम्भ से ही प्रत्यारोपित होने दें, और युवा उन लोगों के समाज की अभिलाषा करेंगे जो इन विशेषताओं के धनी हैं।PPHin 171.3

    अभिभावकों को अपने स्वयं के चरित्र और घरेलू जीवन में स्वर्गीय पिता के प्रेम और परोपकार का उदाहरण देना चाहिए। घरों को सूर्य के प्रकाश से भरा रहने दें। यह आपके बच्चों के लिये जमीन-जायदाद या रूपये पैसे से अधिक लाभदायक होगा। उनके हृदयों में घर का प्रेम जीवत रहने दे ताकि वे अपने बचपन के घर को, स्वर्ग के बाद, शान्ति और प्रसन्‍नता के गढ़ जैसे स्मरण करें। परिवार के सभी सदस्यों पर चरित्र की छाप नहीं होती और घेर्य और सहनशीलता के अभ्यास के लिये अवसर प्राय: होंगे, लेकिन प्रेम और आत्म-अनुशासन के माध्यम से सब एक दूसरे के साथ अटूट बन्धन में जुड़ सकते हैं। PPHin 171.4

    सच्चा प्रेम एक उच्च स्तरीय व पवित्र सिद्धान्त है जो स्वभाव में उस प्रेम से बिल्कुल अलग है, जो आवेग से जागृत होता है और कठिन परीक्षा के दौरान अचानक ही समाप्त हो जाता है। पैतृक घर में कर्तव्यपरायण होकर युवा स्वयं को अपने परिवारों के लिये तैयार करते है। यहां उन्हें आत्म-त्याग का अभ्यास करने दे और नम्रता, शिष्टाचार और मसीही संवेदना प्रकट करने दें।। इस तरह प्रेम को हृदय में सक्रिय रखा जाएगा और जो कोई भी ऐसे घराने से अपने स्वयं को परिवार के मुखिया के रूप में खड़ा करता है, वह उसकी, जिसे उसने अपने जीवन का साथी चुना है, प्रसन्‍नता को बढ़ाना जान पाएगा। विवाह प्रेम का अन्तिम चरण नहीं वरन्‌ प्रारम्भ होगा । PPHin 172.1

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