एस सही सभ्यता और बोलने की क्षमता का उपयोग हर मसीही कार्य को करने के लिये जरुरी है। हमं आदत डालना होगी कि हम मधुर शब्दों का प्रायेग अपनी बातचीत में करें। सही व विशुद्ध शब्दों का प्रयोग सही भाषा में करें जिसमें दयालुता और नम्रमा हो। (काइस्टस ऑब्जेक्ट लैसन्स-336) ChsHin 299.4
प्रभु के घर एक सेवक और हर एक शिक्षक को यह बात अपने मस्तिष्क में याद रखनी है कि वह लोंगों तक वह संदेश पहुंचा रहा है। जिसका संबंध अनंत काल से हैं बोला गया सत्य उन्हें न्याय दिलायेगा, जब वह अन्तिम न्याय का दिन आयेगा। और कुछ आत्माओं के साथ तो जो उन्हें सुसमाचार सुना रहा है, वह स्वळ बतायेगा भी कि कितने उसे ग्रहण करने के लिये संकल्प लेते या फिर नकारने का तो वचन इस प्रकार प्रचार करों कि वह उनकी समझ में आ सकें। और उनके हदय को कायल करें। धीरे स्पष्टर रुप से और बडे ही आदर भाव से वचन बालों जाये ।फिर भी बडी भक्ति भाव से, जो उसके महत्व की मांग है। (काइस्टस ऑब्जेक्ट लैसन्स-156) ChsHin 300.1
हर मसीही को प्रभु यीशु की मफत मिलने वाले धन से परिचित करापने के लिये बुलाया गया है। इसलिये उसे बोलने में स्पष्ट और प्रवीण होने चाहियों । उसे परमेंश्वर के वचन को इस तरह प्रस्तुत करना चाहिये कि वह सुनने वालो का कायल कर दें। प्रभु यीशु ऐसा बिल्कुल नही चाहते कि उनकी मानवीय कडी अस्पष्ट या भददा हो। उसकी यह इच्छा बिल्कुल नही है। कि स्वर्ग से बहने वाली जीवन की धारा को जगत के लोगों तक पहुंचाने में मनुष्य कही भी कमजोर या अयोग्य हो। (काइस्टस ऑब्जेक्ट लैसन्स-336) ChsHin 300.2
वे धीरज दयालुता, सुशीलता ओर सहायता करने वालों के रुप में शिक्षित किये जायेंगे। वे सच्ची मसीही उदारता से तथा मस्तिष्क में मसीह जो उनका साथी है, को साथ में लिये कभी भी कठोर, और अंसयमी व बुरा बोलने वाले नही होगें। उनके पास बोलने की शक्ति ही उनाक किमती गणु होगा जो उन्हें पवित्र और बड़ा काम करने के लिये दिया गया है। (गॉस्पल वर्कर्स-97) ChsHin 300.3