लाता मुझ को जो चरणों पर,
वह समय प्रार्थना का सुंदर
उष:काल से सांय तक,
उससे न कोई सुंदर तर॥
वह धन्य प्रात है शांत मधुर
धन्य अरे सायं सुंदर
जब छोड़ चलूँ जगति तल को
प्रार्थना के पंखों पर चढ़ कर॥
मुझ को नविन तू देते कर,
पाप क्षमा करके ईश्वर!
पुलकित करते मेरे एकांत,
स्वर्गों की आशाकें भर॥
जब तक करता जीवन को पार
तब तक कर लो वह स्वीकार
प्रार्थना में करता रहूँ अर्पित
अंतरस्थल के सारे उध्दार SC 107.1