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अध्ययन जिससे आत्मा नष्ट होती है. ककेप 227

उस साहित्य की अपार बाढ़ के साथ जो निरन्तर प्रेम से प्रकाशित होता रहता है,बूढे और नौजवानों में शीघ्र और सरसरी पढ़ने की आदत डाल देते हैं, जिससे मस्तिष्क पापस्परिक शक्ति खो बैठता है. इसके अतिरिक्त पुस्तकों और पत्रिकाओं का अधिकाशं मिस्र के मेढ़कों को भांति देश के ऊपर फैल रहे हैं, ये सिर्फ मामूली,निकम्मे,शक्ति हीन ही हैं अपितु, अशुद्ध और विनाशक है. इनके प्रभाव से मस्तिष्क मतवाला हो नष्ट तो होता ही है साथ ही आत्मा भ्रष्ट हो सत्यनाश हो जाती है. ककेप 227.5

बालकों और नव युवकों की शिक्षा में कहानियां और दन्तकथाओं ने अधिक स्थान प्राप्त कर लिया है.इस प्रकार की पुस्तकें विद्यालयों और घरों में पाई जाती हैं.किस प्रकार मसीहो माता पिता अपने बालकों को ऐसी पुस्तकें पढ़ने के लिए आज्ञा दे सकते हैं जो निरे झूठ से भरी हुई है;जब कि बालक इन कथाओं का मतलब अपने माता-पिता से पूछते हैं जो उनकी शिक्षा के विपरीत हैं तो इसका उत्तर है कि वे कथायें सत्य नहीं हैं, लेकिन केवल इससे उस दुष्परिणाम का प्रभाव नहीं जाता जो इसके इह्यतेमाल से होता है.इन पुस्तकों के विचार बालकों को गलत रास्ते में ले जाते हैं, वे जीवन का झूठा लक्ष्य और अस्वाभाविक तथा असत्यता के विचार उत्पन्न करती है. ककेप 227.6

कभी भी सत्य का बिगाड़ करने वाली पुस्तकें वालकों तथा नव जवानों के हाथ में न दीजिए. हमारे बालकों को शिक्षा प्राप्ति के समय इन विचारों में न पड़ने दें जो वाद में पाप का बीज सिद्ध हो. ककेप 228.1

एक दूसरा बड़ा भय जिसके प्रति हमें सावधान रहना चाहिए वह यह है हम नास्तिक लेखकों की किताबों का अध्ययन न करें. ऐसे ग्रन्थ सत्य के शत्रु द्वारा प्रेरित होते हैं और कोई भी आत्मा को हानि पहुंचाये बिना इन्हे नहीं पढ़ सकता. यह सत्य है कि कुछ जो प्रभावित होते हैं अन्त में स्वस्थ हो जाते हैं;परन्तु जितने उसके दुष्परिणाम के साथ हस्तक्षेप करते हैं अपने को शैतान की भूमि में रखते हैं जिससे वह खूब लाभ उठाता है. जब वे उसके प्रलोभनों का स्वागत करते हैं तो उनमें समझने की बुद्धि तथा उनका विरोध करने की शक्ति नहीं रहती.अविश्वास तथा नास्तिकता आकर्षता तथा जादू की तरह मस्तिष्क पर प्रभाव डाल देते हैं. ककेप 228.2