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मसीह का इकरार अथवा इन्कार ककेप 139

समाज में परिवारों में अथवा जीवन के किसी भी लोगों से हम अपने प्रभु की इकरार कर सकते हैं और कई तरह से उनको नकार भी सकते हैं. हम उसको अपनी बातों से, दूसरों की बुराई करने से,मूर्खता की बातों से,हंसी ठट्टा करने से निकम्मे अथवा कठोर शब्द बोलने से, सत्य को दबा कर उसके विरुद्ध बात करने से,उसको इन्कार कर सकते हैं.हम अपनी बातों द्वारा प्रकट कर सकते हैं कि मसीह हमारे मन में बास नहीं करता है. जीवन के कर्तव्यों और भारों को उठाने से मुंह मोड़ने द्वारा जिन्हें किसी और को अवश्य उठाना होगा. यदिच हम न करेंगे और भोग विलास प्रेमी होने द्वरा भी हम उनका इन्कार कर सकते हैं. हम वस्त्र के अभिमान और संसार की रीति पर चलने द्वरा अशिष्ट व्यवहार द्वारा उनका इन्कार कर सकते हैं. हम अपनी ही अनुभूति को प्रिय समझने और स्वयं का समर्थन करने द्वारा उनका इन्कार कर सकते हैं. मन को प्रेम में डूबी भावुकता के भाग की ओर ले जाने और अपने तथा कथित दुर्भाग्य और परीक्षाओं में डूबे रहने से हम उनका इन्कार कर सकते हैं. ककेप 139.3

जब तक मसीह का मन और आत्मा मन में बास नहीं करेगा तब तक संसार के सामने कोई उसकी वास्तविक रुप से गवाही नहीं दे सकता है जो हमारे पास नहीं है;उसको हम दूसरों तक नहीं पहुंचा सकते. हृदय अनुग्रह और सत्य का असली और प्रत्यक्ष प्रकटीकरण बातचीत और व्यवहार में होना अवश्य है.यदि हृदय पवित्र सहिष्ण और नम्र है तो फल भी प्रत्यक्ष होंगे. और मसीह के लिए एक प्रभावशाली साक्षी सिद्ध होंगे. ककेप 140.1