प्रभु के लोगों का भरोसा प्रभु में होनला आवश्यक है। प्रभु को उनके परिश्रम करने से असहमति नहीं है, बल्कि वह उनके काम की कद्र करता हैं। स्वर्गीय शक्तियाँ भी उन लोगों का सहयोग करने के लिये नियुक्त है। जो परमेश्वर के साथ परिश्रम करते है। जब हम यह सोचते कि परमेश्वर ने जो कहाँ है, वह नही करेगा, और जो काम हम करते है, उसे देखने का उसके पास समय नही है, तब हम हमारे रचियता का अपना करते हैं। (द सदर्न वॉचमेन-2अगस्त 1940) ChsHin 312.1
हम सब जो प्रभु का काम करते हैं, हमारा पूरा भरोसा केवल प्रभु पर होना चाहिये। शायद उनका प्रतिरुप पसंदीदा न हो किन्तु घोर अंधकार के बाद रौशनी होती है। वे जो प्रभु की सेवा प्रभु से प्रेम, उसमें भरोसा रखकर करते है, उन्हे दिन प्रतिदिन नई सामर्थ प्राप्त होगी जो उन्हें नया बनाती जायेगी। (गॉस्पल वर्क्स-262) ChsHin 312.2
यदि स्वाभाविक भरोसे में हल्कापन सिद्धांतो की दष्ठता और और लक्ष्य के निर्धारण हो तो न समय और न ही परिश्रम उसे कमलोर बना सकते हैं। (काईस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स-147) ChsHin 312.3
कई बार मसीही जीवन में खतरे होते है। और अपना कर्तव्य निभाना मुश्किल हाता है। और कई बार हमारी कल्पना में हमें भविष्य में बर्बादी व विनाश नजर आता हैं फिर गुलामी और मप्यु भी डरती है, फिर भी परमेश्वर का स्वर साफ सुनाई देता है। आंगे बढो हमें इस आज्ञा को मानना है, यधपि हमारी आँखें अंधकार को चीन नही सकती और हमारे पैरो में ठडंक महसूस होती, हमारे पैर कंप कपाते है। जो रुकावटे हमारी सफलता के रास्ते में आती है, वे रुकने वाली और संदेह करने वाली आत्माओं के सामने से कभी नही हटेगीं। वे जो इन सब को पीछे छोड़कर प्रभु के आज्ञाकारी बने रहते, जब तक की शक व संदेह के अंधकार दूर नही हो जाते ,ओर असफलता या हर की कोई गुजाईश ही नही होती वे आज्ञाकारी नही होगी। अविश्वासी तो मन में कहता है। अभी प्रतिक्षा करते हैं। जब तक की रास्ता साफ न ही, रुकावटे दूर न हो जायें। किन्तु एक प्रभु में भरोसे मंद सेवक बहादुरी से आगे बढता, सब चीजों की आशा करता और सब बातों पर विश्वास करता है। (पेट्रिआक्स एण्ड प्रोफेटस 290) ChsHin 312.4