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प्राचीन इजराइल की असफलता से सीख ChsHin 253

जब इजराइल कनान देश में प्रवेश किये, तब उन्होंने प्रभु के उद्देश्य को पूरा नहीं किया जो कि सम्पूर्ण इजराइल पर अधिकार करना था। थोड़े से भाग पर जीत हासिल कर बेखुशियाँ मानने लगे। उनके अविश्वास और आराम पंसदगी से वे एक ही जगह इकट्ठे हो गये जहाँ उन्होंने पहले से डेरा जमाया था। उन्होंने अपनी सीमा को आगे बढ़ाकर नये इलाके नहीं बसाये । और इस प्रकार वे परमेश्वर से दूर होने लगे। अपनी नाकामयाबी, जो उन्होंने परमेश्वर की इच्छा पूरी नहीं करके की थी। उसके कारण वे परमेश्वर से वह सब आशिषे पाने में नाकामायब रहे, जो परमेश्वर ने वायदा किया था, क्या आज भी कलीसियायें यही काम नहीं कर रही? उनके सामने सारा जगत सुसमाचार प्रचार के बिना पड़ा है, और वे जगह इकट्ठे होते जहाँ केवल वे ही सुसमाचार की सुविधा का आनन्द ले सकते है। वे नई जगहों पर जाने की जरूरत महसूस नही करते और न उद्धार के संदेश का दूर-दराज के इलाकों में पहुँचाने की जरूरत मसहसू करते है। वे प्रभु यीशु के काम को पूरा करने से इंकार करते है “जाओं जगत भर में फैल आओं और समाचार प्रचार हर एक प्राणी को सुनाओं। क्या ये कम गुनाहागार है, यहूदियों की कलीसिया से? (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 8:119) ChsHin 253.3