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निराशाजनक स्थिति का सामना कैसे करें ChsHin 184

परमेश्वर के दासों को हर प्रकार के निराषा के लिये तैयार रहना चाहिये। उन्हें परखा जायेगा, न केवल लोगों को गुस्सा, घष्णा, दुष्मनों का अत्याचार से बल्कि आलस्य, विरोध, गुनगुनापन तथा मित्रों व साथियों का कटाक्ष । यहां तक कि कुछ लोग तो परमेश्वर के काम को बढ़ाना चाहते हैं फिर भी अपने साथियों की हिम्मत बढ़ाने के बदले उनकी कही-सुनी बातों पर विश्वास करते और अपने आप पर गर्व करते हैं, लोगों की चुगली करना और रास्ते में रूकावटें खड़ी करना आदि । नहेम्याह ने ऐसी स्थिति में केवल परमेश्वर पर भरोसा किया क्योंकि वही हमारा रक्षक है। यदि हम याद रखें कि प्रभु यीशु ने हमारे लिये क्या किया था तो हम हर खतरे का सामना कर सकेंगे। ChsHin 184.3

“वह, जिसने अपने इकलौते पुत्र को भी न रख छोड़ा उसे हमारे लिये दे दिया, वह क्यों हमें उसके साथ वह सब कुछ सेतमेत नहीं देगा जिसकी हमें जरूरत है। और “जब परमेश्वर हमारे साथ है तो हमारा बैरी कौन हो सकता है?” भले ही पैतान और उसकी सेना बड़ी चतुराई से रहस्यमय शड़यंत्र क्यों न रच ले, परमेश्वर उसे जान लेगा और उसे और उसकी सेना को नाकाम कर देगा। (द सदर्न वॉचमेन- 19 अप्रैल 1904) ChsHin 185.1

वे जो इस संघर्श का सामना डटकर कर रहे हैं, वे पवित्र आत्मा के द्वारा एक विशेष काम को करने के लिये उत्साहित किये गये हैं, जल्दी ही उस प्रतिक्रिया को महसूस करेंगे जब उन पर से दबाव कम हो जायेगा। निराशा षायद उनके सबसे दृढ़ विश्वास को लड़खड़ा दे और उनकी मजबूत इच्छा को कमजोर बना दे। किन्तु परमेश्वर जानता है और फिर भी हम पर दया दिखाता और प्रेम करता है। वह हमारे इरादे जानता और हृदय के उद्देष्यों को भी जानता है। धीरज धरना, अंधकार व निराशा में भी प्रभु पर भरोसा रखना, वे पाठ हैं जो परमेश्वर का काम करने वालों को सीखने की जरूरत है। मुसीबत के समय में परमेश्वर उनको निराष नहीं होने देगा। दिखने में कोई वस्तु निराषा जनक दिखाई दे सकती है फिर भी वह अजेय होती है। उस आत्मा से जो अपने आप को षून्य कर, पूरी रीति से यहोवा परमेश्वर पर निर्भर रहता है वही विजयी होता है। (प्रोफेट्स एण्ड किंग्स- 174, 175) ChsHin 185.2

प्रभु उन सिपाहियों को बुलाता है, जो न जो निराष होंगे और न असफल होंगे। लेकिन विपरित परिस्थितियों में भी काम करना स्वीकार करेंगे। वह चाहता है, कि हम सब के सब मसीह की लीक पर चलें। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड- 17 जुलाई 1894) ChsHin 185.3

आज जो उस बिन बताये सत्य का प्रचार करते हैं, उन्हें हतोत्साह होने की जरूरत नहीं। यदि वे समय-समय पर लोगों से आत्मियता का व्यवहार नहीं पाते जबकि वे अपने आप को मसीही कहते है। क्योंकि पौलुस और उसके साथी कार्यकर्ताओं ने भी उन लोगों से वैसा ही व्यवहार पाया था, जिसके लिये उन्होंने परिश्रम किया था। क्रूस की कथा सुनाने वालों को अपने आप को सर्तकता और प्रार्थना के कवच से तैयार कर लेना चाहिये और तब हिम्मत और विश्वास के साथ आगे बढ़ना और प्रभु यीशु के नाम का प्रसार करना चाहिये। (द एक्ट्स ऑफ अपॉसल्स- 230) ChsHin 185.4