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मंडली की सम्पति ककेप 108

जब किसी नगर व कस्बे में दिलचस्पी पैदा हो जाये तो उसको जारी रखना चाहिये.उस जगह में पूर्ण नीति से तब तक कार्य होना चाहिये जब तक उपासना का एक छोटा गिरजाघूर चिन्ह स्वरुप खड़ा न कर दिया जाय जो परमेश्वर के सब्बत का स्मारण और नैतिक अंधकार के बीच प्रकाश जैसा प्रतीत हो.ये स्मारण जगह -जगह स्थापन होना चाहिये कि सत्य के लिये गवाह ठहरे. ककेप 108.5

मंडली से सम्बंधित कार्य के किसी अनिश्चित स्थिति में नहीं छोड़ देना चाहिये.ऐसा कदम उठाना चाहिये कि परमेश्वर के कार्य के लिये मंडली के लिये सम्पति (जायदाद)प्राप्त हो जाय जिससे काम की उन्नति में ढील ढाल न हो और वह धन जिसे लोग परमेश्वर के कार्य में अर्पण करना चाहते हैं शत्रु के हाथ में न चला जाय. ककेप 108.6

मैं ने देखा कि परमेश्वर के लोगों को होशियारी से काम करना चाहिये और मंडली के कार्य को सुरक्षित दशा में रखने के हेतु कुछ भी अधुरा न छोड़ा जाय.फिर सब कुछ करने के बाद वे परमेश्वर के ऊपर छोड़ दें कि वह सारी बातों को दूर करे जिससे शैतान परमेश्वर के शेष लोगों के प्रति लाभ न उठावे.अब शैतान के काम करने का समय आया है.हमारे आगे तूफानो भविष्य उपस्थित है और मंडली को जागना चाहिये कि आगे बढ़ें ताकि वे उसकी योजनाओं के विरुद्ध अडिग रह सकें.समय आया है कि कुछ न कुछ किया जाय.परमेश्वर इस बात से प्रसन्न नहीं होता कि उसके लोग मंडली के मामले को ढीला ढाला छोड़ दें और शत्रु (शैतान)को पूरा लाभ उठाने का मौका दें ताकि वह सारे मामलात को जैसा उसकी इच्छा हो अपने काबू में कर ले. ककेप 109.1