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सहायता हेतु हाथ बढ़ाना ChsHin 260

पाप सब बुराईयों से बड़ा है। औ ये हमारा कर्तव्य है कि हम उस पर दया करें और उस गुनहागार की मदद करें। किन्तु सभी लोगों का इस तक पहुंचना संभव नही ऐसे कई है। जो अपनी आत्मिक भूख को छिपाते है ये काफी हद तक सहानुभूति के शब्द और दया से याद रखने के द्वारा सहायता पासकते है। अन्य भी है। जिन्होंने सबसे ज्यादा जरूरत है, तब भी ये नहीं जानते हैं। वे इस बात का अहसास ही नहीं करते कि इन आत्माओं को कितनी जरूरत है। लाखों लोग पाप में इस कदर डूब गये हैं कि वे अनतकाल की सच्चाईयों को भूल चुके है। प्रभु के स्वरूप को खो चुके हैं और शायद उन्हें ये नहीं मालूम की जो आत्मा उनमें है। उसे बचाया जा सकता है, या नहीं? उनका भरोसा न परमेश्वर में है और न इन्सान पर इन में कई लोगों के पास तब ही पहुंचा जा सकता है, जब अरुिचपूर्ण दयालुता का काम किया जाये। उनकी भौतिक जरूरतों की चिंता पहले करनी होगी। उनको भोजन देना होगा, उन्हें नहला-धुलाकर कर साफ वस्त्र पहने होगे। जब वे स्वयं तुम्हारे निस्वार्थ प्रेम को अपनी आखो से देखेगें। तब उनके प्रभु यीशु के प्रेम पर विश्वास करना आसान होगा। अनेक लोग गलतियाँ और लज्जा को महसूस भी करते हैं। वे अपनी बुराईयों को नजर अंदाज करते चले जाते है और फिर उनके लिये बुराईयां और कुछ नहीं केवल उदण्डता हो जाती है। ऐसे लोगों को नकारा नहीं जाना है। जब किसी भी पानी के बहाव के विपरीत दिशा मे तैरना होता है, तब उसे एक हाथ की आवश्यकता होती है जैसे पतरस को पानी में डूबते समय उसके है। बड़े भाई ने हाथ पकड़कर उसे डूबने से बचाया था |उस समय उससे आशावादी शब्द कहे जो उसमें आत्मविश्वास जगायेगें और सोये हुये प्रेम को जगायेंगे। (काइस्ट्स ऑब्जेक्ट लैसंस 387) ChsHin 260.2

वह आत्मा जो पाप के जीवन में जीते हुये थक गई है, और ये नहीं जानती कि उसे चैन कहाँ मिलेगा? तब उसे प्रभु यीशु जो हमारे दुःख दुःखी होने वाला परमेश्वर है, से मिलाओं। उसे हाथ पकड़ कर ले जाओं, ऊपर उठा लो, उससे साहस और आशा के बारे में बात करों और उसका हाथ प्रभु के हाथ में थामने में उसकी मद्द करों। (द मिनिस्ट्रि ऑफ हीलिंग 168) ChsHin 261.1