Go to full page →

मेरे जीवन, मेरे सर्वस्व SC 106

मेरे पग के चिर-प्रकाश। मैं भ्रष्ट पथिक पर तुम बल हो।
करुणा प्रदेश की निर्झरिणी, पथिकहित सरित विमल जल हो॥
अन्तर की आकुल मुख हेतु, भोजन पवित्र और निर्मल हो।
मेरे पथ के प्रदर्शक। जीवन अनन्त के संबल हो॥ रजनी में ज्योतिषपुंज बनो, दिन में तुम स्वर्गीय प्रभा बनो।
लहरें यदि भग्न करे नौका, मेरे हित लंगर, कुल बनो॥
हे अनन्त प्रभु की वाणी। उनके सुपुत्र की सद्इच्छा।
जीवन के साधन और स्वर्ग प्राप्ति के सोपान बनो॥ SC 106.2