अध्याय 19—कनान की ओर वापसी
यह अध्याय उत्पत्ति 34,35,37 पर आधारित है
यरदन नदी को पार करके, याकूब ने, “कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल क्षेम से पहुँचकर नगर के सामने डेरे खड़े किये।” उत्पत्ति 33:18इस तरह बेथेल में माँगी गईं कुलपिता की प्रार्थना, कि परमेश्वर उसे शान्तिपूर्वक तरीके से उसके जन्म स्थान में लौटा लाएगा, स्वीकार हुईं। कुछ समय शकेम की तराई में रहा। यहाँ पर अब्राहम ने सौ वर्षों से भी अधिक पहले, अपना पहला शिविर लगाया था और प्रतिज्ञा के देश में अपनी पहली वेदी का निर्माण किया था। यहाँ, “भूमि के जिस खण्ड पर याकब ने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उसने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों के हाथ से एक सौ कसीतों में मोल लिया। वहाँ उसने एक वेदी बनाकर उसका नाम एल-एलाहे-इज़राइल रखा। उत्पत्ति 33:19,20'परमेश्वर, इज़राइल का परमेश्वर ।” जैसा अब्राहम ने किया था, वैसे ही याकूब ने अपने तम्बू के पास परमेश्वर के लिये एक वेदी बनाई, वह सुबह शाम के बलिदान के लिये अपने घराने के सदस्यों को बुलाता था। यहीं पर उसने एक कुंआ खोदा, जहां सत्रह सदियों के पश्चात याकूब का पुत्र और मसीह आया और दोपहर की गर्मी में जिसके पास विश्राम करते समय उसने अपने आश्चर्यचकित सुनने वालो को “अनन्त जीवन के लिये उमड़ने वाले जल के सोते” के बारे में बताया। यहुन्ना 4:14 PPHin 199.1
शकेम में याकूब और उसके पुत्रों की वासअवधि का अन्त हिंसा और रक्तपात में हुआ। घराने की एक पुत्री को भ्रष्ट कर दिया गया, दो भाई हत्या के दोषी थे, एक अविवेकी नौजवान के विधिविरूद्ध कृत्य के प्रतिकार में पूरा नगर बर्बादी और नरसंहार को समर्पित हो गया। वह शुरूआत जो आगे जाकर इतने भंयकर परिणाम लाई, याकूब की पुत्री का कर्म था, जो “उस देश की लड़कियो से भेंट करने को निकली’ और इस प्रकार अधर्मियों की संगति का जोखिम उठाया। जो परमेश्वर का भय न मानने वालों की संगति में आनन्दित होता है वह अपने आप को शैतान के भूक्षेत्र में रख देता है और उसके प्रलोभनों को आमन्त्रित करता है। PPHin 199.2
शिमोन और लेवी की विश्वासघाती निर्दयता अकारण नहीं थी, लेकिन फिर भी शकेम के लोगों के प्रति अपनाए गए मार्ग में उन्होंने घोर पाप किया। उन्होंने बड़ी सावधानी से याकूब से अपने अभिप्रायों को छुपाए रखा, और उनके पुत्रों के धोखे और हिंसक आचरण से दुखी होकर उसने केवल यह कहा, “तुमने जो इस देश के निवासी कनानियों और परिज्जियों के मन में मेरे प्रति घृणा उत्पन्न कराई है, इस से तुम ने मुझे संकट में डाला है, क्योंकि मेरे साथ तो थोड़े ही लोग है, इसलिये अब वे इकटूठे होकर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, तो मैं अपने घराने समेत नष्ट हो जाऊंगा।/! लेकिन जिस शोक और अत्यन्त घृणा से वह उनके इस रकक्तपातपूर्ण कृत्य को देखता था वह इन शब्दों में प्रकट होती है जो उसने लगभग पचास वर्ष पश्चात्, जब वह मृत्यु शैय्या पर था, कहे, “शिमोन और लेवी तो भाई-भाई है, उनकी तलवारें उपद्रव के हथियार हैं। हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़, हे मेरी महिमा, उनकी सभा में मत मिल, घधिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड था, और उनके रोष को, जो निर्दय था ।”उत्पत्ति 49:57 PPHin 199.3
याकूब को लगा कि बहुत दीन होने की आवश्यकता थी। उसके पुत्रों के चरित्र में निर्दयता और झूठ प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट थे। दल में देवी-देवता थे, और उसके घराने में भी कुछ हद तक मूर्तिपूजा ने पैर जमाने की जगह प्राप्त कर ली थी । यदि परमेश्वर उनके परित्याग के अनुसार उनकी सुधि ले, तो क्या वह उन्हें निकटवर्ती राज्यों के प्रतिशोध के लिये नहीं छोड़ता? PPHin 200.1
जब याकूब संकट के तले दबा हुआ था, प्रभु ने उसे दक्षिण में बेथेल के लिये कूच करने का निर्देश दिया। इस स्थान के विचार ने कुलपिता को ना केवल स्वर्गदूतों के स्वप्नदर्शन व परमेश्वर की करूणा की प्रतिज्ञा का, बल्कि उस वाचा की भी, जो उसने वहां दी थी कि प्रभु उसका परमेश्वर होगा, स्मरण कराया। उसने दृढ़ संकल्प किया कि इस पवित्र स्थान पर जाने से पहले उसके घराने को मूर्तिपूजा की मलिनता से आजाद होना चाहिये। इसलिये उसने डेरे के सभी लोगों को निर्देश दिया, “तुम्हारे बीच में जो पराए देवता है, उन्हें निकाल फेंको, और अपने को शुद्ध करो, और अपने वस्त्र बदल डालो, और आओ, हम यहां से निकल कर बेथेल को जाएं, वहां मैं परमेश्वर के लिये एक वेदी बनाऊँगा, जिसने संकट के दिन मेरी सुन ली और जिस मार्ग से मैं चलता था, उसमें मेरे संग रहा । PPHin 200.2
भावुक होकर, याकूब ने बेथेल में अपने पहले दोरे की कहानी को दोहराया, जब उसने अपने पिता के तम्बू को अपने प्राण बचाने के लिये भाग रहे एक अकेले पलायक के रूप में छोड़ा था और किस प्रकार रात के स्वप्नदर्शन में परमेश्वर उसके सामने प्रकट हुआ। जब उसने परमेश्वर के उसके साथ किये गये आश्चर्यजनक व्यवहार का अवलोकन किया, तो उसका हृदय विनम्र हो गया और उसके बच्चे भी एक शान्त करने वाली शक्ति से प्रभावित हो गए, उसने उनके बेथेल पहुँचने पर, परमेश्वर की आराधना में उन्हें सम्मिलित होने के लिये तैयार करने का सबसे प्रभावशाली तरीका चुना था ।“इसलिये जितने पराए देवता उनके पास थे, और जितने कुण्डल उनके कानों में थे, उन सभी को उन्होंने याकूब को दिया, और उसने उनको उस ओक वृक्ष के नीचे, जो शकेम के पास है, गाड़ दिया ।PPHin 200.3
नगर निवासियों के मन में परमेश्वर की ओर से ऐसा भय समा गया, कि उन्होंने शकेम के नरसंहार का प्रतिशोध लेने का कोई प्रयत्न नहीं किया। यात्री बेथेल बाधा रहित पहुँच गए। यहां पर परमेश्वर ने याकूब में बातें की, वहां याकूब ने पत्थर का एक खम्भा खड़ा किया।PPHin 201.1
बेथेल में याकूब ने रिबका की दूध पिलानेहरी धाय दबोरा की मृत्यु पर शोक मनाया, दबोरा उसके पिता के परिवार की सम्मानित सदस्या थी और वह अपनी मालकिन की सेवा के लिये मेसोपोटामिया से कनान देश को आयी थी। इस वृद्ध महिला की उपस्थिति याकूब के लिये एक अनमोल बन्धन था जो उसे उसके प्रारम्भिक जीवन से जोड़े हुए था, विशेषकर उसकी माँ से, जिसका प्रेम उसके लिये अटूट व नम्र था। दबोरा को इतने दु:ख के साथ मिट्टी दी गई कि जिस बांज वृक्ष के निचले भाग में उसको गाड़ा गया उस वृक्ष का नाम ‘विलाप का बांज वृक्ष! रखा गया। स्मरण रहे कि उसकी निष्ठापूर्ण सेवा से भरे जीवन की और इस घरेलू मित्र की मृत्यु पर शोक मनाने की स्मृति को परमेश्वर के वचन में संरक्षित रखने के योग्य माना गया।PPHin 201.2
बेथेल से हेब्रोन का सफर मात्र दो दिन का था, लेकिन राहेल की मृत्यु ने याकूब को अत्याधिक दुःख से भर दिया। उसके लिये उसने दो बार सात-सात वर्ष सेवा की थी और उसके प्रेम के कारण उसका परिश्रम उतना कठोर नहीं लगता था। यह प्रेम कितना गहरा और स्थायी था, यह बहुत बाद में पता चलता है जब मिस्र मेंयाकूब अपनी मृत्यु के करीब था और युसुफ अपने पिता से मिलने आया, और वृद्ध कुलपिता ने, अपने बीते जीवन में झांकते हुए कहा, “जब में पद्यान से आया था, तब एप्राता पहुँचने से थोड़ी ही दूर पहले राहेल कनान देश में, मार्ग में, मेरे सामने मर गई, और मैंने उसे वहीं, अर्थात एप्राता जो बैतलहम भी कहलाता है, उसी के मार्ग में मिट्टी दी।“उत्पत्ति 48:7उसके लम्बे और कष्ट भरे जीवन के पारिवारिक इतिहास में केवल राहेल की मृत्यु को याद किया गया।PPHin 201.3
मृत्यु से पहले राहेल ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया। आखिरी श्वास लेते हुए उसमें उसका नाम ‘बेनोनी’ रखा- ‘मेरे दुख का पुत्र'। लेकिन उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा- ‘“मेर दाहिने हाथ का पुत्र’ या ‘मेरी शक्ति'। राहेल को उसके मरने के स्थान पर ही गाड़ा गया और उसकी स्मृति की चिरायु बनाने के लिये वहां एक खम्भा खड़ा किया गया।PPHin 202.1
एप्राता के मार्ग पर चलते हुए एक और गम्भीर अपराध ने याकूब के परिवार को कलंकित किया, जिसके कारण रूबेन जो पहलोठा था, उसे जन्म सिद्ध अधिकार के सम्मान और विशेषाधिकारों से वंचित किया गया ।PPHin 202.2
अन्ततः याकूब की यात्रा समाप्त होने को आईं, “याकूब मम्ने में, जो करियतअर्बा अर्थात हेब्रोन है, जहाँ अब्राहम और इसहाक परदेशी होकर रहे थे, अपने पिता इसहाक के पास आया।” वह अपने पिता के जीवन के अन्तिम वर्षो में यहां रहा। निबल और अन्धे इसहाक के लिये अपने इस वर्षो से बिछड़े हुए पुत्र की नम्नतापूर्ण सेवा, उसके अकेलेपन और वियोग के समय में सांत्वना थी।PPHin 202.3
याकूब और एसाव अपने पिता की मृत्युशैय्या पर मिले। एक समय था जब बड़े भाई में इस घटना को प्रतिशोधके अवसर के रूप में देखा था, लेकिन तब से उसकी भावनाओं में परिवर्तन आया। याकूब जन्मसिद्ध अधिकार की आध्यात्मिक आशीषों से पूर्णतया सन्तुष्ट था और उसने अपने पिता की धन-सम्पत्ति की मीरास अपने बड़े भाई के लिये छोड़ दी। वही एकमात्र मीरास जिसके लिये एसाव इच्छुक था। अब वे ईर्ष्या या घृणा के कारण विरक्त नहीं थे, लेकिन फिर भी वे अलग हो गए, एसाव सेईर नामक पहाड़ी देश में रहने लगा। परमेश्वर ने जो आशीषे देने में उदार है, याकूब को, उसी के द्वारा अभिलाषित आध्यात्मिक आशीर्वाद के साथ, सांसारिक धन-सम्पत्ति भी प्रदान की। दोनो भाईयों की सम्पत्ति, “इतनी हो गई थी कि वे इकट्ठे न रह सके और पशुओं की बहुतायत के कारण उस देश में, जहां वे परदेशी होकर रहते थे, वे समा न सके।” यह अलगाव याकूब से सम्बन्धित पवित्र योजना के अनुसार था। क्योंकि दोनो भाई धार्मिक विश्वास के संदर्भ में इतने भिन्न थे, कि उनका एक-दूसरे से दूर रहना ही उचित था।PPHin 202.4
एसाव और याकूब को परमेश्वर के ज्ञान में एक समान निर्देश मिले थे और दोनों को उसके नियमों पर चलने की और उसकी कृपा-दृष्टि पाने की आजादी थी, लेकिन उनमें से एक ही ने इस मार्ग को चुना। दोनो भाई अलग-अलग रास्तों पर चले थे और उनके रास्ते अलग-अलग दिशाओं में बढ़ते गए ।PPHin 203.1
एसाव को उद्धार के आशीर्वाद से वंचित रखने में परमेश्वर की ओर से एकपक्षीय निर्णय नहीं था। मसीह के माध्यम से उसके अनुग्रह का उपहार सबके लिये मुफ्त था। हर व्यक्ति अपने ही चुनाव से विनाश को प्राप्त होता है। परमेश्वर ने अपने वचन में उन प्रतिबन्धों को रखा है जिनके आधार पर प्रत्येक प्राणी अनन्त जीवन के लिये चयनित होगा, मसीह में विश्वास के द्वारा, उसकी आज्ञाओं का पालन। परमेश्वर ने अपनी व्यवस्था के अनुकूल चरित्र का चयन किया है और जो भी उसकी अपेक्षाओं के मापक पर खरा उतरेगा उसे महिमा के राज्य में प्रवेश मिलेगा। मसीह ने स्वयं कहा, “जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है, परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का कोध उस पर रहता है।” यहुन्ना 3:36“जो मुझसे, हे प्रभु! हे प्रभ। कहता है उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।’-मत्ती 7:21और प्रकाशितवाक्य 22:44में वह घोषणा करता है, “धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के वक्ष के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से होकर नगर में प्रवेश करेंगे ।” मनुष्य के निर्णायक उद्धार के संदर्भ में, परमेश्वर के वचन में केवल इसी चुनाव को सामने लाया गया है। PPHin 203.2
जो भी प्राणी कंपकृपाते हुए और भय मानकर अपने निजी उद्धार के लिये प्रयत्न करता है वह चुन लिया जाता है। जो विश्वास का कवच धारण करेगा और विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ेगा वह चुना जाता हैं। वह जो प्रार्थना में जागा रहता है, जो पवित्र-शास्त्र में दूँढेगा, और प्रलोभनों से दूर आयेगा, वह चुना जाएगा। जिसका विश्वास सर्वदा बना रहेगा और जो परमेश्वर के मुँह से निकले हुए प्रत्येक वचन के प्रति आज्ञाकारी होता है, वह चुना जाता है। उद्धार का प्रयोजन सब के लिये मुफ्त है, उद्धार के परिणामों का आनन्द वे ले सकेंगे जिन्होंने प्रतिबन्धों का अनुपालन किया है। PPHin 203.3
ऐसाव ने वाचा की आशीषों का तिरस्कार किया। उसने आध्यात्मिक कल्याण से अधिक सांसारिक कल्याण को महत्व दिया। वह अपनी सोची समझी पसन्द के कारण ही परमेश्वर के लोगों से अलग हो गया। याकूब ने विश्वास की मीरास को चुना था। उसने उसे झूठ, धोखे व कपट से पाने का प्रयत्न किया था, लेकिन परमेश्वर ने उसके पाप को सुधारने की अनुमति दी। लेकिन फिर भी अपने परवर्ती वर्षो में हुए कड़वे अनुभवों के दौरान वह अपने उद्देश्य से विचलित नहीं हुआ और ना ही उसने अपने चयन का परित्याग किया। उसने जान लिया था कि आशीष को सुरक्षित करने के लिये कपट और मानवीय निपुणता की सहायता लेने में वह परमेश्वर के विरूद्ध लड़ रहा था। यब्वोक नदी के किनारे, मल्लयुद्ध की उस रात के बाद, याकूब एक अलग ही व्यक्ति जैसे सामने आया। आत्म-विश्वास जड़ से उखड़ गया था। इसके पश्चात पहले की सी चालाकी नहीं देखी गई । कपट और धोखे के स्थान पर, उसका जीवन सरलता व सत्यता से अंकित था। उसने सर्वशक्तिमान बांह पर सहज विश्वास का पाठ पढ़ लिया था और परीक्षा और कष्ट के समय वह परमेश्वर की इच्छा के सम्मुख दीन आत्मा-समर्पण में झुक गया। चरित्र के अवगुण आग की भटटी में भस्म हो गए, खरा सोना शुद्ध होकर निकला, और याकूब में अब्राहम और इसहाक का उत्साहपूर्ण विश्वास प्रकट हुआ । PPHin 203.4
याकूब का पाप और उससे सम्बन्धित घटनाओं की श्रंखला, दुष्प्रभाव डालने से नहीं चूकं-वह प्रभाव जिसका कटु फल उसके पुत्रों के जीवन में दिखाई दिया। प्रौढ़ अवस्था में पहुँचने पर उनमे गम्भीर विकृतियाँ विकसित हो गई। बहुर्विवाह के परिणाम घराने में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे। यह भंयकर बुराई प्रेम के सोतों को ही सुखा देती है, औरइसका प्रभाव सबसे अधिक पवित्र बन्धनों को भी कमजोर कर देता है। एक से अधिक माताओं की ईर्ष्या ने पारिवारिक सम्बन्धों में कड़वाहट भर दी थी, बच्चे बढ़े होकर झगड़ालू और नियन्त्रित करे जाने पर अधीर हो गए थे और पिता का जीवन दुख और चिंता से निराशापूर्ण हो गया था। PPHin 204.1
उनमें से एक, फिर भी, बहुत अलग स्वभाव का था- युसुफ राहेल का ज्येष्ठ पुत्र जिसकी अद्वितीय व्यक्तिगत सुन्दरता उसके हृदय व मन की आंतरिक सुन्दरता को प्रतिबिम्बित करती थी। निष्पाप, चपल और प्रसन्नचित यह किशोर नैतिक निष्ठा व दृढ़ता का प्रमाण था। वह अपने पिता के निर्देशों का पालन करता था और परमेश्वर की आज्ञा मानने में आनन्दित होता था। जिन गुणों के कारण वह बाद में मिस्र देश में विख्यात हुआ-नगम्रता, सत्यनिष्ठा और स्वामिभक्ति-उसके जीवन में पहले से ही प्रकट थी। मां के मरने के कारण, वह अपने पिता का अति प्रिय था और याकूब का हृदय उसकी वृद्धावस्था के पुत्र से बंधा हुआ था। वह ‘युसुफ को अपने दूसरे बच्चों से अधिक प्रेम करता था।’ PPHin 204.2
लेकिन यह प्रेम भी संकट और दुःख का कारण बनने वाला था। याकूब में अविवेकपूर्णढंग से युसुफ के लिये अपनी प्राथमिकता प्रकट की, और इससे उसके अन्य पुत्रों की ईर्ष्या उत्तेजित हो गईं। अपने भाईयों का बुरा आचरण देखकर युसुफ अत्यन्त दुखी हुआ, उसने नम्रतापूर्वक उनका विरोध करना चाहा, लेकिन इसके परिणामस्वरूप उनकी घृणा और द्वेष और जागृत हो गये। वह उन्हें परमेश्वर के प्रति पाप करते हुए सहन नहीं कर सका औरइस आशा में कि उसके आदेश पर वे सुधार जाएंगे, उसने इस विषय को अपने पिता के सामने रखा। PPHin 205.1
याकूबने सावधानी बरतते हुए कठोरता और ककर्शता से उनके कोध को नहीं भड़कने दिया। भावुक होकर उसने अपने बच्चों के लिये चिंता की अभिव्यक्ति की, और उनसे विनती की वेउसके पलित केशों का सम्मान करे और उसके नाम को बदनाम ना करें और विशेषकर परमेश्वर के सिद्धान्तों का तिरस्कार न करें उसके अपमानित न करें। अपनी दुष्टता के ज्ञात होने पर शर्मशार, नौजवान पश्चतापी प्रतीत तो हुए, लेकिन वे केवल अपनी वास्तविक भावनाएँ छुपा रहे थे जो इस खुलासे से और भी कटु हो गई थी। PPHin 205.2
युसुफ के लिये एक महँगे अंगरखेका विवेकहीन उपहार, जो विशिष्टता प्राप्त व्यक्ति ही पहना करते थे, उसके भाईयों को अपने पिता की एकपक्षीयता का प्रमाण लगा और उनमें सन्देह उत्पन्न हो गया कि अपने ज्येष्ठ पुत्रों के बजाय वह जन्मसिद्ध अधिकार राहेल के पुत्र को देने की मंशा रखता है। युसुफ ने एक स्वप्न देखा और अपने भाईयों से उसका वर्णन किया, तब वे उससे और भी द्वेष करने लगे। उसने उनसे कहा, “जो स्वप्न मैंने देखा है उसे सुनो हम लोग खेत में पूले बांध रहे थे, और क्या देखता हूँ कि मेरा पूला उठकर सीधा खड़ा हो गया, तब तुम्हारे पूलों ने मेरे पूले को चारो तरफ से घेर लिया और उसे दण्डवत किया ।”PPHin 205.3
तब उसके भाईयों ने द्वेषपूर्ण कोध में उससे कहा, “क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा? या क्या सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा?PPHin 205.4
फिर उसने एक और स्वप्न देखा, और अपने भाईयों से उसका भी या वर्णन किया, “सूर्य और चन्द्रमा और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत कर रहे हैं।” इस स्वप्न को भी पहले स्वप्न की तरह सहर्ष व्याख्या कर दी गई। तब उसके पिता ने, जो वहां उपस्थित था, उसको डॉट कर कहा, “यह कैसा स्वप्न है जो तू ने देखा हैं? क्या सचमुच मैं और तेरी माता और तेरे भाई सब जाकर तरे आगे भूमि पर गिरकर दण्डवत करेंगे?” यद्यपि याकूब के शब्दों में ऊपरी तौर पर कठोरता थी लेकिन वह जानता था कि परमेश्वर युसुफ को भविष्य दिखा रहा था। PPHin 206.1
अपने भाईयों के सामने खड़े किशोर की सुन्दर मुखाकति प्रेरणा के आत्मा से दमक उठी और वे उसकी सराहना करने से स्वयं को नहीं रोक सके, लेकिन उन्होंने अपने दुष्टतापूर्ण तरीकों का परित्याग नहीं किया और वे उनके पापों की निन्दा करने वाली पवित्रता से घृणा करते थे। जिस भावना ने कैन को सक्रिय किया, उनके हदयों में भी प्रज्वलित थी। PPHin 206.2
भाई को अपनी भेड़-बकरियों के लिये चरागाह ढूंढते हुए एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता था और वे प्रायः घर से कई महीनों तक अनुपस्थित होते थे। वर्णन की गईं परिस्थितियों के बाद, वे उस स्थान पर गए जिसे उनके पिता ने शकेम में खरीदा था। जब अधिक समय बीत गया और उनसे कोई समाचार न मिला तो शकेम वासियों से उनकी शत्रुता के आधार पर, पिता उनकी चिंता करने लगा। इसलिये उसने युसुफ को उन्हें ढूंढने के लिये और उनके कुशल क्षेम में होने का समाचार लाने को कहा। यदि याकूब, युसुफ के प्रति, अपने अन्य पुत्रों की भावनाओं से परिचित होता तो वह युसुफ को उनके पास अकेला नहीं भेजता, लेकिन यह बात उन्होंने भली-भांति छुपा रखी थी। PPHin 206.3
प्रसन्नचित युसुफ अपने पिता से विदा हुआ, वृद्ध पुरूष और नौजवान ने स्वप्न में भी वह नहीं सोचा जो उनके दोबारा मिलने से पहले होने वाला था। जब एक लम्बी, एकान्त यात्रा के बाद युसुफ शकेम पहुँचा तो उसके भाई वहां नहीं थे। पूछताप करने पर उसे दोतान जाने का निर्देश मिला। वह पचास मील की यात्रा कर चुका था और उसके सामने पन्द्रह मील की दूरी और थी, लेकिन अपने पिता की चिन्ता को दूर करने के विचार से और अपने भाईयों से, जिन्हें वह उनकी निर्दयता के बावजूद प्रेम करता था,मिलने के विचार से चलता गया। PPHin 206.4
उसके भाईयों ने उसे आते हुए देखा, लेकिन उनसे मिलने हेतु उसकी लम्बी यात्रा, उसकी भूख और थकान, उनके सत्कार और भाईचारे पर उसके अधिकार के किसी भी विचार ने उनकी घृणा की कड़वाहट को नहीं हटाया। उसके अंगरखे को देखकर, जो उनके पिता के प्रेम का प्रतीक था, उन पर एक पागलपन सा सवार हो गया। वे उस पर व्यंग्य करते हुए बोले, “देखो वह स्वप्न देखने वाला आ रहा है।” अब वे द्वेष और प्रतिशोध, जिसे वे गुप्त रूप से संजोए थे, के अधीन थे। “आओ, हम उसको घात करके किसी गड्ढे में डाल दे, और यह कह देंगे कि कोई बनेला पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नों का क्या फल होगा ।” उन्होंने कहा।PPHin 206.5
रूबेन न होता तो वे अपनी योजना कियांवित कर देते। रूबेन अपने भाई के वध मे भागीदार नहीं होना चाहता था, और उसने प्रस्ताव रखा कि युसुफ को गड्डेमें जीवित डाल दिया जाए और उसे वहां मरने के लिये छोड़ दिया जाए। वह उसको उनके हाथ से छूड़ाकर पिता के पास फिर पहुँचना चाहता था। सबको इस योजना पर सहमत होने के लिये कायल कर रूबेन ने दल को वही छोड़ दिया क्योंकि उसे डर था कि वह अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण नहीं रख पाएगा और उसकी वास्तविक मंशा प्रकट हो जाएगी ।PPHin 207.1
युसुफ, संकट से निःस्सन्देह आगे आता गया इस प्रसन्नता से उसका अपने भाईयों को दूँढना व्यर्थ न गया, लेकिन अपेक्षित अभिवादन के स्थान पर अपने भाई की कोधपूर्ण और प्रतिशोध की दृष्टि से वह डर गया। उसको पकड़ कर उसके अंगरखे को उतार लिया गया। ताने और धमकियाँ प्राणघाती योजना का संकेत दे रही थी। उसकी विनतियों को अनसुना कर दिया गया वह पूरी तरह उन कोधपूर्ण मनुष्यों के बस में था। निर्दयता से गहरे गड्ढे की ओर घसीटते हुए, उन्होंने उसको गड्ढे में फेंक दिया और निश्चित करने के बाद कि उसके वहां से भागने की कोई संभावना नहीं, उन्होंने उसको वहां भूख से मरने के लिये छोड़ दिया, और स्वयं ‘रोटी खाने को बैठे।’PPHin 207.2
लेकिन कुछ अभी भी परेशान थे, उन्होंने अपने प्रतिशोध से अपेक्षितसन्तुष्टि का आभास नहीं हुआ। जल्द ही यात्रियों का एक दल आता हुआदिखाई दिया। यह यरदन नदी के पार से इश्माएलियों का कारवाँ था जो ऊंटोपर सुगन्धद्रव्य, बलसान और गन्धरस लादे हुए मिस्र को चला जा रहा था। अबयहूदा ने प्रस्ताव रखा कि युसुफ को मरने के लिये छोड़ देने के बजाय वे अपनेभाई को उन अधर्मी व्यापारियों के हाथ बेच दें। इस तरह वह उनके रास्ते से भीहट जाएगा और उसके खून का आरोप उन पर न होगा, क्योंकि उसने आग्रह किया, “वह हमारा भाई और हमारी ही हड्डी और मॉाँस है।” इस प्रस्ताव को सबने मान लिया और युसुफ को जल्दी से गड्ढे से बाहर खींचा गया।PPHin 207.3
जब उसने व्यापारियों को देखा, भयानक सच्चाई उसके सामने आ गई । दासत्व मृत्यु से भी अधिक भयानक था। भयभीत पीड़ा में उसने एक के बाद एक अपने भाईयों से विनती की परन्तु वे व्यर्थ गई। कुछ दया से प्रभावित हुए लेकिन घृणापूर्ण उपहास के डर से वे चुप रहे, सब को लगा कि पीछे हटना अब सम्भव न था। यदि युसुफ को छोड़ दिया गया तो वह निस्सन्देह अपने पिता को सब कुछ बताएगा और पिता अपने अति प्रिय पुत्र के प्रति उनकी निर्दयता को अनदेखा न करेगा। उसकी विनतियों के प्रति अपने हृदयों को कठोर करके, उन्होंने उसे अधर्मी व्यापारियों के हाथ बेच दिया। कारवाँ चला गया और जल्दी ही दृष्टि से ओझल हो गया।PPHin 208.1
रूबेन गड्ढे के पास लौटा, लेकिन युसुफ वहां न था। विस्मय और आत्मतिरस्कार में उसने अपने कपड़े फाड़ डाले। अपने भाईयों के पास लौटकर उसनेकहा, “लड़का तो नहीं है, अब मैं किधर जाऊँ?” युसुफ का भाग्य जानते हुए किउसे पुनः प्राप्त करना असम्भव था, रूबेन को अन्य भाईयों के अपराध को छुपानेके प्रयत्न में सम्मिलित होने को मनाया गया। उन्होंने युसुफ का अंगरखा लियाऔर एक बकरी के बच्चे को मार कर उसके लहू में उसे डुबा दिया और उसेअपने पिता के पास ले गए और उससे कहा कि वह उनको खेतों में मिला थाऔर उन्हें डर था कि वह उनके भाई का था। “देखकर पहचान” उन्होंने कहा, “कि यह तेरे पुत्र का अंगरखा है कि नहीं”। उन्होंने इस दृश्य की अपेक्षा की थी, लेकिन वे उस हृदय भेदी वेदना और अत्याधिक शोकके लिये तैयार नहीं थे, जिसे देखने के लिये वे विवश हो गए । याकूब ने कहा, “हाँ, यहा मेरे ही पुत्र काअंगरखा है, किसी दुष्ट पशु ने उसको खा लिया है, निस्सन्देह युसुफ फाड़ डालागया है।” उसके पुत्र और पुत्रियों ने व्यर्थ में उसे सांत्वना देने का प्रयत्न किया।तब याकूब ने “अपने वस्त्र फाड़े और कमर में टाट लपेटा ओर अपने पुत्र केलिये बहुत दिनों तक विलाप करता रहा।” समय उसके दुख को कम न करसका। वह यही कहता रहा, “मैं तो विलाप करता हुआ अपने पुत्र के पासअधोलोक में उतर जाऊंगा ।” नौजवान अपने द्वारा किये गये कृत्य से भयभीत थे, लेकिन अपने पिता की डांट के डर से, उन्होंने अपने अपराध को अपने हृदयों मेंछुपाए रखा जो उन्हें भी अत्यन्त भारी लग रहा था।PPHin 208.2