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मसीही शिक्षा का परिणाम ककेप 269

जिस प्रकार बालकों ने मंदिर के आंगन में चिल्लाकर गाया था, ” जय जय, धन्य वह जो परमेश्वर के नाम से आता है’’(मार्क 11:9)उसी प्रकार बालकों की आवाजें इन अंतिम दिनों में भी नाशमान जगत को चितावनी के संदेश देने के लिए उठेगी.जब स्वर्गीय प्राणी देखेंगे कि पुरुषों को सत्य के प्रचार करने की आज्ञा नहीं रही तो परमेश्वर का आत्मा बालकों पर उतरेगी और वे सत्य प्रचार की कार्य करेंगे जिसको बड़ी उम्र के लोग नहीं कर सकेंगे क्योंकि उनका मार्ग बन्द हो गया. ककेप 269.3

हमारे चर्च स्कूलों का संस्थापन परमेश्वर की ओर से हुआ है कि बालक इस भारी काम के लिये तैयार किये जाये.जहां बालकों को इस समय के लिये विशेष सत्यों के सम्बंध में और व्यावहारिक धार्मिक कार्य के सम्बंध में शिक्षा दी जावे.उन्हें कर्मचारियों की सेना में भरती होना चाहिये जिससे बीमारों और दीनदुखियों की सहायता हो.बालक धार्मिक स्वास्थ सबंधी कार्य में भाग ले सकते हैं और अपनी छोटी-छोटी रकमों और कर्मों से उसको आगे बढ़ा सकते हैं.उनकी रकम छोटी क्यों न हो परन्तु बून्द बून्द से घड़ा भरता है और उनकी मेहनतों से बहुत सी आत्माएं सत्य के लिये जीती जाएंगी.उनके द्वारा परमेश्वर का संदेश और उसका स्वास्थ्य रक्षक संदेश राष्ट्रों को पहुंचाया जा सकता है.तब तो मंडली को झुंड के मेम्नों का दायित्व उठाना चाहिये.बालकों को शिक्षा दी जानी चाहिये कि परमेश्वर की सेवा करें क्योंकि वे परमेश्वर की मीरास हैं. ककेप 269.4

जिन स्थानों में हमारे चर्च स्कूल स्थापित हैं यदि वे सुव्यवस्थित रूप में चलाये जाये तो सत्य के स्तर को ऊंचा करने में वे एक अच्छे साधन सिद्ध होंगे क्योंकि जो बालक मसीही तालीम पर रहे हैं वे मसीही के लिये गवाह होंगे.जिस भांति यीशु ने उन रहस्यों को हल किया जो याजको और सरदारों के कभी ध्यान में भी न आये थे.इसी प्रकार इस पृथ्वी के अंतिम कार्य के समय जिन बालकों की यथोचित शिक्षा हुई है वे अपनी सरल भाषा में ऐसी-ऐसी बातें कहेंगे जो उन लोगों को जो इस समय उच्चशिक्षा का वर्णन करते हैं आश्चर्यचकित कर देंगे. ककेप 269.5

मुझे दिखलाया गया कि परमेश्वर ने हमारा कालेज आत्माओं को बचाने के लिये स्थापन किया.जब कोई व्यक्ति परमेश्वर की आत्मा के पूर्ण नियंत्रण में लाया जाता है तभी उसकी योग्यता पूर्ण रूप से सफल होती है.धार्मिक सिद्धान्त ज्ञान प्राप्ति में महिमा पग हैं जो सच्ची शिक्षा की बुनियाद है.सर्वोत्म उद्देश्य प्राप्ति के लिये ज्ञान और विज्ञान दोनों परमेश्वर की आत्मा द्वारा अनुप्रणित किया जाना चाहिये.केवल मसीही पुरुष ज्ञान का यथोचित उपयोग कर सकता है.यदि विज्ञान का मूल्य रीति से पहचाना हो तो उसको धार्मिक दृष्टिकोण से देखना चाहिये.परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा जिसका हृदय उन्नत किया गया है वही शिक्षा का असली मूल्य समझ सकता है.परमेश्वर के गुणों की जो उसकी सृजित वस्तुओं में प्रगट है उसो समय कद्र की जा सकती है जब हमें सृष्टिकर्ता का ज्ञान हो.युवकों की सत्य के स्त्रोत,परमेश्वर के मेम्ने के पास जो जगत के पाप उठा लेता है ले जाने के अभिप्राय से अध्यापकों को केवल सत्य के सिद्धान्त ही से जानकारी नहीं होनी चाहिये अपितु पवित्रता के मार्ग के प्रति व्यवहारिक ज्ञान होना जरुरी है.जब ज्ञान वास्तविक ईश्वर भक्ति से संयुक्त होता है तो एक शक्ति बन जाती है. ककेप 270.1