मानसिक सोच उँचे व सरल हो जो हमें लोगों के रुप में अत्याधिक आवश्यक है, जिससे हम आज के समय अनुसार लोगों की मांग व जरूरतों को पूरा कर सकें। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 4:414) ChsHin 300.4
प्रभु के काम को काने में उतावली से प्रवेश करना और सफलाता की आशा करना सही नही। परमेश्वर बुद्धिमान लोगों को समझदार लोगों को अपना काम करने देना चाहता है। प्रभु अपने लिये सहयोगी चाहना है, गलतियाँ करने वाले नही। लिये जरुरी है, कर सकें। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 4:67) ChsHin 301.1
कुछ लोगो को अपन दिमाग अनुशासित करने के लिये अभ्यास करने की जरुरत होती है। उसे सोचने अभ्यास करने की जरुरत होती है। उसे सोचने पर मबूर करना चाहियें। जब वे दूसरों पर निर्भर होते कि वो हमारे लिये सोचे, उनकी समस्या का हल कोई निकाले यहाँ तक की अपने दिमाग को जरा भी काम करने देना नही चाहते तो उन की याद रखने की क्षमता, आगे के बारे में सोचना और सही गलत में उन्तर न कर पाने की अयोग्यता बरकरार रहेगी। प्रत्येक व्यक्ति को अपने मस्तिष्क को सीखने के लिये परिश्रम करना चाहियें। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 4:411) ChsHin 301.2
हर एक पल का उपयोग करो। वह समय जो यात्राओं में बिताया, खाने का इंजेतार करने का वक्त, प्रतीक्षा करने का समय जब कोई किसी से मिलने या बात करने बुलाते है। यदि एक किताब हाथ में रखी जाये और इन सब थोडे-थोडे बिताये गये समय का उपयोग पढ़ने, अध्ययन करने अच्छे विचार रिने में किया जाता तो और क्या-क्या काम नही किया जा सकता था। (काइस्टस ऑब्जेक्ट लैसन्स-334) ChsHin 301.3
पुरुषों को अपने जिम्मेदार पदों पर रहते हुये लगातार सुधार लाना है। उन्हें उपने पुराने अनुभवों पर ही निर्भर न हो और न ही यह महसूस करें कि यह जरुरी नही है। कि हम वैज्ञानिक कार्यकर्ता बन जायें। मनुष्य, जबकि जगत का सबसे कमजोर, दूसरों पर निर्भर रहने वाला प्राणी है, जो जन्म से इस जगत में अन्य लोगों पर आश्रिता होता और किसी तरह निरंतर वर्षद्ध करता चला जाता है। शायद वह विज्ञान से ज्योति पाये, गुणां में बढ़े और मानसिक और नैतिक प्रतिष्ठा मैं उन्नति करें, जब तक कि वह प्रवीणता के ऊँचे शिखर और चरित्र की शुद्धता नही पा लेता। किन्तु स्वर्गदूतों की पवित्रता और प्रवीणता से थोडा काम ही। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 4:93) ChsHin 301.4
वे जो प्रभु यीशु के साथ उसके साथी होना चाहतें है, उन्हें उपने शरीर के सारे आंगों की परिपूर्णता और मास्तिष्क को पूर्ण रुप से योग्य होना चाहिए। सच्ची शिक्षा वह है। जिसमें शारीरिक मानसिक, तथा नैतिक शक्तियों का होना जरुरी है, ताकि हर काम पूरी रीति से किया जा सकें। ये शरीर, मस्तिष्क और उात्मा का प्रशिक्षण है, जो स्वर्गीय सेवाओं के लिये उपयेगी है। यही वह शिक्षा है जो अनंत विन तक बनी रहेगी। (काइस्टस ऑब्जेक्ट लैसन्स-330) ChsHin 301.5
एक यांत्रिकी, वकील, व्यापारी तथा सारे उन्य प्रकार के व्यवयासी, स्वयं को उस क्षेत्र में कार्य करने के लिये अपने आप को शिक्षित करते हैं कि वे उस काम के स्वामी बन सकें । तो क्या प्रभू यीशु के सेवकों को क्या किसी तरह चतुराई में कम होना चाहियें और जबकि वे इस सेवा को करने के लिये चुन लिये गये है, तो क्या उन्हें उन भागों और साधनों से अनभिज्ञ होना चाहिये एक ऐसा साहसिक कार्य जो उन्हें अनंत जीवन देता है, दुनिया के सभी कामों से बड़ा है। आत्माओं को जानकारी और मानव-मस्तिष्क का अध्ययन आवश्यक है। बडे सुलझे हुये विचार और लगातार प्रार्थना की आवश्यकता है और यह जानने की जरुरत है कि स्त्री व पुरुषों तक सच्चाई का महान विषय कैसे पहुंचाया जाये (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 4:67) ChsHin 302.1