Go to full page →

अस्वास्थ्यकर अध्ययन का प्रभाव ककेप 226

शैतान जानता है कि मष्तिष्क अधिकतर उन चीजों से प्रभावित होता है जिनके द्वारा उसका पोषण होता है.वह नवजवानों को और प्रौढों को कहानी,उपन्यास अन्याय साहित्यों को पढ़ने की प्रेरणा करता हैं.इस प्रकार के साहित्य का अध्ययन करने वाले, जीवन के उत्तम कर्तव्यों को पूरा करने में सदैव अयोग्य रहे हैं.उनका जीवन वास्तविक नहीं,उनके हृदय में धर्मशास्त्र में ढूंढने की इच्छा नहीं,स्वर्गीय मान द्वारा खिलाये नहीं जाते.मस्तिष्क,जिसको शक्ति की आवश्यकता है वह निर्बल हो जाता है तथा उसमें मसीह के कार्य,नियोग तथा उन महान सत्यों को समझने की क्षमता नहीं रहती.वे सत्य जो मस्तिष्क की रक्षा करें, कल्पना जाग्रत करें और विजयी होने की सुदृढ भावना उत्पन्न करें जैसा मसीह स्वयं विजयी था. ककेप 226.3

यदि ऐसी असंख्या पुस्तकों का प्रकाशन बन्द हो जाये तो एक महारोग दूर हो जाएगा जो लोगों के हृदय और मष्तिष्क में एक भयानक रुप ले रहा है.प्रेम सम्बन्धी कहानियाँ और उत्तेजित करने वाली अश्लील कहानियाँ और यहाँ तक कि उस श्रेणी की पुस्तकें जो धार्मिक उपन्यास कहलाती हैं जिनमें लेखक कथों के साथ नैतिक शिक्षा जोड़ देते हैं पाठकों के लिए पाप है.धार्मिक विचार कहानी के रुप में लिखे जा सकते हैं परन्तु अधिकतर, शैतान ही स्वर्गदूत के भेष में होता है यही सबसे अधिक धोखा और छल का प्रमाण है.कोई भी अपने सिद्धान्तों में ऐसा दृढ़ नहीं,न कोई परीक्षाओं से रहित कि वे ऐसी कथाओं के पाठन में सुरक्षित रह सकें, ककेप 226.4

उपन्यासों के पाठक ऐसी बुराई में पड़े हैं जिससे आत्मिकता, पवित्र पुस्तकों की सौंदर्यता नष्ट होती है.यह अस्वास्थ्यकर उत्तेजना काल्पनिक बिगाड़ पैदा करती, मष्तिष्क की योग्यता का हरण करतो, आत्मा को प्रार्थना में दुर्बल बनाती तथा आत्मिक अभ्यास के अयोग्य ठहराती है. ककेप 227.1

ईश्वर ने हमारे नव युवकों को उत्तम योग्यतायें दी हैं किन्तु अक्सर उन्होंने इस का दुरुपयोग करके मस्तिष्क को गड़बड़ में डालकर निर्बल किया है;अत एव उन्होंने कई वर्षों से अनुग्रह व विश्वास के ज्ञान में उन्नति नहीं की, अपने बुद्धिहीन अध्ययन के चुनाव के कारण वे जो अपने प्रभु के शीघ्र आगमन की प्रतीक्षा करते, और उस अद्भूत परिवर्तन की आशा में जब कि यह विनाशी अविनाश को पहिन लेगा क्या इस अनुग्रहकाल में कार्य के उच्च क्षेत्र में लिये खड़े न हों जाएँ. ककेप 227.2

मेरे नव जवान मित्रों, अपने व्यक्तिगत अनुभव से इन उत्तेजन कथाओं के प्रभाव का विचार कीजिए.क्या आप ऐसे पाठन के पश्चात् अपनी बाइबल खोल कर दिलचस्पी से जोवन के वचनों को पढ़ सकते हैं? क्या आप को ईश्वर की पुस्तक अरुचिकर मालूम होती है? प्रेम कथाओं का आकर्षित मस्तिष्क पर अधिक है, उसके स्वास्थ्य को नष्ट करने वाल तथा उस अनन्त कल्याण से सम्बन्धित,महत्वपूर्ण,गम्भीर सत्यों पर आप के चित को क्रेन्द्रित होने को असम्भव बना देता है. ककेप 227.3

इस प्रकार के व्यर्थ अध्ययन का दृढ़ता पूर्वक त्याग कर दीजिए. इससे आप की आत्मिकता नहीं बढ़ेगी किन्तु इससे मस्तिष्क में ऐसी भावना उत्पन्न होगी जिससे कल्पना में बिगाड़ होगा और आप मसीह के विषय में सोचेंगे और उसके बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं पर आधारित नहीं रह सकेंगे.मस्तिष्क को प्रत्येक ऐसी बातों से अलग रखिए जिससे वह गलत रास्ते में न जा सके. ऐसी व्यर्थ कहानियों से अपने को बोझिल न कीजिए जिनसे बौद्धक शक्ति नहीं बढ़ती जैसा भोजन मस्तिष्क को मिलता हो विचार उसो प्रकार के होंगे. ककेप 227.4